भाग–२९
राजीव और मेरा रिश्ता तय हो चुका था। मैं खुश भी थी लेकिन उदास भी ,, खुश इसलिए की मेरा सपना पूरा हो रहा था , और उदास इसलिए कि एक साल बाद मुझे इस सपने को जीना छोड़ना होगा।
मिहिर की शादी के साथ ही मेरी शादी भी फिक्स कर दी गई उसी तारीख पर और उसी मंडप में। हम सभी लोग यहां से पूरी तैयारी के साथ ,राजस्थान पहुंच गए क्योंकि मिहिर ने डेस्टिनेशन वेडिंग प्लान किया था।
मिहिर और राजीव के मेहमानों में कुछ तो कॉमन थे । हमारे मेहमानो में से बहुत खास लोगों को ही बुलाया गया था ज्यादा को नहीं। मैं शादी सादगी से करना चाहती थी। लेकिन सम्राट अंकल ने कहा कि अगर उन्होंने शादी सादगी से की तो वो अपने भाई विराट को क्या मुंह दिखायेंगे । दो ही दिन में सारे कार्यक्रम हो जाने थे ।
मिहिर मुझसे मिलना चाहता था परंतु उसे मौका ही नही मिल पा रहा था। वह जब राजीव को देखता गुस्से भरी नजरों से देखता।
राजीव के मन में अब उसे लेकर कोई बात नही थी , इसलिए एक दो बार उसने मिहिर के सामने स्माइल किया लेकिन मिहिर का खराब सा रिस्पॉन्स उसकी समझ नहीं आ रहा था।
मुझे मीशा के पास जाना था उसे बुलाना उचित नहीं लगा क्योंकि वो प्रेगनेंट थी और उसे ४ था महीना चल रहा था। इसलिए मैं मीशा के कमरे की और जाने लगी तभी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे एक कमरे में किसी ने खींचा।
मैने देखा तो वो मिहिर था।
"मिहिर इस तरह की हरकत क्यों कर रहे हो किसी ने देख लिया तो गलत समझेगा।"
"समझने दो जिसे जो समझना है , पर तुम कब समझोगी कीर्ति"
"क्या?"
"तुम गलत कर रही हो ये शादी करके"
"मिहिर , अब इस सब बातों के लिए काफी देर हो चुकी है ।"
"एक बार और सोच लो कीर्ति"
"सोच समझ के ही फैसला किया है मिहिर, उम्मीद है इस बारे में अब तुम मुझसे दोबारा बात नही करोगे" कहकर मैं वहां से बाहर निकल गई । मेरे पीछे मिहिर भी निकल गया । लेकिन वहां खड़े किसी ने हमारी सारी बाते सुन ली थी। कौन था वो शख्स ये भी आप जल्द ही जान जायेंगे।
शादियां संपन्न हो चुकी थी । मैं राजीव को अपने जीवन साथी के रूप में पाकर खुश थी और मन ही मन सोच लिया था कि इस एक साल में राजीव को इतना प्यार दूंगी की उसे मेरे प्यार का एहसास हो जाए और वो मुझे छोड़ने का मन बदल ले।
मीशा सही थी । शादी हो जायेगी तो प्यार भी अपने आप हो ही जायेगा । मैं भी राजीव के दिल में अपने लिए प्यार जगाने के मिशन पर निकल चुकी थी।
शादी की सारी रस्मों के बाद थककर मैं मीशा के साथ सो गई ।
हमारी पहली रात एक दूसरे से दूर रहकर बीती थी कुछ रस्मों के चलते । मैं वैसे भी उसे लेकर थोड़ी टेंशन में थी। लेकिन मुझे वो भी फेस तो करना ही था ।
अगले दिन हम लोग वापिस अपने शहर आ गए । और मुझे और राजीव को मंदिर दर्शन करवाने के बाद , सभी लोग रात के लिए तैयारी करने लगे । मैं मीशा के कमरे में थी । धीरे धीरे वो समय आया जिससे में बहुत घबरा रही थी।
रात को मुझे सजा धजा कर राजीव के कमरे में बिठा दिया गया । मैने देखा कमरा खूबसूरत गुलाब और लिली के फूलों से सजा हुआ था । गुलाबों की महक मदमस्त करने वाली थी ।कमरे में हल्की रोशनी थी । मैं मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि राजीव कमरे में ही ना आए।
ये बात और थी कि मैंने कई बार उसके साथ रात बिताई है लेकिन तब वो दोस्त था और हम साथ पढ़ाई करते थे। आज बात और थी वो मेरा पति बन गया था लेकिन अब भी हमें दूरियां बनाए रखनी थी।
मैं यही सब सोच में थी की कमरे का दरवाजा बजा।
देखा तो राजीव कमरे में आ चुका था। उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।
मेरे दिल की धड़कने बड़ गई थी।
क्या होगा आगे कहानी में? क्या राजीव और कीर्ति शारीरिक रूप से एक होंगे ? क्या कीर्ति की इच्छा के विरुद्ध राजीव उससे शारीरिक संबंध बनाएगा ? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करना होगा ।