Incomplete love story in Hindi Love Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | अधूरी प्रेम कहानी

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अधूरी प्रेम कहानी

एक अधूरी प्रेम कहानी: - नादान प्रेम

सिर्फ यादें बनकर रह गई... तब हमारे गाँव के पास में कॉलेज नही थाl इस कारण मैं पढ़ने के लिए में शहर आया था। यह किसी रिश्तेदार का एक कमरे का मकान था। बिना किराए का था। आस - पास सब गरीब लोगो के घर थे। और में अकेला था, सब काम मुझे खुद ही करने पड़ते थे। खाना - बनाना, कपड़े धोना, घर की साफ़ - सफाई करना।

कुछ दिन बाद एक गरीब लडकी अपने छोटे भाई के साथ मेरे घर पर आई। आते ही सवाल किया "तुम मेरे भाई को ट्यूशन दे सकते हो क्या ?"
मेंने कुछ देर सोचा फिर कहा "नही"
उसने कहा "क्यूँ?
मैंने कहा "टाइम नही है। मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब होगी।"
उसने कहा "बदले में मैं तुम्हारा खाना बना दूँगी।"
शायद उसे पता था की मैं खाना खुद पकाता हूं l
मैंने कोई जवाब नही दिया तो वह और लालच दे कर बोली, बर्तन भी साफ़ कर दूंगी।"
अब मुझे भी लालच आ ही गया, मैंने कहा - "कपड़े भी धो दो तो पढ़ा दूँगा।"
वो मान गई।
इस तरह से उसका रोज घर में आना - जाना होने लगा।

वो काम करती रहती और मैं उसके भाई को पढ़ाता रहाता। ज्यादा बात नही होती।
उसका भाई पांचवीं कक्षा में था। खूब होशियार था। इस कारण ज्यादा माथा - पच्ची नहीं करनी पड़ती थी।
कभी - कभी वह घर की सफाई भी कर दिया करती थी।
दिन गुजरने लगे। एक रोज शाम को वो मेरे घर आई तो उसके हाथ में एक बड़ी सी कुल्फी थी।
मुझे दी तो मैंने पूछ लिया, कहाँ से लाई हो?
उसने कहा "घर से, आज बरसात हो गई तो कुल्फियां नहीं बिकी।"
इतना कह कर वह उदास हो गई।
मैंने फिर कहा:-" मग़र तुम्हारे पापा तो समोसे - कचोरी का ठेला लगाते हैं ?

उसने कहा- वो सर्दियों में समोसे - कचोरी और गर्मियों में कुल्फी।
और आज बरसात हो गई, तो कुल्फी नही बिकीl मतलब ठण्ड के कारण लोग कुल्फी नही खाते।

"ओह" मैंने गहरी साँस छोड़ी।
मैंने आज उसे गौर से देखा था। गम्भीर मुद्रा में वो उम्र से बडी लगी। समझदार भी, मासूम भी।
धीरे - धीरे वक़्त गुजरने लगा। मैं कभी - कभार उसके घर भी जाने लगा। विशेषतौर पर किसी त्यौहार या उत्सव पर। कई बार उससे नजरें मिलती तो मिली ही रह जाती। पता नही क्यूँ?

ऐसे ही समय बीतता गया इस बीच कुछ बातें मैंने उसकी भी जान ली। कि वो बूंदी बाँधने का काम करती है। बूंदी मतलब किसी ओढ़नी या चुनरी पर धागे से गोल - गोल बिंदु बनाना। बिंदु बनाने के बाद चुनरी की रंगाई करने पर डिजाइन तैयार हो जाती है।

मैंने बूंदी बाँधने का काम करते उसे बहुत बार देखा था। एक दिन मैंने उसे पूछ लिया "ये काम तुम क्यूँ करती हो?"
वह बोली:- "पैसे मिलते हैं।"
"क्या करोगी पैसों का?"
"इकठ्ठे करती हूँ।"
"कितने हो गए?"
"यही कोई छः - सात हजार।"

"मुझे हजार रुपये उधार चाहिए। जल्दी लौटा दूंगा।" मैंने मांग लिए।
उसने सवाल किया :- "किस लिए चाहिए?"
"कारण पूछोगी तो रहने दो।" मैंने मायूसी के साथ कहा।
वो बोली अरे मैंने तो "ऐसे ही पूछ लिया। तुम माँगो तो सारे दे दूँ।" उसकी ये आवाज़ अलग सी जान पड़ी।

क्रमशः............. आगे भाग -2