A collection of stories that make a man realize himself - Iccha Mrityu in Hindi Book Reviews by अशोक असफल books and stories PDF | मनुष्य को उसका साक्षात्कार कराती कहानियों का संग्रह - इच्छा मृत्यु

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मनुष्य को उसका साक्षात्कार कराती कहानियों का संग्रह - इच्छा मृत्यु

मनुष्य को उसका साक्षात्कार कराती कहानियों का संग्रह - इच्छा मृत्यु

लेखक : अशोक असफल

समीक्षक : राजा अवस्थी

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अशोक असफल अपने ढंग के दुर्लभ कहानीकार हैं।आठ उपन्यास और पांच कहानी संग्रहों के बाद 'इच्छा मृत्यु ' उनका छठवां कहानी संग्रह है, जो मातृभारती प्रकाशन से छपकर आया है। 392 पृष्ठों के इस संग्रह में उनकी 34 कहानियां संकलित हैं।

धर्म, आध्यात्म और दर्शन से भरे हुए इस संग्रह की कहानियों में देह मिट्टी की तरह शामिल है। शिल्पकार के लिए मिट्टी से इतर कुछ भी नहीं है। पत्थर हो, लकड़ी हो या मिट्टी हो, अंततः सभी को वह मिट्टी की तरह ही इस्तेमाल करता है। लेकिन, मिट्टी की तासीर को वह बदल नहीं सकता, बल्कि मिट्टी की तासीर के साथ ही कुछ गूँथ पाता है और खुद भी उसी में गुँथता रहता है। मनुष्य की देह भी मिट्टी से अधिक कुछ नहीं है। उसकी भी अपनी प्रकृति और तासीर है। 'इच्छा मृत्यु' की कहानियों के रचनाकार आदरणीय असफल जी इस मिट्टी की तासीर के रेशे-रेशे को अनावृत करते हैं। धर्म हो, आध्यात्म हो या दर्शन! कुछ भी इस देह से बाहर नहीं जाता। सारे राग-विराग इस देह की तासीर से मात खाते हैं और हमेशा खाते हैं। मन भी यहाँ देह की तासीर से ही संचालित है। यह बात उलटी लग सकती है, किन्तु है ऐसी ही। इस तरह लगभग सभी कहानियाँ इस देह की तासीर में ही गदराती, पकती, फूटती और रिसती गाथाओं को कहती हैं।

''इच्छा मृत्यु" कहानी संग्रह की पहली कहानी 'लाकडाउन'  कोरोना काल के बहाने मनुष्य के अपने स्वास्थ्य, अपनी काया के प्रति प्रेम को दिखाती है। एक दूसरे के प्रति प्यार में समर्पित होने का दम भरने वाले प्रेमी भी जब एक दूसरे को आमने-सामने पाते हैं, तो प्रेमी प्रेमिका से लिपटने के बजाय हाथों में ग्लब्ज़, मुंह पर मास्क लगाए दूर खड़ा नज़र आता है। यह कहानी प्रेम के पाखंड को उजागर करती हुई कहानी है। ''इच्छा मृत्यु' और 'नायक खलनायक' स्त्री की अवर्णनीय यंत्रणा और पुरुष समाज की दुष्चरित्रता, हठधर्मिता और संवेदनहीनता की कहानी हैं। दोनो ही कहानियों में एक स्त्री अपने बच्चे के साथ घर लौट रही होती है और रास्ते में बस, ट्रक ड्राइवर द्वारा उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है। घर पहुंचकर दोनो ही चुप रहती हैं और इस घोर अपमान, असहायता और संवेदनहीनता की भयावह यंत्रणा को सहती रहती हैं। इच्छा मृत्यु की श्वेता का तो पूरा कैरियर ही उसके पिता और तमाम रिश्तेदारों ने उसकी पढ़ाई छुड़ाकर जबरन उसकी शादी करके तबाह कर दिया। पति होकर भी जैसे नहीं था। यह सब भी तो बलात् ही हुआ। किन्तु चलते हुए ट्रक में रात भर रौंदे जाने की उस भयानक रात के वर्षों बाद श्वेता को वही ट्रक ड्राईवर एक मन्दिर में मिल गया और पहचाना ही नहीं, बल्कि उस यंत्रणा भरी पुरानी बात की याद भी दिलाई। पहले की तरह अब श्वेता के पास कोई जवाबदारी नहीं थी, तो इस यंत्रणा से मुक्ति के लिए श्वेता ने इच्छा मृत्यु का रास्ता चुना और नदी में छलांग लगा दी। यह कहानी इस शर्मनाक स्थिति को भी दिखाती है कि हमारे समाज में आधी आबादी कहे जाने के बावजूद स्त्री कितनी अकेली है। उसके साथ कहीं भी, कोई भी, कभी भी नहीं है। 'नायक खलनायक' की मीरा भी अपने पढ़े -लिखे प्रोफेसर ससुर की हठधर्मिता, कुण्ठा और तानाशाही से परेशान है। ऐसे में प्रतिकार का उसने एक अलग ही रास्ता चुना। बढ़ती हुई भजन मंडलियों, प्रवचन कर्त्ताओं और उनके द्वारा प्रचारित अजीबोगरीब नुस्खों में खुद को रमा लेती है। भक्ति गीतों में नाच-गाकर बन्धनों का प्रतिकार करती है। इस सबके बीच मीरा भी बस ड्राइवर और कंडक्टर द्वारा रौंदी जाती है, किन्तु इस हादसे के बाद प्रतिकार के रूप में उसने कुछ खास नहीं किया सिवाय इसके, कि अब वह अपने ससुर से और अधिक घृणा करने लगी। दरअसल यह स्थिति और ज्यादा शर्मनाक है, कि एक स्त्री अपने साथ हुए सामूहिक बलात्कार को भी किसी से नहीं कह पाती, क्योंकि उसे पता है, कि इसके बाद भी कोई उसका साथ तो देगा नहीं, उलटे दण्ड भी उसके लिए ही तय किया जाएगा। उसका जीना ही मुश्किल कर दिया जाएगा। 'सहमति' कहानी की द्वादश भी अपने तथाकथित देवता समान जेठ की भोग्या बनने को इसी डर और असहायता के कारण सहमत नहीं बल्कि विवश हो जाती है।

अशोक असफल जी की कहानियां एक ओर जहां पाठक की कुंठाओं को कुरेदकर उन्हें उत्तेजित करती हैं, तो दूसरी ओर देह की अपनी जरूरत और धर्म, कर्म, तन्त्र, मन्त्र की आड़ में व्याप्त पाखण्ड को भी अनावृत्त करती हैं। 'यज्ञ' में भी इसी पाखण्ड को अनावृत किया गया है। लेकिन इस कहानी में एक विचित्रता यह भी है कि सुमित समलैंगिक है। वह पत्नी के साथ हमबिस्तर नहीं होता, बावजूद इसके अपना और पत्नी का मेडिकल चेकअप करवाता। संतान सुख के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाता है। यज्ञ करवाने वाले पंडित जी को रात में घर में छोड़कर भी चला जाता है। पाखंड का एक रूप यह भी है कि समाज में सम्मान बनाए रखने के लिए कोई पुरुष दूसरे पुरूष से भी प्राप्त संतान को अपना कहता है।

' बेदखल ' कहानी एक ऐसी लड़की की कहानी है जो एक लड़के से भौतिक रिलेशन के बाद लड़के के भीतर पैदा हुई अधिकार की भावना का प्रतिकार करती है और उससे मुक्ति की घोषणा करती है। संग्रह में 'अपात्र' जैसी मार्मिक कहानी है, तो मार्मिकता के साथ और असम्मान न झेलने के लिए स्त्री के दृढ़ निश्चय की कहानी 'अंत में अफसोस ' एक बड़े प्रश्न को उठाती हुई कहानी है, जिसमें तिष्ना न सिर्फ यह प्रश्र करती है कि औरत अपने जिस्म की मालिक क्यों नहीं? बल्कि'टू फिंगर टेस्ट'को कोर्ट में चुनौती देने का निश्चय भी करती है। 'फतह तक का सफर ' आदिवासी और जनजातीय जीवन में भी व्याप्त पुरुष की अधिनायकवादी प्रवृत्ति और स्त्री को भोगने ही नहीं, बल्कि उसकी देह को ही घोर यंत्रणा देने का साधन बना लेने की रीति को बहुत संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया गया है। इतना ही नहीं इस कहानी में समाज का मुखिया एक उम्मीद और जागरण का संदेश लेकर आता है। वह तान्या के साथ हुए की पुलिस में रिपोर्ट करने में उसका साथ देता है। अंततः:इस साहसिक कार्य के लिए तान्या को पुरस्कृत भी किया जाता है।

'भूमिका', 'शब्दवध', 'हत्या', 'तेंदुआ' और 'जीवन का यह अंतिम सफर नहीं' जैसी कहानियां जीवन, समय, समाज और सत्ता के बहुत गहरे सरोकारों से सम्पृक्त कहानियां हैं। इन कहानियों के संवाद बहुत मारक टिप्पणियों से भरे हैं।

इन कहानियों के लेखक का ज्ञान बहुविध और अपरिमित है। उनके ज्ञान का क्षेत्र अलग-अलग जातियों -धर्मों, उनकी परम्पराओं, तन्त्र -मन्त्र, योग, साधना की विविध पद्धतियों, देह की प्रकृति और उसका विज्ञान, मनोविज्ञान और राजनीति से लेकर पुलिस और\सरकारी कार्यालयों के काम करने के तरीकों तक, बल्कि उससे भी कहीं आगे तक फैला हुआ है। वे अपने लेखन में इस ज्ञान का भरपूर उपयोग करते हैं। उनकी कहानियों के पात्र भी इस ज्ञान का उपयोग करते मिलते हैं! 'बागडोर' कहानी में गुरु का शिवपुराण वाय संहिता उ.खं. 4/1, , 1 से 12 के आधार पर बोलना हो या नर्मदा को मन्त्र देने की सुबह की पूर्व रात्रि नर्मदा को अपने ही कक्ष में सो जाने को कहने के पीछे लेखक की यह टिप्पणी कि "जानते थे कि नैसर्गिक रूप से चौबीस घंटों में एक बार प्रातः तीन से पांच बजे के बीच में काम शक्ति का परिक्रमण बच्चे से लेकर बूढ़े तक में होता है।...इस काल में किसी अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता न होगी...सिद्धि स्वत: हो जाएगी!...प्राणों को संकुचित कर वे योग-निद्रा में लीन हो गये।"

संग्रह की कहानी 'मनुष्य' ऐसी कहानी है जो लेखक को उस बिन्दु तक ले जाती है, जहां वे यह दिखाने में सफल हुए हैं कि मनुष्य अन्ततः मनुष्य ही होता है, चाहे वह कोई संत हो, महात्मा हो, योगी हो या ज्ञानी हो। उसे मनुष्य देह को व्यापने वाली सभी संवेदनाएं, सभी संवेग, सभी ब्याधियां व्यापती हैं, तभी तो गुरूजी को अंतिम समय में देखकर लेखक को राम का भयभीत चेहरा याद आ जाता है।  तभी तो 'बागडोर' के गुरुदेव शिष्या नर्मदा को मंच सौंपने के पहले शिवा-शिव को एकाकार करने के नाम पर स्वयं उससे एकाकार होते हैं।

'जाल' कहानी पढ़ते हुए किस्सागोई का आनन्द आता है।'आधा आसमान 'जनता की पक्षधर पार्टी में काम करने वाले लड़के और लड़की के बीच विकसित कहानी है। इसमें कई महत्वपूर्ण संवाद हैं।पार्टी हेड का नुक्कड़ -नुक्कड़ में यह समझना कि "आज कार्पोरेट जगत के हाथ में सारी चीजें चली गई हैं। किसानों, मजदूरों का कोई भविष्य नहीं रहा।लेबर्स ला रिवर्स कर दिया गया है।...सिंचित भूमि का धनाड्यों में बंदरबांट करने वालों को जरा भी चिन्ता नहीं है कि सवा अरब आबादी को आगे चलकर भोजन कौन देगा?" लेबर्स ला जैसे महत्वपूर्ण और जरूरी मुद्दे पर यह कहानी और महत्वपूर्ण हो जाती है। यह ऐसा मुद्दा है जिसका जरूरी प्रतिकार भी नहीं किया गया। यह कहानी लेखक के सरोकारों को व्यक्त करती है।

अशोक असफल जी की कहानियों में देह और देह की प्रकृति, देह की प्रवृत्ति एक बड़ा और सूत्र तत्व है। उनकी कहानियों में पुरस्कार भी देह के समर्पण और भोग पर पूरा होता है (दूसरी पारी ), तो दण्ड भी देह को भोगने और निर्वस्त्र करके पूरा होता है (फतह तक का सफर)। सांत्वना और सहानुभूति भी देह सुख भोग के रूप में ही फलीभूत होती है।प्रेम का तो आधार ही देह है। सृष्टि में अब तक जो भी घटा है वह देह से गुजरे बिना संभव नहीं हुआ, फिर एक दृष्टि सम्पन्न लेखक से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह भी मनुष्य के उस पाखण्ड को निरावृत नहीं करेगा, जिसमें वह देह के स्तर पर संभव न हुआ तो मन के स्तर पर तो वह सब कुछ भोग लेता है, जिसे छिपाकर चरित्रवान की संज्ञा ओढ़े रहता है। यहां दो बातें महत्वपूर्ण हैं।एक तो यह कि मनुष्य को अपनी देह के गुण और धर्म को जानते हुए आत्मनियंत्रण और दूसरों से व्यवहार को परिचालित करना चाहिए।दूसरे यह कि देह का धर्म निभे बिना आत्मा तक का रास्ता नहीं मिलता।आत्मा के पथ पर देह मिलेगी ही। दरअसल देह ही आत्मा तक जाने के क्रियाकलाप पूरे करती है। क्योंकि देह के भीतर ही आत्मा और फिर उसके भीतर परमात्मा है, तो देह से गुजरे बिना न प्यार संभव है और न ही आध्यात्म। इतना अवश्य है कि कहानी जैसे संक्षिप्त कलेवर में यह दृष्टिकोण देह का देह के द्वारा भोग और उससे प्राप्त तृप्ति पर अटक जाता है। उल्लेखनीय यह भी है कि इन कहानियों में समाज में व्याप्त किसी न किसी समस्या, असंगति, ब्याधि को ही केन्द्र में रखा गया है, जिन्हें पढ़ते हुए पाठक भी अनावृत होता चलता है। तो ये कहानियां जहां समाज और संसार के बारे में बताती हैं, वहीं पाठक को भी आत्मसाक्षात्कार का अवसर देती हैं। संग्रह की अंतिम कहानी 'चक्र' का नायक भी कहानी के अंत में आत्मनिरीक्षण की मुद्रा में आने को विवश हैं। वह कहता है "करें! मुझे झटका - सा लगा। जैसे उसमें अपनी बेटी का और मिसेज बागले में पत्नी का 'कल' दिख गया हो।"

अंत में पूरे विश्वास से यह कह सकते हैं कि 'इच्छा मृत्यु ' की सभी कहानियां पठनीय और पढ़ते हुए पाठक को प्रभावित करने वाली कहानियां हैं। इस तरह यह संग्रहणीय कहानी संग्रह भी है।

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संपर्क: गाटरघाट रोड, आजाद चौक

कटनी -483501 (मध्यप्रदेश)

मोबा. 9131675401

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पुस्तक का नाम - इच्छा मृत्यु (कहानी संग्रह)

कहानीकार       - अशोक असफल

पृष्ठ                 -392 पृष्ठ

मूल्य।              -  499/-

प्रकाशन।         -  मातृभारती टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड