Mere Humdum Mere Dost - 5 - Last part in Hindi Love Stories by Kripa Dhaani books and stories PDF | मेरे हमदम मेरे दोस्त - भाग 5 (अंतिम भाग)

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मेरे हमदम मेरे दोस्त - भाग 5 (अंतिम भाग)

मायरा की आवाज़ नीरा को यादों के भंवर से बाहर खींच लाई, “मम्मी भूख लगी है।”

“क्या खाओगी?” पूछते हुए नीरा कुर्सी से उठी।

“मैगी” मायरा उछलते हुए बोली।

“नहीं मैगी नहीं। मैं पोहा बना रही हूँ।” कहते हुए नीरा ड्राइंग हॉल में दाखिल हुई।

“नहीं मम्मी पोहा नहीं।” भूख ने मिशा का ध्यान भी मोबाइल से हटा दिया था और वह भी अपनी डिमांड रख रही थी, “मम्मी सैंडविच बना दो ना प्लीज!”

मिशा के हाथ से मोबाइल छीनकर नीरा अपने कमरे में गई और विवान की फ़ोटो ड्रेसिंग टेबल पर रखकर बाहर आ गई।

“मैं पोहा बना रही हूँ।” उसने मिशा और मायरा से कहा और रसोई का रूख कर लिया।

“नहीं मम्मी...नहीं मम्मी!” चिल्लाते हुए मिशा और मायरा दोनों रसोई की ओर दौड़ी।

“मम्मी ना मेरी, ना मिशा दी की और ना आपकी, ऐसा करो आप पकौड़े बना दो।” मायरा नीरा का हाथ पकड़कर आँखें मटकाकर बड़े प्यार से बोली।

“पर ये तो तेरी हो गई ना...” मिशा ने अपनी शिकायत दर्ज़ की।

“नहीं...मेरी तो मैगी थी।” मायरा समझाने लगी और दोनों में बहस शुरू हो गई।

“बस बस बस...बहुत हो गया।” नीरा ने दोनों की बहस पर विराम लगाया, “अब दोनों की फ़रमाइश पूरी कर रही हूँ। जाओ ब्रेड और मैगी का पैकेट लेकर आओ।”

“हुर्रे!” दोनों उछल पड़ीं।

कुछ देर बाद मिशा और मायरा ड्राइंगरूम में बैठी टीवी देखते हुए मैगी और सैंडविच का स्वाद ले रही थीं। तभी दरवाज़ा खुला और पतिदेव घर में दाखिल हुये।

नीरा ने रसोई से ही पतिदेव को देख लिया और सुबह के झगड़े की याद फ़िर से उसके ज़हन में ताज़ा हो गई। झगड़े वाले दिन पतिदेव के जल्दी घर आ जाने पर वह हैरान थी, क्योंकि अक्सर ऐसा नहीं होता था।

पतिदेव ने मिशा और मायरा पर निगाह डालकर एक नज़र रसोई की ओर फ़ेंकी और मिशा के सैंडविच की एक बाईट लेकर अंदर चला गया। बीस मिनट बाद जब वो लौटा, तब मिशा और मायरा अपना-अपना नाश्ता खत्म कर टीवी पर कार्टून देखने में मग्न थीं।

“होमवर्क कर लिया तुम दोनों ने?” पूछते हुए पतिदेव बच्चों बीच बैठ गया।

“कब का पापा?” दोनों एक स्वर में बोली और फ़िर से कार्टून में मग्न हो गईं।

“न्यूज़ देखने को मिलेगा?”

“बस थोड़ी देर में पापा। ये बस एंड होने वाला है।” मिशा ने कहा।

पतिदेव उठकर रसोई में गया। जानता था कि झगड़े वाले दिन हाथ में पानी नहीं मिलने वाला। वहाँ नीरा और उसकी नज़र टकराई, मगर दोनों एक-दूसरे से कुछ नहीं बोले। सुबह की कहा-सुनी अब अबोले में तब्दील हो चुकी थी।

पानी की बोतल फ्रिज़ से निकालकर वह फ़िर से बच्चों के बीच जाकर बैठ गया और बोतल से पानी पीने लगा। नीरा ने मिशा को बुलाकर उसके हाथों पतिदेव के लिए चाय भिजवा दी और ख़ुद डिनर तैयार करने में व्यस्त हो गई।

रात के लगभग नौ बजे सब डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठे डिनर कर रह थे। नीरा को महसूस हुआ कि खाते-खाते पतिदेव की नज़र बार-बार उसकी तरफ घूम रही है। नीरा समझ गई कि वो अबोला तोड़ने की फ़िराक में है। मगर उसका दूर-दूर तक ऐसा कोई इरादा नहीं था।

वह अब भी पुराने दिनों की सुनहरी यादों में खोई हुई थी और उससे बाहर निकलना नहीं चाहती थी।

कुछ देर बाद सब सोने चले गये। पिछले कुछ महिनों से मायरा मिशा के साथ उसके कमरे में सोने लगी थी। मिशा उसे तरह-तरह की स्टोरीज़ सुनाया करती, जिसमें उसे बड़ा मज़ा आता था।

नीरा बेडरूम में ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी अपने बाल सुलझा रही थी। पतिदेव बुक-सेल्फ़ में कोई किताब ढूंढ रहा था। सोने के पहले रोज़ाना वह कोई किताब पढ़ा करता था। करें भी तो क्या? उनके बीच बात करने लायक कुछ बचा भी तो नहीं था। वैसे भी बातें होंगी, तो झगड़ा होगा, ये दोनों जानते थे। इसलिए बात करने से बचते थे।

अजीब बात है, हम किताबें पढ़ना तो सीख जाते हैं, मगर अपने आस-पास के लोगों के ज़ज्बात नहीं। शायद, इसलिए कि हम कभी वो पढ़ना चाहते ही नहीं।

बुक-शेल्फ़ से किताब निकालकर बेड की तरफ़ आते हुए पतिदेव ड्रेसिंग टेबल के पास से गुज़रा और अबोला खत्म करने के मक़सद से नीरा से पूछा, “आज क्या किया दिन भर?”

“दोस्त के साथ थी।” नीरा ने बाल सुलझाते हुए ही अनमने ढंग से जवाब दिया।

“श्वेता के साथ?”

“नहीं...किसी पुराने दोस्त के साथ...अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ।” कहते हुए नीरा ने सिर उठाया, आईने में उसे पतिदेव का हैरान चेहरा दिखाई दिया।

“भई ऐसा कौन सा दोस्त है तुम्हारा, जिसे मैं नहीं जानता।”

“जानते तो हो, पर शायद भूल चुके हो।” नीरा ने कहा और वो फ़ोटो उसकी ओर बढ़ा दी।

उसने फोटो पर नज़र डाली और सालों बाद उसके चेहरे पर मुस्कान छा गई।

“दो चोटी में कितनी झल्ली लगती थी तुम। पर हाँ, तुम्हारा दोस्त पहले भी हैंडसम था और अब भी।” कहते हुए ड्रेसिंग टेबल के आईने में ख़ुद को देख वो मुस्कुराया।

आईने में दिख रहा शख्स और फोटो में दिख रहा शख्स एक ही था – विवान। नीरा का सबसे अच्छा दोस्त, उसका पहला प्यार और वो शख्स, जिससे उसने हमेशा प्यार किया।

“नहीं! अब वो पहले जैसे नहीं रहा।” नीरा उदास लहज़े में बोली।

विवान की आँखें हैरानी में फ़ैल गई।

“पहले वो मेरा दोस्त था। अब नहीं रहा।” कहते हुए नीरा की आँखों से आँसू ढुलक गये।

विवान उन आँसुओं को बहते हुए देखता रहा। पहले भी कितने झगड़े हुए उनके, पहले भी कितनी बार रोई नीरा। लेकिन विवान का दिल कभी इस तरह नहीं पिघला, जैसे उस वक़्त पिघल रहा था। शायद ये नीरा की आज सुबह कही बात का असर था। वो बात दिन भर विवान के ज़ेहन में कौंधती रही – ‘दोस्त होते, तो समझते ना...मेरी ख़ुशी में ख़ुश होते...पति हो ना, इसलिए ईगो आ जाता है तुम्हारा।’

उसने नीरा का हाथ थाम लिया, लेकिन नीरा उसे झटककर जाने लगी। उसने नीरा का हाथ जकड़ लिया और उसे खींचकर अपनी बाँहों में भर लिया। उससे लिपटकर नीरा फूट-फूटकर रो पड़ी।

वह प्यार से उसकी पीठ सहलाने लगा। नीरा की सिसकियाँ थमी, तो वह बोला, “मुझे माफ़ कर दो नीरा...मैं बहुत दूर चला गया था तुमसे। इतनी दूर, जहाँ से तुम्हारी ख़ुशी नहीं देख पाया...अब मैं फ़िर से तुम्हारे पास आना चाहता हूँ। फ़िर से तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूँ। क्या हम फिर से दोस्त नहीं बन सकते?”

नीरा ने भीगी पलकें उठाकर विवान को देखा। उसने उसके माथे को चूम लिया और कसकर अपनी बाहों में भर लिया। उनकी आँखों में उमड़ रहे बादल अब बरस रहे थे और दो दिलों में जमे बरसों के गिले-शिकवे हौले-हौले धुल रहे थे।

**समाप्त**