भाग 26
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि रज्जो और जय के घर बेटा पैदा होता है, जिसकी सूचना वो तार से घर भेजता है। खबर मिलते ही जगत रानी और विश्वनाथ जी पोते को देखने और रज्जो को घर वापस लाने के लिए लखीमपुर के लिए चल देते है। अब आगे पढ़े —
जगत रानी शाम ढलने से थोड़ा पहले जय के घर पहुंची। वो पहली बार यहां आई थी। हर चीज उसके लिए नई थी। वो गांव के बाहर इतनी दूर पहली बार आई थी। जय सब्जियां और बाकी समान लाने बाजार गया था। फैक्ट्री से उसने छुट्टी ले रखी थी। दिन ढलने से पहले समान ला कर वो खाना बना लेता था। जिससे कोई परेशानी ना हो। घर से किसी के आने की आशा तो उन्हें थी नही।
रज्जो बच्चे के साथ अंदर के कमरे में लेटी हुई थी। बच्चे को सुलाते सुलाते उसकी भी आंख बस अभी अभी लग गई थी। दरवाजा बाहर से भिड़ा हुआ था। विश्वनाथ जी का तो सब देखा हुआ था। वो गेट खोल कर अंदर आए। "जय बेटा…! जय बेटा…!" आवाज लगाई।
कोई जवाब ना मिलने पर वो भिड़े दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया तो वो खुल गया। समान आगे वाले कमरे में रख दिया और वहीं कुर्सी पर बैठ गए। उन्हें अंदर जाना उचित नहीं लगा,"बहू रज्जो पता नही क्या करती हो..?"
पीछे पीछे जगत रानी भी आई। वो लंबा सफर कर के थक गई थी। वो धम्म से वही नीचे ही बैठ गई। और विश्वनाथ जी से पूछा, "अब ये दोनों कहां गायब हो गए है। कोई दिख ही नही रहा है।"
विश्वनाथ जी बोले, "अंदर भी कमरे है। तुम कोई बाहरी थोड़ी ना हो…। तुम्हारा भी घर है। तुम जा कर देख लो बहू कहां है..?"
"अच्छा" कहते हुए जगत रानी अपने घुटनों को सहारा देते हुए उठ खड़ी हुई। घुटनों के दर्द से वो बिना सहारा लिए खड़ी नही हो पाती थी। आज तो खूब चलना भी पड़ा था। फिर आज तो सफर के कारण कुछ ज्यादा ही थक गई थी।
"हाय राम" कहती हुई जगत रानी उठी और अंदर के कमरों देखने चली गई। दूसरे कमरे में रज्जो बच्चे को सीने से चिपटाए सो रही थी। इस तरह जैसे कोई अमूल्य वस्तु हो। जिसे पल भर भी अलग करना बर्दाश्त न हो उससे। मातृत्व का गौरव साफ दिख रहा था रज्जो के चेहरे पे।
रज्जो को बच्चे के संग देख जगत रानी भाव विभोर हो उठी। इन सब से अनजान रज्जो सो रही थी। जगत रानी तेज स्वर में बोली, "ये देखो… हम इतनी दूर से पोते का मुंह देखने के लिए दौड़े आ रहे है, और बहू को कोई फिकर ही नही है। वो सोने में ही मगन है।"
सास की तेज आवाज सुन रज्जो चौक गई। अरे..! अम्मा की आवाज यहां कैसे..? जब आंखे खोल कर देखा तो वो सामने खड़ी थीं। रज्जो अस्त व्यस्त सो रही थी। सास को सामने देख वो दर्द की परवाह नहीं करते हुए, अपनी साड़ी संभालते हुए उठ बैठी। और चारपाई से उतर सास के पैर छूने को झुकी।
जगत रानी ने रज्जो के सर पर हाथ रख आशीष की झड़ी लगा दी। रज्जो के अचानक उठने से बच्चा भी जाग गया और रोने लगा। रज्जो ने बच्चे को चारपाई से उठाया और सास की गोद में दे दिया।
जगत रानी की आशा समाप्त हो गई थी की कभी जय की भी औलाद होगी। वो तो ये मान बैठी थी की रज्जो बांझ है और जय कभी पिता नही बन पायेगा। आज उसी के बच्चे को गोद में लेना एक सपने के सच होने जैसा था। पत्थर पर दूब जमने जैसा था। भावतीरेक जगत रानी बच्चे को सीने से लगा रोने लगी। आंसू बह जरूर रहे थे, पर ये खुशी के आंसू थे। तभी जय भी आ गया। अम्मा को इस तरह देख उसकी भी आंखे भर आई। इस भावुक पल को देख रज्जो और जय के मन में जो कुछ भी दर्द अम्मा की बातों को लेकर था, समाप्त हो गया। जय पीछे से आकर अम्मा को बाहों में भर लिया। सारे गिले शिकवे मिट गए।
जगत रानी उम्र होने के बावजूद रज्जो की देख भाल की जिम्मेदारी खुशी से निभाने लगी। बच्चे की मालिश करती, रज्जो के लिए सोंठ के लड्डू बनाए। किसी तरह पास पड़ोस की महिलाओं से पूछ कर नाउन का पता लगाया और रज्जो की मालिश उससे कराने लगी। बच्चा बहुत सुंदर था। बिल्कुल दूधिया रंग, तीखी नाक,चौड़ा माथा। जगत रानी को श्याम के सांवले रंग का थोड़ा मलाल था। पर अब एक पोता गोरा चिट्ठा हो जाने से वो मलाल भी चला गया। जगत रानी कहती सूरज का तेज है इसके चेहरे पर इस लिए इसका नाम तो सूरज ही होगा।
सब महीने तक जगत रानी वही रह कर रज्जो की देख भाल करती रही। जगत रानी की सही देख भाल से रज्जो की तबियत भी जल्दी संभल गई और बच्चा भी एक महीने का हो गया। जगत रानी ने जय से कहा, "अब मैं जाऊंगी। साथ रज्जो और सूरज को भी ले जाऊंगी। गांव ले जाकर माता रानी को रोट भी तो चढ़ाना है। क्यों क्या कहता है तू बेटा..?"
जय क्या कहता..? क्या वो अम्मा की बात को कभी टाल सकता था..? उसने कह दिया, "अम्मा जो तुम्हे ठीक लगे करो। मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले लेता हूं फिर सब घर चलेंगे।"
बस एक हफ्ते के अंदर तैयारी हो गई घर चलने की। जय बच्चे सूरज के लिए खूब सुंदर, सुंदर कपड़े खिलौने ले आया। साथ में अम्मा के लिए और गुलाबो के लिए सुंदर सी राजस्थानी चुनरी भी लखनऊ से ले आया। विजय के बच्चो के लिए कपड़े, कई पैकेट रेवड़ियां। सब कुछ देख कर जगत रानी बेटे की बुद्धिमानी को सराहने लगी। क्या क्या नही किया..? क्या क्या नही कहा…..? इसी बेटे बहू को पर इन दोनो ने कभी भी पलट कर मुंह नही खोला। कभी भी कुछ ऐसा नहीं कहा जिससे जगत रानी या विश्वनाथ जी को कष्ट हो।
सारी तैयारी होने के बाद अगले दिन सभी गांव के लिए निकल गए।
घर से सास ससुर के चले जाने से गुलाबो का ही राज हो गया था। गुलाबो के दिल में सबसे बड़ा मलाल यही था की रज्जो तो पेट में बच्चा होने के बावजूद शहर चली गई और अम्मा ने जाने दिया। जब रज्जो गर्भावस्था में अकेले शहर में रह सकती है, बच्चा वहां जन्म ले सकता है तो सारी पाबंदी उसके लिए ही क्यों लगाई गई..? उसमे भी उसे अम्मा की साजिश नजर आती। ये सवा महीने उसके लिए स्वर्ग में रहने जैसा था। सुबह दिन चढ़े उठती, सारा काम अपने मन मुताबिक करती। छोटी छोटी रिद्धि, सिद्धि से कभी चूल्हा पोतवाती, कभी छुट्टे बर्तन धुलवाती। खुद कुछ भी इधर उधर खाना बना कर सारा दिन आस पड़ोस की औरतों से गप्पे लड़ाती। इन गप्पों में ज्यादातर रज्जो की और जगत रानी की शिकायतें शामिल होती।
क्या हुआ जब जगत रानी रज्जो और बच्चे की ले कर घर आई..? क्या गुलाबो ने अच्छा बर्ताव किया उनके साथ..? क्या गुलाबो ने रज्जो के बच्चे को एक चाची का प्यार दिया..? ये सब जानने के लिए पढ़े गुलाबो का अगला भाग।