वेन्ट्रोलोकिस्ट बनाम गूंगी गुड़िया
वो एक वेन्ट्रोलोकिस्ट था, वेन्ट्रोलोकिस्ट उसे कहते हैं जो हाथ में एक गुड्डा जैसा पात्र लेकर अपनी आवाज में भी बोलता है, और उस गुड्डे की आवाज भी निकालता है।
उसके हाथ में एक खरगोश का गुड्डा होता था। वो दोनों की जोड़ी शानदार जमती थी । वो बहुत मजाकिया किरदार के रूप में दोनों की नोंक झोंक दिखाता और लोग इससे बहुत आनन्द उठाते थे।
वो धीरे धीरे मशहूर हो गया और अब उसे स्टेज शो मिलने लगे थे । अलग अलग कार्यक्रम में उसकी परफॉर्मेंस भी रखी जाती । एक दिन परफॉर्मेंस के बाद उससे दो लड़कियाँ मिली। उन्होंने उसका ऑटोग्राफ मांगा।
एक लड़की के पास तो डायरी थी उसने उसमें उसका ऑटोग्राफ लिया। दूसरी ने ऑटोग्राफ के लिए अपनी हथेली आगे बढ़ा दी। उस कलाकार ने खरगोश की आवाज निकालते हुए पूछा, “ तुम्हारा नाम क्या है।”
उसकी सहेली ने बताया, “इसका नाम गुड़िया है।”
उस कलाकार ने फिर खरगोश की आवाज में पूछा, “तुम्हारी सहेली अपना नाम नहीं लेती क्या?”
“ये किसी का नाम नहीं लेती।”
“मगर क्यूँ।”
“क्योंकि ये गूँगी है, बस सुन सकती है बोल नहीं सकती। बचपन में इसके गले पर चोट लगने से इसकी आवाज़ चली गई।” उसकी सहेली ने बताया।
“ओह….माफ़ करना।” कलाकार ने इस बार अपनी आवाज़ में कहा।
गुड़िया ने इशारे से कहा, “कोई बात नहीं।”
उसकी सहेली ने कलाकार को बताया कि उसने क्या कहा। कलाकार ने उसके हाथ पर ऑटोग्राफ दे दिया।
कुछ दिनों बाद फिर उस कलाकार के एक शो में वो दोनों फिर मिलीं। कार्यक्रम के बाद गुड़िया ने फिर से हाथ ऑटोग्राफ के लिए आगे बढ़ा दिए।
कलाकार ने कहा, “हे भगवान ! काश इसको आवाज़ दे देते।” उसने गुड़िया के हाथ पर अपना ऑटोग्राफ दे दिया।
गूँगी गुड़िया ने फिर कुछ इशारे से कहा।
“ये कह रही है कि वो बोल सकती है, उसे आवाज़ मिल सकती है, अगर आप अपने खरगोश की जगह कोई गुड़िया लेकर उसकी आवाज़ निकालो।” उसकी सहेली ने बताया।
“वो तो ठीक है,आवाज़ तो मैं बना लूँगा, पर मैं अब गुड़िया कहाँ से लाऊंगा, मेरे पास तो केवल खरगोश ही है।” कलाकार ने यूँ ही उन्हें टालने के लिए कह दिया।
गूँगी गुड़िया ने इशारे से कुछ कहा।
“ये कह रही है, गुड़िया मैं बना दूँगी, आवाज़ आप बना दो।”
“ओह….ठीक है, तुम गुड़िया बनाओ, मैं आवाज़ की कोशिश करता हूँ।”
अगले कार्यक्रम में फिर वो दोनों मिल गईं, इस बार गूँगी गुड़िया ने, एक हाथ ऑटोग्राफ के लिए आगे बढ़ाया, दूसरा अपने पीछे छुपाया हुआ था।
कलाकार ने जैसे ही उसके हाथ पर ऑटोग्राफ दिया, गूँगी गुड़िया ने दूसरा हाथ आगे बढ़ा दिया। उसके हाथ मे एक बहुत खूबसूरत गुड़िया थी। ठीक वैसे ही जैसी वेन्ट्रोलोकिस्ट के पास होती है... और खास बात ये थी कि लड़की की ड्रेस और उस गुड़िया की ड्रेस एक जैसी ही थी।
कलाकार ने गुड़िया को हाथ में पकड़कर कहा “हेल्लो मैं हूँ, पिंकी…..और मैं आपको हँसाने आई हूँ….।” कलाकार ने हूबहू लड़की की आवाज़ में कहा।
उसकी कलाकारी देखकर दोनों लड़कियाँ ताली बजाकर हँसने लगी, और वो कलाकार भी हँसने लगा।
लड़की ने इशारे से कुछ कहा। उसकी सहेली ने बताया कि गुड़िया को ‘पिंकी’ नाम बहुत पसन्द आया है।”
कलाकार ने गुड़िया को देखा तो वो शरमाकर भाग गई।
अब तो उस कलाकार ने पिंकी की आवाज में धूम मचा दी। कलाकार रोज़ नई नई बातें सोचता, और सोचता रहता। उसकी कल्पनाओं में केवल गूँगी गुड़िया ‘पिंकी’ ही रहने लगी । वो ‘पिंकी’ को गूँगी गुड़िया सोचकर ही उससे बात करता, कभी कलाकार बनता कभी ‘पिंकी’ या यूं कहें गूँगी गुड़िया ‘पिंकी’ बनकर हर वक्त सोते जागते उसमें रहने लगी थी।
गूँगी गुड़िया उसका हर कार्यक्रम देखने आती, और उससे हाथ पर ऑटोग्राफ लेती।
एक दिन एक प्रोग्राम के बाद गूँगी गुड़िया उसे नहीं दिखाई दी, न उसकी सहेली। उसने घर आकर ‘पिंकी’ से
पूछा, “तुम कहाँ हो?”, पिंकी ने कहा “पता नहीं।”
उसके बाद उसे किसी कार्यक्रम में वो दोनों दिखाई नहीं दी। वो कल्पनाओं में जीने लगा, सपनों में ‘पिंकी’ गूँगी गुड़िया बन जाती और वो घँटों बातें करते। उसे लगता की गूँगी गुड़िया हर पल उसके साथ रहने लगी है।
एक दिन अचानक उसे गूँगी गुड़िया की सहेली दिख गई, उसने उससे पूछा, “गुड़िया कहाँ हैं?”
उसकी सहेली उसके यूँ पूछने पर घबरा गई, फिर संयत होते हुए बोली, "उसके पिताजी का ट्रांसफर हो गया है, मुझे भी नहीं पता वो कहाँ हैं।"
कलाकार को बहुत दुख हुआ, अब वो शहर शहर घूम कर अपने कार्यक्रम करने लगा, ये सोचकर कि हो सकता है उसे कहीं गुड़िया मिल जाये। पर उसे गुड़िया कहीं नहीं मिली।
वो लगभग पागल जैसा हो गया, अब अपने हर कार्यक्रम में ‘पिंकी’ और अपनी दास्तान की प्रस्तुति करने लगा। उन दिनों टेलीविजन का दौर चल पड़ा, धीरे धीरे उस कलाकार को देखने के लिए भीड़ कम आने लगी।
अब वो रोज़ इस तरह ‘पिंकी’ नामक गुड़िया को गूँगी गुड़िया मानकर जीने लगा जैसे वो साथ रहती हो। खुद उससे बात करता और खुद ही उसे जवाब देता। उसे लगता गुड़िया उसके साथ रहने लगी है । लोग उसकी हरकतें देखकर उसे पागल कहने लगे। वो जब बस या ट्रेन में सफर करता तो दो टिकट लेता एक अपनी एक पिंकी की । जब वो मूवी देखने जाता तो दो टिकट लेता । जब को किसी कार्यक्रम में खाना खाता दो प्लेट लेता, एक खुद की एक पिंकी की । यहाँ तक कि वो नए कपड़े भी दोनों के सिलाता।
फिर उसे बस स्कूलों में ही कार्यक्रम मिलते थे।
एक रोज़ वो एक स्कूल में प्रस्तुति कर रहा था। अचानक उसने देखा कि गूँगी गुड़िया की तस्वीर सामने लगी है। उसे देखकर अचानक वो चिल्लाने लगा , "गुड़िया मिल गई गुड़िया मिल गई" , और पागलों जैसे हरकत करने लगा, सब बच्चे डर गए, स्कूल प्रशासन ने उसे पकड़ लिया और वो चिल्लाकर बेहोश हो गया।
जब उसे होश आया तो, उसने देखा वो हॉस्पिटल में है और गूँगी गुड़िया उसके सामने बैठी है। उसने बोलने की कोशिश की पर वो बोल नहीं पाया। बस उसे सुन सब रहा था, पर न पिंकी की आवाज निकाल पा रहा था न खुद की। वो गूंगा हो गया।
गूँगी गुड़िया के साथ उसकी सहेली खड़ी थी। गुड़िया ने इशारे में कुछ बोला, उसकी सहेली ने पूछा, “सुन पा रहे हो?” उसने उत्तर में गर्दन हिलाकर हामी भरी।
उसकी सहेली ने कहा, “गुड़िया कह रही है कि उस स्कूल की मालिक गुड़िया है। इसी ने तुम्हें ढूंढकर वहाँ कार्यक्रम करवाया था । तुम इसके पीछे पागल मत रहो। इसकी शादी हो गई है । उसका घर है , बच्चे हैं, पति है... इसलिए बेहतर है तुम इसे भूलकर अपना नया जीवन शुरू करो। ये तुम्हारी शुक्रगुजार है कि तुमने इसे अपनी वेन्ट्रोलोकिस्ट के रूप में आवाज दी। ये तुम्हारी शुभ चिंतक है, पर अपना ये दीवाना पन छोड़ दो... और अपने जीवन को अच्छे से जियो। तुम इसे बहुत अच्छे लगते थे पर ये नहीं चाहती थी कि तुम्हारे जीवन में कोई गूँगी आये। ये तुम्हारे कार्यक्रम देखती रहती थी, पर सामने नहीं आती थी।”
उसकी सहेली की आवाज सुनकर कलाकार की आँखों से अश्रुधारा बह निकली । वो काफी देर तक रोता रहा, उसकी आवाज चली गई थी, इसलिए कुछ कह न सका, फिर वो जोर से तड़पा, और उसे एक हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया।
डॉक्टर्स ने उसे पागल घोषित कर दिया, और बताया कि अब ये केवल चंद महीनों का मेहमान है।
उसके बाद उस कलाकार की हालत बिगड़ने लगी, धीरे धीरे वो बहुत कृशकाय हो गया, पर अब गुड़िया उसका ख्याल रखती थी । वो उस कलाकार के कैसेट उसे सुनाया करती थी, और वो कलाकर बस रोता रहता । एक दिन वो कलाकार मर गया । गुड़िया ने उस कलाकार के साथ उसकी पिंकी को भी उसकी चिता के साथ जलाने के लिए कहा।
गुड़िया को बहुत दुख हुआ उसका मन किया कि वो बहुत जोर से चिल्लाकर रोये । उसने जोर से गला फाड़कर चीखने की कोशिश की...और ये क्या उसके गले से एक जोरदार चीख निकली। सब दौड़कर आये। गुड़िया की आवाज आ गई थी। कलाकर मरते मरते अपनी आवाज ‘पिंकी’ यानी गूँगी गुड़िया को दे गया था।
संजय नायक "शिल्प"