The role of media in global change in Hindi Anything by Sudhir Srivastava books and stories PDF | वैश्विक परिवर्तन में मीडिया की भूमिका

Featured Books
Categories
Share

वैश्विक परिवर्तन में मीडिया की भूमिका

लोकतंत्र के चौथे किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ मीडिया की हर स्तर पर, हर क्षेत्र में उपस्थित लगभग अनिवार्य सी हो गई है, जिसका सकारात्मक प्रभाव भी दिखता है,तो कहीं कहीं नकारात्मक प्रभाव भी दिख ही जाता है। इस बात से शायद ही कोई इंकार कर रहा होगा। ऐसे में जब अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार, अपराध, नैतिक अनैतिक कृत्य/कदम विकास, नई खोज, उपलब्धि के साथ वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में तेजी से बदलाव हो रहा है , चाहे वो द्विपक्षीय/बहुपक्षीय संबंध हो, पारस्परिक, सामरिक, आयात निर्यात, साहित्य कला, सांस्कृतिक , पर्यावरण, जलवायु, अंतरिक्ष आदि के क्षेत्र हों अथवा युद्ध की स्थितियां, परमाणु युद्ध अथवा तीसरे विश्व युद्ध की उत्पन्न होती आहटें। जिसमें मीडिया चाहे वो प्रिंट मीडिया हो, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अथवा सोशल मीडिया की प्रभावी भूमिका के बिना अधिसंख्य सूचनाएं, जानकारी का अधिकतम लोगों तक कम से कम समय में पहुंचना संभव नहीं है। यूं तो मीडिया की ईमानदार भूमिका की अपेक्षा की जाती है। लेकिन बहुत बार मीडिया की भूमिका दुराग्रह/ पक्षपातपूर्ण और एक पक्षीय भी होती है, एक पक्षीय या गुमराह करने वाली और सच पर लीपापोती कर छिपाने की कोशिश घातक होने के साथ नई समस्या,नये विवाद का कारण भी बन जाती है। जो कि अनुचित ही कहा जायेगा। ऐसा घरेलू/ वैश्विक स्तर पर होता है।
यही नहीं अनेक घटनाओं दुर्घटनाओं की स्थिति में प्रशासनिक सूचनाओं पर निर्भर होना पड़ता है, फिर भी मीडिया अपने स्रोतों से प्राप्त सूचना, जानकारी, मृतकों, हताहतों की संख्या, कारण, की जानकारी,तात्कालिक कार्यवाही, सहायता आदि पहुंचाने का प्रयास करता है, अलग अलग मीडिया रिपोर्टों में संभवतः इसीलिए विषमताओं का प्रादुर्भाव देखने को मिलता है। बहुत सी घटनाओं, दुर्घटनाओं, अपराध आदि प्राथमिकी दर्ज होने पर ही प्रकाश में लाना विवशता भी होती है, क्योंकि इसके तमाम कानूनी दांव पेंच भी होते हैं। ऐसे में अपुष्ट, अफवाहों और प्रत्यक्षदर्शियों जैसे शब्दों का सहारा लेना पड़ता है। बहुत सी खबरों को मीडिया से छुपाया भी जाता है,जिसके तहत तक पहुंचने के लिए मीडिया कर्मियों को बहुत जोखिम भी उठाना पड़ता है तो कई बार किसी एक पक्ष, दबंगों, माफियाओं, अपराधियों द्वारा उनकी हत्या कर मुंह बंद करने की भी कोशिशें आते दिन सुर्खियां बनती हैं।
यूं तो मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभाने की लगातार कोशिशें करता रहता है, अपनी जान जोखिम डालकर भी सच और तथ्यों को दुनिया के सामने लाता है। फिर भी हर क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में भी कुछ गद्दार, लालची और लोभी हैं जो अपने पेशे को शर्मशार करते हैं तो कई बार उन्हें विभिन्न स्तरों, माध्यमों से उन्हें ईमानदारी से अपने कदम पीछे खींचने के लिए विवश कर दिया जाता है।
मीडिया को चाहिए कि वह अपनी भूमिका, जिम्मेदारी को समझें और लक्ष्मण रेखा पार कर मीडिया ट्रायल की आड़ में अपनी गरिमा पर खुद ही प्रहार न करे और खुद न्यायाधीश और वकील बनकर न्याय व्यवस्था में गतिरोधक न बने। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया को भी एक स्तंभ माना गया है। ऐसे में उसे अपने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करने का दुस्साहस भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि आज मीडिया की जरूरत जितनी ज्यादा है, उससे कहीं अधिक उसकी अहमियत को महसूस भी किया जाता है, चाहे आम जन हो, समाज हो या शासन प्रशासन। उसका स्तर, स्वरूप चाहे गांव गरीब के स्तर का हो या विभिन्न स्तरों पर वैश्विक। मीडिया को निष्पक्ष, सच और ईमानदार रहकर यथार्थ को रेखांकित करते हुए जनता सरकार,राष्टृ के साथ अपने आपके साथ भी ईमानदार होना चाहिए। क्योंकि मीडिया की भूमिका प्राचीन काल से रही है और अनंत काल तक रहेगी, क्योंकि मीडिया की भूमिका के बिना लोकतांत्रिक, प्रशासनिक ही नहीं सामाजिक और व्यावहारिक ढांचा भी मजबूत नहीं रह सकेगा।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश