बेचैन मन
“क्या हुआ आप चुप क्यों हो गए? आपको मेरी पढाई पसंद नहीं आई क्या?” कोयल की आवाज सुनकर मेरा ध्यान टूटा।
“नहीं बिलकुल पसंद नहीं आया।” मैंने जवाब दिया। मेरा जवाब सुनकर कोयल थोड़ा ठिठक सी गयी।
“क्यूँ क्या हुआ, आप अभी तक मुझसे नाराज हैं क्या? उसने बहुत ही सहमे गले से पूछा।
“हाँ, बिलकुल नाराज होने वाली बात ही है। एक बात बताओ, तुमने मुझे कहा कि मैं तुम्हे तुम कहूँ और तुम खुद मुझे आप कह रही हो, ये क्या है? नाराज होने वाली बात नहीं है? और रही बात पढ़ाई की, तो उससे मैं क्यों नाराज होऊँगा? उसमें तो बहुत ही ख़ुशी की बात है कि तुम अच्छी पढाई कर रही हो। मैंने बस ग्रेजुएशन तक ही पढ़ाई की है। आगे मैं भी पढ़ना चाहता था मगर पढ़ नहीं पाया। इसलिए किसी को भी आगे पढ़ते देखता हूँ तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है। तुम भी मुझे अभी प्रॉमिस करो कि अब तुम भी मुझे आप कह के नहीं बुलाओगी।”
मेरे इस जवाब से कोयल ने राहत की सांस ली। अब एक और राहत की साँस मेरे लिए यह भी थी कि हमदोनों एक-दूसरे के नजदीक आते जा रहे थे। दोनों को एक-दूसरे की बातें बहुत अच्छी लग रही थी।
“तुम बहुत ही ज्यादा शरारती हो, मैं तो बिलकुल डर ही गयी थी कि ऐसी क्या बात हो गयी कि तुम मुझसे इतना नाराज हो गए हो। चलो अब मैं भी तुम्हें तुम ही कह के बुलाऊँगी, अब खुश हो न?” कोयल ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा।
“हाँ बहुत ज्यादा खुश हूँ।” सचमुच उस समय मेरी ख़ुशी का कोई पार नहीं था।
“अच्छा यह तो बताओ, तुम रहते कहाँ हो?” कोयल ने झट से मुझसे पूछा।
“मैं रामपुर में रहता हूँ। यहीं मेरा घर भी है। तुम कहाँ रहती हो?” मैंने भी कोयल से तुरंत ही पूछ दिया।
“अरे वाह तुम रामपुर में रहते हो...!” उसके बोलने में इतना आश्चर्य था कि मुझे लगा कि वो भी यहीं रहती है और उसकी बात ख़त्म होने के पहले ही मैंने पूछ दिया,
“हाँ, और तुम भी यहीं रहती हो न?”
“अरे नहीं, हम शादी में तुमसे रामपुर में मिले थे इसका यह मतलब थोड़े ही न हुआ कि मैं भी रामपुर में ही रहती हूँ।” उसने जब इतना कहा तो मेरे दिल में जितने भी गुब्बारे उड़ रहे थे, सब एक-एक करके फूट गए। मेरा मन उदास हो गया।
“मेरा घर मोरादाबाद में है।” उसने जब इतना कहा तो फिर से मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। रामपुर से मोरादाबाद घंटे भर भी नहीं लगेंगे। हम जब चाहें तब मिल लेंगे।
“मगर मैं रहती दिल्ली में हूँ और यहीं रहकर पढ़ाई करती हूँ।” कोयल का बोलना अभी ख़त्म नहीं हुआ था। और मेरे दिल में एनालॉग तरंगे दौड़ रही थी। उन तरंगों पर खुशियाँ कभी बहुत ज्यादा होती थीं, तो कभी बहुत ही कम। इस बार भी जब उसने दिल्ली का नाम लिया तो मेरा मन बैठ गया क्योंकि दिल्ल्ली जाकर मुलाक़ात थोड़ी मशक्कत वाली बात थी।
“चलो ये तो बहुत अच्छी बात है। दिल्ली में रहकर ही पढ़ाई अच्छी हो सकती है।” मुझे नेट का कोई ज्ञान नहीं था फिर भी मैंने यह बात कही, क्योंकि अगर अभी मैं चुप रह जाता तो कोयल समझ जाती कि मैं कुछ और सोच रहा हूँ और मैं खुश नहीं हूँ।
“हाँ, वो तो ठीक ही कह रहे हो तुम, चलो अभी बहुत बातें हो गयी। अब मैं भी थोड़ी पढ़ाई कर लूँ, फिर बातें करेंगे।”
“ओके बाय।” मैंने कहा।
“बाय” उसने कहा और फोन रख दिया।
मैं उससे ‘मुआह’ की भी उम्मीद कर रहा था लेकिन अभी ता हम दोनों उतने नजदीक नहीं आये थे। पर उम्मीद थी बहुत ही जल्द नजदीक आ जाते।
जैसे ही मैंने फोन काटा, मैंने देखा अमोल के पाँच मिस्ड कॉल मेरे मोबाइल में पड़े थे। जब मैं कोयल से बात कर रहा था तो मुझे यह तो पता चल रहा था कि कोई मुझे कॉल कर रहा है लेकिन किसका कॉल आ रहा है यह मैंने देखना तक ठीक नहीं समझा।
मैंने झटपट अमोल को फोन लगाया।
“कहाँ रहते हो यार? एक घंटे से फोन लगा रहा हूँ और तुम्हारा नम्बर बिजी आ रहा था, किससे बात कर रहे थे इतनी देर से?” अमोल गुस्से में बोल रहा था।
“कोई नहीं था, ऑफिस में एक लड़का नया आया है, उसे ही कुछ समझना था। उसको ही समझाने में लगा था। थोड़ा मंद बुद्धि है।” मैंने अमोल से झूठ कह दिया।
“यार क्या समझा रहे थे कि एक घंटे में भी वो नहीं समझ पा रहा था? ऐसी कौन सी बात थी? पूरी ओ.जे.टी. फोन पर ही दे रहे थे क्या?” अमोल अब मेरी बात को पकड़कर उसमें घुसे जा रहा था। हो सकता था मुझे आगे जवाब देने में दिक्कत आती इसलिए मैंने ही बात को मोड़ने की कोशिश की।
“वो सब छोड़ न, तुम बताओ तुम क्यों इतनी बेताबी से मुझे इतना फोन किये जा रहे थे?”
“वो तो बताऊँगा ही मगर पहले मुझे यह जानना है कि तुम इतनी लम्बी बात किससे कर रहे थे?” अमोल उस बात को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था।
“अरे यार बताया न, वो लड़का ऐसा ही है, उसे एक बार में बात समझ ही नहीं आती है और उसे सीनियर ने अल्टीमेटम दिया था कि आज हर हालत में उसे फाइल जमा करनी ही है। मैं वहाँ होता था तो फाइल तैयार करने में उसकी मदद कर देता था। अभी मैंने दो दिन की छुट्टी ले रखी है इसलिए वो ज्यादा परेशान था। अब तुम बताओ तुम इतने परेशान क्यों हो? इतने ज्यादा कॉल करने के पीछे तुम्हारा क्या उद्देश्य है?” मैंने उसे समझकर एक बार फिर से बात को पटरी पर लाने की कोशिश की।
“यार आज उसका कोई कॉल या मैसेज नहीं आया?”
“किसका?” मैंने पूछा।
“अरे वही जिसके कॉल से मैं परेशान हो गया था और तुम्हें जिसका नम्बर दिया था।” अमोल का यह जवाब सुनकर मुझे बहुत तेज गुस्सा आया। मैंने उससे पूछा,
“यार तू चाहता क्या है? मतलब कॉल आये तो परेशान, कॉल न आये तो परेशान! तुम चीज क्या हो बे?” मुझे अमोल पर बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ रहा था। इसलिए नहीं कि फोन नहीं आने के कारण वह परेशान था बल्कि इसलिए क्योंकि कहीं इस घबराहट में वो वापस कोयल को फोन न कर दे।
हालाँकि अब मैं बिलकुल निश्चिन्त था क्योंकि मैंने कोयल को यह बोल रखा था कि अब वो उस नम्बर पर न तो कॉल करे और न ही उस नम्बर से कॉल रिसीव करे। मगर फिर भी अगर इसने कॉल करके कुछ बता दिया तो बहुत ही मुश्किल हो सकती थी।
“नहीं यार देखो, मैं लड़कियों से दूर तो रहना चाहता ही हूँ। अब भी इस मामले में कोई बदलाव मुझमे नहीं आया है। मगर मैं यह सोच रहा था कि बात करने में कोई दिक्कत नहीं थी। हो सकता है वो लड़की अच्छी ही होती और अच्छे लोगों से बात करने में दिक्कत ही क्या है? ऑफिस में भी मैंने एक लड़के से यह बात बताई तो, उसने भी कहा कि सर आप गधे हो तो मुझे और बुरा लग गया और मैंने सोचा कि अब उस लडकी का फोन आएगा तो मैं उससे बात कर लूँगा। मगर अब उसका कोई फोन ही नहीं आ रहा है। इसलिए मुझे थोड़ा बुरा लग रहा है।” अमोल के दिल में खिले नए फूल की खुशबु में उसका पूरा मन खो जाना चाहता था। मगर अब यह मेरी जिम्मेदारी बनती थी कि किसी तरह उसके हृदय के चमन को मैं उजड़ा ही रखूँ। सो मैंने कहा,
“बेटा, मैं तुम्हें फोन करने ही वाला था। दरअसल तुम अब उस लड़की को भूल ही जाओ और अब अगर तुमने उसके नम्बर पर फोन किया तो दिक्कत ही होगी।” अभी मैंने अपनी आधी ही बात कही थी कि मुझे यह याद आया कि उसने मुझे बताया था कि उसने एक और लड़के से इस बारे में सलाह माँगी थी। मैंने अपनी बात कुछ इस तरह पूरी की।
“तुमने अपने उस ऑफिस वाले लड़के को तो उसका नम्बर नहीं दे दिया न कि देखो यह लड़की मुझे कॉल करके तंग कर रही है?”
“नहीं यार मैं उतना बड़ा गधा नहीं हूँ। जब तुमने यह कन्फर्म कर दिया कि आदित्य यह सब नहीं कर रहा है, तब मैं समझ गया कि हो सकता है मामला कुछ और ही हो, इसलिए मैंने उसके बाद किसी को नम्बर नहीं दिया। हाँ वो लड़का मुझसे नम्बर माँग भले रहा था, मगर मैंने दिया नहीं।” अमोल ने अपनी बात कुछ इस तरह खत्म की जैसे मैं उसे कोई वीरता का मेडल देने वाला हूँ।
“चलो ये काम तो तुमने सही किया। अब बात यह है कि तुम उस नम्बर और उस लड़की को भूल जाओ। मेरी उससे थोड़ी सी बात हुई है। उसने तुम्हें इसलिए फोन किया था कि उसकी किसी दोस्त ने उसे जो नम्बर दिया था उसमें एक अंक इधर-उधर हो गया था और तुम्हारा नम्बर ही वो बार-बार लगाये जा रही थी। फिर उसकी सहेली का उसको फोन आ गया तो उसने पूछा कि वो फोन क्यों नहीं उठा रही, तो उसकी सहेली ने जब नम्बर मिलाने के लिए कहा, तो उसे सारी बातें समझ आ गयी। इसलिए अब वो तुम्हें फोन नहीं कर रही है।
और हाँ एक बात और बातों-बातों में मुझे यह भी पता चला है कि उसका कोई बॉय फ्रेंड भी है। इसलिए फिलहाल नो एंट्री का बोर्ड भी वहाँ टंगा है इसलिए तुम्हारे लिए भी बेहतर यही होगा कि तुम भी उसे भूल ही जाओ। क्योंकि अब याद रख के भी कोई फायदा नहीं। और तुम्हारा वो फंडा ही तो ठीक है लड़कियों से दूर रहने वाला।” मेरे जवाब से अमोल बहुत ज्यादा आहत हुआ। उसका दिल कोयल के बॉयफ्रेंड वाली बात को सुन के जो कांच की तरह बिखरा था, उसकी आवाज उसकी ख़ामोशी में सुनाई दे रही थी।
थोड़ी देर हो गयी, अमोल ने मुझे कोई जवाब नहीं दिया तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि वो बहुत ही ज्यादा दुखी हो गया है।
“क्या हुआ तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? मैंने ठीक कहा न कि जब उसका बॉयफ्रेंड है ही तो क्यों बेकार में गालियाँ सुनने के लिए उसे फोन करोगे? और अगर देखा जाए तो नैतिक रूप से भी किसी लड़की को फोन करके तंग करना उचित नहीं है।”
“हाँ तुम ठीक ही कह रहे हो।” बहुत ही मद्धम और मरियल सी आवाज में अमोल ने कहा। मुझे थोड़ा बुरा भी लगा लेकिन फिर मेरे मन में एक फेमस इंग्लिश लाइन बड़े-बड़े बोल्ड अक्षरों में उभर आया, ‘एवरीथिंग इज फेयर इन लव एंड वार’।
मैंने अपने चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान लाते हुए इसे अपनी जीत होते देख कहा,
“उम्मीद है तुम बात समझ गए होगे और अपनी जिंदगी को उसी रफ़्तार से आगे बढ़ाओगे। फ़ालतू के चक्कर में पड़ने से कोई फायदा नहीं मेरे भाई!”
“हाँ ठीक कह रहे हो तुम, चलो अभी मैं रखता हूँ।” इतना कह्कर बिना मेरी बात सुने अमोल ने फोन रख दिया और मैं इस तरफ किसी बॉलीवुड के विलेन की तरह हँस रहा था। मेरे और कोयल के बीच बातचीत अब काफी ज्यादा बढ़ गयी थी। इस दौरान मुझे कई बार ऐसा महसूस हुआ कि मैं कोयल को यह बता दूँ कि मैं वो आदमी हूँ ही नहीं, जिसे समझकर वो मुझसे बात कर रही है। लेकिन मेरी हिम्मत कभी हो नहीं पायी कि मैं उसे कुछ कह पाऊँ।
दरअसल अब मुझे कोयल से सचमुच बहुत ज्यादा प्यार हो गया था। मैं उसे खोना नहीं चाहता था। हमारी बात और हमारी पहचान, भले ही झूठी हो, तीन महीने पुरानी हो चुकी थी। इन तीन महीनों में न तो वो मोरादाबाद आई और न ही मेरा दिल्ली जाना संभव हो पाया। इसलिए हम अभी तक मिल नहीं पाए थे।
उसका नेट का एग्जाम हो गया था और वो नेट क्लियर भी कर चुकी थी। अब वो पी एच डी करने के बारे में सोच रही थी। रिजल्ट आने के बाद वो चाहती थी कि वो घर आये, मगर उसके किसी रिश्तेदार ने उसे यह सलाह दी कि पहले वो पीएचडी के लिए एडमिशन ले ले उसके बाद ही वो दिल्ली से हिले। इसलिए वो अभी तक दिल्ली में बनी हुई थी।
इस दौरान जब भी कभी उसके मोरादाबाद आने की बात होती तो मैं सहम उठता था। वो हर बार मुझसे पूछती थी, “अगर मैं मोरादाबाद आई तो आप मुझसे मिलने आयेंगे न?”
“हाँ क्यों नहीं।” मैं बोलता तो था मगर मुझे पता था जिस दिन भी हम मिले उस दिन क्या होगा।
आखिर वो समय आ गया जब वो मोरादाबाद आने वाली थी। एक दिन उसने बहुत ही ज्यादा ख़ुशी से झूमते हुए मुझे फोन किया।
“मैं तीन दिनों बाद मोरादाबाद आ रही हूँ।”