अंगद ने मनपाल से पुनः पूछा, कि महाराज और उसके पिता नगर वापस कब लौटेंगे, तो मनपाल ने बड़ी दबी सी आवाज में बताया, जैसे उनकी अब उस वार्तालाप में कोई रुचि शेष न रह गई हो। वह बोले, "आज से चौथे दिन महाराज और तुम्हारे पिता दोनों लौट आएंगे। और कोई प्रश्न, कोई जानकारी लेनी हो, तो कहो- वह भी बताऊं तुम्हें।" अंगद मनपाल का व्यवहार देखकर भांप गया था कि उनके मन में क्या चल रहा है। वह धीमे से स्वर में बोला, "आप तो काका बिना किसी कारण ही रुष्ट हुए जाते हो, मुझसे कोई त्रुटि हुई तो क्षमा प्रार्थी हूँ। मनपाल ने अंगद की तरफ देखकर हाथ से इशारा करते हुए कहा-" इतने से थे तुम, जब भानु (भान सिंह) तुम्हें गोद में लिए आंगन में आया था, तुम्हारे नाम करण के दिन। न जाने कितने नाम सुझाए पुरोहित ने, परंतु तुम्हारे बाबा को एक न जमा। अपनी गोद में उठाकर, मैंने ही तुम्हे 'अंगद' पहली बार पुकारा था। भानु को हमेशा मैंने छोटे भाई जैसा माना है। और जितना अनुराग मेरा तुुमसे है, अगर मेरा अपना कोई पुत्र होता तो उससे भी कदाचित यह अनुराग न होता।"
अंगद देख रहा था कि जिस कठोरता की मूर्ति के किस्से लोग सुनते- सुनाते हैं, वह अंदर से कितना कोमल मनुज है। अंगद ने कुछ कहने की चेष्टा की- "परंतु काका,...", लेकिन मनपाल के शब्दों का वेग थमने का नाम न लेता था, वह कह रहे थे,"अंगद मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं, और यह मेरा अधिकार है। कोई बात है जो मुझे परेशान कर रही है, कुछ तो है जो मैं तुम्हारे बारे में नहीं जानता या तुम बताना नहीं चाहते। जब से युद्ध से लौटा हूं रह रहकर मेरे मस्तिष्क में एक ही शंका हिलोर ले रही है कि जो तुमने किया, क्या तुम वह सचमुच कर सकते हो। और तुम क्या कोई और भी वह सब कैसे कर सकता है। मैंने अपने जीवन में सैंकड़ो युद्ध लड़े हैं पुत्र, कोई भी दृश्य आंखों के सामने हो, कभी मैंने भय का स्वाद न लिया। परंतु तुम्हें युद्ध में लड़ता देखा मुझे अपने हृदय के किसी कोने में भय की अनुभूति हुई। वह वीभत्स दृश्य मेरी आंखों के सामने से हटा नहीं है। रह रहकर वह दृश्य मेरी आत्मा को झकझोर देता है। विपरीत परिस्थितियों में मैंने अपनी ही सेना के सिपाहियों के शव असहाय पडे, सड़े- गले देेखे हैं। उस दृश्य ने भी विचलित नहीं किया, मेरे हृदय में दया का कोई भाव नहीं आया, परंतु जो तुम कर रहे थे वह देखकर मेरे खून का पानी हो गया। उन दुश्मनों पर मुझे दया आ गई। जिस जिस को तुम्हारी तलवार ने छुआ उनके लिए मुझे मेरी आत्मा का रुदन साफ सुनाई पड़ता है। अंगद मेरे प्यारे बच्चे, मुझे बताओ तुम क्या छुपा रहे हो?"
अंगद बिल्कुल शांत होकर मनपाल की बातें सुन रहा था उन्होंने पूछा कि बताओ क्या बात है तो वह बहुत स्नेहपूर्ण वाणी में कहने लगा-" काका आप क्यों घबराते हैं ,मैंने अपनी सेना के तो किसी सिपाही को हानि नहीं पहुंचाई और युद्ध के सारे नियमों का पालन करते हुए लड़ा हूं ।आपने बस वह शव देखे और आप भयभीत हो गए परंतु मुझे पहली बार लड़का देखकर तो आपको खुशी होनी चाहिए थी। आपका सीना तो गर्व से दोगुना हो जाना चाहिए था। काका महादेव की सौगंध मेरी तलवार ने किसी निहत्थे या निशस्त्र सिपाही पर वार नहीं किया। सिर्फ वही मेरे हाथों वीरगति को प्राप्त हुए जिनमें लड़ने का साहस था।