भाग 25
पिछले भाग में आपने पढ़ा की जय, रज्जो को आश्वस्त करने के लिए एक्स रे करवाता है। सब कुछ ठीक होने पर डॉक्टर की राय से रज्जो को अपने साथ ले कर चला जाता है। अब आगे पढ़े।
वैसे तो उस वक्त गर्भ के समय डॉक्टर को दिखाने का चलन नहीं था। पर रज्जो की बात अलग थी। इस कारण जय रज्जो को डॉक्टर को दिखाता था। जय रज्जो की पूरी देख भाल करता। घर के काम काज में भी सहयोग करता। कोई भी भारी काम उसे नही करने देता।
समय अपने रफ्तार से चल रहा था। धीरे धीरे वो समय भी आ गया जिसकी जय और रज्जो को लंबे समय से प्रतीक्षा थी। आखिर में बिना किसी परेशानी के रज्जो ने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया। रज्जो के लिए ये दिन ये घड़ी अमूल्य था। उसे पिछला कुछ भी याद नहीं रहा। ना किसी का ताना, ना ही किसी का व्यंग, ना किसी की चुभती हुई बातें। उसे याद रहा तो बस ये की अब वो एक मां है। अब वो एक संपूर्ण औरत है।
जय ने बिना देरी किए, बिना समय गंवाए, विवशनाथ जी की आज्ञा का पालन करते हुए उनके नाम तार भेज दिया।
डाकिया सांझ ढले तार ले कर विश्वनाथ जी के घर आया। उस समय तार ज्यादा तर दुख की खबर ले कर ही आते थे। तार का नाम सुनते ही जगत रानी के हाथ पांव फूल गए। आशंका से दिल घबरा उठा की ना जाने क्या हो क्या…? सब ठीक तो होंगे ना..? वो मन ही मन सब की कुशलता के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगी।
ये समय विश्वनाथ जी के ध्यान और पूजन का था। विश्वनाथ जी संध्या पूजन कर रहे थे। और वो इसे अधूरा छोड़ कर कभी नही उठते थे। चाहे कितना भी आवश्यक क्यों न हो। इस कारण जगत रानी ने विजय को आवाज लगाई।
विजय जो अभी अभी बाहर से आया था, हाथ मुंह धो रहा था। अम्मा की तेज आवाज सुन वो समझ नही पाया की आखिर आते ही अम्मा उसे क्यों पुकारने लगी..? हाथ का लोटा वही जमीन पर रख, गले में लपेटे गमछे से मुंह पोछता हुआ वो बाहर अम्मा के पास आया और पूछा, "क्या हुआ अम्मा…? ऐसे क्यों जोर जोर से पुकार रही हो..?"
अम्मा हाथ में पकड़ा कागज उसे थमाते हुए बोली,"जरा देख तो विजू…. ना जाने कहां से ये मुआ तार आया है…? मेरा तो दिल ही बैठा जा रहा है। जरा तू पढ़ के बता तो..।"
विजय भी थोड़ा चिंतित हो उठा, अम्मा का दिया कागज खोल कर पढ़ने लगा। और पढ़ते ही खुशी से चहकने लगा। सारी चिंता खुशी में बदल गई। वो हंसते हुए बोला, "अम्मा तुम एक प्यारे से बच्चे की दादी बन गई हो। रज्जो भाभी के बेटा पैदा हुआ है।"
जगत रानी को पहले तो यकीन नही हुआ। रज्जो भी कभी मां बन सकती है, इसकी उसे कोई आशा नहीं थी। फिर जब खुद को संभाला तो यकीन न करने का कोई कारण समझ नही आया। अब उसे लग रहा था की रज्जो ने कोई ढोंग नही किया था। वो सच में ही उम्मीद से थी। जगत रानी को खुद पे शर्म आने लगी की आखिर उसने ऐसा कैसे कर दिया..? गर्भवती बहू की जरा सी भी देख भाल करना तो दूर की बात, उल्टे उसे ताने और काली कटी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
उसे रज्जो के मां बनने ओर जय का वंश आने पर खुशी तो बहुत थी पर अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।
पूजा समाप्त कर विश्वनाथ जी भी बाहर आ कर बैठे। वो जगत रानी से पूछते है, "क्यो हल्ला गुल्ला मचा रक्खा है..? अब क्या हो गया..?"
जगत रानी बताती है की जय के घर बेटा पैदा हुआ है।
विश्वनाथ जी लंबी सांस ले कर इत्मीनान से कहते है, "मैं तो जानता था.. भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। तू ही बावली हुई जा रही थी। उस बेचारी गऊ समान बहू को क्या क्या नहीं कहा..?"
बीच में ही पति को रोकते हुए जगत रानी बोलती है, "अच्छा अच्छा रहने दो। मुझे बीती बातें याद मत दिलाओ। मुझे अपनी गलती सुधारनी है। जो कुछ भी मुझसे गलत हुआ उसे ठीक करना है। मेरी वजह से आज मेरा पोता परदेस में अपनी आंखे खोल रहा है। मेरे ही मोटी बुद्धि के कारण आज मेरा बेटा सब कुछ अकेले झेल रहा है। मैं बेवकूफी नही करती तो आज घर में सोहर और बधाईयां गूंज रही होती। थाली बज रही होती।" थोड़ा रुक कर अपनी गलती स्वीकार करते हुए फिर जगत रानी बोली, "अब बिना देर किए चलो और बहू और पोते को घर ले आओ।"
विश्वनाथ जी हंसते हुए बोले, "चलो देर से ही सही तुम्हें सद्बुद्धि तो आई। मैं चलने की व्यवस्था करता हूं । तुम अपनी तैयारियां करो।
आनन फानन में तैयारियां होने लगती है जाने की। गुलाबो को ये सब जरा भी नही भा रहा था। कहां तो अभी तक पूरे घर में कान्हा ही अकेला था। और अब एक और आ गया, हिस्सा और प्यार बांटने। दबे स्वर में ही सही वो अम्मा के जाने का विरोध करती है ये कह कर की, अम्मा जब दीदी ने तुम्हे कुछ नही समझा.. कुछ नही बताया तो फिर क्यों जाती हो वहां .? रहने दो उन्हे अकेले। पर जगत रानी गुलाबो को फटकार लगाती है और कहती है, मुझे ना बताई चलो ठीक है। पर तेरा तो वो बहुत ध्यान रखती थी। तुझे अपनी सगी बहन के बराबर समझती थी। तुझे तो पता होना ही चाहिए था। तू ना पूछ पाई….? वैसे तो सारा दिन तेरा रेडियो चालू रहता है। काम के बात में दही जम जाता है तेरे मुंह में। जा… तू…! अपना काम कर मुझे ना सिखा…., क्या करना है ..? और क्या नहीं…?"
गुलाबो सास की फटकार से चुप तो ना हुई, अलबत्ता अपनी आवाज धीमी कर भुनभुनाने लगी। अब वो ना तो पहले की तरह जगत रानी से डरती थी, ना ही उनकी डांट बर्दाश्त करती थी। जगत रानी ये सोच कर ज्यादा कुछ नहीं बोलती की गुलाबो की जुबान खुलते खुलते कही इतनी ना खुल जाए की अड़ोसी पड़ोसी सास बहू की बहस का मजा लें।
जच्चगी में काम आने वाले सामान को इक्कठा कर जगत रानी ने बांध लिया और पति के साथ रज्जो और बच्चे को देखने चल पड़ी।
क्या हुआ इस तरह अचानक जगत रानी और विश्वनाथ जी जय और रज्जो के पास पहुंचने पर..? क्या जय ने रज्जो और बच्चे को अम्मा के साथ घर आने दिया…? क्या रज्जो सास द्वारा किए अपने तिरस्कार को भूल पाई…..? ये सब कुछ जानने के लिए पढ़े गुलाबो … तू ऐसी तो ना थी..? का अगला भाग।