स्वामी विवेकानंद के 15 अनमोल वचन जो प्रत्येक युवा को सचमुच प्रेरित करेंगे। आज हमे इसे जीवन और समाज मे आत्मसात करने की आवश्यकता है।
1- उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
2- हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं , किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है।
3- एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
4- एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
5- पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
6- एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
7- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
8- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
9- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
19- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
11- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
12- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
13- जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
14- चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
15- हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा दर्शन
स्वामी विवेकानन्द भारतवर्ष के अमर सपूतों में से एक हैं। उनकी आध्यात्मिकता की गहराई तथा सम्पूर्ण मानवमात्र के प्रति उनका प्रेम हमारे देश की धरोहर है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी उनके विचारों में उनकी मानवता के प्रति प्रेम तथा आध्यात्म की भावनायें दृष्टिगोचर होती हैं।
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, शिक्षा का अर्थ मनुष्य में छिपी हुई सभी शक्तियों का पूर्ण विकास है, न कि केवल सूचनाओं का संग्रह है।
उनके अनुसार, “यदि शिक्षा का अर्थ सूचनाओं से होता, तो पुस्तकालय संसार के सर्वश्रेष्ठ संत होते तथा विश्वकोष ऋषि बन जाते।”
उनके अनुसार, “शिक्षा उस सन्निहित पूर्णता का प्रकाश है, जो मनुष्य में पहले से ही विद्यमान है। “