Pyaar Huaa Chupke Se - 11 in Hindi Fiction Stories by Kavita Verma books and stories PDF | प्यार हुआ चुपके से - भाग 11

Featured Books
  • अपराध ही अपराध - भाग 24

    अध्याय 24   धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्र...

  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

Categories
Share

प्यार हुआ चुपके से - भाग 11

डॉक्टर, शिव को इंजेक्शन लगाते हुए बोले- बेटा तुम नदी में बहते हुए आदिवासियों के गांव के मुखिया को मिले थे और उन्होंने तुम्हारा लगभग तीन महीने तक अपनी जड़ी-बूटियों से इलाज किया। तुम्हारी हालत तो सुधर गई थी पर तुम्हें होश नही आ रहा था इसलिए उन्होंने पुलिस को बुलाया और सब कुछ बताया।

दो दिन पहले पुलिस तुम्हें यहां लेकर आई है और वो तुम्हारे परिवार का भी पता लगा रही है। तुम्हारी फोटो, अखबार में गुमशुदा लोगों के कॉलम में भी दी है उन्होंने पर अब शायद, उसकी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि तुम खुद ही अपने परिवार के बारे में बता दोगे।

"इसका मतलब? मेरा परिवार जानता तक नही है कि मैं ज़िंदा हूं?"- शिव ने डॉक्टर की ओर देखकर पूछा तो डॉक्टर साहब उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले- शायद नही...... अगर वो जानते तो इस वक्त तुम्हारे पास होते।

डॉक्टर साहब की बातें सुनकर शिव सोच में पड़ गया और मन ही मन बोला- तीन महीने से मैं बेहोश हूं और घर पर सब मुझे मरा हुआ समझ रहे होंगे। पता नही, रति और मां का मेरे बिना क्या हाल होगा? मां को तो फिर भी संभालने वाले बहुत लोग है उस घर में पर रति? वो पता नही ठीक होगी या नही?

शिव ने तुरन्त अपना कम्बल हटाया और उठने की कोशिश करने लगा। तभी डॉक्टर उसे पकड़ते हुए बोले- देखिए इस वक्त आप उठने की हालत में नही है। तीन महीने बाद कोमा से बाहर आए है। अपने पैरों पर खड़ा होने में आपको थोड़ा वक्त लगेगा।

"नही डॉक्टर, मुझे अभी जाना होगा। अभी और इसी वक्त....कोई है जो मेरी राह देख रहा होगा"- शिव ने इतना कहकर खुद को छुड़ाया और आगे बढ़ने लगा पर अपना एक कदम ज़मीन पर रखते ही वो लड़खड़ाकर फर्श पर गिर गया।

डॉक्टर और नर्स ने तुरंत उसे उठाकर पलंग पर बैठाया। उसकी हालत देखकर डॉक्टर साहब ने नर्स को आहिस्ता से इशारा किया और फिर शिव से बोले- प्लीज़ समझने की कोशिश कीजिए। आपकी हालत ऐसी नही है कि आप उठकर कहीं जा सके। कुछ दिन और लगेंगे आपको ठीक होने में।

"कुछ दिन और"- शिव ने गुस्से में पूछा और फिर बोला- कुछ दिन तो क्या, मैं एक और पल यहां नही रुक सकता। मेरी पत्नि एक-एक पल गिन रही होगी मेरे इंतज़ार में..... पता नही किस हाल में होगी? ठीक भी होगी या नहीं? मुझे जाना होगा उसके पास?

शिव फिर से बेड से उठने की कोशिश करने लगा पर ज़मीन पर पैर रखते ही वो लड़खड़ाने लगा। उससे एक सैकेंड के लिए भी खड़ा नही हुआ जा रहा था। फिर भी वो आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था। डॉक्टर ने उसे पकड़ने की कोशिश की पर उसने खुद को छुड़ाकर आगे बढ़ना चाहा पर फिर से फर्श पर गिर गया।

तभी डॉक्टर ने नर्स को इशारा किया तो उस नर्स ने तुरन्त शिव की बांह पर एक इंजेक्शन लगा दिया। शिव फिर से उठने की कोशिश करने लगा तो डॉक्टर साहब ने उसकी मदद की। तभी वो फिर से बोला- मुझे अभी अपने घर जाना है। मेरी पत्नी, मेरा इंतज़ार कर रही होगी। पता नही मेरे बिना किस हाल में होगी? जाने दो मुझे....

शिव यही सब बड़बड़ाते हुए बहुत देर तक आगे बढ़ने की कोशिश करता रहा। डॉक्टर उसे संभालते हुए बोले- देखिए हम समझ सकते है कि जो इन्सान, अपने परिवार से बिछड़कर तीन महीने बेहोश रहा हो। उसे होश में आते ही अपने परिवार से मिलने की कितनी बेकरारी होगी पर आप हमारी बात समझने की कोशिश करिए।

इस वक्त आप एक कदम भी नही चल सकेंगे। तीन महीने बिस्तर पर पड़े रहने की वजह से आपके हाथ-पैरो को ठीक से काम करने में थोड़ा वक्त लगेगा। आप हमें बताइए। आप कौन है? कहां रहते है? हम आपके घर, आपके ज़िंदा होने की खबर भिजवा देते है। आपका परिवार खुद यहां आ जायेगा आपको लेने।

"नही, मुझे रति से अभी मिलना है। अभी और इसी वक्त....मुझे उसके पास जाना होगा"- इतना कहते हुए शिव बेहोश हो गया। डॉक्टर ने सुकून की सांस ली और नर्स की मदद से....उसे फिर से बेड पर लेटा दिया।

दूसरी ओर रति अभी भी घाट के किनारे खड़ी यहां-वहां इस आस में देख रही थी कि कहीं उसे उसका शिव नज़र आ जाए पर उसे शिव कही नज़र नही आया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

उसने पलटकर नदी की ओर देखा तो उसे सूरज ढलता हुआ नज़र आने लगा। वो आंखों में आसूं लिए ढलते सूरज को देखते हुए बोली- इस आसमान को भी.... शाम होते ही सूरज की गर्मी से राहत मिल जाती है पर मेरी किस्मत में दर्द का सूरज कभी क्यों नही ढलता?

क्यों मेरी ज़िंदगी में खुशियां आती तो है, पर चंद दिनों की मेहमान बनकर? शिव को आप मेरी ज़िंदगी में लाए... मैं उनसे दूर रहना चाहती थी। नही करना चाहती थी मैं उनसे प्यार.... पर आपने मुझे, उनसे प्यार करने के लिऐ इतना मजबूर कर दिया कि मेरे लिए उनके बिना सांस लेना भी मुश्किल हो गया।

मैं तो अपनी जान तक देने के लिए तैयार थी पर आपने मुझे मरने भी नही दिया....पर जिस इंसान के लिऐ आपने मुझे मेरी सांसे लौटाई थी। आज उसे ही मुझसे दूर कर दिया आपने। आज अगर मेरे पास मेरे शिव की निशानी नही होती महादेव तो आप अच्छे से जानते है। कि अब तक शिव के बिना मेरी सांसे कब की रुक चुकी होती। प्लीज़ अब बस करिए और इम्तिहान मत लीजिए मेरे प्यार का.... प्लीज़ मुझे मेरे शिव लौटा दीजिए।

रति ने इतना कहकर अपने हाथ जोड़े और वही घाट पर खड़ी होकर रोने लगी। तभी घाट पर मां नर्मदा की आरती की तैयारियां शुरू हो गई। वहां बहुत से लोगों की भीड़ लग गई। उसने खुद को संभाला और घाट के किनारे लगी दुकान पर आई।

आरती करने के लिए उसने एक दोना लिया। जिसमें दीया जल रहा था और घाट पर हो रही आरती में शामिल हो गई।

घाट पर सैकड़ों की संख्या में लोग आरती कर रहे थे इसलिए चारों ओर ढोल नगाड़ों और ताशों के साथ, आरती की आवाज़ गूंज रही थी। रति भी अपनी आंखे बंद किए.... अपने दिये को घुमाकर मां नर्मदा की आरती कर रही थी। कुछ देर में आरती पूरी हुई तो लोग आरती के दोने नदी में छोड़ने लगे।

उसने भी अपना दिया नदी में छोड़ा और फिर हाथ जोड़कर अपनी आंखे बंद की और मन ही मन बोली- मुझे मेरे शिव लौटा दो मां....आप ही की गोद में गिरे थे वो इसलिए आपसे ही अपने सुहाग की भीख मांग रही हूं। मेरे अजन्मे बच्चे से उसके पिता का साया मत छीनिये। उसकी खातिर मेरे पति को मुझे लौटा दीजिए मां। प्लीज़ लौटा दीजिए।

उसने इतना कहकर अपनी आंखे खोली और उठकर जाने के लिए पलटी। लेकिन तभी घाट की सीढ़ियों पर उसका पैर फिसलने लगा पर तभी, किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे गिरने से बचा लिया।

उसने घबराकर नदी की ओर देखा तो सामने खड़े शख्स ने उसे अपने करीब खींच लिया। रति ने घबराकर उस शख्स की ओर देखा तो उसके सामने शिव खड़ा था। उसे अपने सामने देखकर रति के रोते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई पर खुशी के मारे, उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं कहा गया।

उसने आहिस्ता से अपना हाथ बढ़ाया और शिव के चेहरे को छुआ तो शिव मुस्कुराते हुए बोला- मैं लौट आया हूं रति....मैं लौट आया हूं। रति ने अपनी आँखें बंद कर ली तो उसकी आंखो से खुशी के आंसू बहने लगे।

"सब ठीक है। आपको कुछ नही हुआ"- तभी अजय बोला। रति ने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें खोली पर अपने सामने शिव की जगह, अजय को देखकर रति के जैसे होश ही उड़ गए। उसने तुरंत अजय को धक्का देकर खुद से दूर कर दिया। अजय घाट पर लगे तख्त से जा टकराया पर फिर संभल गया।

रति अपनी घबराई आंखों से अजय को देखने लगी पर अजय को उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया। क्योंकि आसपास खड़े लोग उन्हें ही देख रहे थे। रति ने लोगो को खुद को घूरते देखा तो वहां से भाग गई। अजय चुपचाप खड़ा उसे भागते देख रहा था।

वो मन ही मन बोला- अजीब पागल लड़की है। पहले खुद मेरे करीब आई और फिर मुझे ही धक्का देकर भाग गई। इसकी इस बदतमीज़ी का जवाब तो इसे कल सुबह ऑफिस में देना होगा।

दूसरी ओर किरण अपने कमरे की खिड़की के पास उदास खड़ी थी। तभी शक्ति खाने की थाली लेकर उनके कमरे में आया। उसने थाली टेबल पर रखी।

"मां खाना खा लीजिए"- वो अपनी मां के कन्धे पर हाथ रखकर बोला। किरण ने ना ही कोई जवाब दिया। और ना पलटकर शक्ति की ओर देखा।

शक्ति ने उनके दोनों कन्धों को पकड़ा और बेड पर बैठाते हुए बोला- मां मैं जानता हूं कि आप मुझसे ज़्यादा प्यार शिव से करती है और आप भी ये अच्छे से जानती है कि मुझे कभी भी इस बात से कोई तकलीफ़ नही हुई। मैं ये भी मानता हूं कि रति के हमारी ज़िंदगी में आने के बाद बहुत कुछ बदल गया था।

मैं अपने ही भाई से जलने लगा। उसका एमडी बनना, मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था पर इसका ये मतलब बिल्कुल नही है कि मुझे मेरे भाई के इस दुनिया से जाने का दुःख नही है।

किरण ने नज़रे उठाकर शक्ति की ओर देखा तो शक्ति ने उनकी हथेली अपने दोनों हाथों से थामी और बोला- मां मेरा यकीन कीजिए। मैं शिव से नफरत नही करना चाहता था। उसके साथ वो सब नही करना चाहता था जो मैने किया पर उस रति ने मुझे वो सब करने पर मजबूर कर दिया।

आप माने या ना माने मां.... पर सच्चाई यही है कि उस लड़की की वजह से ही हम दोनों भाईयों के रिश्तों में दरार पड़ी थी। उसने मुझे और शिव दोनों को अपने जाल में फंसाया लेकिन जब शिव को एमडी बनाया गया तो वो ये अच्छे से समझ गई कि शिव को फंसाने में उसका ज़्यादा फायदा है इसलिए उसने शिव से शादी कर ली।

ये सब सुनकर किरण ने शक्ति से नज़रे फेर ली। शक्ति तुरंत उनके पैरों के पास आकर बैठा और बोला- मां शिव अब नही रहा पर आपका ये बेटा, अभी भी ज़िंदा है। मुझे सिर्फ़ एक मौका दे दीजिए खुद को बदलने का... मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं आपको एक अच्छा बेटा बनकर दिखाऊंगा। मैं शिव की कमी तो पूरी नहीं कर सकता पर आपके लिए। खुद को पूरा का पूरा बदलने को तैयार हूं। प्लीज़ मां..... बस एक मौका... प्लीज़....

शक्ति की बातें सुनकर। किरण ने उसकी ओर देखा और फिर उसके सिर पर हाथ रख दिया। शक्ति के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। उसने टेबल पर रखी खाने की थाली उठाई और ख़ुद अपने हाथों से अपनी मां को खाना खिलाने लगा।

दरवाज़े पर खड़ी पायल ने जब ये सब देखा तो सीढ़ियों की ओर बढ़ते हुए मन ही मन बोली- अच्छा बेटा?? माय फुट... मैने भले तुम्हे शिव के जन्म का सच ना बताया हो शक्ति पर तुम्हारे दिल में, उसके लिए नफरत भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी इसलिए मुझे बहुत अच्छे से पता है कि अभी-अभी जो मैंने देखा।

वो जीजी को अपनी तरफ करने के लिऐ सिर्फ एक नाटक है ताकि तुम बड़ी आसानी से, हमारी कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर बन सको पर मैं ऐसा होने नही दूंगी अगर कोई इस कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बनेगा तो वो सिर्फ मेरा बेटा होगा। ओम ..... ओम कपूर,

पर मेरे बेफकूफ बेटे को तो शराब पीने से ही फुर्सत नही है। पता नही, शिव ने उस पर क्या जादू कर रखा था? जो उसके मरने के बाद भी, मेरा बेटा उसी के नाम की रट लगाए बैठा हैं और वो मेरे पति इनके पास ना कभी अपनी बीवी के लिए वक्त था और ना अब अपने बेटे के लिए है।

पर मेरे पास एक हफ्ता है। ओमी को पहले वाला ओमी बनाने के लिए अब मुझे कुछ भी करके ओमी को शिव की मौत के सदमे से बाहर निकालना होगा और उसके लिए मुझे ओमी को ये यकीन दिलाना होगा कि जो कुछ उसके चहेते भाई के साथ हुआ है। वो सब शक्ति ने किया है और हमें शिव की मेहनत को शक्ति के हाथों में जाने से रोकना है ताकि वो कपूर ग्रुप ऑफ कंपनीस का मालिक ना बन सकें। हां यही एक तरीका है ओमी को उस शिव के साए से बाहर निकालकर अपने सपने को सच करने का।

ये सब सोचते हुए पायल सीढ़ियों से उतर कर दो कदम ही चली थी पर फिर अचानक उसके कदम रुक गए। वो पलटकर ओमी के कमरे की ओर बढ़ने लगी। रूम में आते ही उसने चारो ओर अपनी नज़रे दौड़ाई पर उसे ओमी कही नज़र नही आया।

"पता नही शराब पीकर कहां पड़ा होगा। अब कहां ढूंढूं इसे""- पायल परेशान होकर बोली।

अगले दिन शक्ति रेडी होकर अपने कमरे से बाहर आया और चीखा- काका मेरा नाश्ता लगाओ। मुझे ओंकारेश्वर के लिऐ निकलना है। शक्ति इतना कहकर चेयर पर आकर बैठा तो उसके सामने बैठे अधिराज ने पूछा- तुम ओंकारेश्वर जा रहे हो?

"हां पापा, मैं ओंकारेश्वर जा रहा हूं। शिव तो नही रहा पर वहां डेम बनते देखना उसका सपना था इसलिए मैं चाहता हूं कि वहां का काम जल्द से जल्द शुरू हो जाए। बस इसी सिलसिले में वहां जा रहा हूं। शाम तक लौट आऊंगा"- शक्ति के इतना कहते ही अधिराज पास बैठी अपनी मां का चेहरा देखने लगे।

दोनों ही शक्ति की बातों से थोड़े हैरान थे। तभी नाश्ता आ गया और शक्ति जल्दी-जल्दी नाश्ता करने लगा। अधिराज ने शक्ति के पास बैठी पायल से पूछा- पायल ओमी कहां है?

"इस घर में, किसी को मेरे बेटे की फिक्र नहीं है भाई साहब तो फिर आप उसकी परवाह क्यों कर रहे है?"- पायल ने रूखे स्वरों में पूछा। अधिराज ने फिर से अपनी मां की ओर देखा और फिर पायल से बोले- ऐसा नही है पायल...बहुत फिक्र है हमें ओमी की।

पर इस वक्त वो शिव के जाने के सदमे में है। उसे इस सदमे से बाहर आने में थोड़ा वक्त लगेगा। हम सब पिछले तीन महीने से उसे पहले वाला ओमी बनाने की कोशिश कर रहे है। बहुत जल्द, वो सब कुछ भूलकर ज़िंदगी में आगे बढ़ना सीख जायेगा।

पायल बिना कोई जवाब दिए मुंह बनाकर नाश्ता करने लगी। तभी अधिराज अपनी कुर्सी से उठे और बोले- मैं ओमी को नाश्ते के लिए लेकर आता हूं।

वो तेज़ी से ओमी के कमरे में आए तो ओमी बेड पर औंधा सो रहा था। अधिराज मुस्कुराते हुए उसके पास बैठे और उन्होेंने उसके सिर पर हाथ फेरा तो ओमी की आँखें खुल गई।

"बेटा सुबह हो गई है। चलो उठो"- उनकी आवाज़ सुनकर ओमी उठकर बैठ गया। अधिराज ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और बोले- शिव के जाने का गम हम सबको है बेटा पर हममें से किसी ने जीना नही छोड़ा है।

ओमी बेड से उठकर अलमारी की ओर बढ़ते हुए बोला- वो इसलिए बड़े पापा क्योंकि आपने सिर्फ अपना बेटा खोया है। दादी ने सिर्फ अपना पोता खोया है और टीना ने सिर्फ अपना भाई.....पर मैने अपना सब कुछ खो दिया है। शिव भईया मेरे लिए क्या थे। ये आपसे बेहतर कोई नहीं जानता बड़े पापा और रति भाभी,वो मेरी भाभी होने के साथ-साथ...मेरी दोस्त भी थी। मेरे लिऐ उन्हें भूलाना बहुत मुश्किल है।

"ठीक है बेटा। अगर तुम अपने दर्द से बाहर नहीं आना चाहते तो कोई बात नही....शिव की मेहनत को मैं अकेले ही डूबने से बचाऊंगा"- अधिराज के इतना कहते ही। ओमी ने पलटकर उनकी ओर देखा। तो अधिराज उठकर बोले - आज शक्ति ने बोर्ड की मीटिंग बुलाई थी ताकि कंपनी का नया मैनेजिंग डायरेक्टर चुना जा सके। वो कम्पनी की भागदौड़ अपने हाथों में लेना चाहता है। उनकी बातें सुनकर ओमी सोच में पड़ गया।

लेखिका
कविता वर्मा