Prem Gali ati Sankari - 149 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 149

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प्रेम गली अति साँकरी - 149

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दो ही दिन बीते थे कि अचानक अपने सामने मंगला को देखकर मैं चौंक गई | तैयार होकर अपने चैंबर में जा रही थी कि सामने बरामदे से आती हुई मंगला को देखकर मेरा दिल धड़कने लगा | उसका वहाँ अकेले आना एक सपना ही तो था | उसे देखकर जैसे अच्छे खासे मूड में व्यवधान डलने से खीज सी हो आई जैसे मन में आंधी सी चलने लगी| 

“आज फिर ये प्रमेश की दीदी पहुँच गई? अभी कई दिनों से शांति थी और उनका कोई फ़ोन आदि भी नहीं आया था| दूसरे पापा, अम्मा और भाई और भाभी से बात करके मन आनंद में था कि मंगला को देखते ही मन में खुशी की लहर तो उठी लेकिन लगा अभी दीदी नामक प्राणी नमूदार हो जाएंगी और मुझे मंगला से बात करने का कोई अवसर नहीं मिलेगा| 

“बाऊदी !”अचानक मंगला लगभग दौड़ती हुई आई और मुझसे आकर चिपट गई| मैं आश्चर्यचकित रह गई और उसे अकेले देखकर मुझे कुछ समझ नहीं आया| मैंने हमेशा की तरह उसे अपने गले लगा लिया | वह बहुत डरी, सहमी हुई सी लग रही थी | 

“अकेली हो मंगला? कैसे? ”मैंने उससे आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता से पूछा ? 

“भागकर आई बाऊदी---”उसने मुझे कसकर भींच लिया और फिर अचानक ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी| मैं कहाँ कुछ मंगला के विषय में  अधिक जानती थी, स्वाभाविक था कुछ घबराहट भी हुई | सामने से शीला दीदी आती दिखाई दीं, उन्हें देखकर वैसे भी मैंने अपने आपको कभी अकेला नहीं महसूस किया| मैंने दीदी से कहा कि उसे लेकर चैंबर में चलते हैं| 

हम दोनों उसे लेकर मेरे चैंबर में आ गए और आराम से बैठाया| वह अभी तक भी सुबक सुबककर रोए जा रही थी| शीला दीदी ने उसे पानी पीने को दिया जिसे वह पूरा एक ही साथ ऐसे गटक गई जैसे न जाने जन्मों की प्यासी हो| शीला दीदी ने फिर से उसका ग्लास भर दिया लेकिन फिर वह उसके सामने ही रखा रहा और वह लुटी-पिटी सी दृष्टि से जैसे कमरे में कुछ तलाश करने की कोशिश करने लगी | 

“कहाँ से आ रही हो मंगला और हुआ क्या है?” शीला दीदी और संस्थान में सब लोग ही उससे परिचित थे इसलिए उसे गेट पर भी गार्ड ने रोका नहीं होगा शायद| वह एक जटिल प्रश्न सी सामने थी और हम दोनों में से कोई भी उससे कुछ पूछने की स्थिति में खुद को नहीं पा रहे थे लेकिन बात तो शुरू करनी ही थी | 

“शीला दीदी! प्लीज़ महाराज से कहकर मंगला के लिए कुछ खाने-पीने को मँगवाइए। मुझे लगता है इसने न जाने कबसे कुछ नहीं खाया है| ”

मेरी बात सुनकर वह और फूट-फूटकर रोने लगी| हम दोनों ने मिलकर उसे संभाला| महाराज जल्दी ही नाश्ता और जूस लेकर आ गए थे| 

“पहले कुछ खा–पी लो, फिर बात करते हैं| ”मैंने कहा लेकिन उसके हाथ खाने की ओर बढ़े भी नहीं| 

“ठीक है, बाद में खाना लेकिन जूस पीओ, देखो तो कितना सूखा हुआ मुँह हो रहा है| ”मैंने और शीला दीदी ने  बहुत प्यार और इसरार करके उसे जूस पिलाया| जिसे पीते ही उसकी आँखों में और चेहरे पर थोड़ी सी चमक दिखाई दी और हम कुछ आश्वस्त से हुए | 

रतनी और पूरा स्टाफ़ अम्मा के आदेशानुसार अब ट्रिप की तैयारी में था| उत्पल के लड़के भी काम में लग चुके थे, बस वही नहीं था| मेरे मुँह से एक ‘आह’ सी निकली और जैसे फिर से मुझे एक उदासी ने घेर लिया| जब से पापा से और विशेषकर भाई से बात हुई थी तब से मुझे और भी अधिक ‘गिल्ट’ होने लगा था| इतना सब कुछ सकारात्मक होते हुए भी मैंने अपनी कुबुद्धि से ही तो सब कुछ उलट-पलट दिया था लेकिन पापा की बात भी याद आती कि अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए लेकिन प्रारब्ध का खेल कोई नहीं जानता| 

“क्या हुआ आपको? आप ठीक तो हैं ? ”शीला दीदी ने मुझसे पूछा और मेरी नम आँखें देखकर वे समझ गईं कि मेरे भीतर फिर से वही टीस उठी है जिसको मैं दबाती रहती हूँ| उन्होंने धीरे से मेरा हाथ सहला दिया और मैंने उनकी ओर एक फीकी मुस्कान फेंक दी| एक-दूसरे के मन की बात समझने के लिए हम दोनों का इतना आदान-प्रदान ही काफ़ी होता था| 

“अब तुम बताओ, क्या हुआ है मंगला और इतनी घबराई हुई क्यों हो ? ”मैंने मंगला को थोड़ा सा आश्वस्त देखा तो फिर से पूछा| 

काफ़ी देर तक वह चुप्पी साधे रही फिर उसकी सूखी आँखों में फिर से पानी भर आया| धीरे-धीरे उसने कुछ कहना शुरू किया |