Wo Meri Galti Thi in Hindi Fiction Stories by Vijay Sanga books and stories PDF | वो मेरी गलती थी

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वो मेरी गलती थी

दिल्ली के रहने वाले तीन पक्के दोस्त , अरूण मंजीत और संजू , अपनी स्पोर्ट्स बाइक पर दिल्ली से उत्तराखंड जाने के लिए निकले थे। उन तीनो को अपनी स्पोर्ट्स बाइक पर घूमना बहुत ज्यादा पसंद था। वो तीनो अक्सर अपनी बाइक्स पर अलग अलग जगह पर घूमने के लिए जाया करते थे । उन तीनो को एडवेंचर्स बहुत पसंद था।

एक दिन तीनो संजू के घर मे बैठ कर टीवी देखते हुए बीयर पी रहे थे की तभी मंजीत , संजू और अरूण से कहता है, “अरे भाई तुम दोनो ये बताओ, इस बार हम लोग घूमने के लिए कहां चल रहें हैं?”

“मैं तो कहता हूं इस बार लद्दाक चलते हैं।” संजू , मंजीत और अरूण से कहता है।

“अरे नही यार, इस बार हरी भरी जगह घने का मन है। क्यों ना नेपाल चला जाए?” अरूण उन दोनो से कहता है।

इतने में मंजीत बीच में आते हुए कहता है, “अरे भाई अभी ठंड चल रही है, अगर हम लद्दाक गए तो हमारी कुल्फी जम जायेगी। मेरी खयाल से अरूण की बात सही है, हमे नेपाल चलना चाहिए।

तीनो डिस्कशन करने के बाद नेपाल जाने का तय कर लेते हैं। वो तीनो chill करते हुए टीवी देख ही रहे होते हैं की तभी मंजीत के फोन पर उसके पापा का फोन आता है।

अपने पापा से फोन पर बात करने के बाद मंजीत उदास चेहरे के साथ संजू और अरूण से कहता है, “लगता नही यार की हम लोग नेपाल जा पाएंगे। अभी पापा का फोन आया था, उन्होंने बताया की दस दिन बाद मेरी छोटी बहन पूर्वी का जन्म दिन है। अगर मैं उसके जन्मदिन पर यहां नही रहा तो परिवार वाले मेरी हालत खराब कर देंगे।”

मंजीत की बात सुनने के बाद अरूण और संजू फिर से किसी ऐसी जगह का सोचते हैं जो हरी भरी वादियों से भरी हो और ज्यादा दूर भी ना हो। तभी अरूण को उत्तराखंड का खयाल आता है। वो मंजीत और संजू से उत्तराखंड चलने के लिए कहता है।

उत्तराखंड भी हरी भरी वादियों से भरा हुआ था और साथ ही मे पास भी था। तब तक वो मंजीत के बहन के जन्मदिन के पहले ही लौट सकते थे।

तीनो फैसला कर लेते हैं वो वो लोग उत्तराखंड घूमने के लिए जायेंगे। तीनो अपने परिवार वालो से बात करने के बाद उत्तराखंड के लिए निकल जाट हैं।

तीनो ने अपने helmets मे कैमरे लगा रखे थे, ताकि वो पूरे सफर की यादों को कैमरे मे सूट कर सकें। लगभग 7 घंटे के सफर के बाद वो तीनो नैनीताल के जंगल वाले रास्ते पर पहुंच जाते हैं।

वो तीनो तेज रफ्तार मे बाइक भगाए जा रहे थे। जब वो तीनो एक मोड़ पर तेजी से मूड़ रहे थे तब अचानक कहीं से एक बकरी उनके सामने आ जाती है। बकरी के पीछे पीछे एक 12 से 14 साल के बीच की लड़की भी बकरी को पकड़ने के लिए भागी चली आ रही थी।

संजू और अरूण तो आराम से आगे निकल जाते हैं, लेकिन मंजीत के सामने अचानक बकरी के आ जाने से वो अपनी बाइक का संतुलन नही बना पता। बकरी तो उसकी बाइक से बच जाती है, लेकिन बकरी के पीछे आ रही लड़की उसकी बाइक से टकरा जाती है।

मंजीत का एक्सीडेंट होता देख अरूण और संजू रूक जाते हैं। वो दोनो पलट कर आते हैं तो देखते हैं मंजीत अपनी बाइक के नीचे फंसा पड़ा था।

संजू और अरूण , मंजीत को बाइक के नीचे से निकालते हैं और फिर संजू उससे पूछता है, “मंजीत..! तू ठीक तो है ना? तुझे कहीं चोट तो नही लगी?”

लेकिन मंजीत , संजू की बात का कोई जवाब नही देता। वो लंगड़ाते हुए रोड के साइड की तरफ जाने लगता है। संजू और अरूण को समझ में नहीं आया की मंजीत कहां जा रहा था?

थोड़ी दूर जाकर मंजीत के कदम रूक जाते हैं। वो देखता है की जो लड़की उसकी बाइक से टकरा गई थी, वो बहुत ही ज्यादा जख्मी हालत मे रोड के किनारे बेहोश पड़ी थी।

तभी अरूण और संजू भी वहां पर आ जाते हैं। उस लड़की को उस हाल में देखकर उन दोनो की आंखें फटी की फटी रह जाती है। वो दोनो को अब घबराहट हो रही थी।

“मंजीत...! हम लोगों को यहां से निकलना चाहिए, अगर हम लोगों को किसी ने यहां पर देख लिए तो हम तीनो बड़ी मुसीबत मे फंस जायेंगे।” संजू उस लड़की को देखते हुए मंजीत और अरूण से कहता है।

“कैसी फालतू बात कर रहा है यार तू..! हम इसे ऐसे कैसे यहां छोड़कर जा सकते हैं? एक काम करते हैं हम लोग इसे हॉस्पिटल लेकर चलते हैं।"मंजीत अपने दोस्तों से कहता है।

लेकिन अरूण और संजू उसकी बात से सहमत नही थे। उनको डर था की कहीं उनपर पुलिस केस ना बन जाए। वो दोनो मंजीत को बहुत समझाते हैं।

कुछ देर तक तो मंजीत उनकी बात नही मानता, लेकिन वो भी अरूण और संजू के मुंह से पुलिस का सुनकर घबरा जाता है। वो तीनो वहां से निकलने को ही होते हैं की तभी मंजीत उस लड़की का हांथ हिलता हुआ देख लेता है।

ये जानते हुए भी की वो लड़की जिंदा थी, और सही समय पर हॉस्पिटल ले जाने से उसकी जान बच सकती थी, फिर भी वो तीनो वहां से भाग जाते हैं।

वो बेचारी लड़की मदत के लिए पुकारते पुकारते अपना दम तोड़ देती है। बहुत सी गाड़ियां वहां से गुजरी, लेकिन कोई भी उस लड़की की मदत करने के लिए वहां पर नही रूका।

वहीं दूसरी तरफ संजू , मंजीत और अरूण अपने अपने घर लौट चुके थे। संजू और अरूण को तो ज्यादा टेंशन नहीं थी, लेकिन मंजीत बहुत ज्यादा घबराया हुआ था। उसको बार बार उसी लड़की का चेहरा याद आ रहा था।

कुछ दिनों बाद मंजीत की छोटी बहन का जन्मदिन आ गया। मंजीत के घर पर बहुत बड़ी पार्टी रखी गई थी। बहुत से मेहमान आए हुए थे।

मंजीत अपने दोस्तों के साथ एक तरफ कुर्सियों पर बैठकर बात कर रहा था। तभी मंजीत के पापा उसको आवाज देते हुए कहते हैं की केक कट करने का समय हो गया है।

सभी लोग एक जगह जमा हो जाते हैं। मंजीत की छोटी बहन पूर्वी केक काटने ही वाली होती है की तभी मंजीत को एक पल के लिए अपनी बहन मे वो लड़की नजर आती है जिसका उसकी बाइक से एक्सीडेंट हो गया था।

मंजीत अपनी बहन मे उस लड़की का चेहरा देखकर घबराहट के मारे नीचे गिर पड़ता है। वो डर के मारे बड़बड़ाने लगता है, “मुझे माफ कर दो, मुझसे गलती हो गई। Please मुझे माफ कर दो।”

अपने बेटे को ऐसी हरकत करता देख मंजीत के पापा उसके पास आते हैं और फिर उससे पूछते हैं, “बेटा तुझे अचानक क्या हो गया? और तू माफी किससे मांग रहा है?”

मंजीत अपने पापा की बातों को अनसुना कर वहां से घर के अंदर भाग जाता है। मंजीत के दोस्त संजू और अरूण भी उसके पीछे जाने लगते हैं।

अपने बेटे को ऐसा देख मंजीत के पापा को कुछ शक sa होने लगता है। उन्होंने लगने लगा की जरूर मंजीत के साथ कुछ तो हुआ है।

वहीं मंजीत अपने कमरे मे जाकर कमरे का दरवाजा बंद कर लेता है। संजू और अरूण उसको दरवाजा खोलने के लिए कहते हैं पर वो दरवाजा नही खोलता। वो डर से थरथराता हुए अपने कमरे के एक कोने मे बैठा हुआ था।

कुछ देर तक जब मंजीत अपने कमरे का दरवाजा नही खोलता तो संजू और अरूण वापस गार्डन मे पहुंच जाते हैं।

मंजीत की छोटी बहन पूर्वी अपने भईया के बिना केक नही काटना चाहती थी। लेकिन उसके पापा उसको कहते हैं की उसके भईया की तबियत थोड़ी खराब है इसलिए वो अपने कमरे मे आराम कर रहा है।

अपने पापा के समझाने के बाद पूर्वी केक काट देती है। सभी लोग पार्टी के बाद अपने अपने घर चले जाते हैं। सभी लोगों के जाने के बाद संजू और अरूण भी अपने घर जाने को होते हैं की तभी मंजीत के पापा उन दोनो को रोक लेते हैं।

मंजीत के पापा अरूण और संजू से पूछते हैं की मंजीत इस तरह से behave क्यों कर रहा है? कुछ देर तक तो संजू और अरूण इधर उधर के बहाने करते हैं, लेकिन जब मंजीत के पापा उन दोनो से गुस्से मे पूछते हैं तो वो दोनो उन्हे सबकुछ सच सच बता देते हैं।

संजू और अरूण से सब जान लेने के बाद मंजीत के पापा उन दोनो को अपने घर जाने के लिए बोल देते हैं, और साथ मे ये भी समझा देते हैं की वो उन दोनो किसी को भी इस बारे में ना बताए।

थोड़ी देर बाद मंजीत के पापा उसके कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए कहते हैं, “बेटा मंजीत...! मुझे संजू और अरूण ने सब कुछ बता दिया है। तू घबरा मत, मैं तुझे कुछ नही होने दूंगा।”

अपने पापा की बात सुनने के बाद मंजीत अपने कमरे का दरवाजा खोल देता है। वो अपने पापा के गले लग जाता है और फिर रोते हुए कहता है, “सब मेरी गलती थी पापा। मैं बहुत ज्यादा घबरा गया था , मैं चाहता तो उसको हॉस्पिटल ले जा सकता था, लेकिन मैं उसको मरता हुआ छोड़कर वहां से भाग गया।”

“तू चिंता मत कर, मैं तुझे कुछ नही होने दूंगा।” मंजीत के पापा उसको चुप करवाते हुए कहते हैं।

दो दिन बाद, रात के 2 बजे जब मंजीत गहरी नींद मे सो रहा था, तभी उसको आवाज आती है, “आपने ऐसा क्यों किया भईया? आप अगर मदत करते तो शायद मैं बच सकती थी।”

ये आवाज सुनते ही मंजीत की नींद खुल जाती है। वो कमरे की लाइट जलाकर घबराता हुआ इधर उधर देखने लगता है, लेकिन उसे कोई नही दिखता।

मंजीत को हर रोज रात में इसी तरह की आवाजें सुनाई देने लगी थी। डर के मारे वो अपने कमरे से भी बाहर नही निकलता था। उसके पापा मम्मी उसको डॉक्टर को भी दिखा चुके थे।

डॉक्टर ने मंजीत की जांच के बाद उसके मां बाप को बताया की मंजीत को किसी बात का सदमा लगा है। डॉक्टर के बताने के बाद मंजीत के पापा समझ चुके थे की मंजीत को किस बात का सदमा लगा था।

कुछ दिन बाद मंजीत अपने कमरे मे सो रहा होता है की तभी उसको वापस वही आवाजें सुनाई देने लगती है। वो घबराते हुए अपने कमरे से निकलकर छत की तरफ जाने लगता है।

छत पर पहुंचकर मंजीत एक कोने मे बैठकर रो रहा होता है की तभी अचानक उसकी नजरों के सामने वो लड़की आ जाती है। मंजीत उसको देखकर बहुत ज्यादा डर जाता है। वो पूरी तरह से खून मे सनी हुई थी।

“भईया आपने ऐसा क्यों किया? आपने मुझे वहां पर मरता हुआ क्यों छोड़ दिया भईया?” इतना कहते हुए वो लड़की मंजीत की तरफ बढ़ने लगती है।

मंजीत उस लड़की को अपनी तरफ बढ़ता देख घबराहट के मारे छत से नीचे कूद जाता है। नीचे गिरने के बाद मंजीत खून मे लतफथ ऊपर छत की तरफ उस लड़की को देखते हुए कहता है, “मुझे माफ कर दो।" इतना कहते ही मंजीत की जान चली जाती है।

उसी समय चौकीदार भागता हुआ वहां पर आता है और फिर घर के सभी लोगों को आवाज देकर जगाता है। सभी लोग जैसे ही घर के बाहर आकर देखते हैं तो मंजीत उनकी नजरों के सामने मारा पड़ा था।