Yaado ki Asarfiya - 1 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 1 - वेलकम टू किशोर विद्यालय

Featured Books
Categories
Share

यादों की अशर्फियाँ - 1 - वेलकम टू किशोर विद्यालय

1. वेलकम टू किशोर विद्यालय

किशोर विद्यालय, याद करते ही आंखो के सामने खड़ी हो जाती है वह खूबसूरत गुलाबी इमारत, जिसके सामने न जाने कब से खड़ा हुआ नीम का घना पेड़। उस पेड़ पर लगा वह घंट जो छूटी होने पर हमे अवर्णनीय खुशी देता पर जब वह आखरी बार बजा तो जेसे कान सुन रह गए। उस घंट ने जेसे हमारी स्कूल से हररोज मिलने की आदत,चाह और आनंद को छीन लिया। उस पेड़ के नीचे पार्क की हुई टीचर-सर के वाहन, घर तक पहुंचाती मस्ती की वह पीली दो स्कूल बस और सामने लगी हुई, आर्मी के जवान की तरह शिस्तबद्ध साईकिल की लंबी सी कतार। वह झुला जिस पर बैठ कर हमने फिर से बचपन को जिया। वह नारियली के पेड़, वह मैदान और वह प्रिंसिपाल सर की ऑफिस जहां से हमने आखरी बार अनुभव किया था की हम उस स्कूल से है, स्कूल के है और अन्तिम बार देखा था अपनी प्यारी स्कूल को।


में फिर एक बार अपने आप को वहा महसूस कर, फिर एक बार अपनी 9th की सफर का में दृष्टा बनकर वापस स्कूल जा रही हु तो चलिए मेरे साथ।

* * *

‘किशोर विद्यालय’ आज की बड़ी बड़ी इंटरनेशनल स्कूल जेसी नही थी पर वह इतनी भी छोटी नही थी की वह हमारे हृदय में जगह न बना पाए।

स्कूल के केम्पस में दो बड़ी बिलडिंग थी जिसमे एक सफेद व्हाइट हाउस की तरह थी। जो बॉयज की हॉस्टल थी, जिसमे एक ओर K और दूसरी ओर L लिखा था। जो बचपन से जिज्ञासा उत्पन्न करता था। बाद में पता चला की यह अक्षर हमारे प्रिंसीपाल के पूर्वज के नाम के ऊपर थे। और दूसरी लाइट पिंक रंग की, हमारी स्कूल। उस बिल्डिंग से अंदर से होती हुई अलग सी बिल्डिंग थी, जिसमे हम प्राइमरी मे पढ़ते थे। स्कूल में बाकी स्कूल की तरह बड़ा सा ग्राउंड था, आने-जाने के लिए बस की सुविधा। पर हमारी स्कूल में कुछ चीज़े ऐसी थी की वह कभी किसी स्कूल में आपको देखने ना मिले। यह चीज़े थी - बड़ा सा हरा खेत और गाय-भैंस। जी, हां दुबारा पढ़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि आपने सही पढ़ा है। हमारे स्कूल में गाय -भैंस पढ़ने नही आती थी, बल्कि वह हॉस्टल के बच्चो के लिए ताजा दूध के लिए होती थी। यूं तो सुनने में लगता है की हॉस्टल के बच्चे भाग्यशाली है की उनके लिए शुद्ध खाने की व्यवस्था है लेकिन जो वहां रहा है और जिसने वहा खाया है, वही आपको स्वाद बता सकता है लेकिन कही भी नही सुना और न देखा हुआ स्कूल हैं।


हमारे स्कूल में सबसे ज्यादा अच्छी और प्यारी जगह, जहा हम आज भी जाना चाहते है वह जगह थी - लोन। जहां खेलने के दो फायदे थे - एक तो गिरने पर चोट नहीं लगती थी और गिराने के लिए डांट नही मिलती थी। मतलब की हम खेलते कम और गिरते ज्यादा थे। हमारे स्कूल में दूसरी स्कूल की तरह कंप्यूटर लैब और लेबोरेटरी थी। पर कंप्यूटर लैब में आधे से ज्यादा कंप्यूटर तो खराब थे और लेबोरेटरी का दरवाजा तो किसी भूतिया महल के रहस्यमयी दरवाज़े की तरह हमेशा बंद ही होता था। लाइब्रेरी नाम की कोई चीज उस वक्त हमने सुनी थी पर देखी नही थी। पर आज वह स्कूल काफी अत्याधुनिक हो गई है पर हमने उस अधूरेपन में जो मज़ा किया है वह आज उस आधुनिकता में कहा?

स्कूल का सबसे बोरिंग काम था हर शनिवार को सुबह सुबह P.T. करना। पर इस साल हमे वरदान जो मिला था क्योंकि सेकेंडरी में शनिवार को सुबह P.T. की जगह हम वीकली टेस्ट लिखते थे। पहले सोमवार को होती थी तब हमारा पूरा रविवार उसकी तैयारी में ही बीतता था पर अब हम शनिवार को पेपर देकर एकदम फ्री हो जाते थे और P.T. से छुटकारा अलग से। वरना कनक टीचर परेड करा कर पैर दुःखा देते। में इस वरदान का कब से इंतजार कर रही थी।

भले ही बाकी सुविधा कम हो पर पेटपूजा का इंतजाम अच्छे से किया हुआ था और वह थी हमारी केन्टीन। रिसेस मिलती थी आधे घंटे की और उसमे भी लगभग 15 मिनट तो नास्ता लाने की चली जाती थी। पर हमारे पास ऐसा जुगाड था की हम नास्ता लेने के बाद भी बहुत बाते भी कर लेते। इसके पीछे भी राज़ है जो आगे कहानी में खुलेगा। कोई भी स्कूल क्यों न हो, कोई भी स्टूडेंट क्यों ना हो, उनके हसीन मस्ती भरे पल, उसकी खुशी, रिसेस में ही होती है चाहे वह पहली कक्षा में हो या 10वी। पर हम उनमें से नही थे जो सिर्फ रिसेस में ही मज़ा ढूंढते है पर हमारे क्लासरूम भी फनरूम थे।

फनरूम बनाने के लिए कुछ फनी दोस्तो की भी जरूरत है मेरे पास तो पूरा स्टॉक था। उसमे सबसे पहला नाम था - ध्रुवी, जिसे प्यार से हम 'धुलु' भी कहते थे क्योंकि उसका नाम और पर्सनालिटी 'छेल्लो दिवस' के धुलो की तरह थी। वह सिर्फ दिखने पर लड़की थी, बाकी सारी हरकते लड़के की तरह थी। मेरी सबसे खास और न सिर्फ बेस्ट फ्रेंड थी पर वह मेरी जिंदगी की पहली फ्रेंड भी थी। उसका काम सबको हंसाना था। यहां तक मेने भी उससे मजाक मस्ती करना सीख लिया था। वो सबसे ज्यादा मस्ती करती थी। और दूसरा नाम जिसका है वह मेरी हमसफर, मतलब जिसने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा मेरी फेवरिट फ्रेंड - झारा। हसने की बात आए और उनका नाम न ले ऐसा कभी हो ही नहीं सकता। उसके नाम की ही तरह उसका शौक था - खुलके हंसना। उसकी हसीं मेरी हर समस्या का समाधान भी है और कई कई बार खुद समस्या भी।

हमारा कोई भी बोरिंग क्लास को ‘जोयफुल’ बनाने का काम धुलु का था। पर सिर्फ धूलू को याद करना जरा गलत होगा क्योंकि हमारी फ्रैंडशिप DMU मतलब D माने ध्रुवी, U माने में, उरी और M माने माही। जो इतनी सॉफ्ट थी बारिश में भीग जाने के डर से उसके पैरेंट्स उसे ट्यूशन में न भेजें, ठंडी में ठंड और गर्मी में बिचारी पिघल जाए। इसी लिए काफी दिनों तक वह 'घेरहाजर' ही होती थी। मगर उनका भाई हररोज आता था। माही बहुत ही शर्मीली और शांत स्वभाव की थी, दिखने में मेलेनिन थोड़ा कम था। इसलिए कई मुश्केली खड़ी हो जाती थी। माही सिर्फ हमारी दोस्त नहीं थी क्योंकि अरे उनको भी अपनी बेस्ट फ्रेंड रखने का पूरा अधिकार है। वह थी जिनके साथ आती-जाती थी - क्रिशा। उसकी हमसफर क्योंकि दोनो साथ में सफर करते थे। हालांकि उसमे मेलेनीन थोड़ा ज्यादा मात्रा में था और उसका शॉर्ट टेम्पर्ड माइंड भी आगे जाकर कई बड़े और मजेदार किस्से बुनने वाले थे। पर दिल की साफ थी, वह कभी भी मेरे साथ लड़ी नहीं, वह पारदर्शक थी, मतलब जो थी वह दिखती थी, कोई छल नही, धोखा नहीं। मुझे ऐसी ही वो पसंद है। वह जिसके साथ लड़ती थी, मतलब प्यार से, वो उसकी खास दोस्त थी - अंजनी। उसमे दोनो संतुलित मात्रा में पाया जाता है मतलब वह शांत भी थी और जरूरत पड़े अपना गुस्सा भी दिखा देती थी। खुशाली को तो बहुत ध्यान से पकड़ कर बुक में बंद कर दिया वरना हवा आकर उसे उड़ा ले जाती। दोस्तो की लिस्ट तो बड़ी लंबी है मगर,

कुछ दोस्तो की पहचान उनके कारनामे से अच्छे से होती है उनका परिचय नही दिया जाता।

स्कूल की इमारत के दो मजबूत और अनिवार्य इंट होती है और वह है स्टूडेंट और टीचर । स्टूडेंट्स की बात तो हमने कर ली पर हमारे टीचर्स भी कुछ कम नहीं।

टीचर का नाम सुनते ही हमारे मन ने डर बैठ जाता है और इसी डर का दूसरा नाम है धीरेन सर। वह हमारी स्कूल के खतरनाक प्रिंसीपाल थे। उससे न सिर्फ स्टूडेंट्स बल्कि टीचर्स भी डरते है। पर हमारा आमना- सामना सिर्फ उनका भाषण प्रार्थना में सुनने के बाद खत्म हो जाता था। पर जिनसे शुरू होता था वह तो उनसे भी खतरनाक थे। नाम उसका मेना टीचर था। ऋषि दुर्वासा की तरह हमेशा नाक पर गुस्सा रहता था और हमे उनकी तरह कभी भी, कही भी डांट के रूप में श्राप दे देते थे। दुर्वासा ऋषि फिर भी गलती होने पर श्राप देते थे पर मेना टीचर तो बिना गलती के ही डांट लिया करते थे। और उनकी मुस्कान तो दुर्लभ होती थी। वह हमारा हिंदी लेते थे लेकिन हम पढ़ते कम डरते ज्यादा थे।


कुछ टीचर्स ऐसे भी थे जिनसे डर का रिश्ता नही पर दोस्ती के जैसा रिश्ता था। उनमें सबसे पहला नाम है - नसरीन टीचर का। वह हमारे साथ मॉडर्न टीचर की तरह पेश आते थे मतलब वह मारते कम थे और समझाते ज्यादा थे। उनके साथ जुड़ा एक किस्सा जो मुझे एक सीख देता है। यह किस्सा 9th का नही था शायद 7th का होगा। मुझे अच्छे से याद नहीं है, की कब हुआ था पर, क्या हुआ था ये अच्छे से याद है।


एक बार टीचर ने हर किसी टीचर की तरह निखिल को, जो हमारी क्लास का सबसे शैतान हीरो था। आप समझ ही गए होंगे की, वह कैसा हीरो है। और उसके कारनामे तो आगे देखने मिलेंगे। उनको टीचर ने क्लास मे आगे लगभग ब्लैक बोर्ड के नीचे सज़ा के तौर पर बिठाया था। तभी अचानक पता नही, हम सब तो लिख रहे थे और ब्लैक बोर्ड गिरने की आवाज आई । मेने ऊपर उठकर देखा तो नसरीन टीचर ने मूवी की तरह दौड़कर गिरते हुए बोर्ड को एक हाथ से रोकने की कोशिश की क्योंकि बोर्ड के नीचे निखिल था जिसको को उसने वहा बैठाया था। टीचर ने बिना कुछ सोचे अपने आपकी परवा ना कर निखिल के लिए बोर्ड को रोका। फिर पास के क्लास वाले टीचर्स आए और टीचर को सहायता की । इस बीच टीचर को चौट भी लग गई।

इस बात से मेने यह सीख ली की जब हमे टीचर डांटते है तब हमे लगता है की वह दुश्मन की तरह पेश आते है लेकिन हकीकत में वह सिर्फ हमारा भला चाहते है। जेसे नसरीन टीचर ने तो निखिल को सज़ा ही दी थी तो वह दुश्मन की तरह (जेसे हम सोचते है) उन पर बोर्ड गिरने देते पर टीचर ऐसा नहीं चाहते और करते।


नसरीन टीचर के फ्रेंड और हमारे दोनो फ्रेंड और टीचर। तृषा टीचर फ्रेंडली भी बात करते थे और जब वह गुस्से में हो तो कम से कम 5 बार पीठ पर मार कर ही रुकते थे। तृषा टीचर को तो हम फ्रेंशिपबेल्ट भी बांधते थे। मतलब तृषा टीचर को फ्रेंड बनाना या गुस्से वाले टीचर यह स्टूडेंट के हाथ में था।


मेरे सबसे फेवरेट टीचर थे - दीपिका मेम। 9th में आकर ही में सोचती थी की दीपिका मेम को सब 'मेम' क्यों कहते है वैसे तो प्राइमरी से हम सब टीचर को टीचर ही कहते आए है। यही एक को हम पहले मेम बुलाते थे और बाद में नसरीन टीचर और तृषा टीचर को भी मेम बुलाने लगे। अब मेरा जो सवाल था मेम वाला उनका जवाब मुझे 9th में ही मिला तो आपको भी पूरा भाग पढ़ने पर मिल जायेगा।


बाकी सारे टीचर जेसे निशांत सर, गौरव सर, नीरज सर और कई टीचर्स, जिसका जेसे हम सबसे अचानक से परिचय प्राप्त किया वेसे ही मिले तो लगे की लगे की हम स्कूल में फिर से जा रहे है।


तो यह थी हमारी स्कूल, हमारे दोस्त और हमारे शिक्षक की कहानी जिसने हमारी स्कूल लाइफ को मजेदार किस्से में बदल दिया। केसे बदला वह अब देखेंगे।



* * *