भाग -17
रुक्मणी जी रसोई में जाकर रेणु के कंधे पर हाथ रखते हुए कहती हैं, ‘बहू डरो नहीं, अब इसे अपना ही घर समझो’ धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा. और तुम तो जानती ही हो कि अक्कू जैसे लोगों को कैसे संभाला जाता है. फिर अब तो वह तुम्हारा पति हैं. अब यह ज़िम्मेदारी तुम्हारी है, संभालो इसे. कहती हुयी वह भी वहाँ से चली गयी. रेणु की आँखों से आँसू बहते रहे....! बहते रहे .....! पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा. किसी तरह रेणु ने अक्कू को संभालने का प्रयास करना शुरू कर दिया. अक्कू उससे खुश रहने लगा. लेकिन रोज़ रात को वह हैवान बनाने लगा था. रेणु ने मन ही मन यह सोच लिया था कि अब जो भी है, उसकी किस्मत हैं और जो भी होगा वह झेलेगी पर लौटकर अपनी माँ के पास फिर कभी नहीं जाएगी. कुछ दिन बाद जब काम के बाहने उसकी माँ उस घर में दुबारा आयी तो रेणु ने ही दरवाजा खोला. महंगी सी बनारसी साड़ी और गहने से सजी धजी रेणु को देख लक्ष्मी का मन खुश हो गया और उसने अपनी बेटी का चेहरा अपने हाथों में लेकर उससे लाड़ से कुछ कहना चाहा ही था कि रेणु ने उन्हें काम से निकाल दिया और किसी अंजान व्यक्ति की तरह उनसे कहा देखिये अब आप की इस घर को कोई जरूरत नहीं है. आप अपना हिसाब कीजिये और चली जाये यहाँ से और हाँ फिर कभी लौटकर यहाँ मत आयेगा.
लक्ष्मी की आँखों में रेणु के कडवे शब्दों से जल भर आया. वह बहुत कुछ कहना चाहती थी मगर रेणु ने सभी कुछ सुनने समझने से इंकार कर दिया और अपनी सास की तरफ देखते हुए बोली, इतना अधिकार तो है ना मुझे कि इस घर की बहू होने के नाते इस घर के नौकरों को निकाल या रख सकूँ। कहते हुए रेणु का गला भी रुँध गया मगर उसने बिना पिघले खड़े खड़े अपनी माँ को नौकर कहते हुए घर से निकाल दिया और खुद कमरे में जाकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी. अक्कू ने उससे एक दोस्त की तरह संभालने का प्रयास किया मगर रेणु का रोना बंद नहीं हुआ. लक्ष्मी भी वहाँ से बिना कुछ लिए दिये, रोती हुई मुंह में अंचल दबा कर वहाँ से चली गयी. कई महीनो का समय व्यतीत हो गया. ना माँ ने बेटी की सुध ली, ना बेटी ने माँ की. इधर दीनदयाल जी ने भी लक्ष्मी को इस घ्राणित कर्म के लिए कभी माफ ना करने का फैसला सुना दिया. लक्ष्मी ने उन्हें बहुत समझाने का प्रयास किया कि उसने जो भी किया रेणु की भलाई के लिए किया. कहते हुए उनसे बहुत बार क्षमा मांगी मगर दीनदयाल जी ने उसे माफ ना किया.
इधर एक दिन रेणु के सर से पानी ऊपर हो गया. अक्कू उसके लिए जी का जंजाल बन गया था. “दिन में राम, रात में रावण वाली स्थिति हो चली थी”. एक दिन रेणु ने आत्मरक्षा के चलते अक्कू पर ऐसा वार किया कि उसकी मौत हो गयी. जब तक रेणु को होश आया अर्थात उसका गुस्सा शांत हुआ, तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी. रेणु ने सब छोड़कर अक्कू को हिलाते हुए होश में लाने का प्रयास करने लगी. अक्कू ....अक्कू....! उठो अक्कू कहते हुए, जैसे ही उसने अक्कू का सर अपने हाथो में लेकर अपनी गोद में रखने की कोशिश की तो उसके हाथों में खून लग गया. यह देख रेणु बहुत ज़ोर से घबरा गयी और चीखते हुए उसने रुक्मणी जी नरेश सभी को आवाज़ दना शुरू किया. सभी रेणु की चीख सुनकर कमरे में चले आए और अक्कू की हालत देखते हुए उसे अस्पताल ले जाने की तैयारी शुरू कर दी. अक्कू की हालत देखकर रुक्मणी जी बेहोश हो गयी.
आनन फानन में अक्कू को अस्पताल ले जया गया, जहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया. सभी के चहरे अवाक रह गए. रेणु स्तभ्द सी वहीं के वहीं खड़ी रह गयी. बस उसकी आँखों से अश्रुधारा बहती रही. लेकिन उसकी काया मानो जड़ हो गयी. पुलिस आयी और रेणु को गिरफ्तार कर के अपने साथ ले गयी, रेणु अब भी स्तभ्ध ही है, मानो कोई मूर्ति हो जिसे बस उठकर यहाँ से वहाँ ले जाया जा रहा है. कुछ दिनों की बिहाता नारी कल तक जो साजो शृगार से लिप्त थी, आज अचानक वैधव्य रूप में थाने की सलाखों के पीछे मौन धरण किए बस एक लाश की तरह जीवन जी रही है. उसके ससुराल वाले उसे हत्यारीन घोषित करने के लिए उस पर केस चला रहे हैं. इधर जब रेणु की माँ अर्थात लक्ष्मी के कानो में यह खबर पड़ी, तो वह दौड़ी दौड़ी अपनी बेटी से मिलने जेल पहुंची और अपनी नयी नवेली बियाहता बेटी को एक विधवा के रूप में देखकर लक्ष्मी का दिल किसी शीशे की भांति टूटकर चकना चूर हो गया. वह उससे रो- रोकर यह पूछने लगी कि यह सब कैसे हुआ ? और ऐसा भी क्या हो गया था जो रेणु ने अक्कू की जान ही ले ली ? पर रेणु ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया. वह एक मौन मूर्ति की तरह उनके सामने आयी और मूर्ति बनी ही बैठी रही. उन्होने कई बार रेणु से कहा तू कुछ बोलती क्यों नहीं, मैं कुछ पूछ रही हूँ ना तुझ से ? पर तब भी झँझोड़े जाने के बावजूद भी रेणु वैसे ही मौन मूर्ति बनी उनके सामने से चली भी गयी. मानो जैसे ज़िंदा लाश है. बस और उसके भीतर अब शेष कुछ भी नहीं है.
लक्ष्मी ने जब उसे ऐसे जाते देखा, तो मन ही मन कहा इस दिन के लिए तो उसने रेणु की शादी अक्कू जैसे मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति से नहीं करवायी थी. कुछ दिन और बीते, केस चलता रहा. अभी तक तो रेणु ने अपने ऊपर लगे किसी भी इलज़ाम के खिलाफ आवाज उठकर कुछ नहीं कहा था. लेकिन जब केस का अंतिम दिन आया तब जज साहब ने अंतिम बार रेणु से कहा, ‘तुम्हारे पास यह आखिरी मौका है, तुम्हें यदि अपने बचाव में कुछ कहना है तो कह सकती हो’. पहले तो रेणु ने कुछ नहीं कहा. लेकिन फिर जब उसने अदालत में अपनी सहेली काशी को देखा तो कहा ‘जज साहब आप यदि मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे इंसाफ दीजिये. जो कुछ भी हुआ वो मैंने जान बूचकर नहीं किया. वह आदमी मेरे साथ रोज बलात्कार करता था. इतना ही नहीं मेरे साथ जानवरों जैसा बर्ताव करता था. यह देखिये, रेणु ने भरी आदालत में अपनी साड़ी का पल्ला हटाकर अपने गले पर अक्कू के काटे के निशान दिखाये जो साफ साफ उसकी दरिंदगी ब्यान कर रहे थे.
फिर वो बोली, यदि ऐसे राक्षस को कोई नारी मौत देती हैं तो देवी कहलनी चाहिए, हत्यारिन नहीं, और मैंने कहा ना मैंने यह जानबुझ कर नहीं किया. आत्मरक्षा में ऐसा हो गया पर सजा मुझे नहीं उन्हें मिलनी चाहिए, जिन्होने बिना मेरी मर्जी के बेहोशी में मेरी शादी उस इंसान से करा दी जिसे खुद अपना होश नहीं था. क्या वह लोग सजा के हकदार नहीं....? कौन हैं वह लोग आपने अब तक उनके विषय में अदालत को कुछ बताया क्यूँ नहीं ? रेणु ने क्रोध और रुदन के मिले जुले भावों से अपनी माँ की ओर देखा और फिर नफरत से मुंह फेर लिया...जज साहब ने अगले कुछ हफ्तों के लिए केस की तारीख आगे बढ़ा दी और सरकारी वकील से इस विषय में सपूर्ण जानकारी उपलब्ध करने को कहा. उस दिन की अदालत वहीं खत्म हो गयी और पुलिस वाले रेणु को वापस जेल ले जाने लगे. रास्ते में उसकी माँ लक्ष्मी ने उसे रोकते हुए फिर पूछा, ‘ऐसा भी क्या कर दिया मैंने, जो तू मुझसे इतनी नफरत करने लगी हैं. मत भूल मैं माँ हूँ तेरी और मैंने जो कुछ भी किया तेरी भलाई के लिए किया.’
रेणु की आँखों में कोर्ध की अग्नि भड़क उठी और उसने लगभग चीखते हुए कहा, ‘यह है मेरी भलाई, यह जख्म जो मेरे बदन पर तुम देख रही हो, तुम्हें क्या लगता यह बस एक बार की बात है ...?? नहीं माँ, नहीं. यह हर रात की बात है. जैसे मैं कोई बकरी या गाय थी कि तुमने मुझे रोज उस भेड़िये का भोजन बनने के लिए उस नर्क की आग में झोंक दिया. क्यूँ माँ ...? क्यों ? आखिर क्यों ...? अगर मैं तुम पर बोझ बन गयी तो भी सीधे सीधे कह दिया होता मुझसे, मैं तुम्हारे रास्ते से खुद ही हट जाती पर यूं इस तरह मेरी जिंदगी बर्बाद करने का हक तुम्हें किसने दिया...? अरे यह कोई बड़ी बात नहीं है, नयी नयी शादी में मर्दों को जोश जरा ज्यादा ही रहता ही है. फिर बाद में सब ठंडे पड़ जाते हैं. इसे यूं सरे आम बार बार दिखाकर, तू मुझे दोषी नहीं ठहरा सकती. रेणू अपनी माँ की बातें सुनकर अब भी स्तब्ध थी. उसे इसके आगे और कुछ कहना या सुनना नहीं सुहाया. उसने पुलिस वाली महिलाओं से खुद ही चलने के लिए कह दिया. जब अगली तारीख आई और जज साहब के सामने पूरा मामला पेश किया गया और उन्होने एक बार फिर रेणु से पूछा, क्या तुम अब भी अपनी सफाई में कुछ कहना चाहती हो...? उस वक्त रेणु के मुख से एक दर्द भरी चीख में अपनी माँ की और देखते हुए केवल इतना ही कहा “मुझे न्याय चाहिए...” जज साहब, “मुझे न्याय चाहिए” और जज साहब ने कहा सभी गवाहों और सबूतों को मद्देनज़र रखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुंची हैं कि रेणु ने जो कुछ भी किया वह आत्मरक्षा के चलते किए.इसलिए सबूतों और गवाहों के बयानो के आधार पर अदालत रेणु को निर्दोष मानते हुए रिहा करती है.
लेकिन रेणु की माँ ने जो उसके साथ किया वह भी एक अपराध था. जिसके लिए अदालत ने उसे उसके अपराध के आधार पर सजा दी. और इस तरह रेणु को अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के प्रति न्याय मिला.