सीमा असीम, बरेली
9458606469
“यात्रा वृतांत” हिमाचल प्रदेश
“शिमला के एक गाँव में, तारों की छांव में”
करोना काल में लॉकड़ाउन के कारण 6 महीने तक घर के अंदर कैद रहने के बाद दिल घबराने लगा था, और कहीं बाहर निकल के घूमने जाने का मन कर रहा था । ऐसे समय में घर परिवार के लोग बिलकुल नहीं चाहते थे कि घर का कोई भी सदस्य बाहर कहीं भी जाये तो फिर घूमने जाने देने का तो सवाल ही नहीं उठता था। उनका कहना था कि तुम तो घूमने जा रहे हो और वहां से करोना लेकर आ गये तो फिर क्या होगा लेकिन कहते हैं ना जब मन में उमंग उठ जाए तो फिर कोई रोक नहीं सकता चाहे कोई कुछ कर ले। तो यही हुआ और हम 3 लोगों ने मिलकर हिमाचल प्रदेश शिमला के गांव मेँ घूमने जाने का प्लान बनाया हालांकि हम समझ रहे थे कि ऐसे ही घूमने जाना, होटल मेँ रुकना आदि बिल्कुल भी सही नहीं है तो सारी जरूरी एहतियात के साथ हम घर से निकलने की तैयारी कर रहे थे । सभी ने अपना अपना करोना टेस्ट कराया और फिर नियत दिन पर हम तीन लोग घर से निकल लिए । खैर प्लान बहुत अच्छा बन गया था ।
कार सरपट हाईवे पर दौड़ रही थी । हम लोग fm पर गाने सुन रहे थे । गाना बज रहा था “जिंदगी एक सफर है सुहाना,” वाकई बहुत अच्छा गाना था और मौसम भी सुहाना था, साथी भी अच्छे थे, सफर भी अच्छा था और कार में हम मजे में बैठकर गाते गुनगुनाते चले जा रहे थे । कार को दौड़ते हुए लगभग 3 घंटे हो गए थे और अब हम सब लोगों को खाने पीने का मन करने लगा था । कार रोक कर बाहर का कुछ खा पी नहीं सकते थे क्योंकि घर से हम लोगों को अल्टीमेटम मिला हुआ था बाहर का कुछ भी खाना पीना नहीं है । जो कुछ भी खाना साथ में है बस वही खाना है । हम लोगों ने चलती कार में ही थोड़ा बहुत स्नैक्स वगैरा खा लिए । अब दोपहर के खाने का समय होने लगा था और अभी हमें पहुंचने में करीब 5 घंटे 6 घंटे का समय और लगना था तो खाने के लिए कार को रोका और वहीं सड़क के किनारे चादर बिछा कर खाना खाना शुरु कर दिया क्योंकि हमें किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने की परमिशन घर से नहीं मिली थी और इस कोरोनाकाल में बाहर खाना सुरक्षित भी नहीं था।
हम लोग अपना खाना घर से लेकर आए थे। आलू की सब्जी, करेले की सब्जी, पूरी को खाया और साथ में लाई हुई चाय को पिया और फिर जल्दी-जल्दी बाकी बचा सारा सामान पैक करके रखा । कार में बैठकर आगे की यात्रा शुरू कर दी क्योंकि हमें जल्दी ही वहां तक पहुंचना था और चार-पांच दिन गाँव के एक घर में रुक कर वापस लौटना था। घर में इसलिए रुकना था क्योंकि इस समय किसी होटल में रुकना सही नहीं है जैसे कि बाहर का खाना पीना सही नहीं है उसी तरह से इन दिनों होटल आदि में रहना भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि कोरोनावायरस बहुत बुरी तरह से फैला हुआ है और इसकी वैक्सीन जब तक नहीं आ जाती तब तक पूरी एहतियात बरतनी बहुत जरूरी है ।
हम सबकी एक साथ की यात्रा दिल्ली से शुरू होकर सोनीपत, पानीपत, करनाल, हवेली, अंबाला और चंडीगढ़ आदि शहरो को पीछे छोड़ते अब परवाणू में प्रवेश कर गई थी और यहां से शुरू हो गया था पहाड़ी इलाका।
हरे भरे पहाड़ दिखने शुरू हो गए थे टेंपरेचर डाउन होना शुरु हो गया था । 40, 42 वाला टेंपरेचर अब 20, 22 पर आकर रुक गया था हम लोगों ने अपनी कार का एसी भी बंद कर दिया और खिड़कियां खोल ली ।
कुमार हट्टी सोलन को पार करते हुए हम शिमला के रास्ते गाँव पहुंच रहे थे । वहीं पर लवर्स पॉइंट पर गाड़ी को रोक दिया और कुछ देर खड़े होकर फोटो वगैरा खींचे । बहुत सुंदर स्थान है, दूर दूर तक हरी भरी पहाड़ियाँ ही पहाड़ियाँ । यहां पर दूर-दूर से लोग आते हैं फोटो खींचते हैं और चले जाते हैं । इस जगह का नाम लवर्स प्वाइंट है इसीलिए यहां पर कपल लोग ज्यादा थे ।
यह पहाड़ी इलाका था और कार की रफ्तार कम हो गई थी । वैसे तो जैसे ही पहाड़ शुरू हुए कार की स्पीड कम हो गई थी क्योंकि रास्ते बहुत घुमावदार थे हालांकि रास्ते में ट्रैफिक बिलकुल नहीं था फिर भी अपनी सहूलियत के लिए हल्के कार चलाना ज्यादा सुरक्षित था।
बस थोड़ी सी दूरी और बची थी । हम सब अपनी जगह पर पहुंचने ही वाले थे। कुफरी से निकलकर ठियोग होते हुए हम मतियाना पहुंच गए । यहाँ से लगभग 4 किलोमीटर आगे एक छोटे से गाँव तक जाना था । करीब 15 मिनट में वह गाँव भी आ गया जहां हमें रुकना था । अभी शाम के करीब 5:00 बज रहे थे । हमारे एक साथी उतरते ही सबसे पहले लाइव वीडियो बनाने लगे और मैं तथा दूसरी साथी खुशी के मारे प्रफुल्लित हो गए क्योंकि इतना हरा भरा पहाड़ी गाँव था कि पूरे रात दिन की सफर करने के की थकान भी महसूस नहीं हो रही थी । यहां की हरियाली, पेड़ पौधे, फूलों और पहाड़ों, वादियों को देखकर मन एकदम खुशी से झूमने लगा था । हम रात भर और पूरे दिन का सफर करने के बाद यहां पर पहुंचे थे और यहाँ आकर बहुत खुश हो गये थे । एक तो छह महीने के बाद कहीं जाने को मिला था और यहाँ आकर मास्क से भी छुटकारा मिल गया था ।
हम लोग वहां पर पहुंच कर आनंद ले ही रहे थे कि हम लोगों के लिए उन लोगों ने गरम गरम चाय नाश्ता लगा दिया । हालांकि अभी हम लोगों को भूख नहीं लग रही थी लेकिन उन लोगों ने इतने प्यार से नाश्ता रखा था तो थोड़ा-थोड़ा नाश्ता खाया, चाय पी और बाहर कुर्सियों पर आकर बैठ गए । मौसम बहुत ठंडा ठंडा हो रहा था । बोन फायर के सामने बैठकर थोड़ी गर्माहट का अहसास होने लगा । उसी बीच एक लड़की जो वहां पर काम कर रही थी वह चाय लेकर आ गई । सच में थकान तो पता ही नहीं चल रही थी । खाना खाने के बाद बहुत अच्छी नींद आने लगी थी । आग के सामने बैठने से गर्माहट शरीर में भर रही थी । मन कर रहा था जाकर बिस्तर में लेट कर सो जायें ।
अभी हम लोग खुले आसमान के नीचे बैठे थे। ऊपर तारों की छतरी लगी हुई थी और नीचे हम लोग बोन फायर का आनंद ले रहे थे। 6 महीने के बाद घर से निकलने की जो खुशी होती है वह तो वर्णन ही नहीं की जा सकती है। हम लोग थोड़ी देर के बाद बातचीत करके सोने के लिए अपने अपने कमरे में चले गए । सुबह बहुत जल्दी आंख खुल गई, देखा तो सूरज देवता अपनी किरणों और रोशनी के लाव लश्कर के साथ निकल आए हैं और पहाड़ों पर धूप उतरने लगी है। अधिकतर पहाड़ी इलाकों में सूरज जल्दी निकलता है और डूबता भी बहुत जल्दी है। सुबह के प्रकृतिक नजारों के साथ हम सभी लोग अपनी अपनी लाइव वीडियो बनाने में लगे हुए थे और फेसबुक या अन्य सोशल साइट पर अपडेट कर रहे थे।
हम लोग नहा धोकर फ्रेश हुए और ट्रैकिंग करने के लिए पास ही एक जगह जाने के लिए तैयार हो गए । तब तक चाय नाश्ता भी आ गया था हम तीनों ने मिलकर नाश्ता किया, चाय पी और पास में ट्रैकिंग करने के लिए निकल गए । वहां पर झरना भी बह रहा था और झरने के सहारे चलते हुए हम लोग उसी के ऊपर ट्रैकिंग करते हुए वहाँ पहुंचे, जहां पर सेब के बहुत अच्छे फल और अन्य फलों के पौधे लगे हुए थे। वहां के जो मालिक थे उन्होंने उसमें से दो सेब हम लोगों को तोड़कर भी दिए। उन सेबों का स्वाद बिल्कुल अलग था, बहुत स्वादिष्ट, रस से भरे हुए और एकदम से लाल सुर्ख रंग। वहीं से सर्पगंधा का पौधा लिया और वापस अपने कमरे पर लौट कर आ गए । सिर्फ 4 दिन के लिए ही घूमने का प्लान बनाया था क्योंकि ज्यादा दिन रुक नहीं सकती थी । अभी करोना काल चल रहा था और अनलॉक शुरू हो गया था लेकिन सरकारी ऑफिस खुल गए थे और बाकी जो स्कूल कालेज है वह भी टीचर लोगों के लिए खुल गए थे बस अभी बच्चों को स्कूल आना मना था, उनके ऑनलाइन क्लासेज चलने शुरू थे ।
आज हमलोगों ने नारकण्डा घूमने का मन बनाया और फिर वहाँ जा पहुंचे। बेहद खूबसूरत प्रकृति का नजारा यहाँ हर तरफ बिखरा हुआ है । सुंदरता के साथ साथ यहाँ पर रोमांच का अहसास भी होता है क्योंकि भारत का सबसे पुराना स्कीइंग डेस्टिनेशन भी है । नारकण्डा प्रकृति की सुंदरता से घिरा हुआ इतना प्यारा लगता है कि ऐसा लगता है प्रकृति ने इसे ही अपनी सारी सुंदरता दे दी हो, चारो तरफ हरियाली फैली हुई है यहाँ पर घूमते हुए ऐसा लगता है कि हम इस दुनिया में नहीं बल्कि किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं । रंगीन फिज़ाओं में बसा और चारो तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है । ऊंचे ऊंचे रई, कैल और ताश के पेड़ और उनसे आती हुई ठंडी हवा इस शांत और सुरम्य वातावरण में बेहद सुखद लग रही थी । पहाड़ों पर धूप ऐसे चढ़ रही थी कि एक पहाड़ फिर दूसरा पहाड़ फिर उसके पीछे का पहाड़ । प्रकृति के नजारे के बीच आप यहाँ नारकंडा के बाज़ार को देख सकते- हैं । यहाँ का बाजार उतना ही है जितनी यहाँ की एक सड़क । एक छोटा सा बाजार है जिसमें छोले पूरी से लेकर कीटनाशक दवाइयाँ तक मिलती हैं । अगर आपको यहाँ के सेबों का आनंद लेना है तो मालिक से पूछकर ले सकते हैं, यहाँ के लोग बेहद प्यारे हैं वे सेब या अन्य कोई फल लेने से मना नहीं करेंगे । यहाँ एक काली मंदिर है जिसके पीछे कुछ तिब्बती परिवार भी रहते हैं ।
नारकंडा की सबसे प्रसिद्ध जगह है हाटू पीक, जिसे नारकंडा हिल स्टेशन की सुंदरता का नगीना कहा जा सकता है। ये नारकंडा की सबसे ऊँचाई पर स्थित है, समुद्र तल से इसकी ऊँचाई करीब 12,000 फुट है। इस चोटी पर हाटू माता का मंदिर है, इस मंदिर को रावण की पत्नी मंदोदरी ने बनवाया था। यहाँ से लंका बहुत दूर थी लेकिन मंदोदरी हाटू माता की बहुत बड़ी भक्त थी और वे यहाँ हर रोज़ पूजा करने आती थीं। हाटू पीक नारकंडा से 6 कि.मी. की दूरी पर है। नारकंडा से थोडा ही आगे निकलने पर रास्ता कट जाता है, जो हाटू चोटी की ओर जाता है। हवा बहुत सर्द थी, जो थोड़ा-थोड़ा ठंड का एहसास करा रही थी। हाटू मंदिर से 500 मीटर आगे चले तो तीन बड़ी चट्टानें मिलीं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये भीम का चूल्हा है। पांडवों को जब अज्ञातवास मिला था तो वे चलते चलते इस स्थान पर रुके थे और यहाँ पर खाना बनाकर खाया था। इन पत्थरों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनपर कितने बड़े बर्तनों में खाना बनाया जाता होगा वे पांडव कितने बड़े और शक्तिशाली होंगे ।
खैर फिर हम लोग वापस आ गए और आकर हम सब आपस में गपशप करते रहे और आसपास के बाग बगीचे में घूमते रहे । वे पहाड़ी बगीचे जिसमें नीचे उतरते हुए ढलान पर पौधे होते हैं तो उनमे घूमते हुए चढ़ उतर रहे थे फिर हम लोगों ने वहीं से भुट्टे तोड़े और उनको आग में भुना कर उनका भी स्वाद लिया । अपने हाथ से टूटे हुए ताजे ताजे भुट्टे खाने में बहुत अच्छे लग रहे थे।
आज भी रात को खुले आसमान में सितारों की छतरी के नीचे बैठकर बोन फायर का आनंद लिया । अगले दिन हम लोग सुबह वहां के स्थानीय मार्केट में गए । करोने की वजह से मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन का पूरा ख्याल रखते हुए गाँव की दुकानों में घूमे । जो वहां की प्रसिद्ध चीजें थी वह खरीदी और वापस अपने कॉटेज पर आ गए । आज की रात को यहाँ पर और रुकना था और कल सुबह सुबह वापस अपने घर के लिए निकलना था । 6 महीने की बंदिश के बाद यह 4,5 दिन बड़े राहत भरे थे।
हम लोग वापस जाने के लिए सुबह जल्दी निकल लिये । नाश्ते में हम लोगों ने चाय और ब्रेड खा ली थी। बस वही खाकर हम अपने कम से कम 8, 9 घंटे के लंबे सफर पर कार से निकले थे । रास्ते में कहीं रुकना नहीं था, चाय भी नहीं पीनी थी क्योंकि करोना की वजह से हम लोग किसी ढाबे या होटल को अवॉइड कर रहे थे । पेट्रोल पंप पर पेट्रोल डलवाने के लिए गाड़ी रोकी तो मेरी साथी बोली कि “मुझे बाथरूम जाना है” लेकिन मैंने उसे मना करते हुए कहा, “नहीं अभी मत जाओ यहां पर सब तरह के लोग इसे इस्तेमाल करते होंगे और यह सुरक्षा की दृष्टि से अभी सही नहीं है।” वह मेरी बात मान गई और बाथरूम नहीं गई हम कार में ही बैठे रहे । चलो फिर इसी रास्ते में कहीं पर गाड़ी रोक देंगे फिर तुम कहीं जंगल में या सड़क के किनारे पेड़ के आस पास चली जाना । जहां पर कोई देख भी नहीं रहा होगा और वह सबसे सेफ जगह भी होगी हालांकि ऐसे जाना सही नहीं है लेकिन मेरे ख्याल से वह सुरक्षा की दृष्टि से सबसे सही जगह होगी।“
ठीक है चलो ऐसा ही करते हैं । अभी हम लोगों को लंबा सफर तय करना था । करीब 2 घंटे का ही सफर किया होगा कि रिमझिम करके बारिश शुरू हो गई । पहाड़ी इलाके और बारिश, सफर का मजा आने लगा था । रास्ते में बारिश का आनंद लेते हुए हम तरोताजा होकर वापस अपने सफर से घर लौट रहे थे ।