Amavasya me Khila Chaand - 6 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अमावस्या में खिला चाँद - 6

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अमावस्या में खिला चाँद - 6

- 6 -

         शीतल को तीन दिन हो गए थे कॉलेज जाते हुए। पहले दिन पहले पीरियड में उसे प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए भेजा गया। चाहे वह अपनी ओर से पूरी तैयारी करके आई थी, फिर भी शुरू में कुछ मिनटों तक वह नर्वस रही। लेकिन, हिन्दी विषय के विद्यार्थियों की सीमित संख्या तथा नए विद्यार्थी होने के कारण उसने शीघ्र ही अपनी नर्वसनेस पर क़ाबू पा लिया। क्लास में जाने से पूर्व प्रिंसिपल महोदय ने उसे कहा था कि उसे लगातार दो पीरियड नहीं दिए जा रहे। पीरियड की समाप्ति पर उसे प्रिंसिपल के कक्ष में आकर अपने अनुभव बताने को भी कहा गया था। 

         प्रिंसिपल ने उससे बातचीत करने के पश्चात् उसे अपने कक्ष में बैठने को कहा और स्वयं जाकर प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों से उनकी प्रतिक्रिया जानी। विद्यार्थियों से बातचीत करने के बाद प्रिंसिपल ने अपने कक्ष में आकर शीतल को बधाई दी और उसके सामने ही प्रवीर कुमार को फ़ोन करके कहा - ‘सर, मैंने शीतल मैम को पहले पीरियड के लिए प्रथम वर्ष की कक्षा में भेजा था। पीरियड समाप्ति पर मैंने कक्षा में जाकर बच्चों से फ़ीडबैक लिया। सर, मुझे आपको सूचित करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मैम ने पहले ही पीरियड में विद्यार्थियों के साथ बहुत अच्छा तालमेल बिठा लिया है। मुझे पूरा विश्वास है कि वे दूसरी कक्षाओं में भी विद्यार्थियों के साथ अच्छा तालमेल बिठा सकेंगी।’

          इसके बाद प्रिंसिपल ने चाय मँगवाई और चाय के दौरान शीतल से प्रवीर कुमार के साथ उसके सम्बन्धों के बारे में औपचारिक जानकारी प्राप्त की। ख़ाली पीरियड में प्राध्यापक कक्ष में शीतल ने वहाँ उपस्थित साथी प्राध्यापकों से परिचय का आदान-प्रदान किया। यह काम उसके लिए बहुत कठिन नहीं था,  बल्कि बहुत ही सहज था, क्योंकि रिसेप्शन गर्ल की ड्यूटी करते हुए वह इस तरह के व्यवहार में पारंगत हो चुकी थी। बहुत जल्द ही उसने प्राध्यापक वर्ग तथा विद्यार्थियों में अपना स्थान बना लिया। 

……

          होटल से तो शीतल ने छुट्टी ले ही ली थी, पी.जी. वाली लैंडलेडी को कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर रहने के लिए कह दिया था, क्योंकि वह आने-जाने में समय बर्बाद करने की बजाय कॉलेज के आसपास ही कोई जगह लेकर पढ़ाने के लिए नोट्स वग़ैरह बनाने में समय लगाना चाहती थी। इसलिए तीसरे दिन कॉलेज से फ़ारिग होकर वह अपने मम्मी-पापा के पास चली गई। 

           पापा मुरलीधर को ख़ुशी थी कि उसकी बेटी की एम.ए. तक की पढ़ाई आख़िरकार काम आ ही गई। अब क्लर्की में सारी उम्र व्यर्थ नहीं होगी, क्योंकि वे स्वयं भी स्कूल में अध्यापक रहते हुए सेवानिवृत्त हुए थे। शीतल के घर आने पर और कॉलेज में नौकरी लगने के कारण घर में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। कान्हा ने भी इसे महसूस किया और अपनी प्रसन्नता का इज़हार करते हुए उसने शीतल को झप्पी में लेकर उसके गाल चूम लिए। 

         शीतल ने स्वयं को झप्पी से मुक्त करते हुए कान्हा के गाल थपथपाए और अन्दर कमरे में चली गई। उसकी मम्मी ने उसकी पसन्द का खाना बनाया हुआ था। दोपहर के खाने के बाद मुरलीधर ने उसे अपने पास बिठाकर सारी जानकारी ली। शीतल ने बताया - ‘पापा, आपको याद होगा, एम.ए. में मेरे साथ एक लड़का प्रवीर पढ़ता था?’

          ‘हाँ, खूब याद है। एक-दो बार तेरे साथ घर भी आया था। बड़ा अच्छा लड़का था। तुझे मिला कभी, आजकल क्या करता है?’

         ‘कुछ दिन पहले वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ होटल में आया था। वह आजकल उच्च शिक्षा विभाग में बहुत बड़े पद पर आसीन है। मुझे पुराने समय के सहपाठी के रूप में ही मिला। फिर एक बार वह अकेला मिलने आया। बातों-बातों में मैंने अपने बीते जीवन की घटनाएँ उससे साझा कर लीं। सुनकर उसे बहुत दु:ख हुआ। मेरे बिना कहे ही उसने कॉलेज में दो साल के लिए अस्थाई प्राध्यापक के पद पर मेरी नियुक्ति करवाई है और इसे स्थाई करवाने का भी आश्वासन दिया है।’

         ‘बेटे, तेरी बातें सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है। ऐसे अच्छे और नि:स्वार्थी इंसान आजकल कहाँ मिलते हैं! मैं इसे तेरी अच्छी क़िस्मत ही कहूँगा कि प्रवीर ने तेरे जीवन को नई दिशा देने में इतनी तत्परता दिखाई है। इतने बड़े अफ़सर को घर पर बुलाना तो ठीक नहीं रहेगा, किन्तु फोन पर हमारी ओर से उसका धन्यवाद ज़रूर कर देना, बेटे।’

        मुरलीधर से बातें करके शीतल मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुई। मन में उसे शंका थी कि पापा प्रवीर के साथ मेरे सम्बन्ध को लेकर कहीं कोई ग़लतफ़हमी न पाल बैठें! सप्ताहांत में या जब भी छुट्टी वाले दिन शीतल घर आती थी और रात को रुकती थी तो कान्हा और उसकी चारपाइयाँ एक कमरे में लगाई जाती थीं। अन्य दिनों में कान्हा की चारपाई मम्मी-पापा के बेडरूम में ही होती थी, क्योंकि घरवाले रात को उसे अकेला सुलाने का रिस्क नहीं उठाना चाहते थे। 

       दूसरे दिन सुबह नाश्ता करने के उपरान्त शीतल ने मुरलीधर को कहा - ‘पापा, मुझे एक बार परवाणू जाना है। पी.जी. वालों का हिसाब करना है और होटल वालों को भी नौकरी छोड़ने का त्यागपत्र देना है।’

          ‘नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने के नोटिस की शर्त थी ना?’

        ‘हाँ पापा, लेकिन अब मैं सोच रही हूँ कि जब प्रिंसिपल मेरी परफ़ॉर्मेंस से खुश हैं तो बिना वजह पी.जी. का रूम रखने का कोई औचित्य नहीं। होटल वालों से अभी मैंने पिछले महीने की सेलरी लेनी है, नोटिस की एवज़ में उसमें से ‘अडजस्ट’ करवा दूँगी।’

        ‘बेटे, फिर तो तुझे जेबखर्च के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ेगी। बता कितने रुपए चाहिएँ, मैं एटीएम से निकाल लाता हूँ।’

         इनकी बातें सुनकर शीतल की मम्मी ने कहा - ‘आज तो अभी शनिवार है, शीतल। कल चली जाना।’

       ‘नहीं मम्मी, मुझे आज ही जाना है। होटल में रविवार को अकाउंट सेक्शन में छुट्टी रहती है, इसलिए आज ही हिसाब-किताब करना पड़ेगा वरना कॉलेज से सोमवार की छुट्टी लेनी पड़ेगी। मैं नहीं चाहती कि शुरू में ही कॉलेज से छुट्टी लूँ।’

          इस अकाट्य तर्क के बाद मम्मी ने मूक सहमति दे दी। 

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