Amavasya me Khila Chaand - 9 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अमावस्या में खिला चाँद - 9

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अमावस्या में खिला चाँद - 9

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       प्रवीर कुमार का मोबाइल बजने लगा। उसने देखा, शीतल की कॉल थी। उसने फ़ोन ऑन किया और बेडरूम से उठकर ड्राइंगरूम में आ गया। नमस्ते-प्रतिनमस्ते के उपरान्त शीतल ने पूछा - ‘मैंने ऑफिस में फ़ोन किया तो पता चला कि तुम कुछ जल्दी घर चले गए हो। क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं या घर पर कोई विशेष काम आन पड़ा था?’

       ‘मेरी तबीयत तो ठीक है। रिंकू को कुछ दिन पहले पार्क में खेलते हुए चोट लग गई थी और प्लास्टर लगवाना पड़ा था। उसी का फ़ोन सुनकर उसे कम्पनी देने के लिए मैं कुछ जल्दी घर आ गया था। … बताओ, कैसे याद किया?’

          ‘प्रवीर, तुमने रिंकू को चोट लगने का बताया ही नहीं? अब कैसा है वह?’

         ‘पार्क में खेलते हुए उसके टखने की हड्डी फ़्रैक्चर हो गई थी, इक्कीस दिन का प्लास्टर लगा है, ठीक हो जाएगा।….. तुम बताओ, कैसे फ़ोन किया था?’

           ‘प्रवीर, किसी वक़्त फ़्री हों तो तुमसे कुछ सलाह करनी है।’

           ‘संडे को दोपहर में आ जाता हूँ।’

           प्रवीर कुमार बात पूरी करके बेडरूम में आया तो नवनीता ने पूछा - ‘किसका फ़ोन था?’

         जब प्रवीर कुमार फ़ोन सुनने के लिए ड्राइंगरूम की ओर आ रहा था, उस समय नवनीता रसोई में थी। उसने प्रवीर कुमार की कुछ बातें तो सुन ली थीं, किन्तु दूसरी ओर की बातें तो उसे सुनाई नहीं दी थीं। हाँ, उसे इतना पता चल गया था कि दूसरी तरफ़ से किसी स्त्री की आवाज़ थी।

        ‘एक मित्र का फ़ोन था।’

        ‘और उससे मिलने आप संडे को जाने वाले हैं?’ 

        सुनकर प्रवीर कुमार को अचम्भा हुआ। उसे नहीं पता था कि नवनीता ने शीतल के साथ उसकी बातचीत का कुछ अंश सुन लिया है। फिर भी संयत रहते हुए उसने उत्तर दिया - ‘हाँ।’

       ‘लगता है, यह वही मित्र है जो मानसिक उद्वेलन से गुजर रहा है?’

        ‘हाँ भई, हाँ।’

        ‘लेकिन, दूसरी तरफ़ से तो किसी स्त्री की आवाज़ आ रही थी।’

         प्रवीर कुमार ने नहीं सोचा था कि नवनीता उसकी जासूसी करने लगी है। इसलिए एक बार तो वह हैरान हुआ, किन्तु वह नहीं चाहता था कि शीतल को लेकर नवनीता के मन में कोई ग़लतफ़हमी पैदा हो, इसलिए उसने कहा - ‘हाँ, तुमने ठीक सुना। फ़ोन करने वाली मेरी मित्र शीतल है। वह मेरे साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ती थी।’

        ‘प्रवीर, इसका मतलब यह हुआ कि अब तक आप मुझसे झूठ बोलते रहे हो! यदि आज  आपकी बातों के कुछ अंश मेरे कानों में न पड़े होते तो पता नहीं कब तक आप मुझसे झूठ बोलकर मुझे अँधेरे में रखते?’

          ‘लेकिन नीता, ऐसा करने में मेरी कोई ग़लत मंशा नहीं थी,’ प्रवीर कुमार ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा।

            ‘सवाल मंशा का नहीं, सवाल है मुझसे झूठ बोलने का …!’

      प्रवीर कुमार ने देखा कि बात का रुख़ ग़लत दिशा में जा रहा है तो उसने नवनीता को शान्तिपूर्वक बिठाकर उसके समक्ष शीतल के जीवन के दुःख-भरे दिनों के इतिहास के पन्ने उघाड़े और बताया कि एक मित्र के नाते यदि मैं उसके जीवन में ख़ुशी के कुछ पल ला सका तो मैं स्वयं को धन्य समझूँगा। 

         शीतल की व्यथा-कथा सुनकर नवनीता द्रवित तो हुई, फिर भी उसने उपालंभ देते हुए कहा - ‘प्रवीर, माना कि आपकी मंशा ग़लत नहीं थी, किन्तु इतने वर्षों के साथ के बावजूद आपने मुझे विश्वास के योग्य नहीं समझा, इसकी कसक तो मन में रहेगी।’

        ‘यह कसक कैसे मिटेगी, अब यह भी बता दो। मैं नहीं चाहता कि शीतल के प्रति अपना नैतिक कर्त्तव्य निभाते हुए मैं तुम्हें अपने से दूर कर बैठूँ।’

         ‘प्रवीर, मैं आपके नैतिक कर्त्तव्य निर्वहन में रुकावट नहीं डालना चाहती, बस इतना ही चाहती हूँ कि आगे से आप मुझसे कोई बात छिपाएँगे नहीं और इसके लिए मैं चाहती हूँ कि आप शीतल के पास जाने की बजाय उसे घर पर बुलाओ।’

         प्रवीर कुमार ने चैन की साँस लेते हुए कहा - ‘इतनी-सी बात से मेरी जान ख़ुश होती है तो मैं अभी उसे संडे को यहाँ आने के लिए कह देता हूँ।’

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