Pehla Pyar - 8 - Last Part in Hindi Love Stories by Kripa Dhaani books and stories PDF | पहला प्यार - भाग 8 (अंतिम भाग)

Featured Books
Categories
Share

पहला प्यार - भाग 8 (अंतिम भाग)

आपके जन्म दिन का उपहार आपकी दोस्त इसाबेला है। आपको जानने का हक है कि आपकी दोस्त और पहला प्यार कौन थी? कैसी थी? और इसाबेला को भी हक़ है कि जिसकी वो दोस्त थी, जिसे उसने ख़ामोशी से चाहा, जिसका नाम आखिरी सांसों तक उसकी ज़ुबान पर था, वो उसके बारे में जाने। उसकी एक तस्वीर इस ख़त के साथ छोड़े जा रही हूँ। ये थी आपकी इसाबेला।“

लिफ़ाफे में एक तस्वीर थी। राज ने उसे देखा और देखता रह गया। ख़त लिखते वक़्त वह जो कल्पना किया करता था, आज हक़ीकत बनकर उसके सामने थी। सूरज की किरण सी उजली, नीली आँखों और सुनहरे बालों वाली परियों की शहजादी उस तस्वीर में मुस्कुरा रही थी।

कुछ देर तक वह इसाबेला की तस्वीर को देखता रहा, फिर उसकी कब्र को। उसकी आँखों में आँसू छलक आये। अपनी दोस्त और पहले प्यार से यूं मुलाक़ात होगी, उसने कभी सोचा न था। वह वहीं बैठ गया और इसाबेला के ख़त में लिखी बातें याद करने लगा। अब तक वह ख़ुद को ख़ुशनसीब समझता था, मगर अब वह भी उन बेशुमार लोगों में शुमार हो चुका था, जो अपने अधूरे पहले प्यार की कसक लिए जीते हैं।

कुछ देर बाद अचानक उसे बेला का ख़याल आया और वह कब्रिस्तान से बाहर भागा। कार उसने सीधे बस स्टैंड की तरफ दौड़ाई। तब तक मसूरी की बस छूट चुकी थी। बस स्टैंड में बेला उसे कहीं नज़र नहीं आई। वह मायूस होकर घर लौट आया और बाहर बरामदे में रखी कुर्सी पर सिर झुकाकर बैठ गया।

"क्यों चली गई बेला? लौट आओ।" वह दिल ही दिल में उसे पुकार उठा।

"बेला ये सच है कि पहले पहल मैं तुम्हारी बातों में उन बातों का सिरा ढूंढा करता था, जो उन ख़तों में था; मैं तुममें उन एहसासों को ढूंढा करता था, जो उन ख़तों के ज़रिये मेरे दिल में रच बस गए थे; पर उन्हें पा नहीं पाता था। तुम मुझे जुदा सी लगती...अजनबी सी। मगर साथ रहते-रहते तुम दिल में उतरती चली गई। हाँ, उन ख़तों के ज़रिये मैंने एक अनदेखी लड़की से प्यार किया था। वो मेरा पहला प्यार थी। पर आज तुम मेरी ज़िन्दगी में हो और मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता बेला....प्लीज वापस आ जाओ।“

वह सिर झुकाये बैठा था। चारों ओर के कोलाहल के बावजूद उसके दिलो-दिमाग में एक सन्नाटा-सा पसरा हुआ था। तभी अचानक चूड़ियों की खनक उसके कानों में पड़ी और एक नाजुक हाथ ने चाय का प्याला उसके सामने बढ़ाया। उसने सिर उठाकर देखा। बेला उसके सामने खड़ी थी...ख़ामोशी से उसे निहारती हुई। उसने चाय का प्याला लेकर टेबल पर रख दिया और उठकर बेला को बाहों में भर लिया।

"बेला! जो बोझ तुम अपने सीने पर लेकर जी रही हो, उसे उतार दो। अब तुम्हें ग्लानि में जीने की ज़रूरत नहीं। जो हुआ, वो तुम्हारी ग़लती नहीं थी। शायद तकदीर में यही लिखा था। इसाबेला की रूह तुम्हें यूं घुटते देख कभी सुकून नहीं पा सकेगी और मैं तुम्हें उदास देखकर जी नहीं सकूंगा। बेला तुम मेरा पहला प्यार न सही...पर वो प्यार हो, जो आज मेरे दिल में धड़कन बनकर धड़कता है। मैं तुम्हें हमेशा ख़ुश देखना चाहता हूँ। तुम्हारी ख़ुशी मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है। उससे बढ़कर कुछ भी नहीं।"

बेला की आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे और वो ख़ामोशी से राज की बाहों में सिमटी हुई थी। अतीत से जुड़ी हर ग्लानि, हर दर्द को पीछे छोड़कर अब उसे आगे बढ़ना था और उसका राज उसके साथ था।

**समाप्त**