Manav Bhediya aur Rohini - 3 in Hindi Spiritual Stories by Sonali Rawat books and stories PDF | मानव भेड़ियाँ और रोहिणी - 3

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मानव भेड़ियाँ और रोहिणी - 3

उसने कहानी सुनानी शुरू की-----

मेरी यह कहानी हैं एक भेड़िया की जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा हैं। वह कभी जीतता हैं तो कभी हारता हैं लेकिन कभी हिम्मत नहीं छोड़ता हैं। यह भेड़िया मनुष्यों की तरह जीवन व्यतीत करता हैं क्योंकि यह मनुष्य का भी रूप ले सकता हैं। लेकिन सच में यह पहले ऐसा नहीं था, उसे तो ऐसा एक घटना ने ऐसा कर दिया। जो मैं आपको बताने जा रहा हूं।

बहुत समय पहले की बात हैं कि लकड़हारा था। वह जंगल में जाकर लकड़ियां लाता था और अपना खाना बनाता था। एक बार उसे जंगल में रात हो गई, वह डरने लगा कि कहीं कोई जंगली जानवर उसे काट ना ले। वह हिम्मत करके अपना काम करता रहा। लेकिन एक भेड़िया उसे बहुत दूर से घूर रहा था। वह उसका मांस खाना चाहता था। जब लकड़हारा जाने लगा तो भेड़िया ने पीछे से उस पर हमला कर दिया।

लकड़हारा पहले ही सतर्क हो गया था क्योंकि उसने भी भेड़िया को देख लिया था। उसने बचने की कोशिश की लेकिन वह नहीं बच पाया, भेड़िया ने उसकी गर्दन पर घाव कर दिया। फिर भी उसने हिम्मत दिखाई और वहां से बचकर भाग गया। घर जाकर उसने दवाई ली और कुछ दिनों में वह बिल्कुल ठीक हो गया। वह फिर से अपनी दिनचर्या में लग गया।

लेकिन वह भयानक रात आ ही गयी जो सब कुछ बदलने वाली थी। वह रात पूर्णिमा की रात थी। सुबह से ही उस लकड़हारे का मन किसी काम में नहीं लग रहा था ।उसे आभास हो गया था कि अब कुछ घटित होने वाला है।

जब रात्रि के 12 बजे, तब उसका शरीर बिल्कुल सुन्न पड़ गया उसके शरीर का आकार बढ़ने लगा और देखते ही देखते वह एक विशालकाय भेड़िया बन गया। पूरे शरीर पर बाल उग आए, हाथ पाँव भयानक नुकीले नाखूनो से भर आये, आंखें हरी रंग की बन गयी, दांत भयंकर मांसाहारी जानवर की तरह बन गए वह पूरी तरीके से मानव भेड़ियाँ में बदल चुका था ।

अब वह शहर की तरफ भागा। उसने सबसे पहले एक

नौजवान को अपना शिकार बनाया जो सड़क पर जा रहा था। फिर वह जंगल में चला गया। अब हर रात वह भेड़िया बनने लगा, उसे भी इसमें मज़ा आने लगा और वह शिकार करने लगा।

धीरे धीरे पूरे शहर में दहशत फैल गई, और सभी लोग घर में छिपकर रहने लगे। सभी ने रात में घूमना बन्द कर दिया।

ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा ।

एक रात को एक बहुत ही सुंदर लड़की अपने घर की बालकनी में खड़ी हुई पूर्णिमा के चांद को निहार रही थी और अपने ख्यालों में गुम कुछ सोच रही थी, तभी उसको ये आभास हुआ कि जैसे कोई उसे छुपकर देख रहा है, वो पीछे मुड़कर देखने ही वाली थी कि उसकी माँ ने अंदर से आवाज दी रोहिणी अंदर आ जाओ खाना नहीं खाना हैं क्या ?

वह तुरंत भाग के अंदर चली गई, और खाना खा कर सो गई । कुछ देर बाद उसे सोते हुए एक सपना आया, सपने में उसने देखा की वह अपने घर के पास वाले एक जंगल में और वह जंगल में टहल रही हैं आगे उसे दिखा की कहीं दूर एक पेड़ के पास कुछ अजीब सी आवाज आ रही हैं, उसने ध्यान से देखा तो उसे वहां एक जानवर की पूंछ दिखाई दे रही थी वह समझ नहीं पा रही थी कि यह किस जानवर की हैं।

शायद किसी कुत्ते की या भेड़िए की उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, अजीब अजीब सी आवाजें भी सुनाई दे रही थी ।