Amavasya me Khila Chaand - 5 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अमावस्या में खिला चाँद - 5

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अमावस्या में खिला चाँद - 5

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        सोमवार को कार्यालय में पहुँचकर प्रवीर कुमार ने ज़रूरी कार्य निपटाए। फिर बजर देकर पी.ए. को बुलाया। हाथ में नोटबुक तथा पैन पकड़े राजेन्द्र तुरन्त उपस्थित हो गया। 

            ‘राजेन्द्र, कॉलेजों में लेक्चरर की ख़ाली पोस्टों को कौन डील कर रहा है?’

            ‘सर, संजीव को यह काम दिया हुआ है।’

            ‘संजीव को कहो कि पास के एक-दो ज़िलों में देखे कि किसी कॉलेज में हिन्दी लेक्चरर की कोई पोस्ट ख़ाली है क्या?’

           थोड़ी देर में पी.ए. ने आकर बताया कि एक कॉलेज में एक प्राध्यापक दो साल की ‘रिसर्च लीव’ पर विदेश गया हुआ है, उस पोस्ट पर अस्थाई नियुक्ति के लिए स्वीकृति का केस लम्बित है। पी.ए. के जाने के बाद प्रवीर कुमार ने शीतल को फ़ोन मिलाया और नमस्ते-प्रतिनमस्ते के बाद पूछा - ‘शीतल, क्या तुम दस-पन्द्रह दिनों की छुट्टी ले सकती हो?’

          ‘छुट्टी तो मिल जाएगी, लेकिन किसलिए?’

          ‘तुम्हें बी.ए. तक के विद्यार्थियों को पढ़ाना है, पढ़ा पाओगी?’

          ‘पढ़ा तो लूँगी, थोड़ा अधिक अभ्यास करना पड़ेगा।’

          ‘यदि इन दिनों में तुम्हें कोई दिक़्क़त न आई तो दो साल के लिए तुम्हारी नियुक्ति लेक्चरर के तौर पर हो सकती है।’

          ‘प्रवीर, तुम्हारे इस प्रयास के लिए हृदय से आभारी हूँ, लेकिन दो साल बाद?’

       ‘अरे पगली! दोस्ती में इस आभार-धन्यवाद आदि की ज़रूरत नहीं होती। दो साल बाद की तुम्हारी चिंता जायज़ है। यदि तुम इस अवधि में अपने पढ़ाने के कौशल से विद्यार्थियों और प्रिंसिपल का दिल जीत लोगी तो मुझे यक़ीन है कि तुम्हारे लिए स्थाई नियुक्ति का बन्दोबस्त भी हो जाएगा।’

          जिस तरह से प्रवीर कुमार ने उसे ‘पगली’ कहकर सम्बोधित किया, उससे शीतल अभिभूत हो उठी। उसने कहा - ‘प्रवीर, जब तुम मेरे लिए इतना चिंतित हो तो मैं रिस्क उठाने के लिए तैयार हूँ।’

         ‘शीतल, मैं कॉलेज के प्रिंसिपल से बात करके बताता हूँ। मुझे विश्वास है कि तुम्हारा पढ़ाने का शौक़ अवश्य पूरा होगा।’

……

        जिस बाग में प्रवीर कुमार सैर करने जाता था, उसमें आम के पेड़ों की भरमार थी। ऋतु होने के कारण पेड़ आमों से लदे हुए थे। सरकारी विभाग ने चेतावनी हेतु सूचना-पट दो-तीन जगह लगा रखे थे कि आम तोड़ने वाले से पाँच सौ रुपए जुर्माना वसूला जाएगा, फिर भी कुछ नादान व बेपरवाह लोग पत्थर फेंककर आम ले ही जाते थे। पेड़ों की शाखाओं में छिपी बैठी कोयल की सुरीली तान सैर करने वालों को आनन्दित कर रही थी। आज सैर को निकलते समय प्रवीर कुमार मोबाइल साथ ले आया था। कंक्रीट के पथ के साथ रखे बेंचों में से एक पर बैठकर उसने शीतल को बताया कि कॉलेज के प्रिंसिपल से उसकी बात हो गई है और कि वह एक-आध दिन में जाकर उनसे मिल ले।

         जब फ़ोन आया तो शीतल नहाकर बाथरूम से निकली ही थी। सुबह-सुबह इतनी ख़ुशी वाली बात सुनकर वह फूली नहीं समा रही थी, क्योंकि उसकी वर्षों से दबी तमन्ना पूरी होने जा रही थी। उसको प्रवीर के साथ अपनी दोस्ती पर गर्व हो आया। मानसी अभी सोई हुई थी। वह जागी होती तो फ़ोन उसके सामने ही सुनती और उसको पता चल जाता, लेकिन इस समय उसको जगाकर उसके साथ अपनी ख़ुशी साझा करने को उसका मन नहीं किया। उसने सोचा, होटल पहुँचकर सबसे पहले यह ख़ुशख़बरी पापा को सुनाऊँगी। 

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