चाहत के...
ये जरा...
कुछ सपने...
खड़ताल...
5.
बिछड़ना तो कोई भी नही चाहता,
लेकिन जब बिन मौसम पतझर का आता है
हरेभरे वृक्ष पर भी सन्नाटा छा जाता है।
खो देने के बाद ही अहसास होता है,
जब हर मौसम उदासियों का मौसम नज़र आता है।
अब हर तरफ ख़ामोशी का सन्नाटा है
खुशियां खामोशियों में गुम होकर
अपने आज को ही अब भुला बैठा है।
6.
इक सपना कभी
संजोया,
जो सांसों...
को सौरभ देता है!
हौले से नाम लिया
तुमने,
बस वही...
संबोधन सुख सच्चा है!
इस धरती से उस
अम्बर मे,
हर तरफ
प्रिये तुम ही तुम हो!
विश्वास तुम्हारा
साथ रहे,
सदा, बस...
इतनी "लक्ष्य" की इच्छा है!
7.
जब सूखे ठूंठ की तरह
सजीवता खो रहा हो मेरा जीवन,
और उदासियों की दीमक
जर्जर कर रहीं हो मेरी आत्मा!
तब,
तुम उगना
रंग बिरंगी फूलों की बेल बन,
और लिपट कर मुझसे
ढक देना मेरा सूनापन!
जैसे भूल कर अपना आस्तित्व
लिपट जाती है,
किसी ठूंठ से कोई बेल पूरी तरह!
8.
कुछ गहरा सा लिखना था
इश्क से ज्यादा क्या लिखूँ?
कुछ सदियों सा लिखना था
तुम्हारी यादों से ज्यादा क्या लिखूँ?
कुछ अपना सा लिखना था
तेरे सपनों से ज्यादा क्या लिखूँ?
कुछ अहसास सा लिखना था
तेरी मुस्कान से ज्यादा क्या लिखूँ?
सुनो
अब जिन्दगी लिखनी है
तुमसे ज्यादा क्या लिखू?
9.
एक और दर्द सिने,
में छूपाये बैठा हूं,
ए मेरे मोहब्बत तुझे पाने,
की ज़िद कीए बैठा हूं,
ये कच्चा धागा,
नहीं है प्रेम का,
ये सांसों से दिल,
का रिश्ता है,
आकर सिमट जाओ तुम,
दिलों दिमाग में इस तरह,
हा तुझे पाने की ज़िद
कीये बैठा हूं।
10.
जिसे मैं चाहूं उसे
मेरा होना ही होगा ...!
मैं नही कभी
प्यार मांगूंगा ...
उसे मुझे प्यार
करना ही होगा ...!
इतनी शिद्दत से
मैं उसे चाहूंगा ...
की मेरे बाद भी
उसकी नजर बस
मुझे ढूंढेगी ...
पर मैं इस जहां
में नही होऊंगा ...!
11.
हँसते चेहरे के पीछे दर्द गहरे लिए
जी रहा हूँ खुद को सबसे छुपाए बताऊँ कैसे,
इस दर्द का मर्म न कोई जान सका
ना पूछा कभी किसी ने ना कोई समझ सका,
आदत बन गयी मुखौटे लगा हरदम मुस्कुराने की
बढ़ते - बढ़ते हँसती आँखों का घाव गहराता गया !!