Amavasya me Khila Chaand - 8 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अमावस्या में खिला चाँद - 8

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अमावस्या में खिला चाँद - 8

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        आज जब प्रवीर कुमार रात के खाने से कुछ समय पूर्व घर लौटा तो उसे पानी का गिलास थमाते हुए नवनीता ने मन में कई दिनों से चल रही कश्मकश को शान्त करने के लिए पूछ ही लिया - ‘प्रवीर, मैं कई हफ़्तों से ऑब्ज़र्व कर रही हूँ कि आप शनिवार या इतवार को किसी दोस्त से मिलने की कहकर जाते हो और देर शाम को लौटते हो। लंच भी उसी के साथ करते हो। ऐसा कौन-सा दोस्त है, जिससे अचानक इतनी गहरी छनने लगी है? यदि इतना ही करीबी दोस्त है तो कभी हमें भी मिलवाओ उससे या उसे ही घर पर बुला लो।’

         नवनीता के प्रश्न से प्रवीर कुमार थोड़ा असहज तो हुआ, लेकिन बात को सँभालते हुए उसने उत्तर दिया - ‘नीता, मेरा मित्र और मैं यूनिवर्सिटी में इकट्ठे पढ़ते थे। कई सालों बाद अचानक उससे मिलना हुआ है। उसकी कुछ व्यक्तिगत समस्याएँ हैं जो उसने मुझसे मित्र होने के नाते साझा की हैं। उन्हीं समस्याओं का समाधान ढूँढने के लिए मैं उससे मिलने जाता हूँ।’

        ‘वह विवाहित तो होगा?’

        ‘हाँ, विवाह हुआ था, किन्तु विवाह अधिक देर तक चला नहीं। वह मानसिक उद्वेलन की स्थिति से गुजर रहा है। इसीलिए न तो तुम्हें अभी उससे मिलवा सकता हूँ और न ही उसे घर बुला सकता हूँ।’

      ‘चलो, दुआ करूँगी कि आपका दोस्त आपकी सहायता से मानसिक समस्याओं से शीघ्र छुटकारा पाए ताकि आप भी निश्चिंत हों!’ कहकर नवनीता रसोई की ओर मुड़ गई और प्रवीर कुमार  कपड़े बदलने के लिए बेडरूम में चला गया। 

          जब वह कपड़े बदलकर आया तो उसने पूछा - ‘नीता, बँटी और रिंकू कहाँ हैं?’

          ‘पार्क में खेलने गए हैं।’

       ‘इतनी देर तक बच्चों को अकेले बाहर मत रहने दिया करो। रात घिर आई है और मौसम के आसार भी कुछ अच्छे नहीं हैं, किसी भी समय आँधी आ सकती है। मैं बच्चों को लेकर आता हूँ।’

          ‘आ जाएँगे अपने आप। आपके लिए शिकंजी बना दूँ?’

       ‘तुम शिकंजी बनाओ, मैं उनको लेकर आता हूँ,’ कहकर प्रवीर कुमार फुर्ती से घर से बाहर निकल गया। 

       मौसम को लेकर प्रवीर कुमार का अनुमान ठीक निकला। वह पार्क में पहुँचा ही था कि आँधी का भभका आया। प्रवीर ने आँखें मलते हुए बँटी को आवाज़ लगाई। पार्क के दाईं ओर से जवाब आया - ‘पापा, हम यहाँ हैं।’

        प्रवीर कुमार आवाज़ की दिशा में दौड़ा। क्या देखता है कि रिंकू दाएँ पैर को दबाता हुआ रो रहा है और बँटी किंवकर्त्तव्यविमूढ-सा उसके पास खड़ा है। उसने पूछा - ‘क्या हुआ रिंकू को?’

         ‘पापा, स्लाइड से फिसलते हुए इसका पाँव मुड़ गया। इसीलिए हम घर नहीं आ पाए।’

        प्रवीर कुमार ने रिंकू को खड़ा करने की कोशिश की, किन्तु उससे खड़ा नहीं हुआ गया। खड़ा होने में उसे अधिक दर्द होने लगा। प्रवीर कुमार ने उसे गोद में उठाया और वे घर आए। रिंकू को गोद में उठाए हुए जब प्रवीर कुमार ने घर में कदम रखा तो यह देखकर नवनीता घबरा गई। उसने पूछा - ‘क्या हुआ रिंकू को?’

         प्रवीर कुमार से पहले बँटी बोला - ‘मम्मी, स्लाइड से फिसलते हुए इसका पाँव मुड़ गया है।’

        प्रवीर कुमार ने रिंकू को बेड पर लिटाया और नवनीता से कहा - ‘नीता, एक बार इसके पैर पर आयोडैक्स मलो, फिर मैं एक्स-रे करवाने के लिए ले जाता हूँ।’

         ‘इतना घबराओ मत, मोच आई लगती है। आयोडैक्स लगाने से ठीक हो जाएगी।’

         ‘नहीं, एक्स-रे तो मैं करवाऊँगा, तभी मेरी तसल्ली होगी।’

        एक्स-रे में टखने की हड्डी में फ़्रैक्चर साफ़ दिखाई दे रहा था। डॉक्टर ने प्लास्टर बाँध दिया। घर आकर प्रवीर कुमार ने कहा - ‘नीता, यदि तुम्हारा कहा मान लेता तो सुबह तक इसका पैर सूज कर हाथी के पाँव जैसा हो जाता, बच्चे को तकलीफ़ रहती सो अलग। जब साधन उपलब्ध हैं तो उनका उपयोग न करना नादानी ही नहीं, मूर्खता माना जाता है। …. देखो, एक सबक़ तो इस घटना से मिल गया कि बच्चों को घर से बाहर अकेले दिन ढलने से पहले ही जाने देना चाहिए और दिन ढलने के साथ ही उनकी चिंता करनी चाहिए। अब जब मैं पार्क में गया तो वहाँ अपने बच्चों के सिवा कोई नहीं था। बँटी न तो रिंकू को उस हालत में अकेला छोड़कर घर आ सकता था और न ही वह उसे किसी तरह घर तक ला सकता था। मौसम के आसार तो तुमने भी नोट किए होंगे! तुम्हें तुरन्त पार्क में जाना चाहिए था …..’

       ‘बस प्रवीर बस, बहुत प्रवचन हो गया। माना, मेरे से गलती हो गई, लेकिन क्या करती? मैं रात का खाना बनाने में लगी थी, इसलिए घर के अन्दर रहते हुए बिगड़ते मौसम का कुछ आभास नहीं हुआ वरना सब काम छोड़कर भी मैं बच्चों को देखने ज़रूर जाती।’

        ‘सॉरी नीता, मेरी बातों ने तुम्हें हर्ट किया, लेकिन मेरी ऐसी मंशा नहीं थी। बँटी अभी बहुत छोटा है, अबनॉर्मल कंडीशन्स में वह रिंकू को सँभालने लायक़ नहीं हुआ है।’

        ‘ठीक है बाबा, मुझे माफ़ कर दो। आगे से पूरा ध्यान रखूँगी ….. अब रिंकू को प्लास्टर लगा है तो आप भी छुट्टी वाले दिन बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी लेना शुरू करो,’ नवनीता ने उसाँस भरते हुए आगे कहा - ‘घरवाली की तो कोई छुट्टी होती ही नहीं।’ 

        ‘हाँ, तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। मैं तुमसे पूरी तरह सहमत हूँ। अब ऑफिस में छुट्टी वाले दिन मैं तुम्हें घर के कामकाज से मुक्त रखने का प्रयास करूँगा ताकि तुम भी साप्ताहिक अवकाश का आनन्द उठा सको। इतना ही नहीं, मैं यह भी कोशिश करूँगा कि मेरे ऑफिस जाने से पहले और घर आने के बाद रिंकू की देखभाल की ज़िम्मेदारी तुम्हें न उठाने पड़े।’

           ‘आपका इतना सहयोग मिलने के बाद तो मैं निहाल हो जाऊँगी।’

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