Didi (changed form) in Hindi Women Focused by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | दीदी (बदला रूप)

Featured Books
Categories
Share

दीदी (बदला रूप)

दीदी

मैं जब शादी होकर ससुराल आई, तो मैंने देखा वहां पर मेरी बड़ी ननद का राज चलता है। और हर कोई उन्हीं की बात मानता था, कोई उनके सामने किसी बात पर बहस नहीं करता था। मैंने अपने पति से बात करने की कोशिश की थी, उन्होंने यही कहा कि "वह जो बोले वह काम कर दो बाकी तुम्हें कुछ बोलने की जरूरत नहीं है अगर वह गलत भी बोलेगी तो हां कह देना" मुझे यह समझ में नहीं आता कि ऐसा क्या है कि हर कोई उनसे डरता है कोई भी उनको कोई बोल नही सकता वह रूठ जाती थी, यहां तक की मेरे सास - ससुर भी उनकी बातें मानते थे। वह जॉब करती थी। मुझे वह पत्थर दिल लगती थी। वे मुुुझसे ज्यादा बात भी नहीं करती थी। उनका एक रूटिन बना था उसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता था वह 6 बजे उठ कर घूमने जााती थी 8 बजे उन्हें नाश्ता चाहिए था पेपर के साथ चाय नाश्ता करनेे के बाद 10 बजे ऑफिस जाती थी। ऑफिस से 4 बजे वापस आती थी। और आकर आराम कुर्सी पर आराम करती थी शाम को टहलने निकलती थी उसके बाद 9 बजे सो जाती थी उनका पूरा रूटीन था और सब काम टाइम टेेेेबल से ही करती थी। मगर वह वह घर का कोई काम नही करती थी। वह मिजाज बड़ी सख्त थी मैंने बहुत कोशिश करी ऐसा क्या कारण है दीदी का ऐसा रूखा व्यवहार है और सभी लोग उनकी बात मानते हैं मगर मुझेे समझ में नही आता था। मुझे उनसे नफरत होने लगी थी।
एक दिन घर पर कोई नहीं था और मेरी मौसी सास आई। जब मैंने उनसे इस बारे में पूछा उन्होंने बताया पुष्पा (यह हमारी दीदी का नाम था) पहले ऐसी नहीं थी वह बहुत ही मिलनसार लड़की थी और सब से मिलजुल कर रहती थी सबका काम करती थी। फिर उसकी शादी की उम्र हुई तो अच्छा लड़का और परिवार देखकर उसकी शादी भी कर दी। दीदी का परिवार बहुत अच्छा था। वो लोग दीदी को भी बहुत मानते थे। मगर 2 साल तक होने वाले थे बच्चे नहीं हुए दोनों ने डॉक्टर से जांच करवाई तब पता चला कि दीदी के गर्भाशय में बीमारी है जिस वजह से उन्हें बच्चे नहीं हो सकते। यह बात जानकर उनके पति और ससुराल वालों ने, ... जो वह ससुराल वाले जो दीदी को बहुत प्यार करते थे दीदी के बिना उनका काम नहीं चलता था, उन्होंने उन्होंने दीदी को घर से निकाल दिया और उन से तलाक ले लिया इस दौरान उन्होंने इतना इतना कुछ सहा कि वह इतनी रूखी हो गई है और किसी से बात नहीं करती हमारी इतनी अच्छी
पुष्पा मिलनसार पुष्पा की जगह इस रूखी पुष्पा ने ले ली। सभी लोग इसीलिए पुष्पा की बात मान लेते हैं क्योंकि वह अंदर से बहुत टूटी हुई है और दिनेश भी उसको बहुत मानता है उसने इसीलिए तुम्हें नहीं बताया कि तुम उसे बेचारी न समझो, नौकरी भी पुष्पा इसीलिए करती है कि कोई उसको बेचारी कहकर नहीं पुकारे, मगर उसके व्यवहार के लिए क्या करें यह किसी को समझ में नहीं आता हम सब जानते हैं कि अंदर से वो बहुत ही मासूम है। मगर यह नही पता कि हमारी पहले वाली पुष्पा कैसे लाए।

मैंने जब यह बातें सुनी तुम हो मेरे मन में दीदी के लिए बहुत ही सम्मान पैदा हो गया, कि यह सब दीदी अपने स्वाभिमान के लिये करती है ताकि कोई भी उन्हें बेचारी ना कहें। और वह सर उठा कर रहे।
उसके बाद जब दिनेश आये तो मैंने उनसे यह बात बताई कि, मुझे मौसी से सब बात पता चल गई है... उस समय बात करते - करते दिनेश की आंखों से भी आंसू आ गए मैं समझ गई थी वह अपनी बहन से बहुत प्यार करते हैं। मगर मुझे समझ में नहीं आ रहा था हम क्या करें जिससे दीदी के व्यवहार में थोड़ी नरमी आए।
अब मैं उनसे ज्यादा से ज्यादा बात करने लगी। पहले तो मैं खुद ही उन्हें पसंद नहीं करती थी इसलिए मैं ज्यादा बात नहीं करती थी मगर अब मैं खुद ही उनसे बात करने लगी हर काम के बारे में उनसे पूछने लगी, मगर उनका व्यवहार वैसा ही था वह हाँ ना के अलावा कोई जवाब नहीं देती थी वह ज्याद सजती संवरती भी नहीं थी। बिल्कुल सादी रहती थी मैं उन्हें कितनी बार बाजार जाने का भी कहती, घूमने का कहती मगर वह मेरे साथ कभी नहीं जाती मुझे समझ में नहीं आ रहा था किस तरह में उनका व्यवहार परिवर्तन करु।
इसी बीच पता चला कि मैं गर्भवती हूं सभी लोग मेरा बहुत ख्याल रखने लगे मगर पुष्पा दीदी मुझसे दूर ही दूर रहती थी। एक दिन हम सब बैठे ऐसे ही बातें कर रहे थे दिनेश कह रहे थे उन्हें बेटा चाहिए मम्मी जी पापा जी बातें कर रहे थे और इसी बीच मैंने कहा कि मुझे बेटी चाहिए बिल्कुल पुष्पा दीदी जैसी, इसके साथ ही मैंने पुष्पा दीदी की तरफ देखा, तो मैंने देखा कि उनके चेहरे पर भाव आ रहे हैं तुरंत उठ कर चली गई। सब ने समझा उसकी आदत है। पर मुझे रास्ता मिल गया कि मुझे क्या करना है।
जब नौ महीने बाद मुझे प्यारी सी बिटिया हुई सब लोग बहुत खुश हो गए। पुष्पा दीदी भी मुझे अस्पताल में देखने आयी उन्होंने कहा कुछ नहीं और बिटिया को देख कर जाने लगी मैंने उनका हाथ पकड़ लिया, और कहाँ की "दीदी यह नहीं चलेगा यह आपकी बिटिया है मैं आपको देती हूं" इतना कहकर मैंने दीदी के हाथ में मेरी गुड़िया देदी, दीदी की आंखों से आंसुओं की धारा की गिरने लगी, ऐसा लगा उनका इतने दिनों का जो अवसाद था वो सब बह गया। और उसी के साथ उनका रूखापन भी चला गया जब सब आये तो वह दीदी का बदला रूप देखकर बहुत खुश ही गये। उन्हें अपनी पुरानी पुष्पा मिल गयी थी। और दिनेश गर्व भरी नजरो से मेरी तरफ देख रहे थे।