*मुर्दाखोर*
चित्रगुप्तः महाराज दुनिया से गिद्धों की जाति ही लुप्त होने को है और नरक गिद्धों की आत्माओ से भरता जा रहा है जो हमारे लिए एक चिन्ता का विषय बनता जा रहा है।
यमः परन्तु चित्रगुप्त ये गिद्ध आत्महत्या जैसा घृणित पाप कर क्यो रहे हैं?
चित्रगुप्तः हे! धर्मराज चलिए इस प्रश्न का उत्तर उनसे ही मांगते हैं।
यमः हे! महान जटायु के वंशजो हमें तुम से कायरता की उम्मीद नही थी। छीः छीः आत्महत्या.......
गिद्ध: तो महाराज आपको भी यह भ्रम है! कि हमने आत्मदाह किया है! नही महाराज यह असत्य है। चाहे आप इन यातनाओ को बढाकर हजार गुना कर दें, पर हमपर यह कलंक न लगाइए, हम यह यतनाए तो सह सकते है किन्तु कायरता का कलंक नही। इतिहास गवाह है कि जब त्रैलोक्य मे किसी योद्धा किसी त्रिकालज्ञ को एक असहाय अबला की करूण पुकार सुनाई नही पडी थी तब हमने न केवल अन्याय के खिलाफ अवाज उठाया वरन अपने प्राण गवांकर भी न्याय की रक्षा करने की कोशिश की थी।
यमः तो अब तुम लोगों को क्या हो गया है?
गिद्ध: आक्रोश से भरकर एक स्वर मे बोले ’’जानना चाहते हैं तो जरा झांकिए मृत्युलोक में। सब नीचे देखने लगते हैं। तब फिर गिद्ध ने बोलना शुरू किया ’’ये पेड़ों से लटकती किसानो की लाशें, बलात्कार हत्या के बाद सड़कों पर फेंकी युवतियों की लाशें,दहेज के लिए जलाई गई बहू-बेटियों की लाशें, बेरोजगारी और नशें के शिकार युवकों की लाशें, नोचने की सोचते ही हम कांप जाते हैं।
यमः अरे! इसके अतिरिक्त भी तो लाशें हैं?
गिद्ध: अवश्य, महाराज उन्हे ही खाकर तो हमारी मृत्यु हुई हैं।
यमः वह कैसे?
गिद्ध: हे महाराज दरअसल दुनियाँ मे हमारी ही तरह के तीन और शिकारी पंक्षी आ गये हैं। वे गिद्ध से नही वरन बिलकुल इन्सानों से दिखते हैं और उन्हे उनके पंखो नहीं उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है। एक सदा गहरा काला, दूसरा खादी और तीसरा खाकी पहनता है। हम मुर्दाखोर हैं और वे जिन्दाखोर। उनके शिकार हुए दोपायों और चौपायों की लाशों में हमारे लिए कुछ बचता ही नही फिर भी पेट की आग जो पाप करावे सो कम, महाराज हमने उनको ही खाना शुरू किया और हम नर्क सिधारने लगें।
यमः ऐसा कैसे विस्तार से कहो?
गिद्ध: हे! धर्मराज गरीबी, अपमान, अन्याय, शोषण के शिकार उन जीवों के दिल मे एक बडी नफरत पल रही होती है। जो उनकी मृत्यु के पश्चात एक भयानक जहर के रूप मे उनके शरीर मे घुल जाती है। उसे खाकर हम मारे जा रहे हैं । हे देव! हमने आत्महत्या नही की, हम बुझदिल नही हैं। हे देव हमारी वीरता इतिहास गा रहा है त्रेता में सीता जी के अपहरण के दौरान इस त्रैलोक्य में हमारे अतिरिक्त किसी अन्य जीव ने आवाज नही उठाई थी। हमे कर कहना उचित नहीं देव ! हमें जहर देकर मारा गया है। उन गिद्ध आत्माओं की हाहाकार से यम अपना हृदय थाम कर वही नर्क की चौखट पर गिर पडें और चित्रगुप्त सहित सारे यमदूत अवाक खडे रहे। तब फिर गिद्ध ने कहा ’’ जो हो चुका उसका गम नही महाराज किन्तु हमारी बची-खुची नस्ले कैसे जिएंगी इस रौरवा की अग्नि से कहीं अधिक हमें यह चिन्ता सता रही है।
गोपेश शुक्ल-प्रयागराज✍️©️