Pyaar Huaa Chupke Se - 12 in Hindi Fiction Stories by Kavita Verma books and stories PDF | प्यार हुआ चुपके से - भाग 12

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 12

अगले दिन रति ऑफिस में बैठी। अपना काम करते हुए बस यही सोच रही थी कि डॉक्यूमेंट्स तो उसने मंगवा लिए है पर उन पर उसका नाम रति लिखा है। और ऑफिस में उसने सबको अपना नाम काजल बताया हुआ है। अब वो अजय को अपने डॉक्यूमेंट्स कैसे देगी? तभी उसकी नज़र सामने से आ रहे अजय पर पड़ी। उसे आते देख रति को वो सब याद आने लगा जो उसने बीती शाम किया था। वो तुरंत उठकर खड़ी हुई और अजय को देखकर बोली- गुड मॉर्निग सर,

"गुड मॉर्निग,अकाउंट की फाइल लेकर मेरे कैबिन में आइए। राइट नाऊ,"- अजय ने बिना उसकी ओर देखे कहा और अपने कैबिन में चला गया। रति परेशान होकर अपनी चेयर पर बैठ गई और मन ही मन बोली- हे महादेव, कही सर मेरी कल की बदतमीज़ी के लिए मुझे नौकरी से ना निकाल दे।

अगर उन्होंने मुझे नौकरी से निकाल दिया तो इस शहर में रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जायेगा। मैं यू काका पर बोझ बनकर तो नही जी सकती और फिर मुझ पर एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी भी तो है। अपने बच्चे को सही-सलामत इस दुनिया में लाने की ज़िम्मेदारी। मुझे अजय सर से अभी माफी मांगनी होगी और अपनी नौकरी बचानी होगी।

रति ने तुरंत नोटपैड उठाया और उस पर सॉरी का नोट लिखकर अजय के कैबिन के दरवाज़े पर पंहुची। बहुत मुश्किल से उसने हिम्मत जुटा कर दरवाजे पर नॉक किया और बोली- मे आय कम इन सर,

"यस कम इन"- अंदर से अजय की आवाज सुनकर रति अंदर आई। अजय ने बिना उसकी ओर देखे अपना हाथ बढ़ाकर कहा- फाइल,

रति ने फाइल की जगह अपना नोटपेड आगे बढ़ा दिया। अजय ने नोटपेड लिया और उसे फाइल समझकर देखने लगा पर नोटपेड पर सॉरी लिखा देखकर वो थोड़ा हैरान हुआ। उसने रति की ओर देखा और उससे कुछ कहने जा ही रहा था कि तभी रति बोल पड़ी- ये सॉरी मेरी कल शाम वाली हरकत के लिए है सर।

अजय बिना कुछ कहे उसे देखने लगा। रति फिर से बोली- वो कल शाम मैं थोड़ी परेशान थी इसलिये मुझसे वो गलती हो गई। आय एम सॉरी... माफ कर दीजिए। आगे से ऐसा नही होगा।

"परेशान तो मुझे आप हमेशा ही लगती है काजल,"- अजय के इतना कहते ही रति ने तुरंत नज़रे उठाकर उसकी ओर देखा तो अजय उठकर खड़ा हुआ और उसके पास आकर बोला- मेरी बात का गलत मतलब मत निकालिएगा काजल। मैंने ऐसा सिर्फ इसलिए कहा क्योंकि जब भी मैं आपको देखता हूं... तो मुझे ऐसा लगता है, जैसे आपकी नज़रे हर वक्त अपने आसपास किसी को ढूंढ रही हो। क्या आपका कोई खो गया है?

अजय के इस सवाल को सुनकर रति को एक बार फिर अपनी आँखो के सामने अपना बीता हुआ कल नज़र आने लगा और वो अजय के सवाल का कोई जवाब नही दे पाई। अजय ने उसे फिर से कहीं खोया हुआ देखा तो पूछा- काजल आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया?

काजल ने इस बार भी कोई जवाब नही दिया। अजय ने फिर से उसे पुकारा पर इस बार भी उसने कुछ नही कहा तो अजय ने आगे बढ़कर उसकी आंखो के सामने चुटकी बजा दी। रति ने चौंककर उसकी ओर देखा तो अजय ने पूछा- आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया काजल। अगर आप किसी परेशानी में है तो मुझे बता सकती है। हो सकता है कि मैं आपकी कोई मदद कर सकूं।

"मुझे आपकी मदद की कोई ज़रूरत नहीं है सर पर आज आपने जो कुछ भी मुझसे कहा है। उसे मैं हमेशा याद रखूंगी। थैंक्यू"- रति के इतना कहते ही अजय के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

वो फिर से आकर अपनी चेयर पर बैठा और फाइल देखकर बोला- काजल जिस ऑफिस में आप काम करती है या फिर मैं ये कहूं कि जो काम इस ऑफिस में किया जाता है। वो मेरा खानदानी बिज़नेस है जिसे मैं आगे बढ़ा रहा हूं।

पर मैं एक इंजीनियर भी हूं और इसके अलावा एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी भी है मेरी... ओंकारेश्वर में एक बहुत बड़ा डैम बनाया जा रहा है जिसका काम मेरी कम्पनी करने जा रही है इसलिए आज से इस ऑफिस का सारा काम मेरे मैनेजर साहब संभालेंगे इसलिये अब आपको उन्हें रिपोर्ट करना होगा। इज डेट क्लियर?

ओंकारेश्वर डैम का नाम सुनते ही रति सोच में पड़ गई। क्योंकि उसे याद आया। इस नदी पर डैम बनते देखना उसके पति का सपना था।

उसे सोच में डूबा हुआ देखकर अजय ने उसे पुकारा- काजल,

पर रति ने कोई जवाब नही दिया क्योंकि वो अभी भी शिव की यादों में खोई हुई थी। तभी अजय ऊंची आवाज़ में बोला- काजल,

"जी सर"- रति चौंककर बोली। अजय अकाउंट की फाइल उसे देते हुए बोला- इसे मिस्टर वर्मा को दे दीजिए और जाकर फैक्ट्ररी का स्टॉक चेक कीजिए और मुझे एक बजे के पहले रिपोर्ट करिए क्योंकि एक बजे मुझे एक मीटिंग के लिए जाना है। जाइए,

रति ने सिर हिलाया और चली गई। उसके जाते ही अजय फिर से अपना काम करने लगा। इधर हॉस्पिटल में शिव फिर से होश में आ गया। आँखें खुलते ही उसने फिर से उठने की कोशिश की तो एक नर्स ने तुरंत आकर उसे पकड़ लिया और बोली- लेटे रहिए। अभी थोड़ी देर पहले ही डॉक्टर ने आपको इंजेक्शन लगाया है।

"नर्स मुझे अपने घर फ़ोन करना है। अपने परिवार को बताना है मुझे कि मैं ज़िंदा हूं। प्लीज़,"- शिव बोला। नर्स दो पल के लिए सोच में पड़ गई पर फिर मुस्कुराते हुए बोली- ठीक है। मैं आपके लिए व्हील चेयर लेकर आती हूं।

शिव के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। नर्स भी मुस्कुराते हुए व्हील चेयर लेने चली गई। शिव मन ही मन बोला- पता नही? मेरे बिना रति उस घर में कैसे रह रही होगी? दादी ...टीना..और ओम के अलावा। घर में कोई उसे पसन्द नही करता।

मेरी मौत की खबर सुनकर ये तीनों तो खुद को ही नही संभाल पा रहे होंगे, तो उसे कैसे संभालेंगे। पहले ही पायल चाची बात-बात पर उसे मनहूस कहती रहती थी और अब तो उन्हें मौका भी मिल गया। मेरे साथ हुए इतने बड़े हादसे का इल्ज़ाम उन्होंने उस पर ही लगाया होगा। और मां? पता नही उनकी तबीयत ठीक होगी या नहीं? मुझे घरवालों को अभी बताना होगा कि मैं ज़िंदा हूं।

शिव दरवाज़े की ओर देखते हुए। बड़ी ही बेचैनी से नर्स के आने का इंतज़ार करने लगा। तभी नर्स व्हील चेयर लेकर आई उसे देखते ही शिव ने बेड से उठने की कोशिश की तो नर्स ने आगे आकर उसे सहारा दिया और उसे व्हील चेयर पर बैठाकर फ़ोन के पास ले जाने लगी।

शिव की धड़कने ये सोच कर तेज़ हो रही थी कि आज वो अपनी रति से बात करने वाला है। नर्स जैसे ही उसे टेलीफोन के पास लाई तो शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

"ये लीजिए... आराम से अपने घरवालों से बात कर लीजिए"- तभी नर्स बोली। शिव ने तुरंत रिसीवर उठाया और अपने घर का नंबर डायल करने लगा।

रिंग जा रही थी और शिव बड़ी बेचैनी से किसी के फोन उठाने का इंतज़ार कर रहा था। तभी उसके घर के नौकर यानि घनश्याम काका ने आकर फ़ोन उठाया और बोले- हैलो,

शिव कुछ कह पाता उसके पहले ही वहां कुछ लोग चीखते हुए स्टेचर पर एक मरीज को लेकर आ गए। घनश्याम की आवाज़ सुनकर शिव के चेहरे पर जैसे चमक सी आ गई। वो तुरंत बोला- काका, काका मैं शिव बोल रहा हूं। काका मैं ज़िंदा हूं।

"कौन बोल रहा है? हैलो...आवाज ठीक से सुनाई नही दे रही है।"- दूसरी ओर से घनश्याम बोले। शिव ज़ोर से चीखते हुए बोला- काका मैं शिव बोल रहा हूं। मैं ज़िंदा हूं। रति से बात करवाइए मेरी........ हैलो, काका सुन रहे है ना आप? रति से बात करवाइए मेरी"- शिव के इतना कहते ही शोर कम हो गया और घनश्याम को रति का नाम सुनाई दिया। वो उदास होकर बोले- किस रति से बात करवाऊं आपकी साहब? बहुरानी तो शिव बिटवा के साथ ही इस दुनिया से चली गई। उसी नदी में समा गई, जहां शिव बिटवा हमें छोड़कर गए थे।

घनश्याम के इतना कहते ही शिव अपनी पलकें झपकाना भी भूल गया और फोन का रिसीवर उसके हाथों से छूट गया।

दूसरी ओर से जब कोई आवाज़ नहीं आई तो घनश्याम ने हैलो-हैलो कहकर रिसीवर नीचे रख दिया और फिर से अपना काम करने लगा पर शिव ना कुछ बोल पाया और ना ही समझ पाया। तभी नर्स वहां आ गई।

"आपकी बात हो गई ना अपने परिवार से? तो अब चलिए...चलकर आराम करिए"- इतना कहकर नर्स उसे ले जाने लगी पर शिव के कानों में अभी भी घनश्याम के शब्द गूंज रहे थे। नर्स उसे सहारा देकर फिर से पलंग पर लेटाने लगी पर तभी शिव ने अपनी बांह उससे छुड़ाई और खुद ही बेड पर बैठ गया।

नर्स ने उसकी नब्ज़ चेक की और फिर उसकी बांह पर एक इंजेक्शन लगाकर वहां से चली गई। शिव बुत बना बैठा था। कुछ ही पलों में उसकी आंखो से आंसू बहने लगे। उसे रति के साथ बिताया एक-एक लम्हा याद आ रहा था। उसकी आवाज़... उसकी हंसी.... घनश्याम के कहे शब्द.....ये सब कुछ उसके कानों में एक साथ गूंजने लगे और उसने अपने कानों पर हाथ रख लिया।

"तुम ऐसा नही कर सकती रति... नही कर सकतीं तुम....तुम मुझे छोड़कर नही जा सकती। तुम तो हमेशा यही कहती थी ना, कि तुम्हारी सांसों की डोरी, मेरी सांसों से बंधी हुई है? तो जब मैं ज़िंदा हूं, तो तुम कैसे मर सकती हो? नही मर सकती हो तुम"- शिव इतना कह कर ज़ोर से चीखा।

जिसकी वजह से उसके सिर में अचानक से तेज दर्द होने लगा। उसने अपने दोनों हाथों से अपने सिर को पकड़ लिया। तभी उसकी आवाज सुनकर डॉक्टर और नर्स दौड़ते हुए वहां आ गए।

डॉक्टर, शिव को बिस्तर पर लेटाते हुए बोले- लेट जाइए....आपकी हालत ठीक नहीं है। ज़्यादा सोचना और चिंता करना... आपकी सेहत और बिगाड़ सकता है। आप थोड़ी देर सो जाइए और अपने दिमाग और शरीर को आराम दीजिए ताकि आप जल्दी ठीक हो सके।

इंजेक्शन की वजह से शिव को धीरे-धीरे नींद आ गई। दूसरी ओर अजय एक होटल में मीटिंग के लिए पहुंचा। जहां शक्ति पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था।

अजय उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाकर बोला- आय एम रियली सॉरी। आप इंदौर से यहां पहुंच गये और मैं यहां रहकर भी लेट हो गया। उसके लिए माफी चाहता हूं।

शक्ति ने उसके हाथ की ओर देखा और फिर उसे घूरते हुए बोला- मिस्टर अजय, अगर आपको मेरे साथ काम करना है तो आइंदा मुझे इंतज़ार मत करवाइएगा। मुझे वेट करवाने वाले लोग बिलकुल पसन्द नही है।

"मैं अपने लेट आने के लिए एक बार फिर आपसे माफी मांगता हूं। आय एम रियली सॉरी,"- अजय के इतना कहते ही शक्ति सामने वाली चेयर की ओर इशारा करते हुऐ बोला- बैठिए, काम की बात कर ले।

"श्योर"- अजय तुरंत सामने वाली चेयर पर बैठ गया। उसके बैठते ही शक्ति ने एक फाइल उसकी ओर बढ़ाई और बोला- ये ब्लू प्रिंट अच्छे से देख लीजिए। ये मेरे स्वर्गीय भाई शिव कपूर ने बनाए थे इसलिए ये डैम ऐसा ही बनेगा, जैसा डिज़ाइन किया गया है।

गवरमेंट से भी ये अप्रूव हो चुका है इसलिए मैं चाहता हूं कि नेक्स्ट वीक से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो जाये और क्योंकि आप इस प्रोजेक्ट के इंचार्ज है तो ये आपका काम है कि ये डैम वक्त पर बनकर रेडी हो जाए।

अजय तुरंत बोला- जी सर, मैं जानता हूं। मैं आज ही सारे सप्लायरों से बात करता हूं। मटेरियल की टेस्टिंग भी जल्द ही शुरू करवा देता हूं।

"नही, आप सिर्फ़ सारे मटेरियल सप्लायरों की मीटिंग अरेंज करिए। उनसे बात मैं खुद करूंगा"- शक्ति की बाते सुनकर अजय उसे हैरानी से देखने लगा। तभी शक्ति ने उसकी ओर देखा और फिर से बोला- अब चलिए और मुझे साइट विजिट करवाइए। वक्त की कमी है मेरे पास। चलिए,

शक्ति इतना कहकर अपनी चेयर से उठा और चश्मा लगाकर आगे बढ़ने लगा। अजय कुछ देर वही बैठा शक्ति के बारे में सोचता रहा, पर तभी शक्ति ने अपने कदमों को रोका और पलटकर अजय की ओर देखकर बोला- मिस्टर अजय..... मैं आपका इंतज़ार करने के लिए अपना काम छोड़कर यहां नही आया हूं। चलिए,

"यस सर"

अजय तुरंत उठकर तेज़ी से शक्ति के पीछे चल दिया। दोनों शक्ति की कार में बैठे तो शक्ति ड्राइव करने लगा। अजय उसकी बगल में बैठा फाइल देख रहा था पर ब्लू प्रिंट्स पर शिव का नाम देखकर वो अपसेट होकर बोला- शिव सर से मिलने की मेरी बड़ी ख्वाहिश थी पर किस्मत ने मिलने का मौका नहीं दिया। तीन महीने पहले उनकी मौत की ख़बर अखबार में पढ़ी तो बहुत दुःख हुआ।

उसकी बातें सुनकर शक्ति भी बोला- इस नदी पर डैम बनते देखना मेरे भाई का सपना था। जान लगा दी थी उसने गवरमेंट से इस प्रोजेक्ट को हासिल करने में। अब मैं उसके इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करना चाहता हूं इसलिए कोई गलती नही चाहता। साइट पर पहुंचते ही मुझे सारे मटेरियल सप्लायरों की लिस्ट चाहिए।

अजय ने आहिस्ता से सिर हिला दिया। तभी उसे कुछ याद आया। वो शक्ति की ओर देखकर मन ही मन बोला- ओह गॉड, मैं मटेरियल सप्लायरों की लिस्ट वाली फाइल तो ऑफिस में ही छोड़ आया हूं। ये बात अगर मैने शक्ति सर को बताई तो इनके तेवर देखकर तो लग रहा है कि ये अभी और इसी वक्त मुझे इस प्रॉजेक्ट से बाहर कर देंगे। मुझे कैसे भी करके ऑफिस से फाइल मंगवानी होगी पर कैसे? साइट पर तो टेलीफोन भी नही होगा। मैं ऑफ़िस फोन करूंगा कैसे?

अजय यही सब सोच कर परेशान हो गया और फिर से मन ही मन बोला- काश कि कोई ऐसा टेलीफोन होता। जिसे हर पल अपने पास रखा जा सकता और जब चाहे, जिस वक्त चाहे, जिससे चाहे, बात की जा सकती।

तभी उसकी नज़र एक दुकान पर पड़ी। वो तुरंत शक्ति से बोला- सर प्लीज़ जरा गाड़ी रोकिए। मुझे प्यास लगी है। मैं सामने की दुकान से पानी पीकर बस अभी आया।

शक्ति ने उसे घूरा पर ना चाहते हुए भी उसे अपनी गाड़ी रोकनी पड़ी। उसके गाड़ी रोकते ही अजय गाड़ी से उतरा और दौड़ता हुआ दुकान में पहुँचा। उसने पलटकर गाड़ी में बैठे शक्ति की ओर देखा और फिर दुकानदार से बोला- मुझे एक फोन करना है। कर सकता हूं?

"क्यों??? ये टेलीफोन क्या तुम्हारे बाप ने लगवाया है??? जिसे देखो फोन करने चला आता है।"- सामने खड़ा दुकानदार बोला। अजय ने उसे घूरते हुए अपनी पेंट की जेब से वॉयलेट निकाला और उसमें से बीस का नोट निकालकर उसे देते हुए बोला- अब तो कर सकता हूं ना?

"हां साहब ज़रूर कर सकते हो। आपका ही तो टेलीफोन है।"- दुकानदार की ये बात सुनकर अजय ने अपना सिर हिलाया और तुरंत रिसीवर उठाकर नंबर डायल किया।

दूसरी ओर ऑफिस में लंच ब्रेक हो चुका था इसलिए रिसेप्शन पर कोई नही था। बस रति अकेली अपनी डेस्क पर बैठी काम कर रही थी।

टेलीफोन की ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज उसके कानों में पड़ी तो उसने अपने हाथ में ली हुई फाइल टेबल पर रखी और फिर रिसेप्शन पर आई। उसने रिसेप्शन पर आकर इधर-उधर देखा तो उसे कोई नज़र नही आया। वो रिसीवर उठाकर बोली- हैलो,

रति की आवाज़ सुनकर अजय तुरंत बोला- काजल मैं मटेरियल सप्लायरों की लिस्ट वाली, एक ज़रूरी फाइल गलती से अपनी टेबल पर छोड़ आया हूं। नीले रंग की फाइल है। प्लीज़ उसे सुनील के हाथों मेरे बताए पते पर अभी और इसी वक्त भिजवाओ। जल्दी से एड्रेस नोट करो।

"जी सर एक मिनिट"- इतना कहकर रति ने नोटपेड और पेन उठाया। अजय ने जल्दी से उसे एड्रेस नोट करवाया और बोला- प्लीज़ काजल फाइल जल्दी भिजवाओ ।

"जी सर"- रति के इतना कहते ही अजय ने रिसीवर नीचे रखा और दौड़ता हुआ चला गया। रति भी जल्दी से अजय के कैबिन में आई। उसे नीले रंग की फाइल सामने टेबल पर ही मिल गई थी। उसने फाइल उठाकर देखी और उस एरिया में पहुंची। जहां सब लंच कर रहे थे। उसकी नज़रो ने सुनील को ढूंढा तो वो वही बैठा खाना खा रहा था।

"सुनिलजी को खाना खाते वक्त परेशान करना ठीक नहीं है। ये जगह ज़्यादा दूर नहीं है, मैं खुद ही चली जाती हूं।"- रति खुद से बोली और फिर से अपनी डेस्क पर आई। उसने अपना बैग उठाकर कन्धे पर डाला और वहां से लेकर चली गई।

लेखिका
कविता वर्मा