magical gift in Hindi Short Stories by Vijay Sanga books and stories PDF | जादुई तोहफा

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जादुई तोहफा

सभी लोग जानते हैं की कश्मीर अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है । यहां के खूबसूरत पहाड़ और वादियों की खूबसूरती किसी से भी छुपी नहीं है । लेकिन कभी कभी खूबसूरत दिखने वाली चीजों में कुछ राज भी छुपे होते हैं।

ये कहानी है सन् 1996, श्रीनगर के फकीर गुजरी गांव की । ये गांव भी खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है । यहां पर अधिकतर लोग सेब की खेती करके ही अपना जीवन बसर करते थे। इन्ही लोगों मे एक परिवार था राजेश गागर का । वो लोग भी सेब की खेती किया करते थे।

फकीर गुजरी गांव मे उन दिनों ज्यादा सुविधा नहीं हुआ करती थी। सुविधा ज्यादा ना होने के कारण लोग रात मे जल्दी सो जाया करते थे। रात में लैंप की रोशनी से ही घरों मे उजाला हुआ करता था।

जनवरी का महीना, शनिवार की रात को राजेश गागर अपनी पत्नी और अपने 18 साल के बेटे के साथ बैठ कर खाना खा रहा था। वो लोग खाना खाते हुए बातें भी कर रहे थे।

“बेटा मदन, तू कल प्रकाश भईया के साथ सेब लेकर बाजार चले जाना। मुझे और तेरी मां को कल बाकी के बचे हुए सेब तोड़ने हैं। अगर हमने सेब जल्दी नही तोड़े तो चोरी भी हो सकते हैं।” राजेश अपने बेटे मदन को समझाते हुए कहते हैं।

“ठीक है पापा, मैं कल प्रकाश भईया के साथ सेब लेकर बाजार चला जाऊंगा।” मदन अपने पापा से कहता है।

मदन पहले भी कई बार अकेले सेब बेचने के लिए बाजार जा चुका था। इसलिए उसे अकेले बाजार जाने में कोई दिक्कत नही थी । और अब तो बाजार में उसकी बहुत से लोगों से जान पहचान भी हो चुकी थी।

मदन के घर से बाजार लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर था। पहाड़ों मे रहने वाले लोगों मे दूर दूर तक पैदल चलने की क्षमता होती है । वो बड़ी आसानी से यहां वहां पैदल चले जाया करते हैं। बाजार भी लोग पैदल ही जाया करते थे।

रविवार को सुबह सुबह मदन और उसके मम्मी पापा ने मिलकर सेबों को टोकनी मे रखवा दिया। इसके बाद मदन, प्रकाश के साथ मिलकर पैदल ही बाजार के लिए निकल गया।

बाजार पहुंचने के बाद मदन और प्रकाश ने एक ही जगह पर अपनी दुकान लगा ली। दोनो लोगों को अपने अपने तरीके से सेब लेने के लिए आवाज लगा रहे थे।

शाम होते होते मदन और प्रकाश के सारे सेब बिक गए। वो लोग अपना सामान समेट ही रहे थे की तभी वहां पर प्रकाश के कुछ दोस्त आ जाते हैं।

“अरे भाई प्रकाश..! आज तो लगता है तेरी अच्छी खासी कमाई हुई है..?” उन लड़कों मे से एक लड़का प्रकाश से पूछता है।

“हां यार आज शायद दिन अच्छा था इसलिए सारे सेब बिक गए। वैसे तुम लोगों को भी देख कर ऐसी ही लग रहा है जैसे तुम लोगों के भी सारे सेब बिक गए..!” प्रकाश उन लोगों से कहता है।

“हां भाई शायद आज हमारा भी दिन अच्छा था इसलिए हमारे भी सारे सेब बिक गए।” उन लड़कों मे से एक लड़का प्रकाश से कहता है।

इसके बाद वो लोग कुछ देर तक प्रकाश और मदन से बात करने के बाद कुछ नाश्ता करने के लिए पास ही के नाश्ते की दुकान पर पहुंच जाते हैं।

नाश्ता कर लेने के बाद प्रकाश और मदन घर जाने के लिए निकलने को ही होते हैं की तभी वो लड़के प्रकाश को रोकते हुए कहते हैं, “अरे भाई अब जब हम सबकी इतनी अच्छी कमाई हुई है, तो क्यों ना आज थोड़ा पीने के लिए चला जाए..!”

प्रकाश उन लड़कों का इशारा समझ जाता है। वो लोग उसको शराब पीने के लिए चलने का बोल रहे थे। उन लोगों की बात सुनते हुए प्रकाश, मदन को देखने लगता है। मदन भी समझ चुका था की वो लोग किस बारे में बात कर रहे थे।

मदन समझ गया था की प्रकाश भी उन लड़कों के साथ जाना चाहता था, और वो उसकी वजह से रूका हुआ था। वो मुस्कुराते हुए प्रकाश से कहता है, “प्रकाश भईया आप मेरी चिंता मत करो, मैं अकेला घर जा सकता हूं। ये भईया लोग इतने प्यार से बोल रहें है तो आपको भी इनके साथ जाना चाहिए।”

मदन की बात सुनकर प्रकाश मुस्कुराता हुआ मदन को देखता है और फिर अपने दोस्तों के साथ वहां से निकल जाता है। मदन भी घर के लिए कुछ सामान लेने के बाद घर के लिए निकल जाता है।

उस दिन मदन को बाजार मे थोड़ी ज्यादा देरी हो गई थी। रात के करीबन 8 बज रहे थे। मदन अपने हाथ मे लैंप लिए धीरे धीरे कच्चे रास्ते पर चला जा रहा था ।

ऐसा लग रहा था जैसे बाजार जाने वाले सभी लोग बहुत पहले ही घर लौट चुके थे। घना जंगल और काली अंधेरी रात। अचानक से तेज हवा चलने की वजह से मदन की लैंप बुझ जाती है।

मदन वापस लैंप जलाता है और फिर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगता है। मदन कुछ दूर चला ही था की तभी उसे किसी की आवाज आती है।

“अरे कोई मेरी मदत करो, इस बूढ़ी की मदत करने वाला यहां कोई भी नही है क्या?”

मदन इस आवाज को सुनकर घबरा जाता है। वो इधर उधर देखता है पर उसे कोई नजर नहीं आता। वो कुछ कदम आगे चला ही था की तभी उसे दुबारा वही आवाज आती है।

मदन अब उस आजा की तरफ बढ़ने लगता है। कुछ कदम चलने के बाद मदन देखता है की एक पेड़ की नीचे एक बूढ़ी सी औरत मदत के लिए आवाज लगा रही थी।

मदन उस बूढ़ी औरत के पास जाता है और फिर उससे पूछता है, ”अरे दादी, आप इस वक्त इस जगह पर अकेली क्या कर रही हो?”

मदन की बात सुनकर वो बूढ़ी औरत उसको देखते हुए कहती है, “अरे बेटा मैं कुछ खरीदी करने के लिए बाजार गई थी। लेकिन वापस आते समय मेरे पैरों मे चोट लग गई। बेटा क्या तुम मुझे मेरे घर तक छोड़ दोगे ! मेरा घर पास में ही है।"

अब मदन उस बूढ़ी औरत को उस हाल मे अकेला कैसे छोड़ सकता था। उसने सोच लिया की वो उस बूढ़ी औरत को पहले उसके घर छोड़ेगा उसके बाद अपने घर के लिए निकल जायेगा।

मदन उस बूढ़ी औरत को खड़ा करने की कोशिश करता है पर वो खड़ी नही हो पाती । अब मदन के पास उस बूढ़ी औरत को पीठ पर उठाने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वो अपनी टोकनी आगे की तरफ टांगता है और फिर उस बूढ़ी दादी को अपनी पीठ पर बिठा लेता है।

वो बूढ़ी दादी उसको रास्ता बता रही थी और वो उस रास्ते पर चलता जा रहा था। कुछ ही दूर चलने के बाद वो बूढ़ी दादी उसको रूकने के लिए कहती है।

मदन रूकता है फिर वो बूढ़ी दादी उसको पीठ से नीचे उतर जाती है। मदन चारो ओर देखता है पर उसे वहां पर कोई भी घर नजर नहीं आ रहा था।

मदन उस बूढ़ी दादी को देखते हुए पूछता है, “अरे दादी..! आपका घर कहां है? यहां पर तो कोई भी घर नजर नहीं आ रहा?”

मदन की बात सुनकर वो बूढ़ी औरत हंसने लगती है। वो एक बड़े से पेड़ की तरफ इशारा करते हुए कहती है, “अरे यही तो है मेरा घर। मैं इसी पेड़ पर रहती हूं।”

मदन उसकी बात सुनकर अचंभे से उस बूढ़ी दादी को देखने लगता है। उसको समझ मे नही आ रहा था की वो उस पेड़ को खुदका घर क्यों बोल रही थी?

तभी मदन देखता है की उस बूढ़ी औरत का शरीर उलट पलट हो जाता है, वो उस पेड़ पर उल्टी होकर चढ़ने लगती है। मदन अपने सामने के ये नजारा देख कर बहुत ज्यादा घर गया था। उसे तो यकीन नही हो रहा था की उसने इतनी देर से एक चुड़ैल को अपनी पीठ पर बिठा रखा था।

मदन डर से कांपते हुए मन ही मन सोचने लगता है, “अरे ये मैं कहां फंस गया? अब तो ये चुड़ैल मुझे यहां से जिंदा जाने नही देगी।”

मदन ये सोच ही रहा था की तभी वो चुड़ैल मुस्कुराते हुए उससे कहती है, “बेटा तू चिंता मत कर, मैं तुम्हे कुछ नही करूंगी। इतनी देर से मैं वहां पर मदत के लिए आवाज दे रही थी पर किसी ने मेरी कोई मदत नही की। बहुत से लोग मेरे पास से गुजरे लेकिन किसी ने भी मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। एक तू ही था जिसने मेरी मदत की।”

मदन को समझ नही आ रहा था की उसको उस चुड़ैल की उन बातों पर खुश होना चाहिए या नही? वो अभी भी बहुत ज्यादा घबराया हुआ था।

ये बात वो चुड़ैल भी समझ गई थी की वो बहुत ज्यादा घबराया हुआ है। वो उस पेड़ से धीरे धीरे नीचे उतरते हुए मदन की तरफ आने लगती है।

चुड़ैल को अपनी तरफ आता देख मदन वहां से भागने को ही था की तभी वो चुड़ैल उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है।

मदन उस चुड़ैल को अपने सामने खड़ा देख थर थर कांपने लगता है। तभी वो चुड़ैल मदन को एक बांसूरी देती है और उसको समझती है की अगर वो मुसीबत मे होने पर उस बांसूरी को बजायेगा तो वो चुड़ैल उसकी मदत के लिए आ जायेगी। और वो चुड़ैल मदन को ये भी कहती है की वो उस बांसूरी का राज किसी को ना बताए।

चुड़ैल की बात सुनने के बाद मदन घबराता हुआ उससे वो बांसूरी ले लेता है। इसके बाद वो चुड़ैल उसको वहां से जाने के लिए बोल देती है।

मदन उस चुड़ैल से बांसूरी लेने के बाद अपने घर की तरफ जाने लगता है। कुछ देर बाद वो अपने घर पहुंच जाता है।

मदन के घर पहुंचते ही उसके मम्मी पापा उससे पूछते हैं, “अरे बेटा तुझे घर आने मे इतनी देरी कैसे हो गई?”

अपने पापा मम्मी की बात सुनकर मदन मुस्कुराते हुए उन्हे देखकर कहता है, “अरे पापा आज वो खरीदी करने मे थोड़ी देरी हो गई।”

इसके बाद मदन उनको उस दिन की कमाई देता है, और फिर वो लोग खाना खाकर सो जाते हैं।

उस दिन के बाद जब भी मदन किसी मुसीबत मे फंसता तब वो उस बांसूरी को बजाने लगता। उसकी बांसूरी की आवाज सुनकर वो चुड़ैल उसकी मदत के लिए वहां पर पहुंच जाती । वो चुड़ैल मदन के अलावा किसी और को नजर नही आती थी।