भाग–२७
मैने स्क्रीन पर देखा तो मीशा का वीडियो कॉल था । मैने तुरंत कॉल उठाया । मैं जानती थी मीशा ये खबर सुनकर कॉल कर ही देगी ।
"हेलो , मेरी जान , मेरी प्यारी कीर्ति , मेरी भाभी "
मैने मुस्कुराकर उसे जवाब दिया "हां मीशा बोलो , कैसी तबियत है तुम्हारी "
"शर्मा रही हो? वैसे ये सब कैसे हुआ?"
"पता नही अचानक कल राजीव ने शादी के लिए पूछा तो आज मैने हां कह दिया "
"ओह, कीर्ति कीर्ति कीर्ति , मैं बहुत खुश हूं तेरे लिए यार , सच में अभी भाग कर आ जाऊं ऐसा मन कर रहा है । "
"तू अपना खयाल रख , अभी भाग नही पाएगी।"
"हां यार ," कहकर उसने मुंह बना लिया ।
"कीर्ति तू खुश तो है ना?" मीशा ने शायद मेरा चेहरा पढ़ लिया था ।
"हां , मीशा , मेरा एक ही तो ख्वाब था , राजीव की दुल्हन बनने का , और वो भी अब पूरा होने वाला है । आई एम सो हैपी " मैने खुश होते हुए कहा ।
मैं मीशा को नही बताना चाहती थी कि ये एक कॉन्ट्रैक्ट मैरिज है ।
"चल शाम को बात करते है " मीशा ने कहा ।
"ओके बाय"
"बाय"
मैं पहली बार एक झूठ का सहारा ले रही थी। आखिर क्यों करती हूं राजीव से इतना प्यार कि अपने उसूलों तक को ताक पर रख दिया है। झूठ बोलना सीख गई बस राजीव का प्यार पाने के लिए । लेकिन वो तो कभी मिलेगा भी नही । दिमाग तो कह रहा है अभी ना कह दूं उसे । लेकिन दिल अब भी उसी की और भाग रहा है । एक मौका मिला है कैसे उसे गंवा दूं मैं। दिमाग और दिल की लड़ाई में जीत दिल की हुई ।
मम्मी पापा मार्केट से आ गए थे । मैने उन्हे कुछ नही बताया था। पापा मेरे पास आए ।मेरी पापा से कभी बात नहीं होती थी। ना जाने क्यों आज वो मेरे कमरे में आए।
"कीर्ति बेटा"
"पापा की आवाज से मैं डरकर बिस्तर से उठ खड़ी हुई। हां मैं पापा से बहुत डरती थी।
"जी,,, जी,, पापा" मैने डरते हुए कहा।
"तुझसे कुछ बात करनी थी, अंदर आ जाऊं?"पापा एकदम विनम्रता से बात कर रहे थे।
"जी पापा , आइए ना" मैने उन्हे अंदर बुलाया।
वो आकर कमरे को चारों और से देख रहे थे। क्योंकि सालों बाद वो इस कमरे में आ रहे थे। चारों तरफ नजर घुमाकर वो मेरे बिस्तर पर बैठ गए।
"मैं उनके पास जाकर उनके सामने खड़ी हो गई। मुझे बहुत डर लग रहा था ना जाने पापा क्या कह देंगे।
"बैठो" उन्होंने अपने पास बैठने के लिए कहा
"मैं उनके पास थोड़ी दूरी पर उसी बिस्तर पर बैठ गई।
"बेटा, मैं जानता हूं तूने देहरादून जाने का फैसला क्यों लिया। जानती है तेरा राजीव के साथ रहना मुझे इसलिए पसंद नही था , सोचता था कि अगर इसने मेरी फूल सी बच्ची का कोमल सा दिल तोड़ दिया तो? आखिर हुआ भी वही।"
"नहीं पापा , राजीव ने,,,," मेरी बात पूरी होने दो बेटा।
मैं चुप हो गई मेरी पलकें भीग चुकी थी।
"बेटा , राजीव अच्छा लड़का होगा शायद, लेकिन तेरे प्यार को तो नहीं समझ पाया न?"
"पापा आपको कैसे पता?"
"मुझे बहुत पहले से पता है कि तुझे राजीव से प्यार है । लेकिन वो कभी भी तेरी भावनाओं को समझा नहीं । उल्टा हमेशा तेरी भावनाओं का इस्तेमाल किया , और अब तू उससे दूर जाना चाहती है , लेकिन उसे दिल में बसाकर?" कहते हुए पापा ने मेरे बैग में से राजीव की फोटो निकाल कर मुझे दिखाई।
मैं अब फूट फूट कर रोने लगी। और पापा से लिपट गई ।
"बेटा अगर तू उससे दूर जाना चाहती है , तो उसकी यादों को यही छोड़ दे , उससे जुड़ी हर चीज को यही छोड़ दे। नहीं तो तेरा उससे दूर जाना सार्थक नहीं होगा "
उन्होंने इतना कहकर मेरे सिरपर अपना हाथ घुमाया और जाने लगे।
क्या होगा जब राजीव रिश्ता लेकर आएगा।