Turkalish - 4 in Hindi Love Stories by Makvana Bhavek books and stories PDF | तुर्कलिश - 4

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तुर्कलिश - 4

हजाल ने मेरे लिए एक चिट्ठी के साथ बर्थडे का गिफ्ट भी भेजा था। हजाल ने कहा कि ये सब मेरे पास पंद्रह दिनों में पहुँच जाएगा। मैं संभावनाओं को लेकर बेहद खुश था कि एक लड़की मुझे तोहफा भेज रही है और लड़की भी विदेशी!

 

अपने माता-पिता से बात करने और लंच के बाद, मैं फिर से सो गया। मैं देर शाम सोकर उठा और काफी आलस महसूस कर रहा था, लेकिन फेसबुक पर हजाल को ऑनलाइन देखा तो उससे चैट करने लग गया। 

 

पता नहीं, क्योंकि हजाल थोड़ी उदास लग रही थी और इस वजह से उसे खुश करने के लिए मैंने उसे बताया कि मैं उसके लिए कुछ और कविताएँ लिखने की सोच रहा हूँ।

 

"प्लीज, आप मेरे लिए ज्यादा कविताएँ मत लिखना, नहीं तो आपको छोड़ना मेरे लिए मुश्किल हो जाएगा।" 

 

"तुम्हें मुझे छोड़ने की जरूरत नहीं है। हम हमेशा वैसे ही बने रह सकते हैं, जैसे अभी हैं।" मैंने कहा।

 

"आप नहीं समझेंगे 'अरकदासिम'। यहाँ टर्की के हालात अच्छे नहीं हैं। सबकुछ बदल रहा है और मुश्किल हो रही है।"

 

"क्या अच्छा नहीं है?"

 

"आपको जल्दी ही पता चल जाएगा। मैं नहीं चाहती कि मेरे भविष्य को लेकर आपको दुःख हो।" उसने पहेली बुझाने के अंदाज में कहा।

 

"मेरा यकीन मानो, मैं अभी जितना खुश हूँ, उतना पिछले तीन साल में कभी नहीं था। मुझे तुम्हारे जैसा दोस्त मिला है।" मैं दोस्त शब्द जोड़ना कभी नहीं भूलता था। 

 

मैं चाहता था कि मैं सीधे तौर पर उसे कह देता कि मुझे अब उससे प्यार होता जा रहा है, लेकिन कभी इसका हौसला नहीं जुटा सका। मुझे डर था कि कहीं वह हमारी दोस्ती को खत्म न कर दे।

 

"तेस्सेकुर एदेरिम अरकदासिम (शुक्रिया मेरे दोस्त)। आप बहुत अच्छे इनसान हैं।" उसने कहा। 

 

हम रात तक चैट करते रहे। हमारी चैट में एक कॉल से खलल पड़ी। अंकित का फोन था, जो हमेशा की तरह ही तनाव में था। अंकित मानसिक रूप से बीमार की तरह बातें करने लगता था और उसकी बातों का मतलब समझ नहीं आता था। 

 

किसी तरह मैंने जैसे-तैसे उससे बातचीत खत्म की। मुझे हजाल की चिंता सता रही थी। मुझे लगा कि यह सिर्फ एक दौर होगा, जिससे वह पढ़ाई के तनाव की वजह से गुजर रही होगी।

 

मैं उसके लिए कुछ और कविताएँ लिखने में जुट गया। मुझे अब भी उम्मीद थी कि हमारी दोस्ती प्यार में बदल जाएगी और मेरी कविताएँ उसके दिल को अपने वश में कर लेंगी। 

 

मैं हजाल के तोहफे के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। इस एक हफ्ते में, मैंने उसके लिए कुछ और कविताएँ लिख लीं। उनमें से एक, जो मुझे बेहद पसंद थी, वह थी-

 

घास के उसके मैदान में पहली बार जो सुना उसका नाम, 

चल पड़ा उसके पीछे, कहाँ और क्यों जाने बिना, 

चाहे मुझे कुछ भी न दे रहा हो दिखाई, 

अपने दिल से रास्ते मुझे वह लेकर चली, 

घास के एक मैदान में,

 

जहाँ आज भी गूँजती है, उसके कदमों की आहट 

पहली बार जो सुनी उसकी आवाज, 

चल पड़ा उसके पीछे अँधेरे में अपनी मासूमियत के साथ, 

चाहे मुझे कुछ भी न दे रहा हो दिखाई, 

अपनी आँखों की रोशनी से मुझे वह लेकर चली, 

घास के एक मैदान में,

 

जहाँ उसकी मुसकराहट से मेरा दिल भर जाता था उसके प्यार से,

पहली जो मैंने सुनी उसकी फुसफुसाहट, 

चल पड़ा उसके पीछे, उसकी प्यार की ओर उठे मेरे पहले कदम, 

अपने होंठों की पतली लाल गलियों से वह मुझे लेकर चली, 

घास के एक मैदान में,

 

जहाँ मेरी खाली आँखें देख रही थीं उसकी परछाई की राह

प्यार करने के हैं रास्ते हजारों, जिन्हें मैं अब मैं जान गया हूँ, 

और चूमने के हैं तरीके हजारों, जिन्हें मैं अब जान गया हूँ, 

घुटनों के बल बैठने और अँधेरे में हाथ थामने के तरीके हजारों,

 

मगर इन सबको एक ही स्त्री करेगी महसूस और वह कोई और नहीं वही होगी. 

 

मैं पूरे मन से उम्मीद कर रहा था कि इन कविताओं को पढ़कर हजाल समझ जाएगी कि मैं महज दोस्ती से कहीं ज्यादा की तमन्ना रखता था। 

 

मैंने चार कविताओं को दो टी-शर्ट पर प्रिंट करवाया, दोनों तरफ एक-एक। उन पर अपनी पसंदीदा मस्क परफ्यूम को छिड़का और उन्हें पार्सल से टर्की के मर्सिन नामक शहर भेज दिया। 

 

मैं इंतजार कर रहा था कि हजाल का तोहफा मेरे पास पहुँचने से पहले ही मेरा तोहफा हजाल के पास पहुँच जाए, इसलिए मैंने इस बार उसे महँगे डी.टी.डी.सी. कूरियर के जरिए भेजा था। 

 

मैं चाहता था कि इस बार हजाल पूरी तरह से आश्चर्य में पड़ जाए, इसलिए इस बार मैंने उसे नहीं बताया कि मैंने उसे कविताएँ भेजी हैं। मैं बस उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा था। 

 

मेरा तोहफा उसके पास पहुँच गया। मैंने जितनी उम्मीद की थी, उससे भी कहीं जल्दी। लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ, उसने मुझे पूरी तरह तोड़कर रख दिया।

 

हमेशा की तरह ही सुबह उठने के बाद मैं सबसे पहले यही देखता था कि हजाल ने क्या मैसेज किया है।

 

"कनिम अरकदासिम (मेरे प्यारे दोस्त) मुझे आपकी कविता कल मिली। मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूँ। लेकिन कविता ने मुझे यह भी याद दिलाया कि यह खुशी हमेशा नहीं रहेगी।"

 

"मैं आपको और चोट नहीं पहुँचाना चाहती। न ही आपकी दोस्ती या प्यार को झूठी उम्मीद देना चाहती हूँ। मैं आपको चाहती हूँ और मैं जानती हूँ कि आप भी मुझे चाहते हैं, लेकिन इस चाहत का कोई मुस्तकबिल (भविष्य) नहीं है।"

 

"मुझे उम्मीद है कि आपको मेरा तोहफा बहुत जल्द मिल जाएगा। उसमें एक चिट्ठी है। उसे पढ़कर आप समझ जाएँगे कि मैं आपको क्यों छोड़ रही हूँ।"

 

"आलोक, आपके बारे में जानना मुझे बहुत अच्छा लगा। 'गुडबाय मेरे दोस्त।' मेरी अच्छी यादों को बनाए रखना।"

 

उसने फिर से अपना अकाउंट डिएक्टिवेट कर दिया था और इस बार ऐसा नहीं लगा कि वह लौटकर आएगी। 

 

मैं उसके तोहफे और चिट्ठी का बेसब्री से इंतजार करता रहा। आखिरकार, 1 मार्च को सुबह लगभग 11 बजे, मुझे पोस्ट ऑफिस से फोन आया कि मेरे लिए टर्की से एक पार्सल आया है। मुझे उसे लेने पोस्ट ऑफिस आना पड़ेगा, क्योंकि मुझे उन चीजों के बदले कस्टम टैक्स चुकाना होगा। 

 

उत्सुकता के साथ, मैं तुरंत ओल्ड राजेंद्र नगर पोस्ट ऑफिस की ओर बढ़ गया।

 

मैं यह देखकर हैरान रह गया कि हजाल ने मेरे लिए जो तोहफा भेजा था, वह 25 सेमी. लंबे और 25 सेमी. चौड़े एक छोटे से वर्गाकार बॉक्स में था। मैंने कस्टम टैक्स के तौर पर तीन सौ रुपए चुकाए और तुरंत उस बॉक्स को लेकर अपने कमरे के लिए निकल गया। 

 

मैंने बॉक्स को सँभालकर रखा था, ताकि वह गिर न जाए और उसके भीतर जो कुछ है, उसे नुकसान न पहुँचे। इतना उत्सुक तो मैं कभी अपने यू.पी.एस.सी. रिजल्ट को देखते समय भी नहीं रहा।

 

मैंने उस तोहफे को खोला। सावधानी से उस पर लगे स्टैंप को उखाड़ा, ताकि उसे टर्की की निशानी के रूप में रख सकूँ। मैंने जब पैकिंग को धीरे-धीरे हटाना शुरू किया तो अंदर की चीजें एक-एक कर बाहर आने लगीं। मैंने जब तोहफे को पूरी तरह खोल दिया तो मेरी आँखें भर आई। 

 

 

To be continue....................