Fagun ke Mausam - 2 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 2

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फागुन के मौसम - भाग 2

अगले दिन जब सुबह की तरोताज़ा हवा के बीच दशाश्वमेध घाट पर राघव की तारा से मुलाकात हुई तब तारा ने उसे बताया कि बैंगलोर में एक कॉलेज है जहाँ गेमिंग डिज़ाइन की पढ़ाई होती है।

उसने साइबर कैफ़े से कॉलेज की सारी डिटेल का प्रिंट आउट भी निकाल लिया था।
इस प्रिंट आउट को देखते हुए राघव के माथे पर बल पड़ गये थे जिसकी वजह थी कॉलेज की फीस जो लाखों में थी।

उसकी परेशानी समझते हुए तारा ने कहा, "सुन, अगर हमने कॉलेज का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर लिया तो वो एजुकेशन लोन लेने में हमारी मदद करेंगे इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।"

"अच्छा, फिर हम आज से ही तैयारी में जुट जाते हैं।" राघव ने लंबी साँस लेते हुए कहा तो तारा बोली, "तैयारी शुरू करने से पहले हमें एंट्रेंस एग्जाम का फॉर्म भी भरना पड़ेगा बुद्धु और अपने-अपने घर में भी बात करनी होगी कि हम ये कोर्स करना चाहते हैं।"

"ओह हाँ, ठीक है एक काम करो तुम अपने घर में बात करो और मैं अपने घर में बात कर लेता हूँ। फिर आज शाम में ही चलकर हम फॉर्म भर देंगे।"

"पता नहीं राघव मेरे पेरेंट्स मानेंगे भी या नहीं। मुझे तो बहुत घबराहट हो रही है।"

तारा को चिंतित देखकर राघव ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे तसल्ली देते हुए कहा, "घबराहट तो मुझे भी हो रही है लेकिन हमें एक कोशिश तो करनी ही चाहिए।"

"हम्म... ठीक है। चलो फिर शाम में मिलते हैं।"

"हाँ।" राघव ने हमेशा की तरह उससे हाथ मिलाया और फिर वो भी उसके पीछे-पीछे घाट से बाहर आते हुए अपने घर की ओर बढ़ गया।

राघव ने जब अपनी माँ नंदिनी जी से इस कोर्स के विषय में बात की तब नंदिनी जी ने कहा, "देखो बेटा, तुम जानते हो कि हमारे सिर पर किसी अभिभावक का साया नहीं है। आज तक हमारी ज़िन्दगी बड़ी मुश्किलों से कटी है। अगर तुम्हें लगता है कि तुम कॉलेज की फीस और बैंगलोर में रहने का खर्च ख़ुद उठा सकते हो तो मुझे तुम्हारे निर्णय से कोई समस्या नहीं है।
मैंने तो हमेशा बस तुम्हारी ख़ुशी ही चाही है।"

"थैंक्यू माँ, तुमने इतना कह दिया बस मेरे लिए काफ़ी है। मुझ पर विश्वास रखना एक दिन अपनी मेहनत के बलबूते मैं तुम्हारी आँखों से बहे हुए आँसू के हर कतरे के निशान को धो दूँगा।"

नंदिनी जी ने स्नेह से राघव के सिर पर हाथ रखा और उसे समय पर नाश्ता कर लेने की हिदायत देते हुए वो अपने काम पर चली गयीं।

मन ही मन राघव ने सोचा कि अगर वो बहुत अच्छे नंबरों से कॉलेज की प्रवेश परीक्षा पास कर ले तब इस बलबूते पर वो कॉलेज के प्रिंसिपल से आग्रह कर सकता है कि वो उसे पढ़ाई के लिए लोन दिलवाने के साथ-साथ कोई पार्ट टाइम जॉब भी दिलवा दें ताकि वो किसी तरह बैंगलोर में रहने का अपना खर्च निकाल सके।

"अगर मेरी किस्मत में इस कॉलेज में पढ़ना लिखा होगा तो मुझे रास्ता भी ज़रूर मिल जायेगा।" राघव ने मानों स्वयं को सांत्वना देते हुए कहा और बेसब्री से शाम की प्रतीक्षा करने लगा।

शाम को गंगा आरती का समय होने पर जब राघव अस्सी घाट पहुँचा तब उसने देखा तारा पहले ही वहाँ आ चुकी थी लेकिन आज उसके चेहरे पर हमेशा वाली मुस्कुराहट नहीं थी।
उसकी आँखों में देखते ही राघव समझ गया कि वो घंटों रोती रही है।

तारा के पास बैठते हुए जब राघव ने उसके कंधे पर हाथ रखा तब यकायक तारा ने अपना सिर उसके कंधे पर टिकाते हुए रुआँसी आवाज़ में कहा, "राघव, मेरे पापा ने मुझे बैंगलोर भेजने से मना कर दिया है।"

"लेकिन क्यों? उनसे कहो हम फीस का बोझ उनके सिर पर नहीं डालेंगे।"

"फीस की बात नहीं है। उनका कहना है वो अकेली लड़की को इतनी दूर नहीं भेजेंगे इसलिए मुझे जो पढ़ना है यहीं बनारस में रहकर पढ़ना होगा।"

"पर तुम अकेली कहाँ हो? मैं जो रहूँगा वहाँ तुम्हारे साथ।"

"मैंने भी पापा से यही कहा था पर उन्होंने कहा कि तुम भी बैंगलौर में ज़्यादा दिन तक कहाँ टिक पाओगे? इतने बड़े महानगर में रहने का खर्च उठाना तुम्हारे वश की बात ही नहीं है।"

"और अगर मैंने उन्हें गलत साबित कर दिया तो?"

"तुम्हें ऐसा करना ही होगा राघव, हमारी दोस्ती की ख़ातिर।
अगर तुम बैंगलोर में एक वर्ष रहकर दिखा दो तो शायद अगले वर्ष वो मुझे वहाँ भेजने के लिए मान जायें।"

"लेकिन तारा, फिर तो तुम मेरी जूनियर हो जाओगी।"

"इससे क्या फर्क पड़ता है राघव? आख़िर में हम काम तो एक ही फील्ड में करेंगे, एक साथ, हमेशा चाहे एक वर्ष आगे-पीछे ही सही।"

"अच्छा तो चलो अभी चलकर मैं अपना फॉर्म भर देता हूँ।"

"चलो।" तारा ने माँ गंगा की तरफ देखकर हाथ जोड़ते हुए कहा और राघव के साथ पास ही स्थित एक साइबर कैफ़े की तरफ बढ़ गयी।

फॉर्म भरने के बाद उन दोनों ने कॉलेज की प्रवेश परीक्षा से संबंधित कुछ किताबें खरीदीं और फिर तारा ने कहा कि वो लिखित परीक्षा के बाद होने वाले साक्षात्कार के लिए राघव की तैयारी में उसकी पूरी मदद करेगी।

"वो तो तुम्हें करनी ही होगी वरना मैं अकेले हमारी ये जीवन नैया पार नहीं लगा सकूँगा।" राघव ने किताबों के पन्ने उलटते हुए कहा तो तारा ने मजबूती से उसका हाथ थाम लिया।

वो दिन भी आ चुका था जब राघव को प्रवेश परीक्षा देने के लिए बैंगलोर जाना था।
बनारस कैंट रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन का इंतज़ार करते हुए राघव बेचैनी से प्लेटफार्म पर टहल रहा था।

ट्रेन बस आने ही वाली थी लेकिन तारा का अभी तक कोई अता-पता नहीं था।

कुछ ही मिनटों में जब ट्रेन आकर प्लेटफार्म पर लगी तब राघव ने उदास होकर स्टेशन के प्रवेश द्वार की तरफ देखा और फिर अपनी बोगी की तरफ बढ़ गया।

अभी वो अपनी सीट पर बैठा ही था कि तेज़-तेज़ साँसें लेती हाँफती हुई तारा उसके सामने आकर खड़ी हो गयी।

"तारा यार, क्या हुआ तुझे?" राघव ने घबराते हुए पूछा तो तारा ने अपने बैग से एक पैकेट निकालते हुए कहा, "कुछ नहीं यार, दौड़ते हुए आयी हूँ न इसलिए साँस फूल रही है।"

"तो तुझे दौड़ने के लिए किसने कहा था और तू अब तक कहाँ थी?"

"तेरे और अपने लिए प्रार्थना करने मैं बाबा विश्वनाथ के दरबार चली गयी थी, इसलिए आने में देर हो गयी।
चल अब सीधे से खड़ा हो जा।"

तारा ने निर्देश देते हुए कहा तो राघव अपनी सीट से उठकर खड़ा हो गया।

पैकेट में से चंदन निकालकर राघव के माथे पर उसका टीका लगाते हुए तारा ने कहा, "हैप्पी जर्नी राघव, याद रखना तुझे सफ़ल होकर ही लौटना है।"

राघव ने अब अपनी हथेली आगे की तो प्रसाद का पेड़ा उसे देने के बाद तारा ने पैकेट बाँधकर उसके बैग में रखते हुए कहा, "सुन, परीक्षा देने जाने से पहले इसमें से चंदन निकालकर टीका लगा लेना और प्रसाद भी खा लेना।"

"जैसी आपकी आज्ञा मैडम। अब कृपया आप ट्रेन से उतर जाइये वर्ना आपके पिताश्री हमारे सपनों की ट्रेन को पटरी से उतार देंगे।"

राघव ने नाटकीय अंदाज़ में कहा तो तारा ने हँसते हुए उसके गाल पर स्नेह से एक चपत लगायी और ट्रेन से उतरकर खिड़की के पास आकर खड़ी हो गयी।

बनारस से बैंगलोर की तरफ बढ़ती हुई ये ट्रेन जब तक उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गयी तब तक तारा एकटक राघव की ओर देखती रही और राघव भी मानों मौन भाषा में ही तारा को तसल्ली देता हुआ उसके चेहरे पर ख़ुशी और उम्मीद की छोटी सी रेखा को आपस में घुलते-मिलते देखता रहा।

ट्रेन के आगे बढ़ जाने के बाद अपने माथे पर चंदन का ठंडा-ठंडा स्पर्श महसूस करते हुए राघव ने हाथ जोड़कर मन ही मन महादेव से जीवन के साथ-साथ दोस्ती की भी इस अत्यंत कठिन परीक्षा में सफ़ल होने के लिए आशीर्वाद माँगा और फिर बैग से परीक्षा संबंधी किताब खोलकर उसके पन्नों को आत्मसात करते हुए अपने आस-पास की सारी दुनिया को मानों उसने पूरी तरह बिसरा सा दिया।
क्रमश: