व्याधि भाग 2
रमेश और कोमल कस्बे वाले घर में पहुँच चुके थे। यह जगह वाकई बहुत खुबसुरत, शांत और पहाड़ो से घिरी हुई थी। लंबे सफर के कारण दोनों पूरी तरह थक गये थे। चौकिदार ने उनके लिये चाय नाश्ते का प्रबंध किया।
रमेश तुमने कभी बताया नहीं कि इतनी खुबसुरत जगह पर तुम्हारा एक घर भी है, चाय की चुश्की लेते हुये कोमल ने कहा।
मैं इसे तुम्हें शादी के तोहफे के रूप में देना चाहता था, यह घर मैंने बहुत पहले लिया था जब तक तो हम मिले भी नहीं थे। जब मैं अपने काम और काम की टेशंन से थक जाता था तो यहाँ आके कुछ दिन रहता था। यहाँ रहने से मन को शांति मिलती है। रमेश ने आँखे बंद करके वहाँ की मधूर शांति को महसूस करते हुये कहा।
तुम ठीक कह रहे हो, यहाँ के जैसी शांति यहाँ के जैसा मौसम मैंने आज तक नहीं देखा। ये सच में मेरे लिये एक बेशकीमती तोहफा है। कोमल ने कहा।
तो इसका मतलब तुमको यह तोहफा पसंद आया, रमेश ने प्लेट से बिस्किट उठाते हुये कहा।
हाँ बिल्कुल, कोमल के होंठों पर कोमल सी मुस्कान उतर आयी।
चाय नाश्ते के बाद दोनों आराम करने अपने कमरे में चले गये और वहाँ उनकी आँख लग गयी। जब वे उठे तो शाम के छह बज चुके थे। गर्मियों के दिन थे तो सूरज अभी भी आसमान पर चमक रहा था। डॉक्टर रमेश झट से बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और कोमल से भी उठने कहा।
कोमल उठो जल्दी, मुझे तुम्हें कहीं लेकर जाना है।
कहाँ लेकर जाने के लिये उतावले वो रहे हो, कोमल ने पूछा।
पूछो मत, जल्दी से तैयार हो जाओं औेर साथ चलों। रमेश ने जूते पहनते हुये कहा।
कोमल झट से तैयार हो गयी और रमेश के साथ गाड़ी में बैठ गयी। रमेश ने गाड़ी पहाड़ी रास्ते पर दौड़ा दी। गाड़ी की सभी खिड़कियां खुली थी जिनसे होकर गुजरने वाली हवा कोमल की खुली जुल्फों को छेड़े जा रही थी। हवा से बिखरकर उसकी जुल्फे बार बार उसके चेहरे पर आ रही थी जिससे परेशान होकर उसने उन्हे बांधना चाहा मगर तभी डॉक्टर रमेश के हाथ ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।
कोमल ने रमेश की तरफ सवालिया निगाहों से देखा।
मत बांधों इन्हें ये ऐसे अच्छी लगती है, अपनी ऊंगलियों से कोमल की जुल्फे सुलझाते हुये रमेश मे कहा।
रमेश के छुअन ने कोमल के दिल के तारों में हलचल मचा दी थी। उसने बड़े प्यार से रमेश को देखा और फिर अपना सिर उसके कंधे पर रख दिया।
जानते हो रमेश, मैं इन पलों का कितनी बेसब्री से इंतजार कर रही थी? जबसे तुम्हें देखा था मैं तुम पर अपना सब कुछ हार बैठी थी। मेरी बस एक ही तमन्ना थी कि कब हमारी शादी होगी और मैं तुमको पूरी तरह पा लूंगी और तुमने मेरी इस तमन्ना को आज पूरा कर दिया है। आज मैं बहुत खुश हूँ। बोलते बोलते कोमल की आँखे पानी से भर आयी थी।
रमेश ने गाड़ी रास्ते के किनारे पर रोक दी और अपनी दोनों हथेलियों से कोमल के चहरे को थाम लिया और उसे ऐसे देखा जैसे वह पानी से भरी उन आँखों में डूब जाना चाहता हो। रमेश के इस तरह देखने से कोमल की आँखों का वह पानी सब्र का बांध तोड़ता हुआ इस तरह बह निकला जैसे किसी पहाड़ से कोई नदी और रमेश ने उसे अपने होंठों से इस तरह पी लिया जैसे मृत्यु के द्वार पर खड़े आदमी को कोई सुधा का प्याला तोहफे में पेश कर दे और वह उसे पीकर फिर जी उठे।