बिंदास जीने के मायने
उमरा का व्हाट्सउप मेसेज खोला। गुड मोर्निंग मैसेज के साथ अपना फुल साइज़ फोटो।
‘वाऊ सो ब्यूटीफुल!’
‘थैंक्स, बट वोंट यू से गुड मोर्निंग’
‘हमारा तो मोर्निंग क्या फुल डे गुड हो गया। ऐसे ही रोज एक सुन्दर सा फोटो भेज दिया करो।’
नो रिप्लाई यानी आउट हो गई।
फिर रात के दस बजे मैंने पूछा, ‘बताओ क्या चल रहा है?’
‘तुम्हारे पास कोई काम नहीं है जो चैट करने बैठ गए।’
‘काम तो दिन में होता है रात तो अपनी है।’
‘क्यों तेरी बीबी कहाँ गई?’
‘अरे तुमसे किसने कहा कि मैं शादीशुदा हूँ।’
‘तेरे फेसबुक पेज ने बताया, ‘गौट मैरिड’।’
‘मेरे नाम के किसी और बन्दे का पेज देख लिया होगा।’
‘हो सकता है, फिर सर्च करुँगी।’
‘तुम कब शादी करने जा रही हो?’
‘हो चुकी और तलाक भी हो गया।’
‘वेरी सॉरी, बड़े दुःख की बात है।’ उसने सहानुभूति जताई।
‘तलाक लेना दुःख की बात कैसे है? बल्कि मुझे तो दुःख से छुटकारा मिला।’
‘फिर भी एक रिलेशनशिप टूटने का गम तो रहता है।’
‘बन्दा शादी के पहले खूब आगे-पीछे घूमता था, रात-दिन प्रेम जताता और जैसे ही शादी हुई बन्दे ने अधिकार जमाना शुरू कर दिया जैसे मैं कोई उसकी बांदी हूँ। मुझे लगा यह शादी नहीं जेल है और पति और उसके परिवार वाले सब जेलर।’
‘तुमने रिलेशनशिप बचाने की कोई कोशिश नहीं की?’
‘नहीं, बल्कि मैं आक्रामक हो गई क्योंकि मैं उसकी असलियत जान गई थी और रिलेशनशिप तोडना चाहती थी।’
‘बड़ी साहसी हो। उसके और तुम्हारे माता-पिता ने कोई बीच बचाव नहीं किया?’
‘किया था, पर उससे क्या होता है! जब तक बंदे को अपनी गलती का एहसास ही न हो बीच-बचाव क्या कर लेगा!’
‘आखिर उसकी गलती क्या थी?’
‘उसका बिहेवियर मेरे प्रति सम्मानजनक नहीं था बल्कि कहूँ तो क्रूर था। थोड़ा मुलायम तो तब होता जब उसे सेक्स चाहिए होता था।’
‘अब कैसा महसूस कर रही हो?’
‘आकाश में उड़ते परिंदे के माफिक!’
‘मायके में रह रही हो?’
‘नहीं, ससुराल के शहर में ही किराये के मकान में। रेडिओ जॉकी का काम कर रही हूँ। बिल्कुल इंडेपेन्डेन्ट, न मायका न ससुराल। किसे से कोई नाता नहीं।‘
‘ऐसे तो तुम अकेली हो जाओगी। अकेलापन काट डालेगा।‘
‘क्यूँ तुम्हारे जैसे दोस्त है फिर मेरे हजारों फेंस है। तुम भी रेडिओ टॉकी सुनो। पसंद आए तो फैंस बन जाओ, मैं मेरे फैंस के हर प्रश्न का उत्तर देती हूँ।’
‘वाह, क्या बात है!’
‘थैंक्स, तुम्हें अच्छा लगा, जानकर ख़ुशी हुई।’
उसने रेडिओ टॉकी सुना। उसी समय कमेन्ट किया ‘आपका स्टाइल केप्टिवेटिंग है।’ उसने वहीँ रिप्लाई दिया ‘थैंक्स समीर आई लाइक योर कमेन्ट।’ और फ्लाइंग किस मेरी और उछाल दिया। फख्र हुआ खुद पर कि बंदी अपनी फ्रेंड है और भाव देती है। उसने अपनी मैरिड लाइफ के बारे में यही बताया कि पति और उसके घरवालों का व्यवहार उसे बंदिशों में जकड़ने और अपमानित करने वाला था। उसने बस इतना कहा कि ‘अरे भाई साथ रहना हो तो साथी की तरह रहो, नहीं तो मैं अपने रास्ते जाऊंगी।’
बंदी का आत्मविश्वास तगड़ा है इसलिए इंडिपेंडेंट भी है अपने निर्णय खुद लेती है क्योंकि वह जानती है कि उसकी ख़ुशी किसमें है।
उमरा की आप प्रशंसा कर सकते हैं उसे अपना दोस्त बनाए रख सकते हैं लेकिन उसे अपनाकर जीवन साथी बनाना संभव नहीं है। इतने आजाद ख्यालों की लड़की भारतीय परिवार में कैसे खपेगी? पति भी तो पुरुषवादी संस्कारों से ग्रसित है भले ही वह कितना भी जेंडर इक्वलिटी की बात करे। परिवार में जो कार्य स्त्री द्वारा किये जाते हैं उन्हें तो उसे करना ही होगा। इसलिए बेहतर है उसके साथ दोस्ती से आगे नहीं बढ़ा जाय। फिर मेरी तरह उसके तो कई दीवाने होंगे।
आज उसका फोन आया।
‘आज सेन्ट्रल पार्क में मिलेंगे; घूमेंगे, फिरेंगे और चाट-पकौड़ी उड़ायेंगे, आओगे न।’ मुंह से ना तो निकला ही नहीं,
‘अवश्य कितने बजे?’
‘यही शाम पांच बजे, पक्का ?’
‘हाँ पक्का।’ अब क्या करें जाना तो पड़ेगा उसका साथ किसे बुरा लगेगा?
सो हम भी पहुँच गए। ऐसे में वही सब हुआ जो फिल्म में हीरो हिरोइन चौपाटी में घूमते हुए करते हैं। सारे सीन याद आ गए। एक सीन तो जैसे फ्रिज हो गया। गले से लिपट गई बल्कि लटक गई। दिल हमारा बाग़-बाग़ हो गया। सावधान रहने की तमाम कोशिशों के बाद लगता है सावधानी हटने वाली है और दुर्घटना घटनेवाली है। ऐसे में बुद्धि काम नहीं आती दिल उछलकर आगे आ जाता है आप परवश हो जाते हैं। हमारे वश में कुछ नहीं था। हम खुद परवश हो गए। पता नहीं उमरा मुझे इतना क्यों चाहती है? मुझ में ऐसी कोई खास बात तो है नहीं। मेरा अचेतन मन बार-बार उसकी तरफ जाता है लेकिन चेतन मन बराबर सावधान किए जाता है। बच्चू चक्रव्यूह में फँसे तो बाहर नहीं निकल पाओगे। लेकिन प्रेम से बाहर कौन निकलना चाहेगा ! मैं भी नहीं। संकट केवल शादी का है, क्योंकि उमरा शादी का मटेरियल नहीं है।
मन में उमरा को लेकर लगातार कोंफ्लिक्ट चलता रहता है। मन की सुने कि बुद्धि की। व्यवहारिकता कहती है नहीं चलेगा यह सम्बन्ध। लेकिन मन कहता है प्रेम हो तो सब एडजस्टमेंट हो सकता है। उससे साफ-साफ बात करना ठीक रहेगा। लेकिन वो स्थिति आए तो, हो सकता है वह उसे दोस्त से ज्यादा कुछ समझ ही नहीं रही हो। तो फिर इस बात का क्या मतलब! समय आने दो जो होगा अच्छा होगा ये ख्याल आने के बाद मन कुछ शांत हो गया। वक्त पर छोड़ देना भी एक अच्छा विकल्प है।
एक बार शादी हो चुकी फिर तलाक भी हो गया। ऐसी लड़की से कुंआरे लड़के की शादी लगभग असंभव है। परिवार कभी सहमत नहीं हो सकता, समाज में हंसी उड़ेगी अलग से। अरे यार! तुम फिर उससे शादी के बारे में सोचने लगे। यूँ ही ख्वाब देखे जा रहे हो।
आज उसका ईद मुबारक का मैसेज आया मैंने भी मुबारक का मैसेज वापस भेज दिया। मुझे लगा उमरा मुसलमान है तब तो लव जिहाद का मामला हो जायगा और जान के लाले पड़ जायेंगे। भैया दूर ही रहो इस विष कन्या से। अब उसके बारे में सोचने को कुछ नहीं रह गया था।
एक दिन अचानक ही मॉल में मिल गई। ख़ुशी से गले मिली। ‘कैसे हो?’ उसने पूछा, ‘बहुत दिनों से तुम्हारा न कोई फोन न मैसेज, सब ठीक-ठाक तो है।’
‘ठीक ही हूँ।’
‘तो फिर बुझे-बुझे क्यों दिख रहे हो?’
‘आओ फ़ूड कोर्नर की तरफ चलें, वहां चलकर बात करेंगे।’ फ़ूड कोर्नर की एक मेज के आमने सामने बैठ गए। दो कप कॉफ़ी आ गई।
‘अब साफ-साफ बताओ, दोस्तों से शेयर करने पर मामला हल्का हो जाता है।’
‘कैसे बताऊँ? बड़ी कशमकश है। जो बताने जा रहा हूँ उसका सम्बन्ध तुमसे है पता नहीं तुम क्या सोचोगी?’
‘कह डालो मन में रखने से कुंठाएं बढती है। मेरे सोचने की तुम क्यूँ परवाह करने लगे।’
‘तुमसे प्रेम जो होने लगा है। चाहता हूँ तुम्हें, लेकिन मुश्किलें इतनी है कि समझ ही नहीं आता क्या किया जाय?’
‘चाहती तो मैं भी हूँ। तुम्हारे जैसे प्यारे इन्सान को कौन नहीं चाहेगा? इसमें मुश्किल क्या है?’
‘प्रेम में तो कोई मुश्किल नहीं लेकिन शादी में तो है।’
‘अब समझ गई शादीशुदा और तलाकशुदा से शादी वह भी मुस्लिम महिला से परिवार और समाज के बड़े-बड़े अवरोध, पर इसका निर्णय तुम्हें लेना है जैसे मेरी शादी का निर्णय मैं स्वयं ले सकती हूँ। हिम्मत है तो आगे बढ़ो, नहीं तो इसके बारे में सोचना बंद कर दो।’
‘कितनी आसानी से कह दिया तुमने, कितनी स्पष्ट सोच है तुम्हारी!’
‘वैसे दिल की गहराइयों से प्यार करनेवाले सब हिम्मत कर लेते हैं वे जीवन को दांव पर लगा देते हैं। रोज आपको ऐसी खबरें पढने को मिल जाती हैं।’
‘आपने सारे जाले साफ कर दिए। शुक्रिया। दोस्त बनी रहिएगा इतनी अच्छी दोस्त को खोना नहीं चाहता।’
वे उठे और फ़ूड कोर्नर से बाहर आ गए।
कहानियां कहीं ऐसे भी ख़त्म होती है! कहानी को एक मुक्कमिल अंत चाहिए। बात आपकी ठीक है लेकिन पात्र ही बुजदिल हो तो लेखक क्या कर सकता है!
अब हमारा हीरो अंत में जीरो निकल जाय तो हम क्या करें? अगर आप पुरुष पाठक हैं तो हिम्मत बांधिए वैसे छेड़खानी की हिम्मत तो आप रखते हैं लेकिन प्रेम करने की हिम्मत भी रखिये। अगर स्त्री पाठक है तो स्त्री होने का सम्मान रखिए, अपनी सोच को स्पष्ट रखो और नकली प्रेमियों से सावधान रहो। प्रेम जीवन का उदात्त भाव है उसे शादी के बंधन में बांधने की कोशिश मत करो। सरलता और सहजता से हो जाय तो बात और है।