Prem Gali ati Sankari - 152 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 152

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प्रेम गली अति साँकरी - 152

152====

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संस्थान से पता चला सोमवार को सितार की प्रमेश वाली कक्षाएं नहीं ली गईं थीं| संस्थान के नियमानुसार सभी को अपनी एंट्री रजिस्टर करनी पड़ती थी अथवा छुट्टी लेने पर सूचना देनी पड़ती थी| यह सब सूचनाएं पहले अम्मा के या शीला दीदी के पास जाती थीं अब शीला दीदी और मेरे पास आतीं| उस दिन ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया| 

अगले दिन जब सुबह मंगला कॉफ़ी और पेपर लेकर आई भौंचक सी और घबराई हुई थी| कॉफ़ी टेबल पर रखकर उसने गुड मॉर्निंग कहा और मैं उसे जवाब देकर वॉशरूम की ओर चली| कुछ ही देर में मैं वापिस आई तो मंगला वहीं थी और पेपर में आँखें गड़ाए न जाने क्या पढ़ रही थी| मुझे आश्चर्य हुआ , वह अँग्रेज़ी का पेपर था जिस पर मंगला की आँखें बड़ी आसानी से फिसल रही थीं| 

“क्या हुआ मगला?”मैंने उसे अखबार में इतना डूबा हुआ देखा तो आश्चर्य से पूछा | 

“दीदी! रीड दिस न्यूज़—”उसके मुँह से सहजता से निकला| अब फिर से उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था| 

“क्या हुआ?”मैंने कुछ उत्सुकता और आश्चर्य से उसके हाथ से पेपर लिया और अपनी खिड़की वाली कुर्सी की ओर चल दी| 

लोकल न्यूज़ के आगे के पेज पर ही प्रमेश और उसकी दीदी की तस्वीर और कहानी थी| उन्हें पुलिस की गिरफ़्त में ले लिया गया था| समाचार में संस्थान का नाम भी था और पता चला कि बंगाल की, दक्षिण की और दिल्ली की पुलिस लंबे समय से उनके पीछे थी और प्रमाण एकत्रित कर रही थी | रविवार की रात को उनका स्कैंडल पकड़ लिया गया| तीनों राज्यों के पुलिस महकमे इनके पीछे थे| जिस घर में शानोशौकत से ये रह रहे थे, वह भी इसी तरह किसी के बंगले पर कब्ज़ा किया हुआ था| जिसका वह घर था वह आदमी परिवार सहित विदेश में रहता था और न जाने कब से उसका यह खूबसूरत बंगला इन माँ-बेटे के हाथों में था| 

हुआ कुछ यूँ था कि जहाँ-जहाँ इन माँ-बेटे ने स्कैंडल्स यानि ये खुराफ़ातें कीं थीं सभी लोगों ने मिलकर प्रमाण सहित इन पर अटैक किया था जिसकी तैयारी न जाने कितने लंबे समय से चल रही थी| न जाने कितने और लोगों को भी इनके साथ में पकड़ा गया था| मैं इतनी आश्चर्यचकित और भौंचक्की थी कि समाचार पढ़कर अपनी कुर्सी पर सिर टिकाकर ढीली होकर बैठ गई| कॉफ़ी पानी हो चुकी थी और मैं आश्चर्य से अपने सामने खड़ी हुई मंगला के चेहरे पर अपनी दृष्टि घुमा रही थी| 

“दीदी ! कॉफ़ी ठंडी हो गई, मैं और लाती हूँ---”मेरे कुछ कहने से पहले ही वह ट्रे उठाकर निकलने लगी| 

“मंगला ! दो कप कॉफ़ी लाना---” मैंने उसे टोकते हुए कहा | उसने कुछ नहीं कहा और कमरे से बाहर निकल गई| 

शायद मैं लगभग दस मिनट तक अपने सामने मेज़ पर पड़े अखबार को घूरती रही| इतना बड़ा धोखा ! कुछ गड़बड़ है , यह तो पहले से ही मालूम था लेकिन ऐसा?? समाचार में संस्थान का नाम और अम्मा-पापा के साथ मेरे नाम का भी जिक्र था यह भी बड़ी बात थी, खैर वह तो आना ही था| 

“ये दो कॉफ़ी दीदी?”कुछ ही देर में मंगला दो कॉफ़ी लेकर आ गई, उसकी आँखों में दो कॉफ़ी के लिए प्रश्न था| 

“आओ, सामने बैठो ---”मैंने मंगला को अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा किया| 

“लेकिन ---मैं ? क्यों दीदी ?” मंगला ने पूछा

“बैठो भी और कॉफ़ी पीयो----”

“मैं दीदी ?”

“और कौन है यहाँ ?” वह मेरे सामने संकोच के साथ बैठ गई| 

“तुम पढ़ी-लिखी हो मंगला?अँग्रेज़ी का पेपर पढ़ लेती हो मतलब---?”

वह काफ़ी देर तक चुप बैठी रही फिर बोली ;

“दीदी !वो तो यूँ ही थोड़ा बहुत ---”

“अँग्रेज़ी का पेपर पढ़ रही हो, और कैसे सीखा यह सब ?”

“कुछ लोग ऐसे भी मिले दीदी जिन्होंने मेरी इच्छा जानकर मुझे किताबें लाकर दीं| अपने देवदासी के काम को करते हुए ही मैंने उन किताबों को पढ़ना शुरू किया| मुझे शब्द ज्ञान भी वहाँ की एक देवदासी ने ही दिया| बहुत अच्छी बुज़ुर्ग स्त्री थीं| बहुत प्यार करने लगीं थीं मुझे और चाहती थीं कि मैं किसी तरह उस चंगुल से निकल जाऊँ लेकिन इतना आसान कहाँ था| न जाने किस भगवान ने मुझे माँ बना दिया था | वे मेरे लिए बहुत दुखी व परेशान थीं लेकिन लड़की गर्भ में है पता चलते ही मेरा और ध्यान रखा जाने लगा, लड़का होता तो उसका गर्भ गिरवा देते वे लोग लेकिन लड़की थी यानि एक और भगवान पर समर्पित करने का फूल तो ??

बड़ी उम्र होने के बाद उन बुज़ुर्ग दादी माँ से ही मुझे लाड़-प्यार व अक्षर-ज्ञान हुआ | उनका पूरा यौवन इन तथाकथित भगवानों की सेवा में बीता था| अधेड़ उम्र हो जाने पर उन्हें कौन पूछने वाला था?ऐसे ही अनगिनत अधेड़ स्त्रियों की दुर्दशा देखकर कोई भी सिहर उठता केवल इन तथाकथित भगवानों के ! एक तरह से कहा जाए तो वे बहुत भाग्यशाली थीं जो ऐसी निरीह स्त्रियों के लिए कुछ न कुछ करने की कोशिश करती रहती थीं | समाज की इस व्यवस्था पर उनके मन में बहुत पीड़ा होती और वे इन महिलाओं की बेहतरी के लिए कुछ न कुछ प्रयत्न करती रहतीं| वहाँ वे कहीं दूर रहती थीं , न जाने कहाँ से आध्यात्म की किताबें मँगवाती और उन्हें पढ़ती रहती थीं | उनका स्वर भी बहुत मीठा था और वे जब ईश्वर की भक्ति में लीन हो जातीं, उनकी आँखों से झर-झर आँसु बहने लगते थे| उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला| बस उनसे ही मुझे कई भाषाओं का थोड़ा थोड़ा ज्ञान हुआ और स्वर व सुर का भी !”

मैं उसकी बातें सुनकर कहीं गहरे डूब गई थी, मैं सोच रही थी कि कितनी गहराई थी मंगला की बातों में!कितनी सच्चाई थी उसकी बातों में !कितनी पीड़ा थी उसके मन में !अचानक मुझे ख्याल आया;

“कॉफ़ी तो पीयो---” मैंने कहा और उसने धीरे से मग उठाकर अपने होंठों से लगा लिया| मेरा मन उसके चरित्र में उलझा हुआ था, अखबार की न्यूज़ से मुझ पर कोई खास फ़र्क नहीं पड़ा सिवा इसके कि मैं और अधिक निश्चिंत हो गई| मुझे तो बड़े स्वाभाविक और सरलता से छुटकारा मिल जाएगा, मैं जानती थी| कैसी लंबी साँस ली थी मैंने और एक रिलैक्स मूड में आ गई थी | अभी तो संस्थान में तहलका मचेगा, मैंने सोचा और एक अजीब सी हरारत मेरे चेहरे पर उतर आई | 

“तुम चिंता मत करो, बहुत अच्छे समय पर भाग आईं, सब ठीक हो जाएगा| तुम गाती भी हो, यह एक और शुभ समाचार है | ”मैंने मंगला को आश्वस्त करते हुए कहा, वह शरमा गई| 

संस्थान में कला की सभी विधाओं में ज्ञान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं के माता-पिता अधिकतर सभी संस्थान में एक चक्कर लगाकर गए थे | जो हमारे परिवार के करीब थे उनके मुझ पर या शीला दीदी पर फोन्स आते रहे | संस्थान की वर्षों की प्रतिष्ठा कोई छोटी-मोटी तो थी नहीं और अधिकांश लोग इससे वकिफ़ थे | कमिश्नर सिंह ने संस्थान के चारों ओर खासी पहरेदारी बैठा दी थी | वैसे कोई चिंता नहीं थी लेकिन उन्हें एक तो यह लग रहा था कि कहीं कोई अनजाना आदमी संस्थान में घुसकर कुछ और गड़बड़ न कर दे, दूसरा मंगला भी तो वहाँ थी, हो सकता था कोई मंगला को भगाने के चक्कर में कुछ कर बैठे | 

“मंगला की सुरक्षा के लिए बहुत चिंता है मुझे अंकल---”मैंने उनसे कहा था | 

“तुम बिलकुल चिंता मत करो, ऐसे क्या कोई सरेआम डाका पड़ रहा है?हम किसलिए हैं ?”मैंने सिंह अंकल को केवल इस बात के कि मंगला देवदासी है , इसे छोड़कर सब बातें बता दीं थीं| मैंने उन्हें बताया था कि उसके गाँव में उसका वह आदमी उसके पीछे पड़ा हुआ था जिससे उसने शादी की थी और अब बेटी को भी बड़ा होते देखकर वह माँ, बेटी दोनों का सौदा करके उन दोनों को कहीं बेचने जा रहा था कि मंगला को इस बात की भनक पड़ गई और वह अपने गाँव से चुपके से रात में बेटी को लेकर भाग आई लेकिन उसके दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और उसकी बेटी उससे छिन ही गई| 

कमिश्नर साहब भी बहुत संवेदनशील हो उठे थे और उन्होंने मुझसे वायदा किया था कि वैसे तो बहुत मुश्किल था इस प्रकार उस बच्ची को ढूँढना लेकिन बातों-बातों में मंगला ने अपनी चाँदी की वह चेन जिसमें उसकी और उसकी बेटी कि तस्वीर लगी हुई थी, दिखाई थी | 

“एक बार मुझे मौका मिल गया था दीदी, वो बड़ी अम्मा जी थीं न उन्होंने हमारी फ़ोटो खींची थी और ये चेन भी वो ही बनवाकर लाईं थीं | उन्होंने बड़े लाड़ से मुझे यह पहनाई थी लेकिन इसमें मेरी बिटिया लगभग 7/8 साल की होगी| फिर भी पहचानी जा रही है | अब भी ऐसी ही लगती होगी वो दीदी----”अपनी बेटी की लॉकेट में लगी तस्वीर को प्यार करते हुए वह बोली थी| 

मुझे अजीब सा ही लग रहा था लेकिन वह सब स्वाभाविक ही था| इतने बड़े संस्थान से जुड़े लोगों के मन में प्रश्न उठने स्वाभाविक थे जिनका उत्तर कमिश्नर सिंह ने बहुत खुलकर दिया था| 

“होती रहती हैं ऐसी वारदातें, यह दुनिया है जी, हम दिन-रात ऐसे लोगों से जूझते हैं, उनके हल भी निकलते हैं| देखते हैं, इसका भी कुछ होगा| ऐसी बातें रातों-रात हल नहीं हो जातीं समय लगता है| ” कमिश्नर साहब ने संस्थान का सिंह-द्वार बंद करवाकर वहाँ से सबको संबोधित किया था| प्रेस भी खूब जमा हो गई थी और सिंह अंकल ने कहा था कि मुझे या संस्थान के किसी भी प्रमुख कार्यकर्ता को अभी किसी से कोई बात करने की या उत्तर देने की ज़रूरत नहीं थी | 

कमिश्नर सिह की बातें सुनकर लोग शांत हो गए। मुझे लग रहा था शायद संस्थान पर इसका कुछ प्रभाव पड़ेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ | 

बाद में मैं, शीला दीदी, रतनी , इन दोनों के पति, बच्चे और महाराज व सभी महत्वपूर्ण स्टाफ़ के लिए प्रेस भी आई और कई बातें जानकर चली गई| मंगला से भी प्रश्न पूछे गए जो उसे पहले भी समझा दिया गया था कि वह यह मुँह से भी न निकाले कि वह देवदासी है| 

“आपने कमिश्नर साहब को भी नहीं बताया कि मंगला देवदासी है?” शीला दीदी ने जिज्ञासावश पूछा| 

“इसकी ज़रूरत नहीं है न शीला दीदी, अभी बात फैलेगी तो लंबी फैल जाएगी और मंगला के आचरण पर कई प्रहार हो सकते हैँ, वैसे इस बात को खोलने से फ़ायदा भी तो कुछ नहीं है| मेरी पापा, अम्मा और भाई से बात हो चुकी है| हमारे संस्थान की इज़्ज़त भी इस सबसे जुड़ी है, जो हो चुका वह तो हो ही चुका | ”

शीला दीदी और रतनी की समझ में बात आ गईथी| अगले दिन इस बारे mन न jआने कितनी नई-नई कहानियाँ बुनी गईं और लगभग हफ़्ते भर तक पत्र-पत्रिकाएं नई–नई कहानियाँ सुनते रहे | हमें लगता था कि इस सबका संस्थान पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और हम सब अपने कामों में लगे रहे|