दिल की क़ायनात के नेता बन गये हों l
इश्क़ की महफिल आबाद कर गये हों ll
मिलने मिलाने का नतीज़ा ये हुआ है कि l
रूह का पटारा अरमानों से भर गये हों ll
दूसरों की जिन्दगी में ताकझाँक करनेवाले l
पड़ोसीओ का चैन ओ सुकूं हर गये हों ll
जीवन की नैया डूबने लगती है जब के l
निगाहों से जरा सा जो दूर गर गये हों ll
मुहब्बत की मौसमी बारिस हुई तो l
प्यार और अपनेपन से तर गये हों ll
१-५-२०२४
देश भ्रष्टाचार में फस गया है l
भ्रष्टाचारियों से भर गया है ll
रोज रोज का नया झमेला l
हर आम इंसान डर गया है ll
प्रजातंत्र की जेब है खाली l
महंगाई के मारे मर गया है ll
मन मेला तो तन उजला है l
सत्याचार से पर गया है ll
नित्य नई योजना बन रहीं l
ज़न कल्याण तर गया है ll
नेताओं का पाच साल में l
देखो प्रासाद बन गया है ll
हथेली में चाँद दिखा कर l
सब को शाद कर गया है ll
पोल सब खुल गई है तो l
अब असत्य खर गया है ll
जनता को लूटने के सारे l
बुरे इरादों ने छल गया है ll
दान मंदिर मस्जिदो के l
सब रुपये गल गया है ll
२-५-२०२४
अंधश्रद्धा का विष खतरनाक होता है l
जिंन्दगी मे जीवन से भरोसा खोता है ll
पूजा अर्चना मंत्र देकर क्या क्या करते l
मन के भीतर आशंका के बीज बोता है ll
आँखों पर लालच की पट्टी लगाकर l
अंध विश्वास पर यकीन कर सोता है ll
ख्यालो और सपनों की दुनिया में रखकर l
साथ अपने मानसिक कष्ट को ढोता है ll
जिसने भी सहारा लिया इस ढोंग का l
वहीं आस्था करके सारी उम्र रोता है ll
समाज में रहकर समाज़ को बिगाड़े l
ढोंगी की तरह रंग बदलता तोता है ll
३-५-२०२४
तस्सवुर तन्हा होने नहीं देता l
चैन और सुकूं खोने नहीं देता ll
आज लम्हा भर के लिए आएँगे तो l
मिलने का वादा सोने नहीं देता ll
मिरे हाल पर रहम आ जाता कि l
इन्सानियत है रोने नहीं देता ll
खुश रखने की कोशिश करके l
आंसूं जिगर में बोने नहीं देता ll
वो वक्त रहते टेलिफोन कर देते हैं l
तन्हाई का बोझ ढोने नहीं देता ll
४-५-२०२४
पत्ते तोड़ने से पेड़ गिरा नहीं करते l
पतझड़ आने से गिला नहीं करते ll
दौड़ कर रोक ना पायेंगे कभी भी तो l
जाने वालों के लिए आहें नहीं भरते ll
हल्का हो जाना पड़ता है अंदर से l
यू समंदर की लहरों पर नहीं सरते ll
कोई तो बात चुभी होगी दिल में कि l
सखी निगाहों से अश्क नहीं झरते ll
हमराह बने हो तो आखिर तक रहना l
बिना किसी बात के साथ नहीं हरते ll
कोई बहुत बड़ी चुनौती आई है सामने l
यूही एसे तो किसीसे भी नहीं ड़रते ll
५-५-२०२४
सारा रोटी का झमेला है यहां l
देश के आधे लोग भूखे है जहां ll
रोटी का करो सदा ही सन्मान l
नहीं होती वो क़ीमत है वहां ll
जन्नत सी लगती है सब को l
उसके बिना पेट भरता कहां ll
दिन दिन भटकते हुए को भी l
बड़े कर्मों से मिलती है तहां ll
अमृत सी लगती है बच्चों को l
माँ के हाथ से बनती है जहां ll
६-५-२०२४
खुशी मेहमान की तरह होती हैं l
पल दो पल ठहर के खोती है ll
हथेली में चाँद दिखाकर वो l
कई अरमान दिल में बोती हैं ll
संग सितारों के मिरे साथ l
आज चैन सुकून से सोती हैं ll
गम में गंगा जमना बहती ओ l
खुशी में भी निगाहें रोती हैं ll
दुःख दर्द सहने वालों के लिए l
कोहिनूर सी अनमोल मोती हैं ll
खुशी
खुशी की तलाश में निकल पड़े हैं l
जहां मिलीं वहीं पर पनप रहे हैं ll
जी भरके भीग जाना आज की l
खुशियों के बादल गरज रहे हैं ll
उसे पता चला कि तरसते है l
खुशनसीब है के बरस रहे हैं ll
खुशी एक झलक के लिए तो l
कई युगों से ही तड़प रहे हैं ll
काश कि दामन में डाल दे उसे l
जिसे ताउम्र को तरस रहे हैं ll
७-५-२०२४
ज़िंन्दगी की पहेली कोई नहीं सुलझा पाया l
जीवने कभी खुशी कभी ग़म का राग गाया ll
उसका एक के बाद एक पत्ता खुलता गया l
बारहा रोज नई सुबह नया अध्याय लाया ll
ज़िंन्दगी खुशियों का बाजार बिल्कुल नहीं l
सहने की शक्ति रखो हैं दुःख का भी साया ll
कोई नहीं जान पाया कि ज़िंन्दगी क्या हैं l
जिंदा दिली से जियो तो खूबसूरत छाया ll
क़रीब जाकर देखा तो लगती है अज़ीब l
बला है क़हर है या फिर है कोई माया ll
८-५-२०२४
ज़िंन्दगी झमेला हैं l
इंसान का मेला हैं ll
ज़िंन्दगी इम्तिहान लेने से कहाँ बाझ आती हैं?
हर कदम नीत नये आयाम सामने लाती हैं ll
एहसास ए दर्द बस यही जीवन की सच्चाई l
सूरज की रोशनी से नया सवेरा पाती हैं ll
हर हाल में हंसकर हर लम्हा जीना होगा कि l
कभी खुशी कभी गम का जाम पीला जाती हैं ll
जमाने की ठोकरों से संवारते जिन्दगी को l
यही सोच कर ठोकरों को बनाते बाती हैं ll
भटक जाऊँ कभी तो रास्ता भी दिखाती है l
यहाँ वक्त का हर पल अलग गीत गाती हैं ll
९-५-२०२४
मुहब्बत बेमिसाल होनी चाहिये l
जिनसे हो बेहिसाब होनी चाहिये ll
काटों भरी राहें होती हैं उसकी l
सुरूर सी बेइंतिहा होनी चाहिये ll
बहोत ही नाजुक और कमसिन है l
अजीब सी बेपनाह होनी चाहिये ll
तर्क ए उल्फत सुबह से शाम तक l
कातिलाना लाजवाब होनी चाहिये ll
सखी अनजाने में हुई इस दिल की l
ये बीमारी लाइलाज होनी चाहिये ll
हर हाल में प्यार की बरसात रहे l
माँ जैसी बेतहाशा होनी चाहिये ll
१०-५-२०२४
ज़िंन्दगी चंदन की तरफ महकती रहे l
खुशबु से हर लम्हा साँसे बहकती रहे ll
जब आँखों में मधुमास उतर जाता है l
तब प्यार की बारिस से छलकती रहे ll
जीवन पथ पर चलने की आशाएं बढ़े l
उम्मीदों के उजियारों फ़ैल के बहलती रहे ll
बसंत बहार ने जीवन के पत्तों को खोलके l
मुकम्मल गुलाबी गुलाबों से संवरती रहे ll
जिस्म की खुद की कोई महक नहीं पर l
घिसकर अंगारों की तरह चमकती रहे ll
११-५-२०२४
माँ की ममता बेमिसाल हैं ll
बच्चों के सिर की ढाल हैं ll
माँ की दाट में भी होती मिठास हैं l
बच्चों के लिए माँ होती खास हैं ll
माँ की ममता और करुणा हो वहां l
उस घर में खुदा का होता वास हैं ll
बीच रास्तें वो कभी नहीं छोड़ेगी l
बच्चों का माँ पर पूरा विश्वास हैं ll
हर घर की महारानी हैं वो सुनो l
बगैर उसके घरवाले उदास हैं ll
माँ से महके घर का बाग बगीचा l
महकता मोगरा गुलाब पलाश हैं ll
जिसे भी छू ले धड़कने लगे वो l
गुल गुलशन का श्वासो श्वास हैं ll
माँ के बिना सारा संसार सूना है l
चहेरे पर दिखावे का आभास हैं ll
जहां माँ का सन्मान ओ आदर हो l
साक्षात महालक्ष्मी का रहवास हैं ll
पूरी क़ायनात माँ के गोद में ही l
शांति और खुशियों का निवास हैं ll
प्यार और ममता की बारिश तो l
चैन और सुकून का अहसास हैं ll
सर्वोत्तम संस्कार देकर बच्चों की l
उन्नति के लिए माँ का प्रयास हैं ll
घर के चारों कोने उसके घेरे में l
माँ बुरी नजरों का करती नाश हैं l
१२-५-२०२४
रागद्वेष से ऊपर उठ जाना चाहिए l
अपनों के लिए लूट जाना चाहिए ll
दिल में सिसकती याद बनाकर l
नाम किसीके लिख जाना चाहिए ll
अकाल पड़ा हुआ इंसानियत का l
एकता फैलाने जुट जाना चाहिए ll
गिरते हुए को उठाने की कोशिश l
दौड़ते हुए भी रुक जाना चाहिए ll
लेने की जगह देने की चाह रखो l
देश के लिए मीट जाना चाहिए ll
१३-५-२०२४
वसंती भोर नया सवेरा लेकर आई हैं l
साथ नव प्रफुल्लित ताजगी लाई हैं ll
चारो ओर सुख की सुहानी सुबह l
मनमोहक किरनों की तेज भाई हैं ll
फिझाओ में अमृत का आनंद देके l
पंखीओ ने मधुर रागिनी गाई हैं ll
नव जीवन का लुफ्त उठाने को l
घर आँगन में रंगोली बनाई हैं ll
गाने लगा मन मयूर मधुर गान l
मुर्गों ने लम्बी तान लगाई हैं ll
चुपके चुपके भोर को आते देख l
साथिया संग कलियां सजाई हैं ll
सप्त किरणें बिखरने को तैयार l
प्रकाश पुंज के संग प्रीत रचाई हैं ll
१४-५-२०२४
चेहरे पर चहेरा लगाए घूम रहे हैं यहाँ l
होठों पर जाम लगाए झूम रहे हैं यहाँ ll
तुम से क्या कमाना एसा बोलकर वो l
दोस्ती की आड़ में लूट रहे हैं यहाँ ll
आजकल लोग बीमार के हाल चाल l
दिखावे की ख़ातिर पूछ रहे हैं यहाँ ll
महगाई ने इस तरह से तोड़ा है कि l
दो जोड़े तो चार टूट रहे हैं यहाँ ll
दुनिया की भाग दौड़ में अब तो l
परिस्थिति देख मूक रहे हैं यहाँ ll
१५-५-२०२४