अक्षत ने साधना को फोन करके बोल दिया कि वह किसी काम से बाहर जा रहा है तो उसका इंतजार ना करें और सब लोग डिनर कर ले।
अक्षत कोर्ट से फ्री हुआ और सीधा सौरभ के घर निकल गया क्योंकि सुरेंद्र वापस आ चुके थे और अब उसे सुरेंद्र से बात करनी थी और सांझ के बारे में सब कुछ पता करना था।
सौरभ भी आज जल्दी घर आ गया क्योंकि उसे भी सारा सब जानना था। अब तक वह सिर्फ इतना ही सच जानता था जो बाकी दुनिया के बाकी लोग जानते थे। पर उसे नहीं पता था कि इस सच्चाई के आगे भी कोई और सच्चाई है जो कि उसके पापा जानते हैं।
अक्षत से पहले सौरभ घर पहुंच गया था।
सुरेंद्र आव्या और सौरभ की माँ हॉल में ही बैठे हुए थे।
"अरे सौरभ बेटा आज तो तुम जल्दी आ गए? मतलब जनरली तुम्हारा तो काम लेट नाइट तक चलता है ना..??" सुरेंद्र बोले।
"जी पापा..!! आज कुछ काम घर पर ही था।" सौरभ ने कहा और आव्या की तरफ देखा।
"मैं आप लोगों के लिए कॉफी लेकर आती हूं फिर मेरी थोड़ी ऑनलाइन क्लासेस है वह अटेंड करूंगी..!!" आव्या बोली।
"कॉफी थोड़ी देर में बना लेना और हां आज जो भी क्लासेस है उनको छोड़ दो क्योंकि आज हम सबको जरूरी बात करनी है..!!" सौरभ ने कहा।
तो आव्या वापस बैठ गई।
"किस बारे में जरूरी बात करनी है ऐसी भैया की आप मुझे क्लासेस छोड़ने के लिए भी कह रहे हो..??"
" सांझ के बारे में।" तभी दरवाजे से अक्षत की आवाज आई तो सब ने उधर देखा।
सुरेंद्र के चेहरे पर हल्का सा तनाव आ गया अक्षत को देखकर पर उन्होंने तुरंत ही अपने भाव छुपा लिए पर तब तक अक्षत उनके चेहरे के बदलते भावों को देख चुका।
" आइये चतुर्वेदी जी..!!" सौरभ ने कहा तो अक्षत अंदर आया।
"मम्मी यह अक्षत चतुर्वेदी है..!! निशि के भाई नील की शादी इन्ही की बहन के साथ तय हुई है। आप लोगों को बताया है ना मैंने पर मुलाकात शायद आज पहली बार हो रही है।" सौरभ बोला
" हां मेरी मुलाकात पहली बार हो रही है बाकी तुम्हारे पापा तो एक दो बार मिल चुके हैं।" सौरभ की मम्मी बोली।
सुरेंद्र अभी भी खामोश थे।
"आज अचानक से यहां आने की कोई विशेष बात? " सुरेंद्र ने कहा।
"जी छोटे ठाकुर साहब..!! आपसे बात करनी थी अगर आप फ्री हो तो हम कुछ देर बात कर सकते हैं?" अक्षत बोला।
"हां बिल्कुल क्यों नहीं..?? बिल्कुल बात कर सकते हैं।" सुरेंद्र ने कहा तो अक्षत वही जाकर उनके पास सोफे पर बैठ गया
सौरभ बस खामोशी से उन लोगों को देख रहा था तो वही आव्या भी नहीं समझ पा रही थी कि क्या हो रहा है।
"कहिए किस बारे में बात करनी है?" सुरेंद्र ने कहा।
" सांझ कहां पर है ठाकुर साहब..??" अक्षत ने सख्त आवाज में कहा तो सुरेंद्र ने गहरी सांस ली और इधर-उधर देखा।
"प्लीज मुझे जवाब चाहिए...! आपके यूँ नजरे फेरने से मैं शांत नहीं होने वाला हूं।" अक्षत बोला।
"पर मुझे नहीं पता है कि सांझ कहां है..?! और जो भी सच्चाई है पूरी दुनिया जानती है।" सुरेंद्र बोले।
"नहीं...!! पूरी दुनिया से अलग भी एक सच्चाई है जो सिर्फ आप जानते हैं।" अक्षत ने उनकी आँखों मे देखा।
"आपको कोई गलतफहमी हो रही है..!! मुझे कुछ भी नहीं पता है। जो भी सच्चाई है वह सब जानते हैं। वही सच्चाई है और आप क्यों नहीं सच्चाई को स्वीकार कर लेते..?" सुरेंद्र ने कहा।
"क्योंकि मैं जानता हूं कि यह सच्चाई नहीं है..क्योंकि आधी सच्चाई मैं जान चुका हूं बाकी की आधी सच्चाई अब आप बताएंगे मुझे..!!" अक्षत ने उनकी आँखों मे देखा।
" सांझ अब नही है और यही सच है..!" सुरेंद्र धीमे से बोले।
" नहीं स्वीकार आपका ये सच..!! क्योंकि नहीं स्वीकार कर सकता मैं इस बात को कि मेरी सांझ मुझे छोड़कर इस दुनिया से चली गई है। अगर मैं जिंदा हूं और सांस ले रहा हूं इसका मतलब कि मेरी सांझ है कहीं पर..!! अब वह कहां है यह मुझे आप बताएंगे।" अक्षत ने कठोर आवाज में कहा तो एक पल को सुरेंद्र के चेहरे पर भी टेंशन आ गया।
"प्लीज पापा अगर कोई सच्चाई है जो हम सब नहीं जानते तो आप बताइए..!! " सौरभ ने भी रिक्वेस्ट की।
"तुम्हें सारी सच्चाई बता तो चुका हूं बेटा...!!फिर भी तुम्हें विश्वास नहीं होता? " सुरेंद्र ने लाचारी से भरी आवाज में कहा।
"दुनिया सिर्फ इतनी सच्चाई जानती है जो उस चौपाल पर हुई थी..!! उसे पंचायत के सामने हुई थी पर उसके बाद निशांत सांझ को अपने घर ले गया था। चौबीस घण्टे तक सांझ निशांत के घर में रही है। उस समय सांझ के साथ क्या हुआ मुझे एक-एक बात जाननी है। और उसके बाद सांझ वहां से कैसे बाहर गई और उस नदी में कैसे गिरी..??" अक्षत ने कहा।
"हां मैं मानता हूं कि सांझ एक दिन तक निशांत के साथ निशांत के घर में रही थी। पर उसके बाद उसने नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली थी तो अब जब सांझ इस दुनिया में नहीं है तो तुम क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो..??" सुरेंद्र एकदम नाराजगी से बोले तो अक्षत ने अपना हाथ टेबल पर दे मारा।
एक तेज आवाज के साथ कांच टूट कर बिखर गया।
" जितनी आसानी से आपने कह दिया उतना आसान होता है यह सब तो मैं भी भूल जाता। पर मैं नहीं भूल सकता कि मेरी सांझ उस दरिंदे के साथ चौबीस घण्टे तक उसके घर में रही थी। ना जाने कैसा सुलूक किया होगा उसने मेरी सांझ के साथ..?? कितना बर्दाश्त किया होगा मेरी सांझ ने। और दूसरी बात सांझ नदी में कुंदी थी यह बात सारी दुनिया जानती है, पर उस नदी में कूदने पर उसकी मौत नहीं हुई थी, बल्कि उसे बचा लिया गया था यह बात सिर्फ आप जानते हैं और उसी गांव का एक मछुआरा..!! और अब मुझे बताइए आप कि साँझ कहां है..?? मुझे पूरी की पूरी बात जाननी है अभी के अभी..!!" अक्षत ने नाराजगी से कहा।
उसके हाथ से खून निकलने लगा था तो आव्या तुरंत दौड़ कर गई और फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आई और अक्षत का हाथ साफ करने लगी।
" रहने दो आव्या..!! यह दर्द तो कुछ भी नहीं है उस के आगे जो दर्द मैं महसूस कर रहा हूं..!! क्यों नहीं बता रहे हो आप लोग??" अक्षत दर्द और गुस्से से बोला तो सौरभ ने सुरेंद्र को देखा।
"मुझे सारा सच सब कुछ जानना है। नहीं बर्दाश्त होता मुझसे..!! मुझे रातों को नींद नहीं आती है यह सोचकर कि मैं मेरी सांझ की मदद नहीं कर पाया..!! मेरा दिल कितना बेचैन रहता है यह आप लोग नहीं समझ सकते..!! मैं मेरी पत्नी के लिए कुछ भी नहीं कर पाया यह गिल्ट मुझे जीने नहीं देता..!! सांझ की चींखें मुझे सुनाई देती है..!; ऐसा लगता है कि सर फट जाएगा..! आप लोग क्यों नहीं समझते हो। ऐसा लगता है कि सांझ मुझे बुला रही है और मैं उसके पास नहीं जा पाया..! मेरी पत्नी है वह क्यों नहीं समझ रहे हो आप..?? किसी को अधिकार नहीं है मेरी पत्नी को मुझसे दूर करने का..??मुझसे अलग करने का फिर कैसे आप लोग कर सकते हो ऐसा??" अक्षत बेहद गुस्से से बोला।
"प्लीज अक्षत भाई आप गुस्सा मत कीजिए...!! मैं बताऊंगी जितना मुझे पता है उतना मैं बताऊंगी। आप प्लीज पहले ड्रेसिंग करवा लीजिए। बहुत ब्लड निकल रहा है।" आव्या ने कहा।
" प्लीज मुझे बताओ कहां है सांझ??क्या हुआ उसके साथ..?? इस तकलीफ के साथ जीना मुश्किल हो गया है मेरा.!! प्लीज आव्या बोलो।" अक्षत ने दुखी होकर कहा तो आव्या ने गर्दन हिला दी।
अक्षत ने अपना हाथ उसके सामने कर दिया।
आव्या ने सारे कांच के टुकड़े निकाले। उसके हाथ को साफ किया और बैंडेज कर दी। थोड़ी देर बाद सब लोग दूसरी तरफ बैठे थे।
मिसेज ठाकुर ने लाकर सबके लिए कॉफी रख दी थी और अक्षत उम्मीद भरी नजरों से आव्या और सुरेंद्र को देख रहा था।
" सच बहुत दर्दनाक और कड़वा है। जज साहब अभी भी कह रहा हूं आप सच्चाई तक ना ही जाए तो बेहतर है। बाकी मैं आपको सांझ का पता दे दूंगा आप जाकर मिल लीजिए। अगर वह आपके साथ आने को तैयार है तो आप लेकर आ सकते हैं। पर पुरानी बातों को खोद कर तकलीफ के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा।" सुरेंद्र ने कहा।
" कहाँ है सांझ??" अक्षत ने भरी आवाज से कहा।
" अमेरिका मे..!! अपने असली माँ बाप अबीर राठौर और मालिनी राठौर के साथ..!!" सुरेंद्र जैसे ही बोले अक्षत ने आँखे बन्द कर ली।
आँसुओ की कुछ बूँदें गालों पर बिखर गई।
सौरभा आव्या और मिसेज राठौर भी मुँह फाड़े सुरेंद्र को देख रहे थे।
" क्या अबीर राठौर सांझ के पिता है?? " सौरभ बोला।
" हाँ..!! और ये बात मुझे बहुत पहले से पता थी क्योंकि सांझ के पापा यानी अवतार के भाई मेरे दोस्त थे। पर मै अबीर को व्यक्तिगत नही जानता था पर सांझ और अपने दिवंगत मित्र के खातिर मैंने अबीर को ढूंढ लिया और उसकी अमानत उसे सौंप दी।" सुरेंद्र बोले।
अब तक सौरभ ने फोन करके ईशान साधना और अरविंद को भी बुला लिया था क्योंकि उसे डर था कि अक्षत को संभाल पायेगा की नही।
वो लोग भी अब थोड़ा बहुत समझ गए थे और बाकी जानने को उत्सुक थे।
" क्या हुआ था..? " अक्षत फिर से बोला।
" वो जिंदा है बस इतना जान लिया बाकी बातों को भूल जाइये जज साहब..!! क्योंकि सच आपको भी तोड़ देगा।" सुरेंद्र ने उठकर अक्षत के कंधे पर हाथ रखा।
"मैं उस तकलीफ को महसूस करना चाहता हूं जो मेरी सांझ ने बर्दास्त की है। मैं उस दर्द को देखना चाहता हूं जो मेरी सांझ ने सहा है क्योंकि जब तक मैं उस दर्द को महसूस नहीं करूंगा मैं सामने वाले को सजा नहीं दे पाऊंगा। इसलिए मुझे सब कुछ जानना है। प्लीज बताइए मुझे।" अक्षत ने कहा तो सुरेंद्र ने आव्या की तरफ देखा और आव्या ने पलके झपकाइ।
साधना ने भी भरी आँखों से हाथ जोड़ लिए तो वही ईशान के चेहरे पर कोई भाव नही थे।
" सांझ दीदी जिंदा है ये बात मुझे भी आज ही पता चली है अक्षत भैया..!! इस बात को पापा के अलावा कोई नही जानता।" आव्या ने कहा तो अक्षत ने भरी आँखों से आव्या को देखा।
"जिंदगी उतनी आसान नहीं होती है अक्षत भैया जितना लोग समझते हैं...!! और सांझ दीदी के लिए तो जिंदगी कभी भी आसान नहीं थी। कारण कि उन्हे गोद लिया गया था। वह अवतार चाचा के परिवार का खून नहीं थी।" आव्या ने जैसे ही कहा अक्षत के चेहरे पर तनाव आ गया।
"हां यह बात मुझे सांझ ने बताई थी कि वह उस परिवार का खून नहीं है। उसे उसके मम्मी पापा ने गोद लिया था इसलिए शायद उसके चाचा और चाची उसे प्यार नहीं करते या उसकी परवाह नहीं करते।" अक्षत ने कहा।
"बचपन तो सांझ का बहुत अच्छा बीता था क्योंकि उसके मम्मी पापा ने उसे गोद लिया था अपने दोस्त से और वह उसे बहुत प्यार करते थे। पर शायद किस्मत सांझ की उतनी अच्छी नहीं थी कि जब वह पांच या छः साल की थी तभी उसके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया और वह हमेशा हमेशा के लिए अपने चाचा और चाची के ऊपर आश्रित हो गई।" सुरेंद्र ने कहा।
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव
खुलने जा रहा है हर एक पन्ना अतीत और सांझ की जिंदगी का..!!
तो रहिये साथ क्योंकि अभी तो बहुत कुछ होना है।