मुझे हमेशा दोषिता महसूस होता है क्योंकि मैंने एक ऐसे शख से मोहब्बत कर बैठा जो मेरे दोस्त की पत्नी है। कभी-कभी लगता है कभी-कभी लगता है कि मैं बहुत बड़ा जुर्म नहीं किया किंतु अंतरात्मा नहीं मानता है, क्योंकि जुर्म तो जुर्म होता है चाहे छोटा हो या बड़ा। अब आप ही बताओ हैं कि मेरी दोषिता है या नहीं।
घटना वर्ष 2023 की है जब मेरी पत्नी मुझे बहुत सताती थी। मुझे हर एक कार्य के लिए प्रतिबंधित करती थी। मैं बहुत परेशान रहता था। मैं अपनी पत्नी से बहुत तंग आ गया था। मैंने प्रेम विवाह किया था जिस कारण मेरी पारिवारिक संबंध सही नहीं थे। मैं खूब रोता था फिर मुझे सिगरेट जैसी नसेली पदार्थों का सेवन करना अच्छा लगने लगा। मैं बहुत दुःखी रहता था। एक दिन अचानक ड्यूटी समय में राधा का फोन आया, ये हमारी पहली बातचीत थी। उसने व्हाट्सएप में मैसेज की थी "बात करेंगे क्या?" मैंने पूछा क्या ? क्या बात करनी है कॉल करिए। मैं बहुत दुखी था इसलिए ऐसा खडूसवाला जवाब दिया अन्यथा मैं किसी से इसे गुस्से में बात नहीं करता। फिर बात हुए उसने पुछा " बहुत दुःखी रहते है क्या बात है पत्नी सेवा सत्कार नहीं करती क्या?" पता नहीं उसे ऐसा क्यों लगा पर मेरा मन भर आया था, किसी प्रकार अपने आप को रोका बातचीत होती चली। ज्यादातर हमारी बातें व्हाट्सएप कॉल पे ही होती थी ताकि किसी को पता न चले और ड्युटी समय में ही होती थी।
धीरे धीरे हमारा संबंध गहरा होता गया वो भी अपनी बातें बताने लगी। मुझे लगता था वो भी दर्द में है क्योंकि मैं कई बार पूछा की उनके पति साथ क्यों नहीं रहते तो जवाब ताल देती। मैं अब उसे रास्ते में देख देख के मुस्कुराता था। वह भी बहुत खुश होती थी। मैं अब अपना दर्द भूल गया था और अब उसके लिए सोचना प्रारंभ कर दिया। अब मेरे लिए उसको खुश रखना ही मेरा लक्ष्य हो गया था। अब सिर्फ उसके बारे में ही सोचता था।
एक दिन उसने मुझे अपना घर बुलाया ड्यूटी समय ही। मेरी तो धड़कने तेज थी परंतु पहुंचा। उसने बैठने को बोला फिर कॉफी पीने दी जिसपे दिल बना हुआ था। मैं थोड़ा मुस्कराया वैसे आदत है मेरी।
वह कुछ कहना चाह रही थी किंतु कुछ कह न सकी बस लग रहा था कि कुछ तो बात है। मुझे ड्युटी के लिए भी जाना था चुपके से आया। उसने भी बोल दी अभी जाइए काम में बेईमानी नहीं करनी चाहिए। सिर्फ बोली करीब से देखने का मन था ऐसे ही थोड़ी बहुत बातचीत हुए और में चल दिया। वह दरवाजे पे बाई बाई की और मुस्कराई।
अचानक शाम को रोने वाला इमोजी भेजी, मैं अकेले था तुंरत कॉल किया बोलती है" मिलने का मन कर रहा है सुबह अच्छे से नहीं मिल पाया आपको कुछ समझ नहीं आता। दिन भर से मन नहीं लग रहा हैं और सिसक सिसक के रोने लगी। बोली नहीं बात करेंगे रख दीजिए आपको कुछ समझ में नहीं आता है।" मेरी तो बोली ही बंद थी बस किसी प्रकार पत्नी से बहाने बना कर रात घर पर न रहने के लिए मनाया और रेलवे पुलिया के पास जाकर बातें करता रहा। रात 9 बजे उसके घर के छत पे आने का विचार किया गया, तब तक उसका बेटा सो जाता था। रात को उसके छत पे पहुंचा उसने एक चटाई बिछा के रखी थी और एक बोतल पानी। पहुंचते ही उसने जोर से हग की और माथे पे चूमी, बोली " आपको बहुत याद की मन नहीं लगा आज काम में" फिर हमने उसका हाथ पकड़ा और दोनों घूम घूम के बातें करने लगे। ऐसे ही बहुत कुछ बात हुए फिर उसने चटाई पे बैठने को कही वह पैर पसार के बैठ गई मैं भी उसके करीब बैठ गया फिर उसने मेरे माथे पे हाथ रखा और सहलाने लगी बोली " बहुत थक जाते है न काम करते करते और आपकी पत्नी आपकी सेवा भी नहीं करती न? और एक मैं हूं अपने पति का इतना सेवा करती हूं फिर भी वे मेरे से प्यार नहीं करते। उन्हें मैं पसंद नहीं आती हूं उन्हें सिर्फ मेरा खाना पसंद है और सेक्स करना। सेक्स तो होना ही है किंतु बहुत सताते हैं सेक्स के समय जानवर के तरह करतें है जो मुझे पसंद नहीं है। जो मुझे पसंद नहीं है मुझे आपसे उम्मीद हैं कि आप मेरे जिस्म से नहीं मेरे से प्यार करेंगे, राधा की तरह प्यार चाहती हूं मैं। " मैं पुरी तरह से उसमे विलीन हो चुका था क्योंकि माथा सहलाते सहलाते कब में उसके गोदी में माथा रख दिया पता ही भी चला। मैं पुरी तरह से तबतक उसे पूरी तरह हृदय में बसा चुका था और अंततः वचन भी दे दिया कि राधा की तरह ही प्यार करूंगा। ऐसे ही सहानुभूति देता रहा और वचन पे वचन देता गया। मुझे बस लग रहा था कि अब उसका हो चुका हूं। अंततः मैं अपना घर निकल पड़ा।
अगले हिस्से में बाकी बातें होगी लेकिन बतावे कि अबतक मैं गलत हूं या नहीं......