वह बारिश से भीगा दिन था। सोलह बरस का विवान स्कूल छूटने के बाद साइकिल चलाता हुआ गिटार क्लास जा रहा था। रास्ते में उसकी नज़र भुट्टे के ठेले के पास खड़ी एक चौदह बरस की अल्हड़ सी लड़की पर पड़ी। वह कोई और नहीं नीरा थी। उसके साथ एक लड़का खड़ा था, जो उसे वहाँ भुट्टा खिलाने लाया था।
विवान को जाने क्या हुआ कि उसने फ़ौरन साइकिल रोकी और नीरा के पास जाकर उसके हाथ से भुट्टा छीनकर फेंक दिया और उसे खींचता हुआ अपने साथ ले गया। अब दोनों सड़क किनारे खड़े झगड़ रहे थे।
“ये क्या किया विवान?” नीरा का गुस्सा उसकी तीखी आवाज़ में झलक रहा था।
“सीधे घर नहीं जा सकती।” विवान बिफरते हुए बोला। उसकी आँखों में शोले दहक रहे थे।
“मैं घर जाऊं या कहीं भी जाऊं, तुझे क्या?” नीरा चीखी।
“मुझे क्या?” विवान का चेहरे गुस्से से तमतमा उठा, “मुझे क्या पूछती है? दो थप्पड़ लगाऊंगा, सब समझ में आ जायेगा।”
“पर मैंने किया क्या है?” विवान का बढ़ता गुस्सा देखकर नीरा ठंडी पड़ गई। वह समझ गई कि आग को हवा देने का कोई फ़ायदा नहीं।
“ये तू जान!” कहकर विवान इधर-उधर देखने लगा। उसका गुस्सा भी ठंडा होने लगा था। वह ख़ुद समझ नहीं पा रहा था कि उसे इतना गुस्सा आया क्यों? वह नीरा से नज़रें भी नहीं मिला पा रहा था।
“बोल, चुप क्यों है?” नीरा को अब भी विवान के गुस्से की वजह जाननी थी।
“भुट्टा मत खाया कर।” नीरा से बिना नज़रें मिलाये विवान ने कहा और अपनी साइकिल का स्टैंड हटा लिया। कुछ ही पलों में वह साइकिल चलाता दूर निकल गया। नीरा उसे अचरज भरी निगाहों से देखती रह गई।
घर आकर भी नीरा को चैन नहीं पड़ा। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसके भुट्टा खाने से विवान को क्या परेशानी है। उसका किसी चीज़ में दिल नहीं लग रहा था। न पढ़ाई में, न टीवी में, न गानों में, कहीं भी नहीं। खाना भी उसने बेमन से खाया। रात में उसे ढंग से नींद भी नहीं आई। विवान से झगड़ा होने पर अक्सर उसकी यही हालत हो जाती थी।
अगले दिन स्कूल में भी वह गुमसुम सी थी। उसकी सहेली श्वेता उसका ये हाल देखकर हैरान भी थी और परेशान भी। मगर क्लास के बीच वह उससे कुछ पूछ नहीं पा रही थी। जब टिफ़िन ब्रेक हुआ, तब साथ में टिफ़िन खाते हुए उसने पूछा, “क्या हाल बना रखा है?”
“कुछ नहीं यार! वो विवान है ना....” नीरा ने बोलना शुरू ही किया कि श्वेता ने उसकी बात काट दी -
"क्या हो गया उसे?”
“पागल हो गया है और क्या?” सिर झटकते हुए नीरा ने कहा।
उसकी ये गोल-मोल बात श्वेता के पल्ले नहीं पड़ी, “साफ़-साफ़ बोल...पहेलियाँ मत बुझा।”
“क्या बताऊं? कल झगड़ा हो गया हमारा। झगड़ा क्या...वही गुस्सा हो गया मुझसे।”
“क्यों?”
“पता नहीं!” कंधे उचकाते हुए नीरा बोली, “कहता है भुट्टा मत खाया कर।”
“भुट्टा मत खाया कर!!!”
“हाँ! कल शाम मैं ठेले पर भुट्टा खा रही थी कि वो आया, मेरे हाथ से भुट्टा छीनकर फ़ेंक दिया और लगा चिल्लाने।"
“भुट्टे की वजह से...पागल है क्या?”
“वही तो...पागल है...मैं भुट्टा खाऊं या ना खाऊं, इससे उसे क्या? एक तो ख़ुद कभी कुछ खिलाता नहीं है। कल जब गौरव भुट्टा खिला रहा था, तो वो भी फेंक दिया। सडू कहीं का.....”
नीरा अपने दिल की भड़ास निकाले जा रही थी और श्वेता मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
“अब तुझे बड़ा मज़ा आ रहा है। एक वो पागल है और दूसरी तू...हे भगवान कैसे पागलों से पाला पड़ा है मेरा?” नीरा आसमान की तरफ नज़र उठाकर बोली।
“हम लोग जो भी हैं, पर तू बहुत बड़ी बुद्धू है...समझी!”
कहकर श्वेता ने अपना टिफ़िन बंद किया और उठकर पानी पीने के लिए वाटर कूलर की तरफ जाने लगी। नीरा भी अपना टिफ़िन बंदकर उसके पीछे हो ली।
“मैं कैसे बुद्धू हुई? बता ना श्वेता!” वह श्वेता ने पीछे-पीछे चलते हुए पूछने लगी।
“तू बुद्धू इसलिए है, क्योंकि तू भुट्टा खाती है। भुट्टा मत खाया कर।” श्वेता खिलखिलाते हुए बोली।
नीरा मुँह बनाकर रह गई। एक तो विवान का गुस्सा उसे पहले ही पागल बना रहा था और अब श्वेता ने उसे बुद्धू कह दिया था। पूरे दिन किसी क्लास में उसका मन नहीं लगा। क्लास के बीच कई बार उसने श्वेता से फुसफुसाकर पूछा भी, ”बता ना श्वेता, मैं बुद्धू कैसे हुई?”
श्वेता बस हौले-हौले मुस्कुराती रही।
स्कूल ख़त्म होने के बाद जब दोनों अपनी-अपनी साइकिल लिए स्कूल गेट से बाहर निकलीं, तो वहाँ विवान को खड़ा पाया।
“तुझसे बात करनी है?” विवान नीरा से बोला।
नीरा ने श्वेता की ओर देखा, तो वो “जाती हूँ...बाय...” कहकर चली गई।
नीरा ने साइकिल एक किनारे लगाईं और विवान से बोली, “बता, क्या बात करनी है?”
“घर चलते-चलते बात करते हैं।” विवान ने कहा।
दोनों साइकिल चलाते हुए घर की ओर जाने लगे। नीरा इंतज़ार में थी कि विवान कुछ बोले। मगर उसके मुँह पर मानो ताला लगा हुआ था।
अचानक बूंदा-बांदी शुरू हो गई। दोनों ने साइकिल एक किनारे लगाई और रेन-कोट पहनने लगे। रेट-कोट पहनने के बाद नीरा की नज़र पास ही लगे भुट्टे के ठेले पर पड़ी और उसे एक दिन पहले की बात याद आ गई। विवान की नज़र भी भुट्टे के ठेले पर थी।
“चल!” कहकर वह नीरा को भुट्टे के ठेले पर ले गया।
“भैया दो भुट्टे सेंकना।” उसने भुट्टे वाले से कहा और वहीं किनारे चुपचाप खड़ा हो गया। नीरा हैरत भरी निगाहों से उसे देखने लगी। जिस लड़के ने एक दिन पहले उससे कहा था कि भुट्टा मत खाया कर, वह आज ख़ुद उसे भुट्टा खिलाने लाया है, ये बात उसके पल्ले नहीं पड़ रही थी।
जब नीरा के हाथ में विवान ने भुट्टा दिया, तो वह तुनककर बोली, “कल तूने कहा था कि भुट्टा मत खाया कर, फिर आज क्यों खिला रहा है?”
“चुपचाप भुट्टा खा।” विवान ने भी तुनककर जवाब दिया।
‘हर चीज़ तेरे हिसाब से करूं क्या? जा नहीं खाती?’ नीरा का मन हुआ ये कह दे। लेकिन भुट्टे के मोह ने उसे ऐसा कहने से रोक लिया। बारिश से भीगे मौसम में भुट्टे का मज़ा ही कुछ और होता है। वह कैसे इंकार करती? इसलिए चुपचाप भुट्टा खाने लगी।
भुट्टा ख़त्म करने के बाद पैसे देकर जब विवान साइकिल की ओर बढ़ा, तो नीरा ने उसका हाथ पकड़ लिया, “रुक...अब बता भी...क्या बात करनी है?”
“कुछ नहीं!” विवान सिर झटकते हुए बोला।
“ऐसे कैसे कुछ नहीं? कभी कुछ कहता है, कभी कुछ। थोड़ी देर पहले कह रहा था कि बात करनी हैं, अब कहता है कि कुछ नहीं कहना। कल कह रहा था कि भुट्टा मत खाया कर और आज ख़ुद ही मुझे भुट्टा खिलाने ले आया। ये सब क्या है? एक बात पर तो टिका रहा कर। बता, क्या तुझे मेरा भुट्टा खाना पसंद नहीं?”
विवान उसका हाथ छुड़ाकर साइकिल की ओर बढ़ गया। नीरा उसके पीछे आई और उसकी साइकिल का हैंडल पकड़कर खड़ी हो गई, “बता ना...क्या तुझे मेरा भुट्टा खाना पसंद नहीं?”
विवान ने उसकी आँखों में देखा और बोला, “नहीं पसंद है, अगर तू किसी और के साथ खाये।” और वह उसका हाथ झटककर साइकिल लेकर कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया।
नीरा हक्की-बक्की सी उसे देखती रह गई। अब वह बुद्धू नहीं थी। वह समझ रही थी कि विवान ऐसा बर्ताव क्यों कर रहा है? पर ये समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे और क्या ना कहे?
तभी विवान पलटा और तेज़ आवाज़ में बोला, “चल जल्दी कर...घर नहीं चलना है क्या? अब से स्कूल छूटने के बाद मैं रोज़ तुझे लेने आऊंगा....”
“...ताकि मैं किसी के साथ भुट्टा ना खा सकूं...” मुस्कुराते हुए नीरा बोली और विवान शरमाकर हँस दिया। नीरा भी खिलखिला उठी।
दोनों के दिलों में एक अलहदा सा अहसास सुगबुगाने लगा था। पर दोनों उलझन में थे कि इस अहसास को क्या नाम दें? विवान इसे अपनी जलन समझ रहा था और नीरा...!
नीरा समझने लगी थी, पर ख़ामोश थी। वह नहीं जानती थी कि इस नये अहसास को कैसे संभाले? ख़ामोश रहना ही उसे बेहतर लगा। ख़ामोशी से ही ये नया अहसास दोनों के दिलों में पनपने लगा।
क्रमश:
क्या नीरा और विवान का खामोश अहसास उनकी जुबां पर आएगा? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।