1.
सफर उसके साथ बहुत छोटा था,
लेकिन यादों में रह गया उम्र भर के लिए...
2.
ये भी हुआ कि दर न तेरा कर सके तलाश
ये भी हुआ कि हम तेरे दर से गुजर गए !
3.
तुम्हारे पास ही तो हूँ ज़रा ख्याल करके देखो,
आँखों की जगह दिल का इस्तेमाल करके देखो ...!
4.
हज़ारो ना - मुक्कमल हसरतो के बोझ तले
ये जो दिल धड़कता है कमाल करता है
5.
मेरे मसले अलग हैं दुनिया से,
मैं गैरों से ज्यादा खुद में उलझा हुआ हूं...
6.
वो मुझे जिंदा देख कर बोले
बद्दुआ नहीं लगती तुमको
7.
ज़माने भर से लड़ कर,
जो कभी हारे नहीं यारों...!
ज़रा सी बात में वो,
घर के अंदर टूट जाते हैं...!!
8.
अभी मसरूफ़ हूँ काफ़ी,
कभी फ़ुरसत में सोचूँगी,
की तुझको याद रखने में,
मैं क्या - क्या भूल जाती हूँ।
9.
स्त्री को मूर्ख बताने वाले लोग
उसकी एक अदा पर अपना आपा खो बैठते है ...!
10.
जिन्दगी रेलवे स्टेशन की तरह है
भीड़ बहुत है पर अपना कोई नहीं...
11.
गुज़रो जो कभी बाग़ से तो दुआ माँगते चलो,
जिसमें खिले हैं ये फूल वो डाली हरी रहे...
12.
वो रख ले कहीं अपने पास हमें कैद करके,
काश कि हमसे कोई ऐसा गुनाह हो जाये
13.
किसी ने धूल क्या झोंकी आँखों में ...!
पहले से बेहतर दिखने लगा ...!!
14.
कभी - कभी लोग तब्दील नहीं होते
दरअसल हम उन्हें जानना शुरू कर देते हैं।
15.
मंज़िल तो खुशनसीबों में बंट गई
हम खुश ख्याल लोग अभी तक सफ़र में हैं !
16.
हालात है जो सीखाते है जीने का तरीका,
तजुर्बा उम्र का मोहताज नहीं।
17.
यूँ ही नहीं आती, खूबसूरती रंगोली में . . .
अलग-अलग रंगो को... "एक" होना पड़ता है।
18.
यूँही तो शाख़ से पत्ते गिरा नहीं करते
बिछड़ के लोग ज़ियादा जिया नहीं करते
19.
आरज़ू तेरी बरक़रार रहे
दिल का क्या है
रहा न रहा
20.
खुद ब खुद तो
कंटीली झाड़ियां उगती है
बाग तो लगाने पड़ते है
21.
आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब मे
22.
काश बैठने वाले भूल के भी ये सोचें
आदमी से ऊंची तो कुर्सियां नहीं होतीं
23.
हम दर्द जानतें है असीरी का
इसलिए हमसे परिंदा कोई भी पाला ना गया ...!
24.
जो ख़ामियाँ थीं वह तो हैं सब की ज़बान पर
अब मुझ में खूबियों के सिवा कुछ नहीं रहा
25.
मंजिल का नाराज होना
भी जायज था,
हम भी तो अजनबी
राहों से दिल लगा बैठे थे...
26.
धोखा दुश्मन की नहीं,
बल्कि दोस्त की ईजाद है
27.
आशा निराशा से अधिक मजबूत होती है
निराशा के अंधेरे को आशा की किरण से खत्म करो
28.
ये जो "जनाज़े" मे मेरे भीड़ हैं ना
जीते जी बस इन्ही से मिलना था !
29.
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
30.
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चिराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चिराग़
31.
कुछ नहीं मिलता
बस एक सबक़ दे जाता है
ख़ाक हो जाता है इंसान ...
ख़ाक से बने इंसान के पीछे ...
32.
शब्दों में बड़ी ताकत होती है
इसके घाव किसी भी दवा से
नहीं भरते
33.
खुदा ने जो बख्शा है... वही हुस्न बहुत है,
फूल अपने बदन पर कोई ज़ेवर नहीं रखते ...!