Pyaar Huaa Chupke Se - 7 in Hindi Fiction Stories by Kavita Verma books and stories PDF | प्यार हुआ चुपके से - भाग 7

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 7

अगली सुबह शक्ति ने अपनी गाड़ी एक बड़ी सी बिल्डिंग के बाहर रोकी और अपने चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट लिए गाड़ी से बाहर आया। उसने अपनी आंखो पर लगा काला चश्मा निकाला और बिल्डिंग के ऊपरी हिस्से में लगे बोर्ड की ओर देखने लगा। जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- "कपूर ग्रुप ऑफ कंपनीज़"

उसके चेहरे की मुस्कुराहट और बढ़ गई और वो आगे बढ़ने लगा। गेट पर खड़े एक गार्ड ने उसे देखते ही दरवाजा़ खोलते हुए कहा- गुड मोर्निग सर,

शक्ति ने कोई जवाब नही दिया और अकड़ते हुए अंदर आया। उसे देखते ही ऑफिस का सारा स्टॉफ उठकर उसे "गुड मॉर्निंग सर" कहने लगा। शक्ति ने किसी के गुड मॉर्निंग का जवाब नही दिया और एक कैबिन के बाहर आकर रुक गया। जिस पर अभी भी "शिव कपूर" के नाम की नेम प्लेट लगी हुई थी। उसने गुस्से में अपने हाथ की मुट्ठी बांध ली और कैबिन का दरवाज़ा खोलकर अंदर जाने लगा।

"रुको शक्ति"- शक्ति के पीछे खड़े एक अधेड़ उम्र के शख्स ने कहा। शक्ति ने गुस्से में अपनी आँखें बंद की और फिर अपने गुस्से पर काबू करने की कोशिश करने लगा। उसके पीछे उसके पापा अधिराज कपूर खड़े थे। वो उसके सामने आकर बोले- इस कैबिन के बाहर आज भी... शिव के नाम की ही नेम प्लेट लगी हुई है शक्ति इसलिए हर रोज़ तुम ये क्यों भूल जाते हो कि ये कैबिन अभी भी शिव का ही है। तुम्हारा नही,

"शिव मर चुका है पापा और अब कभी लौट कर नहीं आएगा। ये बात आप जितनी जल्दी मान ले उतना आपके लिऐ अच्छा होगा"

शक्ति के ये शब्द अधिराज के दिल में तीर की तरह चुभे। ऑफिस का स्टॉफ भी उन दोनों को देखने लगा।

अधिराज ने खुद को संभाला और बोले- शिव इस दुनिया में हो या ना हो पर ये कैबिन आज भी उसका है और जब तक मैं ज़िंदा हूं, उसका ही रहेगा। तुम भले इस कंपनी की भागदौड़ अपने हाथों में ले लो शक्ति पर इस कैबिन में जगह तुम्हें कभी नही मिलेगी इसलिए तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम जाकर अपने कैबिन में बैठो।

"कभी-कभी मुझे समझ नही आता पापा कि आप मेरे बाप है या मेरे दुश्मन"- इतना कहकर शक्ति गुस्से में भनभनाता हुआ पास ही बने अपने कैबिन में चला गया जो शिव के कैबिन से ही लगा हुआ था। अधिराज ने स्टॉफ की ओर देखा और बोले- अपना काम कीजिए।

सब चुपचाप अपना-अपना काम करने लगे। अधिराज शिव के केबिन में आए और उन्होनें नज़रें घूमाकर चारों ओर देखा और फिर शिव की चेयर की ओर बढ़ने लगे। उन्होनें बहुत प्यार से शिव की चेयर को छुआ। जिसे छूते ही उनकी आंखो से आंसू बहने लगे।

उन्होने सामने टेबल पर रखी रति की खूबसूरत सी तस्वीर उठाई और रुआंदी सी आवाज़ में बोले- जिस दिन शिव तुम्हारा हाथ थामे हमारी घर की चौखट पर आया था बेटा। मैं उससे बहुत नाराज़ हुआ था क्योंकि मैं कभी नही चाहता था कि मेरा बेटा एक मामूली से चपरासी की बेटी से शादी करे।

पर अपने बेटे और अपनी पत्नी की खुशी की खातिर मैंने तुम्हारी और शिव की शादी को मान लिया पर मेरा दिल हमेशा यही कहता था कि तुम मेरे बेटे से नही, बल्कि उसकी दौलत से प्यार करती हो इसलिए मैं ये कभी सपने में भी नही सोच सकता था कि तुम मेरे बेटे से इस हद तक प्यार करती हो कि उसकी मौत के बाद, तुम खुद का भी वजूद मिटा दोगी।

आज तुम्हारे प्यार के सामने सजदा करने का दिल चाहता है बेटा। भगवान इस दुनिया की तरह उस दुनिया में भी तुम दोनों का साथ बनाए रखे। अब तो बस भगवान से यही दुआ कर सकता हूं मैं....

अधिराज ने इतना कहकर खुद को संभाला और शिव के कैबिन से चले गए। दूसरी ओर शक्ति ने अपने कैबिन में आते ही टेबल पर रखा सारा सामान एक हाथ मारकर नीचे गिरा दिया और गुस्से में बोला- शिव.......ये नाम मरने के बाद भी मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है....पर मेरा नाम भी शक्ति है और मैं हर वो चीज हासिल करके रहूंगा शिव जो कभी तुम्हारी हुआ करती थी फिर चाहे वो तुम्हारा कमरा हो या फिर तुम्हारा कैबिन........ तुम्हारी गाड़ी हो या फिर तुम्हारी कुर्सी ...... चाहा तो मैने ये भी था कि तुम्हारी बीवी भी मेरी हो...... और मैं उसे इतना तड़पाऊं कि मरने के बाद भी तुम्हें कभी सुकून ना मिले। तब शायद मुझे चैन आता.... पर रति ने मुझसे मेरी ये खुशी छीन ली......

अगर मुझे पता होता कि तुमने अपने सारे शेयर्स....उस दो टके की लड़की के नाम पर किए हुए है तो उस रात मैं शिव को मरने नही देता। उसे नदी में गिरने से बचा लेता...पर कोई बात नही......आज नही तो कल, मैं अपने मकसद में कामयाब हो ही जाऊंगा।

"गुड मॉर्निंग सर"- तभी एक लड़की उसके कैबिन में आकर बोली। उसकी आवाज़ सुनते ही शक्ति ने तुरंत पलटकर उसकी ओर देखा। उस लड़की को देखते ही उसके चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई। वो लड़की भी उसे देखकर मुस्कुरा दी और ज़मीन पर बिखरे हुए सामान को देखकर टेबल पर बैठते हुए बोली- अगर इस कंपनी के मालिक बनना चाहते हो शक्ति... तो शिव की तरह बन जाओ। तुम्हारा काम बिना कुछ किए ही हो जायेगा।

शक्ति उसे हैरानी से देखने लगा। तो वो लड़की मुस्कुराते हुए शक्ति के पास आई और उसके चेहरे पर बड़े प्यार से अपनी उंगलियां घुमाते हुए बोली- मेरा मतलब है कि अगर घी सीधी ऊंगली से ना निकले तो ऊंगली टेड़ी कर लेनी चाहिए। जब तक तुम्हारा काम नही हो जाता। शिव सर की तरह बन जाओ। आय मीन उनकी तरह एक अच्छा बेटा....एक अच्छा पौता....एक अच्छा भाई... बनने का दुनिया के सामने दिखावा करो। सबके दिलों में अपनी वही जगह बना लो जो शिव की थी। खुद-ब-खुद उसकी सारी चीज़े तुम्हारी झोली में आ गिरेगी।

उस लड़की के इतना कहते ही शक्ति ने उसकी कमर पर हाथ रखा और उसे अपने करीब लाकर मुस्कुराते हुए बोला- नोट बेड स्वीटहार्ट....मुझे नही पता था कि शिव की पर्स नल सेक्रेटरी इतनी समझदार है कि उसके मरने के बाद भी अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रही है और इस कंपनी के होने वाले मैनेजिंग डायरेक्टर को इतना बेहतरीन सजेशन दे रही है।

वो लड़की मुस्कुराते हुए शक्ति के और करीब आई और बोली- शिव कपूर की तो मैं सिर्फ सेक्रेटरी हूं पर तुम्हारी,

इतना कहकर वो लड़की चुप हो गई और शक्ति को देखने लगी।

"और मेरी तो तुम जान हो"- इतना कहकर शक्ति ने उसके होंठो पर किस किया। दोनों एक-दूसरे को किस करने लगे। तभी किसी ने कैबिन के दरवाजे पर दस्तक दी तो वो लड़की तुरंत शक्ति से दूर होकर अपने बालों को ठीक करने लगी।

"कम इन"- शक्ति ने दरवाजे की ओर देखकर कहा। तो चपरासी अंदर आया और एक फाइल शक्ति की ओर बढ़ाकर बोला- साहब ये फाइल जो आपने बड़े साहब के कैबिन से लाने को कहा था।

शक्ति ने तुरंत फाइल ली और उसे घूरते हुए बोला- कॉफी लाओ मेरे लिऐ......

"जी साहब"- चपरासी चला गया। उसके जाते ही शक्ति ने फाइल खोली और फाइल को देखते हुए उस लड़की से बोला- नेहा मुझे लगता है कि मुझे अच्छे बनने की शुरुआत.... शिव के इस प्रोजेक्ट को संभालने के ड्रामे से ही कर देनी चाहिए। व्हाट यू से?

"आइडिया बुरा नही है क्योंकि ये सर का ड्रीम प्रोजेक्ट है। जिसे तुम भी करना चाहते थे इसलिए शायद आज किस्मत ने तुम्हें इस प्रोजेक्ट को करने के साथ-साथ अपने घरवालों का दिल जीतने का मौका भी दे दिया है तो इस मौके का फायदा उठाओ और अपने सपनों को पूरा करो।" नेहा की बातें सुनकर शक्ति फिर से उसके करीब आया। उसने उसके चेहरे को छूकर पूछा- आज की शाम.... इंदौर के किसी शानदार होटल में डिनर करना पसन्द करोगी?

नेहा मुस्करा दी। तभी टेबल पर रखे फ़ोन की बेल बजने लगी। शक्ति टेबल की ओर बढ़ा और रिसीवर उठाकर बोला- हैलो,

शक्ति को फोन पर बात करते देख नेहा मन ही मन बोली- आज मैं तुम्हारे साथ सिर्फ इसलिए हूं शक्ति क्योंकि मुझे शिव सर नही मिले। बहुत चाहती थी मैं उन्हें....उनके इशारों पर इस ऑफिस में कठपुतली की तरह नाचती थी पर उन्होनें मुझमें कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई.... यहां तक कि मैंने उनसे अपने प्यार का इकरार भी किया पर उन्होनें मुझे उस रति के लिए रिजेक्ट कर दिया। अच्छा हुआ जो वो खुद ही मर गई वर्ना तो मैं उसे, शिव सर की विधवा के रूप में भी नही देख पाती... और इस शक्ति की बांहों में.... मैं सिर्फ़ इसलिए हूं क्योंकि अब मुझे कपूर खानदान की बहू बनना है।

दूसरी ओर शिव हॉस्पिटल के बेड पर बेहोश पड़ा था और बेहोशी की हालत में उसे सिर्फ बीती बाते ही याद आ रही थी। उसे रति से हुई अपनी पहली मुलाकात याद आ रही थी....उसे याद आया। जब वो लंदन से अपनी पढ़ाई खत्म करके इंडिया लौटा और अपने घर पहुंचा तो उसके घर पर सब कितनी बेकरारी से उसकी राह देख रहे थे।

तुलसी दरवाजे की ओर देखते हुए टहल रही थी। तभी पूजा घर से आरती की थाल लिए किरण मुस्कुराते हुए बाहर आई और बोली- मां अभी शिव को आने में आधा घंटा और लगेगा। लंदन से हवाई जहाज़ में दिल्ली आया है और फिर दिल्ली से ट्रेन से इन्दौर आ रहा है। वक्त तो लगेगा ना उसे और उसमें भी कोई तय नहीं है कि ट्रेन टाइम पर रेलवे स्टेशन आही जायेगी इसलिए आप आराम से बैठ जाइए और चलकर नाश्ता कर लीजिए। शिव के पापा गए है ना उसे लेने, वो ये आयेंगे उसे।

तुलसी ने कोई जवाब नही दिया। बस मुंह बनाकर दरवाज़े की ओर देखने लगी। तभी पायल सीढ़ियों से नीचे आते हुए बोली- मां आपको देखकर लगता है कि शक्ति ठीक ही कहता है। आप अपने चारों बच्चों में सबसे ज़्यादा प्यार शिव से ही करती है।

पायल की बातें सुनकर किरण मुस्कुरा दी और उसकी ओर आरती की थाली बढ़ाकर बोली- पायल लगता है मां ने तुम्हारी बातों पर ध्यान नहीं दिया। एक बार फिर से अपनी कही बात दोहराओ। शायद मां इस बार सुन ले,

"आप तो मेरा मजाक उड़ाएगी ना जीजी क्योंकि आपका बेटा इस घर का लाडला जो है।"- पायल मुंह फुलाकर बोली। किरण ने मुस्कुराते हुए पूजा की थाल वही एक टेबल पर रखी और पायल के दोनों कन्धे पकड़कर बोली- पायल मेरे लिए इस घर के चारों बच्चे एक बराबर है......मेरे लिए शिव, शक्ति, ओमी और टीना में कोई फर्क नही है। चारों इस घर के बच्चे है।

"शिव इस घर का बच्चा नहीं है जीजी....वो अधिराज भाई साहब की नाजायज औलाद है इसलिए ना उसका इस घर पर कोई हक है और ना ही हमारी जायदाद पर"

पायल गुस्से में बोली। उसके इतना कहते ही तुलसी उसके पास आई और उन्होंने बहुत ज़ोर से उसके गाल पर थप्पड़ मार दिया।

"मां"- किरण ने तुरंत तुलसी को पकड़ लिया। पायल ने अपने गाल पर हाथ रखकर तुलसी की ओर देखा तो तुलसी गुस्से में बोली- आज आपने ये बात कह दी है पायल पर दोबारा ये बात आपकी जुबान पर तो क्या, ज़हन में भी मत लाइएगा। समझी आप?

पायल गुस्से में अपने कमरे में जाने लगी तो तुलसी फिर से बोली- एक और बात सुनती जा इए आप हमारी,

पायल के कदम रुक गए। तुलसी उसके पास आकर बोली- ये बात गलती से भी अगर चारों बच्चों में से किसी को पता चली तो वो दिन, अपना इस घर में आखिरी दिन समझिएगा।

पायल बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई। उसके जाते ही किरण तुलसी से बोली- मां,आप तो पायल को सालों से जानती है। कुछ भी बोलती है वो....पर दिल की बुरी नही है। गुस्से में ये बात उसकी जुबान पर आ गई होगी।

तुलसी ने किरन की ओर देखा और बोली- किरन, आप और मैं दोनों ये बात बहुत अच्छे से जानती है कि जो उनके दिल में होता है। वही उनकी जुबां पर होता है। वो शिव को इस घर का बच्चा नहीं मानती है पर सच यही है कि शिव की रगों में भी अधिराज का ही खून बह रहा है। आपने शिव को जन्म नही दिया किरण
फिर भी आप अपने दोनो बच्चो और शिव में कोई फर्क नही करती पर पायल हमेशा से ही शिव को चारों बच्चों से अलग मानती है।

"मां, अब इस बात को यही खत्म कीजिए। शिव आता ही होगा, कही ये सारी बाते सुन ना ले।"

तुलसी ने परेशान होकर हां में अपना सिर हिला दिया तो किरण ने मुस्कुराते हुए उन्हें साइड से पकड़ लिया तभी उन्हें गाड़ी की तेज़ आवाज़ सुनाई दी।

"लगता है शिव आ गए। आप पूजा की थाली लेकर जल्दी आ जाइए।"- तुलसी किरण के गाल को छूकर बोली और तेज़ी से दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी। उनके जाते ही किरण ने अपनी आँखें बंद कर ली और मन ही मन बोली- आज पूरे पांच साल बाद में अपने जिगर के टुकड़े को देखूंगी। पता नही शिव को देखकर मैं खुद को कैसे संभालूंगी।

इतना कहकर उन्होंने अपनी आँखें खोली तो उनकी आंखो से खुशी के आंसू बहने लगे। उन्होनें पूजा की थाली उठाई और आहिस्ता-आहिस्ता दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी। गाड़ी जैसे ही घर के दरवाज़े पर आई तो उसके रुकते ही अधिराज गाड़ी से बाहर आए। तुलसी बड़ी बेकरारी से शिव के गाड़ी से बाहर आने का इंतज़ार करने लगी। तभी अधिराज बोले- मां आप जिसके आने का इंतज़ार कर रही है। उसकी ट्रेन मिस हो गई है इसलिए वो नही आया।

अधिराज के इतना कहते ही तुलसी की खुशी उदासी में बदल गई पर किरण की नज़रे बंगले के मेन गेट पर थी।

"अगर शिव की ट्रेन मिस हो गई है तो मुझे ऐसा क्यों लग रहा है? जैसे वो यही है मेरे पास.... क्यों उसके पास होने का एहसास हो रहा है मुझे?"

किरण मन ही मन बोली। तुलसी उदास होकर फिर से घर में आने के लिए पलटी पर तभी उन्हें मोटर सायकिल की आवाज सुनाई दी और उनके कदम रुक गए। किरण ने नज़रे उठाकर देखा तो शिव एक चमचमाती हुई मोटर सायकिल पर चला आ रहा था।

उसे देखते ही उनकी आंखो में आंसू और चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। तुलसी भी मुस्कुरा दी। शिव ने अपनी मोटर सायकिल रोकी और मोटर सायकिल से उतरकर अपनी दादी के पास आया। उसने तुलसी के पैर छुए और पूछा- मुझे पता है कि आप बड़ी बेकरारी से मेरे आने का इंतज़ार कर रही थी पर पापा ने रेलवे स्टेशन से बाहर आते ही मुझे इतना खुबसूरत तोहफा दिया कि मुझसे उसकी सवारी किए बिना रहा नही गया और फिर मैने सोचा कि क्यों ना आज आपको सरप्राइज दिया जाए।

तुलसी मुस्कुरा दी। उसने शिव को अपने गले से लगा लिया और बोली- बेटा आपको देखने के लिऐ पांच साल इंतज़ार किया है हमने...... पर हम नही जानते थे कि हमारा ये इंतज़ार जब खत्म होगा। तो हमारी आंखो के सामने इतना खूबसूरत नज़ारा होगा। हमारे शिव तो पहले से भी ज्यादा हैंडसम हो गए है। बिलकुल किसी राजकुमार की तरह लग रहे है।

"दादी आज भी वही पुरानी लाइन दोहराई आपने। आपको नही लगता कि आपको अब कुछ नया ट्राय करना चाहिए। समथिंग न्यू"- शिव इतना कहकर उनके कंधे पर हाथ रखकर पलटा तो उसकी नज़र अपनी मां पर पड़ी।

उन्हें देखते ही शिव के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। वो तुलसी को छोड़कर अपनी मां के पास आया। किरन ने खुद को संभाला और शिव के माथे पर तिलक करने लगी। शिव ने अपना दाहिना हाथ अपने सिर पर रख लिया। तिलक करने के बाद किरन ने शिव की आरती उतारी और बहुत कोशिशों के बाद भी अपने आंसूओ को बहने से नही रोक सकी। घर के सारे नौकर भी शिव को देखकर वहां आ गए थे। सबके चेहरों पर मुस्कुराहट थी।

लेखिका
कविता वर्मा