Beautiful queen of Shushangarh in Hindi Detective stories by Sharovan books and stories PDF | शूशनगढ़ की सुंदरी

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शूशनगढ़ की सुंदरी




शूशनगढ़ की सुन्दरी।

बाइबल की ऐतिहासिक कहानी

-शरोवन

***

" विश्व का इतिहास इस सच्चाई का बे-हद कटु गवाह है कि, आज तक जितना अधिक खून-खराबा, मार-काट, दंगे-फसाद और युद्ध व लड़ाइयां धर्म और जाति के समीकरण को लेकर हुई हैं, उतनी अधिक किसी अन्य कारणों से नहीं. आप अतीत में, प्राचीन कॉल में और दुनिया की शुरूआत से इतिहास के पन्ने पलटकर देख लीजिये तो आप खुद भी इस कड़वी सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकेंगे कि धर्म और जाति के भेद-भाव ने सदा ही सड़कों पर लहू की नदियां बहा दी हैं, निर्दोष और बे-गुनाहों पर अत्याचार ढाये हैं. लेकिन दुःख का विषय है कि, आज वर्तमान में, इस तकनीकी के युग में भी यह खून-खराबे का सिलसिला थमा नहीं बल्कि दिन-व-दिन बढ़ा ही है. मसीहियों और यहूदियों का धर्मग्रंथ क्रमश: 'बाइबल' और 'तोरह' भी इस लाल रंग में लिखी इबारत को नकारती तो नहीं है बल्कि इस प्रकार से पेश करती है कि, खून-खराबे के नाम पर जो कुछ भी हुआ था वह गलत नहीं था.


'शूशनगढ़ की सुन्दरी' के नाम पर जो कुछ भी लिखा गया है वह बिलकुल वही है जैसा कि बाइबल में लिखा हुआ है. कोई भी जन उसको बाइबल की पुस्तक 'एस्तेर' में पढ़ कर मिलान कर सकता है. इस कहानी में एक भी बात मनगढ़ंत नहीं जोड़ी गई है, पर हां, रोचकता बनी रहे और पाठक बोर न हों, इसलिए उसको अपने शब्दों में लिखा गया है."

***


दुष्ट हामान यहूदी मोर्दकै से जलने लगा तो उसने राजा क्षयर्ष से चाल चल कर जब समस्त यहूदी जाति का ही विध्वंस और सत्यानाश करने की युक्ति निकाल ली तो यहूदियों के परमेश्वर जिसने समस्त मानव जाति के साथ-साथ विशेष तौर पर यहूदी कौम को अपनी चुनी हुई कौम कहा है, ने किस प्रकार एक यहूदी बाला को इस्तेमाल किया तथा कैसे अपनी यहूदी जाति को सर्वनाश से बचा लिया? वह यहूदी सुन्दरी जो एक बंधुये के समान अपना जीवन व्यतीत कर रही थी, यहूदी कहते हैं कि, 'परमेश्वर की अपार कृपा और अनुग्रह के कारण महारानी के पद पर जा पहुंची तथा उसने वह कार्य किया जिसका बयां बाइबल के इतिहास में न केवल परमेश्वर के वचन के रुप में किया गया है बल्कि, उस समय के इतिहास की पुस्तक में भी स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया गया है. किस प्रकार हदस्सा नाम की उस यहूदी बाला ने अपनी जान पर खेलकर अपने लोगों की रक्षा की और यहूदियों का वह जानी दुश्मन हामान जो उनके खून के छींटों का प्यासा हो चुका था, अचानक ही बाज़ी के सारे पासे पलट जाने के कारण मोर्दकै के लिये बिछाये हुये जाल में खुद फंस गया. फिर इसका अंजाम वह हुआ कि एक दिन दूसरों के लिये खड़ी की गई सलीब पर खुद उसको ही निरसंशता के साथ लटका दिया गया. फिर हामान की फांसी के साथ चालबाज़ी के आटे में सनी हुई खूनी कहानी समाप्त नहीं हुई बल्कि चरम सीमा के उस द्वार तक जा पहुंची जहां से इंसानी खून की वह नदियां बहा दी गईं कि, जिसका वर्णन खून के धारों से लिखा गया. निरसंशता, मारकाट और बदले की आग में खिंची हुई तलवारों के कारण हुये खून-खराबे से इंसानी धड़ों के कितने टुकड़े हुये, इसकी गिनती भी कोई नहीं कर सका होगा? इसी खून-खराबे की विशाल जीत का पर्ब्ब आज भी यहूदी अदार (March) महीने की 14 व 15 वीं तारीख को हर साल 'पुरीम' (Purim) नाम के त्यौहार के रूप में मनाते हैं.

मसीही व सार्वजनिक कहानियों के लेखक व उपन्यासकार शरोवन का एक और जोशीला प्रयास. बाइबल की कहानी पर आधारित ‘शूशनगढ़ की सुंदरी’ नामक कहानी; आशा है कि आपको एक नये तरीके से सोचने पर विवश करेगी.

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समयकाल 486 - 465 बी. सी.

शूशनगढ़ का महान और पराक्रमी अधिराज क्षयर्ष, जिसके राज्य की सीमा भारतवर्ष की सरज़मी से लेकर कूष के भयानक जंगलों तक मिलाकर विश्व के 127 प्रातों तक पहुंच चुकी थी, के राज्य के दिनों में उसके आलीशान और भव्य राजमहल का वह सुप्रसिद्ध दिन और वह समय जबकि उसने अपने महल में सात दिनों तक राजभोग का एक विशाल आयोजन किया था। इस राजभोग की ख्याति ऐसी हुई थी कि फिर एक बार भी उसको इतिहास में कभी भुलाया नहीं गया। तब अपने महल में आये हुये दूर-दूर देशों के राजा, हाकिम, सेनापति और मंत्रियों को 180 दिनों तक राजा क्षयर्ष अपने राज्य का वैभव दिखाता रहा तथा अपने शौर्य की चर्चा हरेक से करवाई और राजभवन के अनमोल पदार्थों को बड़ी शान के साथ दिखाता रहा था। 180 दिनों के व्यतीत होने के पश्चात राजा क्षयर्ष ने अपने राजगढ़ में क्या छोटे, क्या बड़े, उन समस्त आये हुये अतिथिगणों को जो शूशनगढ़ के राजगढ़ में एकत्रित हुये थे, राजभवन के अन्दर सात दिनों तक राजसी भोग में सम्मिलित किया। इस विशाल जेवनार के समय उसके राजमहल की सुन्दरता और वैभव का तब कोई भी दूसरा सानी नहीं बन सका था। संगमरमर के दूध से धुले जैसे गगनचुंबी खंभों को बैंजनी रंग की डोरियों और चांदी के छल्लों से सजा दिया गया था। दरवाज़ों और खिड़कियों पर श्वेत मखमली रंग के लटकते हुये पर्दे दूर से ही यूं प्रतीत होते थे कि, जैसे आसमान की अफसराओं ने स्वर्ग की दहलीज़ को पार करके ज़मीन पर कहीं पनाह लेकर राजभोग में आये हुये अतिथियों का स्वागत करने की जि़द पकड़ ली है। सोने और चांदियों की रखी हुई चौकियों की चमक ही ऐसी थी कि जो भी उसको देखता था तो फिर अपने ही अक्श को चूमने लगता था। इस जेवनार में राजा की पसंद का सबसे मंहगा और अच्छा दाखमधु विभिन्न प्रकार के पात्रों में आये हुये मेहमानों के स्वागत और सम्मान में पिलाया जा रहा था। दाखमधु पान के समय ये राजा क्षयर्ष की उदारता का एक और उदाहरण था कि उसका उपयोग हरेक की अपनी इच्छा पर था। किसी के साथ कोई भी पीने का आदेश नहीं था। दूसरी तरफ, राजा क्षयर्ष की सुन्दरताओं के अनमोल सांचों में ढली पटरानी महारानी वशती ने भी अपने महल में स्त्रियों की जेवनार की और राजकीय भोज का मनभावना आयोजन किया। उसके महल में भी सुन्दरताओं के अर्धनग्न जवान साये अपने अतिथियों का भरपूर स्वागत करते रहे।

फिर सातवें दिन, जब राजा क्षयर्ष का मन उच्चकोटि के दाखमधु में मग्न था और जेवनार का नशीला वातावरण अपनी खुबसूरती की चरमसीमा पर आकर आकाश की बुलन्दियों को स्पर्श करने का प्रयास करने लगा था, तब राजा ने अपने विश्वशनीयसातों खोजों (किन्नर: इनको उस समय के राजकीय शासनों में रंगमहल और रानियों के महलों में राजकीय स्त्रियों की सेवा और रक्षा करने के लिए रखा जाता था. किन्नर या खोजे इसलिए रखे जाते थे ताकि राजकीय घराने की स्त्रियाँ और राजकुमारियों का योन सम्बन्ध किसी भी बाहरी पुरुष से न हो सके.) को बुलवाया और उन्हें आदेश देते हुये कहा कि,

‘महूमान, विजता, हर्बोना, बिगता, अबगता, जेतेर और कर्कस; तुम सातों खोजों जिन पर मैं हरेक पल आंख बंद किये हुये विश्वास करता हूं। मेरे इस आदेश को ध्यान से सुनो। तुम्हारे राजा और उसके राज्य की शान-शौकत का नाम हरेक राज्य की सरहदों के पार पहुंच चुका है। मैंने इस जेवनार में जो कुछ भी किया है, उससे हमारे राजमहल की सुन्दरता के चर्चे और भी अधिक बिखर चुके हैं। मगर अब जो कमी रह गई है, वह यही कि महारानी वशती की बहुमोल सुन्दरता का बयान फिर भी लोगों की जुबानों पर थोड़ा कम है। इसलिये मैं चाहता हूं कि, जाकर रानी वशती से कहो कि, वह इसी समय अपना राजमुकुट धारण किये हुये हमारे इस महान राजभोग में पधारने का कष्ट करें, ताकि उनकी भी सुन्दरता देश-देश के राजाओं और हाकिमों से छुपी न रह सके।’

राजा का ये आदेश सुनते ही सातो खोजे बिजली की सी फुर्ती से रानी वशती के महल में चले गये। मगर जब लौटकर अपना सा मुंह लेकर वापस आये तो उनका सन्देश सुनते ही राजा जैसे बौखला सा गया। वह तुरन्त ही अपनी जलजलाहट में तिलमिलाता हुआ बोला,

'क्या कहा? रानी वशती ने हमारी इस जेवनार में न केवल आने से इनकार ही किया है बल्कि स्पष्ट रूप से तुम्हारे राजा का घोर अपमान भी कर डाला है। जाओ, और समय-समय का भेद जानने वाले समस्त पंडितों को इसी वक्त हमारे सम्मुख पेश होने का एलान कर दिया जाये।’

यह कहकर के राजा ने अपने हाथ का राजदंड क्रोध में फेंक कर वहां लटकते हुये झाड़-फानूस पर मार दिया तो पल भर में ही कांच के टूटे हुये टुकड़े संगमरमर के फर्श पर बिख़रकर अपनी दुर्दशा का रोना रोने लगे।

फिर राजा का आदेश पहुंचते ही क्षण भर बीते होंगे कि, उसके राज्य की राजनीति और न्याय के ज्ञानी क्रमश: कर्शना, शेतार, अदमाता, तर्शीश, मेरेस, मर्सना, और ममूकान नाम फ़ारस और मादै के सातों खोजे , उसके सामने सिर झुकाकर हाजिर हो गये। तब राजा ने अपनी उफनी हुई जलजलाहट को थोड़ा शांत करते हुये अपने खोजों से सलाह ली। उसने पूछा कि,

'रानी वशती ने अपनी सुंदरता के घमंड में खोजों के द्वारा भेजी गई तुम्हारे राजा की आज्ञा का न केवल उल्लंघन किया है बल्कि भरी जेवनार में उसका अपमान भी कर दिया है। इसलिये तुम सब लोग मुझे बताओ कि रानी वशती के साथ हमारे राज्य की नीति के अनुसार क्या किया जाये? क्या वह राजकीय दंड के योग्य पाई गई है?'

तब ममूकान ने राजा को उत्तर दिया। वह बोला कि,

'महाराज के राज्य की महिमा और शान युगानुयुग होती रहे। महारानी वशती ने जो अनुचित कार्य किया है वह न केवल राजा से बरन् सब हाकिमों और उन सब देशों के लोगों से भी जो क्षयर्ष राजा के सब प्रान्तों में रहा करते हैं। इस कारण रानी वशती के इस अनुचित कार्य की चर्चा राज्य में रहनेवाली सब ही स्त्रियों में होगी, और इसका प्रभाव इतना तक पड़ेगा कि वे भी अपने पतियों को तुच्छ जानने लगेंगी। इसके साथ ही आज के दिन फारसी और मादी हाकिमों की वे स्त्रियां भी जिन्होंने ये बात सुनी होगी वे भी राजा के समस्त हाकिमों से इसी प्रकार का बर्ताव करने लगेंगी। इससे राज्य में बहुत ही घृणा का वातावरण फैलते देर नहीं लगेगी। इसलिये राजा महान क्षयर्ष को यदि स्वीकार हो तो वे यह आज्ञा निकालें और इस आज्ञा को वह फार्सियों और मादियों के कानून में लिखा जाये ताकि, इस आज्ञा को कभी भी बदला न जा सके। जो आज्ञा वे निकालें, वह ये हो कि, आज के बाद रानी वशती फिर कभी भी राजा क्षयर्ष के सामने न आने पायें और पटरानी का पद उनसे छीनकर उसे दे दिया जाये जो उनसे भी अधिक सुन्दर हो। राजा की इस प्रकार की आज्ञा का प्रभाव ऐसा होगा कि तब सारी पत्नियां अपने-अपने पतियों का आदरमान भी करती रहेंगी।'

ममूकान की सम्मति को सुनकर राजा क्षयर्ष बड़ी देर तक गंभीर बना सोचता रहा। वहां पर आये हुये अन्य हाकिमों को ममूकान की बात पसंद आई तो साथ ही राजा के मन में भी ये बात समा गई कि, ममूकान ने जो कुछ भी कहा है वह सच ही है। तब राजा ने सबको यह आज्ञा सुनाई। वह बोला कि,

'राज्य के हरेक प्रान्त और जाति की अपनी भाषा में इस प्रकार की चिट्ठी भेजी जाये कि प्रत्येक स्त्री अपने पति का आदरमान करना सीखे और पुरूष अपने घर का अधिकारी बने तथा अपनी ही जाति की भाषा बोला करे। रानी वशती को तुरन्त ही पटरानी के पद से हटा दिया जाये और राजा के लिये दूसरी पटरानी की खोज में खोजे राज्य के चप्पे-चप्पे में रवाना कर दिये जायें।'


इस प्रकार से क्षयर्ष राज्य के हरेक प्रान्त की सुंदर युवतियों को ढूंढ़-ढूंढ़कर राजा के रनवास में उसके खोजे हेगे के अधिकार में दिया जाने लगा तथा उनकी सुन्दरता को बढ़ाने के सभी प्रकार के तेल, इत्र और प्रसाधन भी उन्हें दिये जाने लगे ताकि, निश्चित समय पर वे राजा के सम्मुख उपस्थित हो सकें। 


उन दिनों, शूशनगढ़ की सरहदों के अंदर रहनेवाला मोर्दकै नाम का एक यहूदी भी था। यह यहूदी कीष नामक एक बिन्यामीनी का परपोता, शिमी का पोता, और याईर का पुत्र था। मोर्दकै उन बंधुओं के साथ यरूषलेम से बंधुआई में गया था जिन्हें बाबेल का निरंशक राजा नबूकदनेस्सर यहूदा के राजा यकोन्याह के संग बन्धुआ बनाकर ले गया था। मोर्दकै ने अपनी चचेरी बहन हदस्सा को जो ऐस्तर भी कहलाती है, को बड़े ही लाड़-प्यार से पाला-पोसा था, क्योंकि उसके माता-पिता कोई भी न थे। इसलिये मोर्दकै ने ऐस्तर को अपनी बेटी बना लिया था। ऐस्तर बड़ी ही सुन्दर और रूपवान थी। उसकी सुन्दरता की मिसाल तब उसके समाज और प्रान्त के आस-पास के क्षेत्रों में कहीं भी न थी।

तब ऐस्तर भी राजा क्षयर्ष की आज्ञानुसार अन्य सुन्दर कुंवारियों के साथ शूशनगढ़ के रनवास में राजभवन में स्त्रियों के रखवाले हेगे के अधिकार में सौंपी गई। हेगे ने जब ऐस्तर को देखा तो वह भी उसकी सुन्दरता को एक बार देखता ही रह गया। अपने चाल-चलन और व्यवहार से भी ऐस्तर हेगे को अत्यधिक भली लगी। तब हेगे ऐस्तर से इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि उसने कोई भी विलंब किये बगैर उसे राजभवन में से शुद्ध किये जानेवाली वस्तुयें, उसका भोजन और उसके लिये चुनी हुई उसकी सात सहेलियां के साथ राजा के रनवास में सबसे अच्छा स्थान भी रहने के लिये दे दिया।

इस प्रकार ऐस्तर अपना घर छोड़कर राजभवन में तो आ गई थी मगर अभी तक उसने किसी को भी अपनी ना तो जाति बताई थी और ना ही अपने कुल का कोई अता-पता ही दिया था, क्योंकि मोर्दकै ने भी उसको अपने बारे में कुछ भी बताने से मना कर दिया था। तब इस प्रकार ऐस्तर अपने घर को छोड़कर राजभवन में पहुंचा दी गई थी, मगर पिता का मन रखनेवाले मौर्दकै के दिल में कहीं भी चैन और सकून नहीं था। इसलिये प्रतिदिन ही वह राजभवन के रनवास के सामने टहलता था और सोचता था कि ना जाने ऐस्तर के साथ कैसा व्यवहार किया जाये? वह कैसी है और उसके साथ ना जाने कैसा-कैसा सलूक होता होगा? इस प्रकार की चिन्ताओं से ग्रस्त प्रश्नों के दायरे में मोर्दकै एक अजीब ही दुविधा में प्रायः राजभवन के आस-पास ही घूमता रहता था और फिर कोई भी सूचना न पाकर निराश मन से घर वापस आ जाता था।

राजभवन में रनवास की नीति के अनुसार किसी एक कन्या को बारह माह तक शुद्ध किया जाता था: अर्थात छः माह तक उसके शरीर पर गंधरस का तेल लगाया जाता था और बाकी के अन्य छः माह तक अन्य सुगन्धित पदार्थों के द्वारा शुद्ध करने के सामान को उसके शरीर पर मला जाता था। तब इस प्रकार से वह कन्या जब रनवास से राजमहल में राजा के पास भेजी जाती थी तो उसको वह सब कुछ दिया जाता था जो उसके लिये राजमहल की रीति के अनुसार ठहराया जाता था। मगर इसके अतिरिक्त भी वह कन्या जो और भी कुछ चाहती थी, वह भी उसको दिया जाता था। फिर जब वह राजा के पास से लौट कर आती थी तो रनवास के दूसरे घर में रखेलियों के रखवाले शाषगज के अधिकार में कर दी जाती थी। इसके पश्चात वह कन्या फिर कभी भी राजा के पास तब तक नहीं पहुंचाई जाती थी, जब तक कि राजा स्वंय उसके लिये नहीं कहता था।

जब मोर्दकै के चाचा अबीबैल की रूप सुंदरी पुत्री एस्तेर की बारी आई कि वह राजा के पास भेजी जाये तब जो कुछ स्त्रियों के रखवाले राजा के खोजे हेगे ने उसके लिये ठहराया था, इससे अधिक उसने और कुछ भी नही मांगा। तब जितनों ने भी एस्तेर को देखा वे सब ही उससे बहुत प्रसन्न हुये। सो इस प्रकार एस्तेर राजा क्षयर्श के राजभवन में उसके राज्य के सातवें वर्ष के तेबेत (दिसम्बर-जनवरी) नाम दसवें महिने में पहुंचाई गई।

ऐस्तर को देख कर राजा क्षयर्ष इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि उसने उसको अन्य स्त्रियों से सबसे अधिक पसंद किया और सब कुंवारियों से अधिक कृपादृष्टि उसकी उस पर ही हुई। इस कारण राजा क्षयर्ष ने एस्तेर के सिर पर राजमुकुट रखा और उसको वशती के स्थान पर रानी बनाया। इसके साथ ही राजा ने अपने समस्त हाकिमों और कर्मचारियों की बड़ी जेवनार करके उसे रानी एस्तेर की जेवनार का विशेष नाम दिया। इस जेवनार के अवसर पर राज्य के समस्त प्रान्तों में राजकीय अवकाश रखा गया और सबको उदारता के योग्य पुरस्कार बांटे गये। राजा क्षयर्ष के राज्य का ये आलीशान समारोह राजकीय भोज के साथ अन्य आकर्षित कार्यक्रमों के साथ कई दिनों तक चलता रहा तथा इसका वर्णन विशेष रूप से इतिहास की पुस्तक में लिखा गया। तब इसके पश्चात जब कुवारियां दूसरी बार एकत्रित की गइं तब मौर्दकै उस समय राजभवन के सामने बैठा हुआ था। उसी समय राजा के दो खोजे बिकतान और तेरेश जो द्वारपाल भी थे, किसी बात पर राजा से रुष्ट होकर उस पर हाथ चलाने की युक्ति बना रहे थे। तब मौर्दकै ने ये बात एस्तेर को बता दी और एस्तेर ने मोर्दकै का नाम लेकर राजा को चितौनी भिजवा दी। तब राजा की जांच-पड़ताल पर जब ये बात सच पाई गई तो पलक झपकते ही बिकतान और तेरेश वृक्ष पर लटका दिये गये और राजा के प्रति की गई इस घिनौनी साजिश का पूरा ब्यौरा राजा के समक्ष इतिहास की पुस्तक में लिख लिया गया।

फिर उपरोक्त बातों के कितने ही दिन व्यतीत होने के पश्चात राजा ने आगामी हम्म्दाता के पुत्र हामान को एक उच्च राजकीय पद देकर उसके साथी हाकिमों के सिंहासनों से ऊंचे स्थान पर बैठा कर उसके महत्व को बढ़ा दिया। इसलिये राजा के अन्य कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे वे हामान के सामने झुक कर उसे दण्डवत किया करते थे, परन्तु मोर्दकै ना तो झुकता था, और ना ही हामान को दण्डवत किया करता था-। मोर्दकै के इस व्यवहार पर उसके साथी जनों ने एक दिन उससे पूछा कि क्या कारण है कि तू हामान को ना तो दण्डवत करता है और ना ही उसके समक्ष झुकता है। क्या तू इस प्रकार से राजा की आज्ञा का उल्ल्घंन नही करता है?

तब मोर्दकै ने उनको उत्तर दिया।

वह बोला कि,

‘मै यहूदी हूं और यहूदियों की व्यवस्था के अनुसार मैं अपने यहोवा परमेश्वर यहोवा के सिवा किसी अन्य के सामने सिज़दे में झुक कर अपने ईश्वर का अपमान नही करूंगा।’

मोर्दकै की ये बात सुन कर उसके साथियों को बहुत बुरी लगी और उन्होंने तुरन्त ही इसकी सारी सूचना हामान को दे दी। हामान ने भी जब ये सब सुना तो वह सुनते ही आगबबूला हो गया, मगर उसने मोर्दकै पर सीधा अपने हाथ चलाना अपनी मर्यादा के तुच्छ जाना, क्योंकि हामान को ये पता चल चुका था कि मोर्दकै यहूदी है। तब हामान ने क्रोधित होकर अपनी जलजलाहट को शांत करने के लिये राजा क्षयर्ष से मिल कर उसके साम्राज्य में रहने वाले समस्त यहूदियों के महा-विनाश की युक्ति निकाली। तब राजा क्षयर्ष के बारहवें वर्ष के नीसान नाम महिने में यहूदियों का बैरी हामान राजा क्षयर्ष के सामने उपस्थित हुआ और उसको राज्य की सूचना देते हुये बोला कि,

‘मैंने तेरे राज्य का दौरा किया है और ये पाया है कि राज्य के सब प्रान्तों में रहनेवाले देश-देश के लोगों के मघ्य में तितर-बितर और छिटकी हुई एक जाति है, जिसके नियम और कायदे अन्य सब लोगों के नियमों से भिन्न हैं। इस जाति के लोग राजा के कानून पर नहीं चलते हैं, इसलिये उन्हें रहने देना राजा को लाभदायक नहीं है। अब यदि राजा को स्वीकार हो तो उन्हें नष्ट करने की आज्ञा लिखी जाये। मैं इस काम को पूरा करवाने के लिये राज्य के भंडारियों के हाथों में राजभंडार के लिये पूरे दस क्क्किर चांदी दूंगा।’

हामान की इस प्रकार की सूचना पाकर राजा बड़ी देर के लिये किसी गहरी सोच में पड़ गया। काफी देर तक उसकी समझ में नही आया कि वह क्या करे और क्या नहीं। हामान उसके मंत्रिमंडल में एक उच्चकोटि के पद पर आसीन था। राजा उसकी हरेक सूचना पर विश्वास किया करता था। इसलिये बड़ी देर की सोच-विचार के पश्चात राजा ने अपनी अनुमति देते हुए तथा अपने हाथ की सोने की अंगूठी उतारकर हामान को दी और उससे कहा कि,

‘राजभंडार की वह चांदी तुझे दी गई है और वे लोग भी तुझको हवाले कर दिये गये हैं। ताकि तू उनसे जैसा तेरा जी चाहे वैसा ही व्यवहार करे।’

सो, इस प्रकार हामान ने राजा की आज्ञा पाकर उसी महिने के तेरहवें दिन को राजा के लेखक बुलवाये और फिर उसकी आज्ञानुसार राजा के सब अधिपतियों और प्रान्तों के प्रधानों और देश-देश के लोगों के हाकिमों के लिये चिटठियां एक-एक प्रान्त के अक्षरों और एक-एक देश के लोगों की भाषा में राजा क्षयर्ष के नाम से लिखी गईं तथा उन पर राजा की अंगूठी की छाप लगाई गई। राज्य के हरेक प्रान्त में इस आशय की पत्रियां हरेक डाकियों और हरकारों के द्वारा भेजी गइं कि, एक ही दिन में अर्थात अदार नाम के बारहवें महिने के तेरहवें दिन को क्या जवान, क्या बूढे, क्या स्त्रियां, क्या बालक, सब ही यहूदी विध्वंसघात और नाश कर दिये जायें, तथा उनकी धन-सम्पति लूट ली जाये। इस लेख की नक्लें सब ही प्रान्तों में खुली भेजी गई ताकि सब देशों के लोग उस दिन के लिये तैयार हो जायें। ये आज्ञा शूशनगढ़ में दी गई और डाकिये राजा की आज्ञा से तुरन्त निकल गये। फिर इसके साथ ही राजा और हामान तो बड़ी दावत की जेवनार में बैठ गये, मगर शूशनगढ़ से घबराहट और चिल्लाहटों के मनहूस साये चारों ओर बिखर कर फैल गये। यहूदी जाति के समस्त लोग अपने आपको कमजोर, बेबस, असहाय और बेसहारा जान कर अपने परमेश्वर यहोवा की दोहाई तो देने ही लगे साथ ही अपनी निंरशक मृत्यु के दिन भी गिनने लगे।

दूसरी ओर, जब मोर्दकै ने ये जान लिया कि क्या किया गया है और किस प्रकार उसके कारण समस्त यहूदी जाति के विध्वंस के लिये हामान ने कुटिल चाल चल कर अपना जाल फैलाया है तो उसने अपने वस्त्र फाड़ कर फेंक दिये और बदन पर टाट ओढ़ लिया तथा अपने सिर पर राख डाल कर नगर के बीचों-बीच अपने ऊंचे और दुख भरे स्वर में चीखने-चिल्लाने लगा। इसके बाद जब वह टाट ओढे़ हुये राजभवन के फाटक के पास पहुंचा तो उसे टाट पहने हुये किसी ने भी भीतर नहीं जाने दिया। इसके साथ ही क्षयर्ष राजा के राज्य के हरेक प्रान्त में जहां-जहां राजा की आज्ञा और नियम पहुंचे थे वहां-वहां पर के समस्त यहूदी विलाप करने और उपवास करने और रोने-पीटने लगे थे। बहुतेरे यहूदी तो टाट पहने हुये राख में ही पड़े रहे। फिर जब एस्तेर रानी की सहेलियों और खोजों के द्वारा उसको ये बता दिया गया कि किस प्रकार हामान ने यहूदियों का विनाश करने की युक्ति निकाली है, तो वह भी एक बडे़ शोक से भर गई। तब उसने मोर्दकै के पास वस्त्र भेज कर ये कहलवाया कि वह अपना टाट उतार कर इन वस्त्रों को पहन ले। मगर मोर्दकै ने उन्हें न लिया। तब एस्तेर ने अपने विश्वस्त नौकर हताक को उसके पास सम्पूर्ण खबर लेने के लिये भेजा कि, वह पता करे कि, आखिरकार मोर्दकै के टाट ओढ़ने का मुख्य कारण क्या है?

तब मोर्दकै ने पूरी सूचना के साथ और हामान की चिटठी की नकल भी करके हताक को दी और सारी बात सच-सच बता दी। उसने हताक से ये भी कहा कि वह एस्तेर से कहे कि वह राजा के सामने गिड़-गिड़ाकर सारे यहूदियों को बचाने के लिए प्रार्थना करे।

फिर जब हताक ने एस्तेर को मोर्दकै की सूचना दी तो वह भी गहरे सोच में पड़ गई। तब काफी देर के पश्चात एस्तेर ने हताक के द्वारा मोर्दकै को ये सूचना भिजवाई कि राजा के सब कर्मचारियों वरन राजा के प्रान्तों के सब लागों को मालूम है कि, क्या पुरूष, क्या स्त्री और कोई भी क्यों न हो, जो भी बिना आज्ञा राजा के पास उसके भीतरी आंगन में जायेगा उसे मार डालने की आज्ञा है। केवल वही बचता है जिसकी ओर राजा अपना राजदंड बढ़ा देता है। मैं भी राजा के पास पिछले तीस दिनों से नहीं बुलाई गई हूं। एस्तेर की ऐसी सूचना पाकर मोर्दकै ने पुनः अपना संदेश इस रूप में हताक के द्वारा भिजवाया कि,

‘एस्तेर ये न समझे कि राजभवन में रहने के कारण वही केवल सब यहूदियों में बची रहेगी। यदि वह इस समय चुप रही तो फिर भी यूदियों का छुटकारा यहोवा परमेश्वर किसी न किसी तरह से कर ही देगा, परन्तु वह अवश्य ही अपने सारे घराने के समेत नाश कर दी जायेगी। कौन जाने कि इसी कठिन समय के लिए परमेश्वर ने उसको ये राजपद दिलवाया है।’

तब एस्तेर ने अत्यन्त गंभीरता से सोचने-विचारने के पश्चात साहस से काम लिया और फिर एक जटिल निर्णय अपने मन में ही लेकर मोर्दकै के पास ये सूचना भिजवाई कि,

‘मोर्दकै जाकर शूशनगढ़ के सारे यहूदियों को एकत्रित करे और सब ही यहूदी मिल कर मेरे निमित उपवास करें। वे न तो खायें और ना ही कुछ पियें। उन सबके साथ मैं भी अपनी सहेलियों के साथ उपवास करूगीं और ऐसी ही दशा में, मैं राजा के नियम के विरूद्ध उसके महल में जाऊंगी। फिर यदि मैं नाश हो गई तो हो गई।’

तब मोर्दकै एस्तेर का संदेशा पाकर चला गया और जाकर उसकी इच्छानुसार वैसा ही किया जैसा कि एस्तेर ने उसे करने की सलाह दी थी। फिर तीसरे दिन जब सुबह की धूप की कोमल रश्मियाँ राजभवन की संगमरमरी नक्काशी को चूमने लगीं, तो एस्तेर अपने राजकीय वस्त्रों को पहन कर राजभवन के आंगन में जाकर चुपचाप खड़ी हो गई। राजा क्षयर्ष जो अभी-अभी अपनी राजगद्दी पर आकर विराजमान ही हुआ था, उसने जैसे ही रानी एस्तेर को अपने सामने देखा तो तुरन्त ही उसने अपने हाथ का राजदंड उसकी ओर बढ़ा दिया। तब रानी एस्तेर ने नियमानुसार राजा के निकट जाकर राजगद्दी की नोक को स्पर्श किया। इस पर राजा ने उससे कहा कि,

’हे, महासुंदरी रानी एस्तेर मुझे बता कि तुझे क्या चाहिये? तू क्या मांगती है? मांग तुझे आधा राज्य तक दे दिया जायेगा।’

तब एस्तेर ने राजा को उत्तर दिया। वह बोली कि,

’यदि महान क्षयर्ष को स्वीकार हो तो वह आज हामान को साथ लेकर उस जेवनार में पधारे जो मैंने विशेषकर राजा के लिये तैयार करवाई है। एस्तेर का ये निमंत्रण सुनकर फिर राजा ने अपने खोजों को ये आज्ञा दी। वह बोला कि,

’हामान को तुरन्त लेकर आओ, ताकि हम रानी एस्तेर की जेवनार का निमंत्रण स्वीकार करके उसमें पधार सकें।’

तब एस्तेर वहां से चली आई और फिर हामान तथा राजा की उसकी जेवनार में जाने की तैयारियां आरंभ कर दी गईं।

इसके पश्चात जब राजा हामान के साथ एस्तेर की जेवनार में गया और जब जेवनार का नशा अपने पूरे यौवन पर आकर इठला रहा था, तथा मदमस्त रंगीनियों के साये चारों तरफ जैसे मदमस्त होकर बेहोश हुये जाते थे और राजा दाखमधु के साथ हामान के पास बैठा हुआ था तथा दाखमधु का नशा रानी एस्तेर के महल की हरेक दीवारों तक में कहीं गहराईयों तक व्याप्त हो चुका था; तब राजा ने रानी एस्तेर से एक बार फिर से पूछा। वह बोला,

’एस्तेर रानी, तेरा जो भी निवेदन हो वह पूरा किया जायेगा। मुझसे मांग, तुझे तो आधा राज्य तक दिया जायेगा।’

तब एस्तेर ने राजा से कहा कि

'मेरा निवेदन और जो मैं मांगती हूं, वह ये है कि, यदि राजा सचमुच मुझसे प्रसन्न है और वह मेरा निवेदन सुनना और चाहता है, कि जो वरदान मैं मांगू वही देना राजा को स्वीकार हो, तो राजा और हामान कल फिर से विशेष रूप से मेरी उस जेवनार में पधारें जो मैं मुख्यतः उनके लिये तैयार करूंगी। तब फिर मैं कल ही राजा के वचन के अनुसार वह मांगूगी, जो मैं चाहती हूं।’

एस्तेर की इस बात पर राजा ने अपनी अनुमति दे दी और दूसरे दिन की जेवनार में आने का अपना वचन भी एस्तेर को दे दिया। सो उस दिन हामान प्रसन्नतावश, खुशियों से फूला हुआ जैसे ही राजभवन से बाहर निकला तो मोर्दकै को बाहर फाटक के पास बैठा हुआ देख कर स्वतः ही उसके स्वभाव का जायका कड़वा हो गया। हामान को सामने आते देख अन्य पहरेदार तो उसके सम्मान में खड़े हो गये और झुक कर उसे सलाम करने लगे मगर मोर्दकै जब अपनी पूर्व मुद्रा में ही बैठा रहा तो हामान के क्रोध का पारा सातवें आसमान पर चढ़ते देर नहीं लगी। 'इस बेहद अभिमानी मोर्दकै को कुछ अलग से सबक देना होगा।’ ऐसा अपने मन में सोचता-विचारता और जलता हुआ जब वह अपने घर पर पहुंचा तो सबसे पहले उसने खुशी-खुशी अपने राजकीय सम्मान और महारानी एस्तेर की जेवनार में माननीय अतिथि होने की बात उसने अपनी पत्नी जेरेश तथा अन्य मित्रों को कह सुनाई। मगर मोर्दकै के व्यवहार की बात पर वह अचानक ही दुखी हो गया तो उसकी पत्नी जैसे मोर्दकै के प्रति खीझते हुए हामान से बोली कि,

’जब इतना बड़ा राजकीय पद तेरे पास है तो उस अभिमानी यहूदी को ऐसा पाठ पढ़ा कि वह तो क्या ही कि, सारी यहूदी जाति और उसके तबकों तक में हमेशा के लिये एक जहरीला उदाहरण बन जाये।’

तब उसकी पत्नी जेरेश तथा अन्य मित्रों की सम्मति पर तत्काल ये निर्णय लिया गया कि मोर्दकै के लिये हामान के घर में पचास फुट एक ऊंचा खंभा खड़ा किया जाये और बिहान को सूर्य की पहली किरण के फूटने से पहले ही उस पर उसे लटका दिया जाये। उस रात जब कि राजा कोई अधिक थका हुआ भी नहीं था, मगर फिर भी वह सो नहीं सका। फिर उसे जब नींद नहीं आई तो उसने आज्ञा देकर इतिहास की पुस्तक पढ़ने वाले को बुलवाया और उसे पढ़ कर सुनाने की आज्ञा दी। तब इतिहास की पुस्तक पढ़ते हुये जब ये वृत्तांत मिला कि राजा क्षयर्ष के हाकिम जो द्वारपाल भी थे, उनमें से बिगता और तेरेश नाम दो जनों ने राजा पर हाथ चलाने की कुटिल युक्ति की तो उसे सबसे पहले मोर्दकै ने ये भेद प्रगट किया था। इस पर राजा ने इतिहास के पढ़ने वाले से पूछा कि,

’मोर्दकै ने मेरी जान बचाई और राज्य विरोधी करने वाले का पता देकर एक सर्वश्रेश्ठ काम किया, मगर इसके बदले मोर्दकै की क्या प्रतिष्ठा और बड़ाई की गई थी?'

'?'

राजा के इस प्रश्न पर उसके वे सेवक जो उस समय उसकी सेवा टहल कर रहे थे, एका-एक शांत होकर आपस में बगलें झाकने लगे, तो राजा क्षणिक क्रोध के साथ अपनी तीव्र आवाज में उनसे बोला कि,

’मैंने पूछा है कि, क्या किया गया था उस समय मोर्दकै के सम्मान के लिये?'

इस पर उन सेवकों में से एक ने थोड़ा साहस बटोरते हुये अपना सिर झुका कर राजा से कहा कि,

'महा-अधिराज, अफसोस है कि, उस समय मोर्दकै के लिये कुछ भी नहीं किया जा सका था।'

'लेकिन हम अब जरूर करेंगे।' ये कहकर राजा क्षणिक देर को चुप होकर उनसे पुनः बोला,

'बाहर आंगन में कौन आया हुआ है?'

'जी ! वह तो प्रतिष्ठित हामान है।’ सेवक ने बताया तो राजा फिर से खामोश हो गया और हामान जो कि इस सुबह पौ फटते ही इस कारण राजा के पास आया था कि, पिछली शाम उसने जो पचास फुट खंभा मोर्दकै के लिये खड़ा करवाया था, उस पर उसे लटकवाने के लिये राजा से उसकी चर्चा करे।

फिर राजा ने काफी देर सोचने के पश्चात अपने सेवकों से कहा कि,

'हामान को मेरे सामने भेज दिया जाये।'

सेवकों की सूचना पाकर जब हामान मुस्कराता हुआ राजा के समक्ष आया तो राजा ने उससे छूटते ही पूछा कि,

'हामान, मुझे बताओं कि, जिस पुरुष की प्रतिष्ठा और सम्मान राजा स्वयं करना चाहे, उसके लिये क्या करना उचित होगा?'

इस पर हामान मन ही मन ये सोच कर कि राजा के लिये मुझसे अधिक और कौन सौभाग्यशाली होगा कि जिसकी राजा प्रतिष्ठा करना चाहे, मन में इसी अपार प्रसन्नता के साथ यही सोचते हए वह राजा से बोला कि,

'ऐसे भाग्यशाली व्यक्ति का सम्मान बिल्कुल किसी राजा के समान एक राजकीय ढंग से ही किया जाये और उसे सारे नगर में घुमाया जाये।'

उसकी इस बात पर राजा ने उससे कहा कि,

'जाओ और फुर्ती से उस यहूदी मोर्दकै को ढूंढकर उसका सम्मान ठीक मेरे ही समान करो और उसके राजकीय सम्मान में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आना चाहिये।'

'?'- राजा के मुख से ऐसी अप्रत्याशित बात को सुनकर हामान की आँखों के सामने आश्चर्य के चमत्कारी तोते उड़ने लगे। हामान बड़ी हैरत के साथ जब राजा का मुख ताकने लगा तो राजा उस पर चिल्लाया। वह बोला कि,

'मेरा मुंह मत देखो। जो काम आज हो रहा है, उसे तो वर्ष पहले ही हो जाना चाहिये था।' तब हामान राजा की आज्ञानुसार बगैर और कुछ कहे हुये उदास मन से मोर्दकै के पास आया और उसकी प्रतिष्ठा के लिये सारे शहर में पुकारता रहा। तब प्रतिष्ठा की समाप्ति के पश्चात मोर्दकै तो आश्चर्य से भरा हुआ राजभवन के फाटक के पास लौट आया, मगर हामान बड़े ही शोक में भरा हुआ अपना सिर छुपाये चुपचाप अपने घर लौट गया।

अपने घर पर आकर हामान ने जैसा उसके साथ बीता था, विस्तार से अपनी पत्नी जे़रेश और अपने सब मित्रों को कह सुनाया। तब उसकी बात सुनकर उसकी पत्नी ने उसको जैसे ताड़ना सी दी। वह भभकती हुई हामान से बोली,

’मुझे तो पहले ही संदेह था, जो तूने कहा था, उसमें अवश्य ही कोई भेद छुपा हुआ है। इसलिये अब ध्यान लगाकर मेरी बात को सुन। मोर्दकै, जिसे तू नीचा दिखाना चाहता है, यदि वह सचमुच यहूदियों के वंश का है, तो उससे पंजा लेने की तू कोई भूल मत करना। सदियों की तबारीख गवाह है कि, इस्राएल के यहूदियों के ईश्वर के आगे आज तक कोई भी उन पर प्रबल नहीं हो सका है। सो यदि अब तूने उस मनुष्य पर अपना हाथ डाला तो समझ लेना कि तेरा ही उल्टा नुकसान होगा।’

जेरेश ने अभी अपनी बात समाप्त ही की थी तभी राजा के सेवक वहां पर आ गये और हामान को राजकीय सवारी में बैठाकर रानी एस्तेर की जेवनार में ले गये। सो जब राजा और हामान रानी एस्तेर की विशेष रूप से सजी हुई आलीशान जेवनार में आ गये और जेवनार का आलम सारे वातावरण को रंगीन बना कर अपने नशीले बाहुपाश में कसने लगा और राजा क्षयर्ष उस समय के सबसे मंहगे दाखरस के नशे में डूबने लगा तो उसने रानी एस्तेर से अपनी पुरानी बात फिर दोहराई। वह बोला,

'रानी एस्तेर ! तेरी दो दिनों से की जा रही जेवनार ने राजा का मन भीतर तक प्रसन्न कर दिया है और तू क्या चाहती है? मैंने जैसा तुझको वचन दिया है, उसके अनुसार तुझको आधा राज्य तक दिया जायेगा।’

'?' - खामोशी।

राजा की इस बात पर एस्तेर रानी अचानक से यकायक उदास हो गई। लेकिन वह कुछ कहती उससे पहले ही राजा ने उससे आष्चर्य से पूछा। वह बोला,

'क्या बात है शूशनगढ़ की महासुंदरी रानी पटरानी, मेरे कथन पर तेरा चेहरा अचानक से फीका पड़के बुझ क्यों गया? क्या शूशनगढ़ राज्य का राजा क्षयर्ष इतना कमजोर है जो अपनी रानी की मांगी हुई वस्तु को भी प्रदान नहीं कर सकेगा?'

तब रानी एस्तेर ने राजा से जैसे अपनी निराश और बुझी-बुझी आवाज में कहा कि,

'मैं क्या मांगू? क्या बिके हुये लोग भी कभी खरीदार बन सके हैं?'

’मैं समझा नहीं?’ राजा अचानक ही आश्चर्य से भर गया।

'हां राजा, मैं बेच दी गई हूं, और साथ में मेरे लोगों का भी सौदा कर दिया गया है।’

एस्तेर ने बताया तो राजा जैसे बिफर सा गया। वह तुरन्त ही अपनी जलजलाहट से भरने लगा। फिर क्षण भर में वह क्रोध में जैसे चीख कर बोला,

'किसकी इतनी हिम्मत हो गई है, जो मेरे रहते हुये इस राज्य की रानी, महारानी पटरानी एस्तेर का सौदा कर सके? सारी बात बगैर कुछ भी देर किये हुये मुझे विस्तार में बताई जाये।'

तब रानी एस्तेर ने आगे कहा कि,

'यदि राजा महान सचमुच मुझ पर प्रसन्न है और उसे ये स्वीकार हो तो मेरे निवेदन से मुझे और मेरे मांगने पर मेरी जाति के समस्त लोगों को प्राणदान दिया जाये; क्योंकि मैं और मेरे समस्त यहूदी जाति के लोग विध्वंसघात और नाश कर दिये जाने वाले हैं। यदि हम केवल दास और दासी हो जाने के लिये ही बेच डाले जाते तो मैं कभी भी राजा से निवेदन नहीं करती, चाहे उस दशा में भी वह विरोधी राजा की हानि भर सकने लायक नहीं भी होता।’

'क्या . . .या ?'

राजा ने सुना तो सुनते ही उसकी आंखें लाल हो गई। इस प्रकार कि दाखरस का चढ़ा हुआ खुमार भी उतरते देर नहीं लगी। वह गंभीर होकर, मगर क्रोध में रानी एस्तेर से बोला,

'कौन है वह और कहां है, जिसने राजा क्षयर्ष की विशाल ताकत की भी परवाह न करते हुये ऐसा दुष्कर्म करने की हिमाकत की है?'

'वह विरोधी शत्रु यही दुष्ट हामान है।’

रानी एस्तेर ने बताया तो राजा तुरन्त ही आश्चर्य से जैसे भूमि में गड़ गया। फिर जब हामान से उसकी दृष्टि मिली तो हामान भय के कारण किसी सूखे पत्ते के समान खड़-खड़ कांपने लगा। एस्तेर की बात सुन कर राजा तो जलजलाहट में भर चुका था। सो वह दाखमधु का प्याला वहीं संगमरमर के फर्श पर पटक कर उठता हुआ, झुंझलाकर राजभवन की बारी में निकल गया तथा हामान ये देख कर कि अब राजा उसकी बड़ी से बड़ी हानि का आदेश करेगा, अपने प्राणों की भीख मांगने के लिये रानी एस्तेर के पैरों पर लोटकर गिड़गिड़ाने लगा।

फिर जब राजा पुनः बारी से लौटकर थोड़ा क्रोध शांत होने के पश्चात दाखमधु पीने के स्थान पर वापस आया तो उसने देखा कि हामान रानी एस्तेर के पैरों में पड़ा हुआ है। उसी समय उसके एक खोजे हर्बोना ने हामान की शिकायत करते हुये राजा को बताया। वह बोला,

'प्रतिष्ठित राजा को ये ज्ञात हो कि हामान ने अपने घर में एक पचास फुट ऊंचा खंभा खड़ा करवाया है, जिस पर वह मोर्दकै को कल सुबह-सुबह लटकवाने के इरादे से आपके पास आने वाला था।’

राजा ने जब ये भी सुना तो उसके क्रोध का पारा और भी अधिक सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने तुरन्त ही अपने कड़वे स्वर में हर्बोना को आदेश दिया,

'उसी खंभे पर इसी नालायक हामान को कल सुबह की पहली किरण के फूटने से पहले ही लटका दिया जाये।’

राजा का इतना कहना भर था कि, तुरन्त ही राजा के सेवक आये और हामान को बांध कर ले गये, और सुबह का उजाला भी नहीं निकल सका था कि, उन्होंने हामान को लटका दिया। जब राजा को उसके लटकाने की सूचना दी गई तो उसका क्रोध और जलजलाहट फिर भी उतनी शांत नहीं हो सकी जितना कि हो जाना चाहिये थी। उसने बाद में उसी दिन यहूदियों के कट्टर विरोधी हामान का पूरा घरबार, क्या बच्चे, क्या पत्नी और क्या सम्बंधी सभी को एस्तेर रानी के अधिकार में कर दिया। उसके बाद उसने मोर्दकै को सामने बुलवाया, क्योंकि रानी एस्तेर ने अब तक राजा को बता दिया था कि, उसका मोर्दकै से क्या संबंध है। सो राजा ने बड़े ही प्रसन्नचित्त मन से अपनी वह अंगूठी जो उसने हामान से एक प्रकार से छीन ली थी, अपनी अंगुली से उतार कर मोर्दकै को देते हुये कहा कि,

'मोर्दकै ! मुझे दुख है कि, जो कुछ तुम्हारे साथ पिछले दिनों अनजाने में हो गया और जिसकी बजह से तुमने जो भी दुख और कठिनाईयां झेली हैं उनकी कड़वी स्मृतियों को तो मैं नहीं भुलवा सकता हूं, मगर हां, तुम्हारे आने वाले दिनों को मैं जरूर सुनहरा कर सकता हूं। मुझे उम्मीद है कि, इससे मेरे कारण तुम्हारे दिल में जो घाव हो चुके हैं, उन पर कुछ तो राहत और तसल्ली मिल सकेगी। इसलिये आज से मैं तुम्हें हामान के स्थान पर अपने राज्य का अधिकारी नियुक्त करता हूं।’

उसके साथ ही राजा ने एस्तेर के कहने पर हामान की यहूदियों के खिलाफ बनाई हुई समस्त युक्ति को विफल कर दिया और हरेक प्रान्तों में भेजी गईं वे चिट्ठियां जिनके कारण एक निश्चित दिन और समय पर यहूदियों कर नरसंहार हो जाना था; के आदेश भी रद्द कर दिये। इसके साथ-साथ उसने मोर्दकै और एस्तेर के द्वारा सारे यहूदियों को ये अधिकार भी दे दिये कि वे अपनी सम्पत्ति और प्राणों की रक्षा के लिये उन लोगों का सर्वनाश करें और उनकी धन समपत्ति लूट लें, जो उनका विनाश कर देना चाहते हैं। ये सारा कार्य एक ही दिन और एक ही समय पर पूरा किया जाये।

सो उसी समय, सीवान नाम तीसरे महीने के तेइसवें दिन को राजा के लेखक बुलवाये गये और जिन-जिन बातों की आज्ञा मोर्दकै ने उन्हें दी उसे यहूदियों और अधिपतियों तथा भारतवर्ष से लेकर कूश देश तक जो 127 प्रान्त थे, उन सभी के अधिपतियों और हाकिमों को हरेक प्रान्त के अक्षरों और एक-एक देश के लोगों की भाषा में तथा यहूदियों को उनके अक्षरों में लिखी गई। मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के नाम से चिट्ठियां लिखवा कर तथा उन पर राजा की अंगूठी की छाप लगा कर, वेग से चलने वाले राजकीय घोड़ों, खच्चरों, और सांड़नियों की डाक लगा कर हरकारों के द्वारा भेज दीं।

मोर्दकै के आदेश में लिखवाई गई इन चिट्ठियों में सब नगरों के यहूदियों को राजा की ओर से ये अनुमति दी गई थी कि वे सब एकत्रित हों तथा अपना प्राण बचाने के लिये पूरी तरह से तैयार होकर जिस जाति व प्रान्त के लोग अन्याय करके उनकी स्त्रियों, बच्चों, व उनको दुख देना चाहें, ऐसे प्रान्त के लोगों का विध्वंसघात करें व उनको नाश कर दें, तथा उनकी सम्पत्ति लूट ली जाये। ये राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में एक ही दिन अर्थात् अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को किया जाये। इस आज्ञा के लेख की नकलें समस्त प्रान्तों में खुले रूप से भेजी गई, ताकि यहूदी लोग उस दिन के लिये अपने शत्रुओं से पलटा लेने के लिये तैयार रहें। तब ऐसी आज्ञा निकालने के पश्चात जब मोर्दकै अपने राजशी वस्त्र, अर्थात् नीले और श्वेत रंग के साथ बैंजनी बागा पहने हुये तथा सिर पर सोने के मुकुट लगाये हुये राजा के सामने से निकला तो शूशनगढ़ के सारे लोग आनन्द के कारण ललकार उठे। सो उस दिन यहूदियों के आनन्द और खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। सारे दिन वे नाचते और गाते रहे और उस दिन को उन्होंने अपने लिये एक बड़ी ही प्रसन्नता का दिन माना। उस दिन बहुत सारे गैर-यहूदी लोग भी भय के कारण यहूदी बन गये।

फिर अदार महीने का वह तेरहवां खूनी दिन भी आ गया, जिस दिन राजा क्षयर्ष के राज्य के हरेक प्रान्त में इंसानी रक्त पानी के समान बहा दिया गया। ये एक ऐसा नरसंहार का दिन था कि जब प्यार और मुहब्बत के तागे तोड़ कर इंसानियत के मुंह पर तमाचे जड़ते हुये मनुश्य ने अपने बचाव की खातिर शत्रुता, नफरत, क्रोध और जलन का दामन थाम कर इबारत में कभी भी न भुलाने वाली पंक्तियां लिख दी थीं। ऐसा प्रतीत होता था कि, जैसे खून की नदियों और कटे हुये जिस्मों के टुकड़ों पर चील, कौओं और गिद्धों के किसी बड़े भोज का प्रबंध कर दिया गया हो। आवारा कुत्तों के द्वारा चाटते हुये इंसानी जिस्मों का ऐसा भीषण हश्र शायद फिर और कभी देखने को नहीं मिला होगा?

इस दिन को जब कि, राजा की आज्ञा और नियम पूरे होने को थे और सभी यहूदियों के शत्रु उन पर प्रबल होने की आशा रखते थे, मगर उल्टे यहूदी अपने बैरियों पर इसकदर प्रबल हुये कि फिर कोई भी उनका सामना नहीं कर सका। सामना न कर सकने का सबसे बड़ा कारण राजा क्षयर्ष की आज्ञा और यहूदियों की रक्षा के लिये राजा क्षयर्ष के कारण हरेक प्रान्त के हाकिमों और अधिपतियों ने भी उनकी सहायता की थी। इस कार्य में मोर्दकै का नाम और प्रतिष्ठा तो हुई ही, साथ ही शूशनगढ़ में ही यहूदियों ने लगभग 500 मनुष्यों और हामान के दसों पुत्रों का खून बहा कर उनके रक्त से भूमि को सींच दिया था। इसके अतिरिक्त अपने विरोधी हम्मदाता के पुत्र हामान के दसों पुत्रों क्रमशः पर्शन्दाता, दलपोन, अस्पाता, पोराता, अदल्या, अरीदाता, पर्मशता, अरीसै, अरीदै और बैजाता को भी बड़ी निर्ममता के साथ घात किया, मगर उनके धन को लूटना यहूदियों ने अपने धर्म के विरूद्ध समझा और विरोधियों की धन-सम्पत्ति को छुआ भी नहीं।

फिर उसी दिन शूशन राजगढ़ में जब घात किये हुये मनुष्यों की गिनती राजा क्षयर्ष को सुनाई गई, तब उसने रानी एस्तेर से पूछा,

'यहूदियों ने शूशन राजगढ़ में ही 500 मनुष्यों और हामान के दसों पुत्रों का खून बहाकर मेरे कर्तव्य और तेरी इच्छा की पूर्ति की है, तब राज्य के अन्य प्रान्तों में उन्होनें न जाने और भी बहुत कुछ किया होगा। अब यदि इससे भी अधिक तेरा और क्या निवेदन है? वह भी पूरा किया जायेगा। बता तू अब क्या और मांगती है? वह भी तुझे दिया जायेगा?'

तब एस्तेर ने राजा से कहा,

'यदि राजा को स्वीकार हो तो शूशनगढ़ के सारे यहूदियों को आज के समान कल भी करने की आज्ञा दी जाये और हामान के दसों पुत्रों की लाशें फांसी के खंभों पर लटका दी जायें।'

एस्तेर की बात सुनकर तब राजा ने अपनी हांमी भरी और कहा कि,

'तेरी इच्छा के अनुसार ऐसा ही किया जाये।'

तब राजा के द्वारा उपरोक्त आज्ञा शूशनगढ़ में दी गई और हामान के दसों पुत्र जो पहले ही मार डाले गये थे और जिनकी लोथें भूमि पर पड़ी हुई मक्खियों और चील-कौओं को निमंत्रण दे रही थीं, रानी ऐस्तर की इच्छानुसार फांसी के खंभों पर लटका दिये गये। इसके साथ ही शूशनगढ़ के यहूदियों ने अदार महिने के चौदहवें दिन को भी एकत्रित होकर अपने विरोधियों की भंयकर मारकाट की तथा 300 अन्य पुरूषों को मार कर वीभत्सता का भंयकर प्रदर्शन किया। मगर फिर उन्होंने घात किये हुये लोगों की धन-सम्पत्ति को लूटना अपना धर्म नहीं समझा।

इस प्रकार शूशन राज्य के अन्य सब ही प्रान्तों में यहूदियों ने एक होकर केवल एक ही दिन में 75,000 मनुष्यों का लहू बहा कर उन्हें भूमि के हवाले कर दिया, परन्तु उनके धन को नही लूटा। ये कार्य अदार महिने के तेरहवें दिन को पूरा किया गया और चौदहवें दिन को यहूदियों ने अपने शत्रुओं को घात करके विश्राम पाया तथा उस दिन को जेवनार और आनन्द का दिन ठहराया। मगर शूशनगढ़ के यहूदियों ने तेरहवें व चौदहवें दिन को अपने शत्रुओं का विनाश करके पन्द्रहवें दिन को खुशियों का दिन घोषित किया क्योंकि इन दो दिनों में यहूदियों का शोक आनन्द में और विलाप खुशियों में बदला गया था। यहूदियों के विरोधी हामान ने उनका नाश करने के लिये पूर अर्थात चिटठी डाली थी, परन्तु राजा क्षयर्ष तथा रानी एस्तेर के कारण उसकी युक्ति स्वंय उसके ही सिर पर पलट दी गई थी। इस कारण यहूदियों के अदार महिने के चौदहवें व पन्द्रहवें दिन का पर्ब्ब 'पुरीम' माना गया- ये एक ऐसा पर्ब्ब है कि, जिसकी यादें यहूदियों में पीढ़ी-पीढ़ी तक सुरक्षित रखी गई हैं। इस पर्ब्ब को आज भी यहूदी मनाया करते हैं।

उपरोक्त सब कुछ होने के पश्चात राजा क्षयर्ष ने राज खजाने में आई हुई कमी को पूरा करने के लिये देश और टापू दोनों पर, अतिरिक्त कर लगा दिया तथा मौर्दकै और उसके महात्मय और पराक्रम के कामों और राजा क्षयर्ष कार्यवाही जो उसने की थी, वह मादै और फारस के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिख दिया गया। यहूदी मोर्दकै और रानी एस्तेर; जो कि एक मामूली यहूदी थे, उनका अपना विश्वास था कि वे अपने परमेश्वर के अनुग्रह और उसकी योजनानुसार राजभवन के अधिकारी बने। मोर्दकै राजा क्षयर्ष के नीचे ही था और यहूदियों की दृष्टि में उसका बहुत बड़ा मान-सम्मान था। उसके सभी भाई उससे प्रसन्न रहते थे, क्योंकि वह सदैव ही अपने लोगों की भलाई की खोज में रहा करता था और सब ही से शांति और प्रेम की बातें किया करता था।

वर्तमान और बीते हुये समय में होने वाली घटनायें; वे चाहे राजनैतिक रही हों, व्यक्तिगत हों, सामाजिक हों, या फिर धार्मिक बनी हों; इस बात की कड़वी-कसैली स्मृतियों के साथ उस सच्चाई का ब्यौरा देती हैं, कि जिसमें केवल एक मनुष्य के व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण मानवीय जीवन में तबाही ने अपना डेरा तो डाला ही, साथ ही लाखों निर्दोषों का लहू बड़ी ही निर्ममता के साथ जमीन के आंचल में मिला दिया गया। ये कैसी बिडंबना है कि मनुष्य-मनुष्य का खून बड़ी ही आसानी से भूमि की कोख में मिला देता है। इस तथ्य को जानते हुये भी कि, ईश्वर ने सूखी धरती का सीना सींचने की इजाजत केवल पानी से दी है, नाकि इंसानी लहू से। इसी मार-काट और हिंसा के खिलाफ जब नाजरत के ही एक साधू प्रवृत्ति व्यक्ति यीशु ने अपना प्रेम का संदेश इन खूनी यहूदियों को दिया तो उन्हें यह सब रास न आया और फल स्वरूप उन्होंने एक निर्दोष को भी काठ में ठोंक दिया था। शायद संसार को यही बताने के लिए कि अगर आदमी के दिमाग और मानसिकता में जीवन जीने के नियम निर्दोषों के ताजे रक्त से लिखें गये हैं तो फिर इसका कोई भी इलाज नहीं है।

समाप्त.

इस कहानी की हर तरह के विवाद, आलोचना और आपत्ति का उत्तरदायित्व केवल लेखक का होगा। प्रकाशक, मुद्रक और वितरण कर्ता आदि कोई भी इसके प्रकाशन के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।
फोन: 4042138257
USA

- शरोवन.




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