A fresh relationship in Hindi Women Focused by bhagirath books and stories PDF | अ फ्रेश रिलेशनशिप

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अ फ्रेश रिलेशनशिप

 

 अ फ्रेश रिलेशनशिप    

 

सुनील अपना एटीएम कार्ड ढूंढ रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था, ‘शायद मेरे ब्रीफकेस में हो।’ वह अलमीरा खोलकर ब्रीफ केस निकाल ही रहा था कि ब्रीफ केस   फर्श पर गिर गया और सारे कागज बिखर गए। वह वहीँ फर्श पर बैठकर उन्हें समेटने लगा, समेटते हुए देखता है कि कुछ पुराने चिट जिन पर कुछ पंक्तियां लिखी हुई थी, उत्सुकतावश उठा ली। उसने एक चिट को पढ़ा। उसमें लिखा था –‘तुमसे बात करना मुझे अच्छा लगता है।’ दूसरी चिट पर लिखा था – ‘मुझे हर पल तुम्हारा ख्याल क्यों आता है?’ तीसरी चिट पर लिखा था – ‘तुम कितनी अच्छी हो! कहकर तुमने मेरे हाथ चूम लिए मैं शरमाकर और घबराकर भागी। फिर भी दूसरे दिन तुम्हें खोजती रही।’ प्रत्येक स्क्वायर चिट के कोने में कैपिटल आर लिखा था जो कि उसका नाम था, पूरा नाम नहीं लिखा था। उसने याद करने की कोशिश की, उसे कुछ नाम याद आए जैसे रमा, रोशनी, रेनू, रेवती हो न हो यह रेनू ही है जो उसके साथ पढ़ती थी वो शायद आठवीं कक्षा में थी और वह दसवीं में था।

   पंद्रह सोलह साल बीत गए इस बात को। वे विवेकानंद आदर्श स्कूल, बूंदी में पढ़े थे हालाँकि अब वे दिन याददाश्त में धुंधले से हो गए थे। उसके पिताजी का ट्रान्सफर बूंदी से अजमेर हो गया था और वह उनके साथ अजमेर चली गई। वह उच्च शिक्षा के लिए जयपुर शहर आ गया। अभी यहीं नौकरी कर रहा है। वह सोचता है, ‘पता नहीं वह कैसी होगी और कहाँ होगी? रह-रह कर उसकी पर्चियाँ  दिमाग में छाई रहती। फिर से प्रेम का स्फुलिंग सुलगने लगा था। कैसे भी हो उसका पता लगाया जाना चाहिए।’

फेसबुक में सर्च करके देखा, दसियों रेनू के प्रोफाइल चैक किये लेकिन असली रेनू नहीं मिली। अब तो चेहरा-मोहरा भी बदल गया होगा, शादी भी हो गई होगी, बच्चे भी होंगे या नहीं भी हो सकते हैं। हो सकता है शादी नहीं भी हुई हो। स्कर्ट वाली रेनू और आज की रेनू में क्या कोई संगति होगी?

और आखिर एक दिन फेसबुक पर मिल ही गई। उसकी टाइम लाइन खोलकर देखा कई फोटो थे; खुद के, बच्चे के साथ और पति के साथ, जन्म दिन और मैरिज एनिवर्सरी की बधाईयाँ और अपने गार्डन की देखभाल करती फूलों के साथ सेल्फी।  कुल मिलाकर एक खुशहाल परिवार। 

एक संस्मरण में उसने विवेकानंद आदर्श स्कूल, बूंदी के बारे में लिखा था जिसमें उसकी आरंभिक शिक्षा हुई थी। उस समय का एक ग्रुप फोटो भी पोस्ट किया था जिसमें उसके क्लासमेट और एक टीचर थी। फोटो के ऊपर स्कूल का नाम और सैशन अंकित था नीचे सब स्टूडेंट्स के नाम थे। अपने फोटो पर लाल गोल निशान बनाया फिर वही फोटो अलग से पोस्ट किया. फोटो धुंधला था लेकिन पहचान में आ रहा था। अभी के फोटोज से मिलान भी किया वह आश्वस्त हुआ कि फोटो मिलता है और यही वो चिट वाली लड़की है। सुनील ने उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी जो कुछ ही दिनों में उसने एक्सेप्ट कर ली। फिर क्या था! मैसेज करने का रास्ता खुल गया कुछ औपचारिक बातों के बाद हिम्मत कर कहा –‘तुम्हारी हाथ की लिखी चिटें अभी भी मेरे पास पड़ी है बल्कि उन चिटों ने ही तुम्हारी याद ताजा कर दी है और बैचेनी भी बढा दी है।’

‘अतीत कितना भी सुनहरा हो आखिर है अतीत, बीता हुआ समय। वर्तमान में उसकी कोई अहमियत नहीं क्योंकि जीना तो आज में है। फिर भी सुनहरे अतीत में विचरण करना सुहाना लगता है। यह एक खूबसूरत यादों का खजाना है। अब न वह उम्र लौटाई जा सकती है न वो इमोशनस।’

‘लगता है उम्र के साथ काफी समझदार हो गई हो। वो समय नासमझी का, कच्ची उम्र का था, परिपक्वता कहाँ थी! एक रंगीन दुनिया थी बस की काश समय ठहर जाता। समय कहाँ ठहर पाता है? हम भी समय के साथ हो लेते हैं।’

“अच्छा कल बात करेंगे। सोने का वक्त है. गुड बाय!”

न चाहते हुए भी उसने ‘गुड बाय’ कहा। एक दिन अनमना सा बीता कि क्या बात करे इतना मुखर होकर अपने दिल की बात कहना ठीक रहेगा जबकि वह अब उसका वर्तमान ठीक से जानता है। वे फेसबुक पर रहे लेकिन किसी ने कोई बात नहीं की। दूसरे दिन उसने हेलो हाय के बाद कहा,    

“एक बार मिलने की इच्छा है एक औपचारिक मुलाकात।”

“हाँ, हाँ क्यों नहीं आओगे तो अच्छा लगेगा।”

और एक दिन वह पहुँच गया उसके दरवाजे पर – “मैं सुनील” 

“आओ, आओ स्वागत है!” वे ड्राइंग रूम में बैठे। उसने बेटे को आवाज लगाईं, “आशु बेटे इधर आओ” आशु आ गया। “ये सुनील अंकल है, नमस्ते करो” सुनील ने नमस्ते कर उसे अपने पास बुलाया वह सुकुचाते हुए आया और सुनील ने उसे बाँहों में भर लिया। ‘हाउ स्वीट एंड क्यूट’ कहकर उसे चूम लिया। उसे लगा जैसे उसका ही बच्चा हो।

“कार्तिक, मेरे हसबैंड घंटे भर में आ जाएँगे। तब तक हम कॉफ़ी पी लेते हैं। वह रसोई में कॉफ़ी बनाने चली गई। उसने आशु को गोद में उठाया और बैठक में चहलकदमी करने लगा। थोड़ी ही देर में आशु ‘मम्मी-मम्मी’ करने लगा तो वह उसे रसोई में ले गया। वह उसकी गोद से उछलकर मम्मी की गोद में जाने लगा।                 

“लो भई, आपकी गोद में आने के लिए मचल रहा है।”  उसने उसे अपनी गोद में ले लिया।

“मैं ट्रे लेकर आता हूँ तुम चलकर बैठक में बैठो।” उसने रेनू से कहा।  

कॉफ़ी का एक घूँट पीकर सुनील बोला, “तुमसे बात करना मुझे अच्छा लगता है।” वह हँस दी, मेरी बाँह को पुश कर बोली, “मेरी बात रिपीट कर रहे हो।”

“नहीं, नहीं ये तो यूँ ही सहजता से निकल गया। क्यों, तुम्हें अच्छा नहीं लगा।”

“लगा तो जैसे उसी समय में लौट गई हूँ।” सुनील ने भावुक हो उसके चेहरे को हाथों में लेकर थपथपा दिया। “तुम कितनी प्यारी हो उस समय जैसी ही। मन करता है चूम लूँ,” उसने आँखे बंद कर ली जैसे कह रही हो चूम लो और उसने वाकई एक-एक कर दोनों आँखों को चूम लिया।

फिर वे चुपचाप कॉफ़ी पीते रहे। “कॉफ़ी कैसी बनी थी?”

“अच्छी, तुम बनाओ और अच्छी न बने यह संभव नहीं।”

इतने में डोर बैल बजी। रेनू ने कहा, “लगता है कार्तिक आ गया है।” उसने उठकर दरवाजा खोला। कार्तिक ही था।    

कार्तिक ने नये मेहमान को देखकर नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े। सुनील ने भी खडे होकर हाथ जोड़ दिए और आगे बढ़कर मुस्कराकर तपाक से हाथ मिलाया।  रेनू ने परिचय करा दिया। आशु पापा की तरफ लपक लिया और उन्होंने उसे गोद में उठा लिया। आशु बहुत ही पुलकित था। ‘आपके लिए कॉफ़ी बना लाऊं’ कहकर वह रसोईघर में चली गई।

वे बच्चे को लेकर बातें करते रहें। कार्तिक ने सुनील से परिवार के बारे में पूछा तो सुनील ने बताया, “परिवार में मैं, मेरी पत्नी और छोटी बेटी है। मम्मी-डैडी कोटा में  ही रहते हैं।” 

     लंच वहीँ हुआ। बाय बाय कर सुनील बाहर निकला तो उसके मन में ये ख्यालात आ रहे थे। ‘कितना बढ़िया खाना बनाती है रेनू, एक सुगढ़ गृहिणी। धन्य है कार्तिक कि उसे रेनु जैसी पत्नी मिली। आशु कितना प्यारा है! मुझे लगा जैसे मैं अपने ही घर में था। इतना अपनापा तो मुझे अपने घर में भी महसूस नहीं हुआ। जहाँ दिल मिलते हैं गहराई से तो अपनापा हो ही जाता है। कई मित्र है जिनसे सालों बाद बात करो तो भी कहीं कोई औपचारिकता नहीं जैसे कल ही उससे मिले थे वैसी ही फिलिंग मुझे उससे मिलकर हुई।’          

 “तुम्हें नहीं लगता कि हमारी रिलेशनशिप में कुछ डिस्टेंस होना चाहिए हम अतीत को लेकर वर्तमान को तबाह नहीं कर सकते। तुम्हारी भी फैमिली है, बीबी है, बच्चे हैं, उनकी तरफ तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है। ठीक वैसी ही मेरी भी बनती है। क्या मैं ठीक कह रही हूँ? अधिक से अधिक हम दोस्त रह सकते हैं और दोस्त की तरह व्यवहार करना ही हमारे लिए उचित होगा।”

“तुम बिलकुल ठीक कह रही हो उस दिन जो हुआ वह स्पर ऑफ़ मोमेंट में हो गया। उसके लिए सॉरी तो नहीं कहूँगा क्योंकि मुझे लगता है उसमें तुम्हारी भी सहमति थी। एनी वे, नाउ स्टार्ट अ फ्रेश रिलेशनशिप ऑफ़ फ्रेंड्स।”           

‘कितना परिपक्व और व्यवहारिक दृष्टिकोण है रेनू का ! खुद भी दुविधा से मुक्त हो गई और मुझे भी मुक्त कर दिया। हालाँकि प्रेम के झरने उधर भी बह रहे थे और इधर भी। प्रेम है तो झरेगा ही प्रेम तो परम कल्याण मित्र है दैहिक अभिव्यक्ति से परे वे अब एक दूसरे के सोलमेट बनकर रहेंगे।   

“धन्यवाद मेरे मन का भी बोझ हल्का हुआ। तुम्हारी मित्रता अमूल्य है ऐसे मित्र  सौभाग्य से मिलते हैं।” सुनील ने कहा।