केशर गढ़ के राजा बड़े ही धार्मिक व दयालु प्रवृति के इंसान थे,महीने २ महीने में अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए दौरा करते थे, जो भी कुछ कमी देखते उसको हमेशा पूरा करते,लोगो से मिलते उनकी समस्याओं का समाधान करते. जैसे ही राजा आगे चले दूर एक व्यक्ति एकांत बड़ के पेड़ के नीचे सुस्त बैठा हुआ था.राजा अपने रथ से उतर कर उस व्यक्ति के पास पहुँच कर उस से बात की और बात सुनकर,अपने सेना पति से बोले,ये बढ़ई हैं, सेनापति राजा की बात समझ गये थे. राजा ने बढ़ई से कहा कल तुम महल में आ जाना.कई दिन बीत गये बढ़ई राजा से मिलने नहीं गया.बढ़ई सोच में पड़ गया,जाऊँ या नहीं,कहाँ राजा और कहाँ मैं, लेकिन एक दिन चल दिया राजा से मिलने “ बस एक सोच थी अचानक मुझे एक अवसर मिला हैं क्यों न एक बार मिल लिया जाये कुछ न कुछ अच्छा ही होगा, जैसे ही महल के दरवाज़े पर पहुँचा, सब कुछ बातें सिपाही को बताई, राजा ने एक दम से अंदर आने का आदेश दिया,राजा बढ़ई से बोले कई दिनों बाद आये हो, बढ़ई ने राजा से कहा कई दिन तक सोचने के बाद आपके पास आया हूँ कि अवसर ने दस्तक दी हैं कुछ ना कुछ अच्छा ही होगा.राजा ने सेनापति को बुलाया और पूरे महल का चक्कर लगाकर मिलने के लिये बोला, क़रीब ३-४ घंटे के बाद सेनापति ने बढ़ई को राजा से मिलवाया, राजा बोले आपने महल को देख कर क्या महसूस किया, बढ़ई राजा से बोला महाराज सब कुछ ठीक हैं पर बहुत जगह लकड़ी का काम होना हैं, लकड़ी बहुत पुरानी हो चुकी हैं.राजा बोले ठीक हैं इस लिए तो तुमको बुलाया हैं आपको काम भी मिल जाएगा और हमारा भी काम हो जाएगा, अच्छा ये बताओ इसमें कितना समय और आपको ओर कितने आदमी चाहिए.बढ़ई राजा से बोले महाराज क़रीब साल भर लगेगा और ४ मज़दूर और चाहिये, ठीक हैं अपने जैसे ही चार और लोग ले आओ. राजा ने सेनापति को आदेश दिया इन सबका रहने और खाने का इंतज़ाम महल में ही कर दिया जाये.बढ़ई की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, कुछ समय बाद अपने चार मित्रों को महल ले आया.राजा ने जब उनका काम देखा राजा को बहुत पसंद आया और सबकी महीने की तनख़्वाह बांध दी.एक अवसर ने दस्तक दी पहचान लिया और बढ़ई की अपनी सूझ बूझ से चार और मजदूरो की तरक़्क़ी हो गई.सभी अपना जीवन मस्ती से काट रहें हैं. दोस्तों वक्त बदलते देर नहीं लगती बस आप दिल से मेहनत से काम करे, एक दिन अवसर दस्तक ज़रूर देगा पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर ….लेखक परिचय -पीयूष गोयल दर्पण छवि के लेखक,पीयूष गोयल 1७ पुस्तकें दर्पण छवि में लिख चुके हैं,सबसे पहली पुस्तक( ग्रन्थ) "श्री भगवद्गीता"के सभी 18 अध्याय 700 श्लोक हिंदी व् इंग्लिश दोनों भाषाओं में लिखा हैं इसके अलावा पीयूष ने हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा लिखित पुस्तक "मधुशाला"को सुई से लिखा हैं ,और ये दुनिया की पहली पुस्तक हैं जो सुई से व् दर्पण छवि में लिखी गई हैं इसके बाद रबीन्द्रनाथ टैगोर जी की पुस्तक "गीतांजलि"( जिसके लिए रबीन्द्रनाथ टैगोर जी को सन 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था) को मेहंदी कोन से लिखा हैं.
पीयूष ने विष्णु शर्मा जी की पुस्तक "पंचतंत्र"को कार्बन पेपर से लिखा .अटल जी की पुस्तक "मेरी इक्यावन कवितायेँ"को मैजिक शीट पर लकड़ी के पैन से लिखा और अपनी लिखित पुस्तक "पीयूष वाणी" को फैब्रिक कोन लाइनर से लिखा हैं सं 2003 से 2022 तक 17 पुस्तके लिख चुके हैं.