Pathreele Kanteele Raste - 10 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | पथरीले कंटीले रास्ते - 10

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पथरीले कंटीले रास्ते - 10

 

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

 

10

 

यह जेलर साहब का आफिस था । बङा सा हालनुमा कमरा । जिसकी सामने की दीवार पर महात्मा गाँधी , भीमराव अम्बेडकर और प्रधानमंत्री के बङे बङे चित्र लगे थे । प्रधानमंत्री की तस्वीर के ऐन नीचे एक रिवाल्विंग कुर्सी लगी थी । कुर्सी के आगे एक बङी सी मेज सजी थी । इस मेज पर एक ओर दो प्लास्टिक की ट्रे में कई ऱाइलें सजी थी । सामने दो काँच के गिलासों में पानी भरा था और ये दोनों गिलास बाकायदा ढक कर रखे गये थे । उनके सामने एक छोटा सा चीनी मिट्टी का गुलदान रखा गया था जिसमें ताजा कटी गुलाब की कलियां तरतीब से लगाऊ गयी थी । उस गुलदान के आगे एक सरकारी टेबल कलैंडर रखा था जिसमें जगह जगह पैन से गोले लगाये गये थे ।  वहीं एक पैन स्टैंड में दो तीन पैन अव्यवस्थित तरीके खोंसे गये थे । इन पैनों का शायद ही कभी इस्तेमाल किया जाता होगा क्योंकि धूल के साथ साथ पैन से लिपटा एक महीन जाला स्पष्ट दिखाई दे रहा था ।

मेज के सामने तीन कुर्सियां रखी थी जो शायद कभी प्रयोग लायी जाती होंगी पर इन्हों हर रोज अच्छे से झाङा जाता था । सामने वाली रिवाल्विंग कुर्सी पर विद्यमान शख्स एक मोटा सा रजिस्टर खोले उस पर लाल स्याही से कुछ अंकित कर रहा था ।

साथ वाले कमरा कहलाने वाली कोठरी में बैठा क्लर्क अपनी फाइलों से देख कर अपने टाईपराइटर पर कोई लैटर टंकित कर रहा था ।  

सिपाही मुंशी को रविंद्र की फाइल पकङा कर बाहर उगे नीम के पेङ के नीचे सुस्ताने लगे । अभी पता नहीं कितनी देर इंतजार करना पङे । कम से कम यहाँ ताजा हवा तो है । समय बिताने के लिए उन्होंने आपस में बाते शुरु कर दी – भाई तेरी लङकी के लिए कोई लङका मिला या नहीं ।

कहाँ मिला भई , लगता है , पढे लिखे संस्कारी लङके ब्रहमा ने बनाने ही बंद कर दिये है । एक दो जगह गये तो पता लगा लङका नशों का आदी है । काम धाम कुछ नहीं करता । घरवालों से लङ झगङकर उनसे पैसे मांगकर ले जाता है और नशे करके आधी रात को घर लौटता है । अब ऐसे लङके को जानते बूझते लङकी कैसे दे देता ।

ये नशे की बीमारी तो पूरे पंजाब और राजस्थान के लङकों को अपनी गिरफ्त में ले चुकी है । अच्छे खाते पीते घर के लङके इसका शिकार होकर निकम्मे हुए पङे हैं ।

सही कह रहे हो आप दोनों । हमारे गाँव में भी चार पाँच लङके हैं । माँ बाप ने बङी उम्मीदों के साथ कालेज पढने भेजा था कि बेटा पढ लिखकर अफ्सर बन जावेगा तो माँ बाप का नाम पूरी बिरादरी में चमक उठेगा । पर बेटों ने वहां जाकर ये नशे करने सीख लिए और अब माँ बाप दोनों की ऐसी की तैसी फेर रखी है ।

पर फिर भी भतेरे लङके मिल जाएंगे , जो नशे को हाथ भी नहीं लगाते ।

एक लङका नौकरी करता भी मिला था , कोई नशा पत्ता करता भी ना सुना। तीन बहने थी उसकी  पर उनकी दहेज की माँग ऐसी थी कि मुझे तो उनकी लिस्ट सुनते ही चक्कर आ गये । उन्हें चाहिए थी लैंबरगिनी या उसके जैसी कोई महंगी गाङी । साथ ही घर के लोगों के लिए करीब दस तोले सोने के गहनों की मिलनी, कपङे और कम्बल अलग से । अब मेरे जैसा नौकरी करने आदमी कहाँ से इतना सारा सामान इकट्ठा करता इसलिए हाथ जोङ लिए ।

इनकी बातचीत अभी न जाने कितनी देर और चलती रहती कि सिपाही ने आकर सैल्यूट मारा और सूचना दी – कि जेलर साब आप लोगों को बुला रहे हैं । वे आप सबका इंतजार कर रहे हैं ।  

बातों को वहीं भूलकर ये लोग भीतर आफिस में पहुंच गये । जेलर साब रविंद्र की फाइल के पेज ही उलटने पलटने में व्यस्त थे ।

जयहिन्द साहब

साहब ने बिना सिर उठाये उसी तरह गरदन झुकाये उत्तर दिया – जय हिन्द

काफी देर तक वे फाइल में खोये रहे । फिर फाइल पर साइन कर फाइल एक ओर रखी – लाइए हैंडिंग ओवर के पेपर्स। हम साईन कर दें ।

सिपाहियों ने कुछ कागज उनकी ओर बढाए । उन्होंने साईन किये और कागज उन लोगों को लौटा दिये ।

ठीक है साहब । चलते है साहब । जयहिन्द । - उन्होंने एङियाँ मिला कर सैल्यूट मारा । एङी पर ही घूमकर चलते हुए कमरे से बाहर हो गये ।

रविंद्र की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे । खङा रहे या बैठे या फिर कमरे से बाहर हो जाये । असमंजस की स्थिति में वह वहीं खङा रहा । जेलर साब ने एक जोरदार घंटी बजाई । बाहर से दौङा हुआ अरदली भीतर आया – जी हुजूर ।

ऐसा करो । भीतर जेल से मैटरन को बुलाओ ।

जी साहब

अरदली सिर झुका कर चला गया । करीब बीस पच्चीस मिनट बाद वह वापस लौटा ।

हुजूर ले आया हूँ ।

कहाँ है ।

सर आफिस के बाहर खङा करके आया हूँ ।

भीतर ले आओ ।

जी

उसने दरवाजे पर जाकर किसी को इशारा किया ।

मैं अंदर आ जाऊँ सर ।

जेलर के साथ रविंद्र ने भी दरवाजे की ओर देखा । दरवाजे पर कैदियों के कपङे पहने एक आदमी खङा था । कद कोई सवा छ फुट होगा । रंग आबनूस जैसा एकदम काला । बङी बङी कठोर दीखती आँखें । काली घनी कुंडलदार मूछें जो पूरे गालों पर छाई थी । चौङे कंधे । पहली नजर में चेहरे मोहरे से कठोर दिखाई दे रहा था । कपङे बेशक कैदियों के पहने थे पर पैरों में कोल्हापुरी चप्पल पहने था ।

आओ

जयहिन्द साहब

जयहिन्द । जगतपाल , ये रविन्द्र है । रविन्द्र पाल सिंह । कत्ल के केस का विचाराधीन कैदी । करीब डेढ महीने बाद की तारीख मिली है इसे कोर्ट से । आज से यह तुम्हारी निगरानी में रहेगा । इसका ध्यान रखना ।

आप चिन्ता न करें साहब ।

उसने रविन्द्र को उठने और चलने का इशारा किया । रविंद्र ने उसका इशारा देखा और चुपचाप उस जगतपाल नाम के आदमी के साथ उसके पीछे पीछे चल पङा ।

आफिस से निकल कर वे लोग पीछे की ओर चल पङे । चलते गये । चलते गये । पीछे बहुत बङा सूखा मैदान था ।  सूखे मैदान को पार कर के सब्जियों की क्यारियां आ गयी जिसमें तोरई , टिंडे , खीरे , भिंडी , पेठा , बैंगन और मिरच कई सब्जियाँ लगी थी । उन क्यारियों के बीच से होकर वे चलते रहे । अंत में फिर वे एक फाटक के सामने पहुँच गये । जगतपाल ने आवाज दी तो वह बङा सा दरवाजा चरमर की आवाज करते हुए खुल गया । वे भीतर दाखिल हुए । भीतर बहुत सारे लोग इधर उधर काम पर लगे थे ।  

 

बाकी फिर...