मुजरिम
मैं जब अपने घर की तरफ बढ़ने लगा तो बाइक पर पूरे रास्ते मैं यही सोचते हुए जा रहा था कि मेरे घर वालों का रवैया क्या होगा इस बात पर? ऐसे तो मैं अपने पिताजी को जानता था कि वो धर्म वगैरह को इतना ज्यादा नहीं मानते थे, मगर फिर भी अगर बात अपने घर में मुस्लिम बहू लाने की हो जाए तो इसे स्वीकार करना बहुत ही मुश्किल काम हो जाता है।
कुछ दिनों से मेरी शादी के लिए रिश्ते भी आ रहे थे, मगर मैं ही कोयल के कारण उन रिश्तों को टाल दे रहा था। मैंने भी सोच तो यही लिया था कि मैं कोयल से ही शादी करूँगा। मगर इतनी जल्दी उससे शादी करनी पड़ जायेगी, ये मैंने नहीं सोचा था।
मैं जैसे ही घर पहुँचा, वहाँ मेरे मामा जी और उनके साथ दो और लोग आये हुए थे। शायद मेरे रिश्ते की ही बात करने। मैं अपने कमरे में गया और अपना फोन निकाला तो देखा कि उसपर पहले से दो कॉल आ चुके थे घर वाले नम्बर से। मैं समझ गया कि ये फोन मुझे क्यों आया था।
मैं जूता उतार कर अपने बिस्तर पर आधा लेट गया। इतने में माँ आई और कहने लगी,
“कहाँ गए थे? इतनी देर से तुम्हारा नम्बर ट्राय कर रहे थे हमलोग, वो तो अच्छा हुआ तुम आ गए नहीं तो अभी ये लोग उठकर जाने ही वाले थे। जाओ कुछ बात करना चाहते हैं तुमसे।”
“माँ मैं बहुत ज्यादा थक चुका हूँ, मैं कोई बात नहीं कर सकता।”
“अरे तुम नहीं आते तो कोई बात नहीं थी, अब तुम आ गए हो तो जाओ जाकर बात कर लो। नहीं तो उन्हें बुरा लगेगा और ये सोचेंगे कि पता नहीं लड़का कैसा है?”
“मुझे उनके सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ता।” मैंने थोड़ा हठी होते हुए जवाब दिया।
“अरे ऐसा नहीं कहते, जाओ थोड़ी देर के लिए उनके पास जाकर बैठ जाओ। भले ही बात मत करना।”
मैंने माँ की बात मान ली और उनके सामने जाकर बैठ गया। उन्होंने मुझसे क्या बातें की, मैंने उनका क्या जवाब दिया, मुझे कुछ भी याद नहीं। मुझसे बातें करने के बाद मामा के अलावा जितने भी लोग आये थे, सभी चले गए। मामा आज भर के लिए हमारे ही घर पर रुक गए। शायद वो यही सोच रहे थे कि इस मामले में वो मुझसे पर्सनली बात करके मुझे मना लेंगे।
उनके पास से आने के बाद मैंने मुँह हाथ धोया और मैं जानता था कि अब अगर मुझसे देर हुई तो शायद मैं कुछ कह भी नहीं पाउँगा। इसलिए मैंने माँ को बुलाया और उनसे सारी बातें कह दीं। माँ शुरू में तो खुश ही थीं लेकिन जैसे ही मैंने बताया कि लड़की मुस्लिम है, माँ के चेहरे का रंग एकदम से बदल गया। ये मेरे लिए अपेक्षित था। मगर माँ थी वो मान गयी।
उन्होंने इस बारे में पापा से बात की। पापा ने जो कहा वो भी उम्मीद के मुताबिक़ ही था। इस पूरे प्रकरण में हो वही रहा था जो मैं सोच रहा था। पापा ने कहा था।
“ये किसी से भी शादी कर ले मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है, मगर लोग क्या कहेंगे?” पेंच वहीं आके फँसा जहाँ की उम्मीद थी। और पूरा हिन्दुस्तान जो बात सोचकर ही डर जाता है, मेरे पापा उससे अछूते कैसे रह जाते?
अब घर में उस दिन मामा जी आये हुए थे। और वो भी आये थे अकेले नहीं, उनके कुछ ख़ास लोगों का रिश्ता लेकर मेरे लिए तो वो कैसे मानते ये सब। हालाँकि उनके सामने इसकी कोई बात ही नहीं की गयी। माँ जानती थी कि ये हिन्दू मुस्लिम वाली बात अगर बाहर गयी तो फिर और रिश्ते आने भी बंद हो जायेगें और पता नहीं उस लड़की से भी शादी होने दे ये समाज या नहीं। इसलिए बात मामा जी को नहीं बताई गयी और उन्हें यह कहा गया कि इसपर उन्हें फोन करके जानकारी दी जायेगी।
रात में मुझे कोयल का फोन आया। उसने मुझसे पूछा कि मैंने घर में इस बारे में बात की या फिर नहीं। मैंने उसे बता दिया कि बात कर ली है लेकिन इसका परिणाम क्या होगा ये अभी नहीं कह सकते। उसे इस बात का सुकून था कि कम से कम मैंने आज ही बात तो कर ली। उसने मुझसे कहा,
“जो भी फैसला हो मुझे बताना जरुर।”
“फैसला क्या होना है, फैसला हो चुका है और वो ये है कि हमारी शादी होगी, हाँ इसमें शामिल कौन-कौन होंगे बस इस बात को तय करना बचा है।” मेरे इस जवाब से कोयल बहुत ही ज्यादा खुश हो गयी और वो इसी ख़ुशी को बरकरार रखकर सोना चाहती थी इसलिए उसने इससे ज्यादा मुझसे बात ही नहीं की। और बाय कहके फोन रख दिया।
अगली सुबह मामा अपने घर चले गए और मैं अपने ऑफिस। मैं जब शाम में अपने ऑफिस से वापस आया तो फिर से मैं पापा और माँ के साथ इस मुद्दे पर बात करना चाहता था। मैंने जैसे ही बात शुरू की ही थी कि पापा बोल पड़े,
“देखो बेटा अगर तुम चाहते हो कि मैं पूरे धूमधाम से तुम्हारी शादी एक मुस्लिम लड़की से कर दूँ तो ये तो बिलकुल भी नहीं होने वाला है।” पापा की ये बात सुनकर मेरा चेहरा बिलकुल ही बदरंग हो गया। मैं माँ की तरफ देखने लगा।
“अरे माँ की तरफ नहीं देखो। फिल्म और असल जिंदगी में बहुत फर्क होता है। किसी मुस्लिम लड़की से तुम्हारी शादी कर दूँ ये समाज मुझे नकार देगा। मैं ये नहीं कर सकता। और यही फैसला आखिरी है मेरा। बाकी सबकुछ तुम्हारे ऊपर है, तुम भी बालिग़ हो चुके हो और अपने फैसले खुद ले सकते हो।”
“पापा समाज तो हरेक चीज में कुछ न कुछ बोलता ही है। आप किसी हिन्दू से ही मेरी शादी करेंगे समाज उसमें भी कोई नुस्ख निकाल ही लेगा।”
“ये सब मुझे भी बहुत अच्छे से पता है ये सब नहीं सिखाओ मुझे। जो मैं नहीं कर सकता हूँ, वो नहीं कर पाउँगा, यह जान लो।”
इतना कहकर पापा वहाँ से उठकर चले गए। मैं पूरी तरह उदास होकर बैठ गया।
“उदास होने की कोई जरुरत नहीं है।” मेरी माँ ने कहा।
“कैसे नहीं है माँ, पापा इस शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रहे हैं, बताओ ऐसे में उदास नहीं होऊँ तो और क्या करूँ?” मैं लगभाग रो रहा था।
“अरे कल रात को ही पापा ने मुझे बता दिया था कि धूमधाम से शादी करेंगे तो लोग न सिर्फ बातें बनायेंगे बल्कि हो सकता है कुछ लोग शादी भी न होने दें। इसलिए उन्होंने कहा कि उसे कहना कोर्ट मैरेज कर के आ जाए मुझे कोई दिक्कत नहीं है। उसकी ख़ुशी में मेरी ख़ुशी है और समाज को भी साथ लेकर चलना है। इसलिए तुम अगर इस तरह शादी करोगे तो समाज को ज्यादा दिक्कत नहीं होगी इस बात को स्वीकार करने में। अब क्या करोगे बेटा, इस समाज में रहना है तो इस समाज के हिसाब से तो चलना ही पड़ेगा न।”
माँ की बातों से मेरा दिल ज्यादा खुश नहीं हुआ। क्योंकि इतना तो मुझे भी पता था कि शादी तो मैं कोयल से ही करूँगा। मगर यदि पूरे धूमधाम से होती तो ज्यादा अच्छा था। मेरा मन बुझा-बुझा ही रहा।
मैंने बुझे मन से ही कोयल को फोन किया और सारी बातें बता दी। कोयल बहुत ज्यादा खुश हो गयी थी। उसने अपनी छुट्टी बढ़ा ली और हमने चार दिन बाद शादी कर ली। शादी कर के वो मेरे घर आ गयी। और दोनों के घरवालों को कोई दिक्कत नहीं थी।
मगर चूँकि ये एक आम शादी नहीं थी, इसलिए लोगों की जुबान के लिए एक मसला मिल गया था बात करने को। मुझे देखते ही लोग चुप हो जाते थे और जैसे ही मैंने आगे बढ़ता लोग बोलना शुरू कर देते थे। मुझे मुजरिम की नजरों से देखा जाने लगा था और कुछ लोग मेरे सामने भी तंज कसने से बाज नहीं आ रहे थे। मैं भी एक टिपिकल सामजिक लड़के की तरह उनसे बिलकुल नहीं उलझता था और किसी दूसरे के फिर से मुजरिम होने का इन्तजार कर रहा था ताकि लोगों के जुबान का किस्सा बदल जाए और मैं इससे मुक्त हो जाऊँ। क्योंकि मैं यह मानता और जानता था कि मैं समाज की रस्मों के विरोध में जाकर शादी तो कर सकता हूँ, मगर समाज के हरेक वव्यक्ति की सोच नहीं बदल सकता।
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