टूटी हुई उम्मीदों का घाव सबसे गहरा होता है l
गुज़रा हुआ प्यारा वक़्त वहीं पे ठहरा होता है ll
जाए तो कहां जाए पल भर की खुशी के लिए l
कहीं पर भी जाओ ज़माने का पहरा होता है ll
जानों दिल की लंबी सी जुदाई के दिनों में l
जीने के वास्ते ख्वाबों का सहरा होता है ll
दो पल की छोटी सी मुलाकात के अरमान से l
गुलाब की तरह खिला हुआ चहरा होता है ll
न सुनने वाली बात सुन लेता है कैसे भी l
गलतफहमि मत रहो के समय बहरा होता है ll
१-४-२०२४
जिस्म की आग मर कर ही शांत होती है l
उम्मीद साथ जिस्म के मज़ार में सोती है ll
उम्रभर चीजों के पीछे भागते रहते हैं और l
अरमानो की गठड़ी से सुकुनियत खोती है ll
जीवन की कोरी क़िताब में सुनहरे दिन में l
आने वाले समय के वास्ते इच्छा बोती है ll
रोज अपनापन दिखाकर देते रहे हैं जख्म l
ताउम्र मुकम्मल जिंन्दगी के लिए रोती है ll
दुआ है हसरतें, चाहतों और तमन्ना पूरी हो l
चेन और सुकूं का एक एक लम्हा मोती है ll
२-४-२०२४
खुद को संभालो तन्हा रोने से क्या होगा?
जिन्दगी सजालो तन्हा रोने से क्या होगा?
जानी अनजानी महफिल में सभी को आज l
गले से लगालो तन्हा रोने से क्या होगा?
तन्हाई का भी एक अलग रुआब होता है l
मौन जगालो तन्हा रोने से क्या होगा?
किसी के कंधे पर सर रखकर रोने के लिए l
दोस्त ही बनालो तन्हा रोने से क्या होगा?
जो भी है यही लम्हे है खुशी से जीने को l
प्यार को जतालो तन्हा रोने से क्या होगा?
ना जाने कब जीवन की शाम ढल जाए तो l
रूठे को मनालो तन्हा रोने से क्या होगा?
३-४-२०२४
कब से दर पर है खड़े रब सुने ना मेरी अर्जी l
कुछ भी हो जाए चलती है उसकी ही मर्जी ll
बड़ी आशा लगाएं हुए आज आए हैं तेरे धाम l
सुन जरा दिल की पुकार फिझाओ में गर्जी ll
गुमान में कहीं ख़ुद ही ख़ुदा ना समझ ले तो l
परिस्थितियों ही कुछ इस तरह से सर्जी ll
कोई उसका फेसला बदल नहीं पाया है कि l
रब की हर मर्जी दिलों दिमाग को फ़र्जी ll
कब से आवाज़ दे रहा पर सुनता ही नहीं वो l
आज लगता है अब रब को हो गई है लर्जी ll
चाहते हैं दिलों दिमाग की ख्वाइशे पूरी हो l
कब आ जाए ऊपर वाले की तरफ से तर्जी ll
४-४-२०२४
क़ायनात में भूख के रंग हज़ारों होते हैं l
आधे से ज्यादा लोग भूखे पेट सोते हैं ll
अमीरों का उससे जी नहीं भरता कभी l
लालच की वजह से चैनो सुकूं खोते हैं ll
गरीब एक वक्त की रोटी को तरसते है l
अमीर लोग रुपये को हर वक्त रोते हैं ll
विकासशील देश के पढ़े लिखे लोग देखो l
खाने को न रोटी,लिम्बु से हाथ धोते है ll
बच्चों के पेट भरने के वास्ते छोटे बड़े l
माँ बाप खुद की ही भूख को बोते है ll
५-४-२०२४
दिल में प्यार की घंटी गर्जी l
हुआ तुझसे इश्क़ मेरी मर्जी ll
बड़ी सी हसीन क़ायनात में l
हुश्न को मिरी ख़ातिर सर्जी ll
हाथों से प्यार की डोर न टूटे l
इतनी सी है ख़ुदा से अर्जी ll
जनूनी, बेपन्हा और बेइंतिहा l
मुहब्बत की हर शर्ते फर्जी ll
प्यारी मीठी सी मुस्कान को l
मानी गई इश्क़ की ही तर्जी ll
६-४-२०२४
जाम पीने से क्या मिलेगा?
साँसों का कारोबार चलेगा !
हस्ती को बरकरार करने को l
अश्क चाक जिगर सिलेगा ll
गर रुख से पर्दा जो उठ गया l
महफिल में अस्तित्व हिलेगा ll
दो लम्हों के दीदार के बाद l
आज दिलों दिमाग जलेगा ll
हुश्न से मुलाकात के दौरान l
चांद रात में दीवाना जलेगा ll
दिल को शिद्दत से यकीन है l
नसीब का सितारा खुलेगा ll
करवा चौथ को चांद के लिए l
बादलो में से चांद निकलेगा ll
७-४-२०२४
जाते वक्त खबर कर देना रोकेंगे नहीं l
पीछे से आवाज़ देकर टोकेंगे नहीं ll
सर सामान देख कर लग रहा है आज l
जा तो एसे रहे हो जैसे कि लौटेंगे नहीं ll
चाहते हैं चैन और सुकूं से आगे बढ़ो l
गर मर्जी है न बोले तो लो बोलेंगे नहीं ll
जानते हैं जाने वाले कभी नहीं रुकते l
ऐतबार करना हाथ कभी जोड़ेंगे नहीं ll
जहां है वहीं पर इंतज़ार करते रहेंगे l
वादा करते हैं ताउम्र राह मोड़ेंगे नहीं ll
८-४-२४
वक्त के आगे किसीकी गर्मी टिकी नहीं है l
जिन्दगी तो किसी के लिए रूकी नहीं है l
सूरज आग उगल रहा, धरती जल रहीं l
पानी के छिड़काव के हाथों बिकी नहीं है ll
पीले फ़लों से खेत खलियान लहराए देखो l
गर्मी के बिना आम की ऋतु खिली नहीं है ll
सूखा है जल नदी और नालों में हर कहीं l
भटकते हुए पंछी की प्यास सिली नहीं है ll
जून का महीना सर चढ़ा टप टप बहे पसीना l
बच्चे बूढ़ों के नसीब में ठंडक लिखीं नहीं है ll
९-४-२०२४
न जाने साँसों का सफ़र कब ख़त्म हो l
सूबा है फ़िर से एसी सुहानी बज़्म हो?
रूख फ़िज़ाओं और महफिल का देख l
शायद अब मुहब्बत में फ़िर जब्ज़ हो ll
ता-उम्र कोई किसी के साथ नहीं रहता l
काश रिश्तों को निभाने की रस्म हो ll
बनावट और बेमानी जहां है सारा यहां l
तो मतलब के संबंध खाक में भस्म हो ll
क़ायनात में चारो तरफ फ़ेंक आलम l
सखी सम्हालना नया कोई ज़ख्म हो ll
१०-४-२०२४
मौसम कोई भी हो रिक्षा वाला रूकता नहीं l
हालात औ परिस्थिति के आगे झुकता नहीं ll
सब के साथ एक ही व्यवहार करता है वो l
छोटा हो या बड़ा किसीको भी लुटता नहीं ll
ख़ुद की धुन में ख़ुद का कर्तव्य बजाता है l
बेमतलब और बेतुकी बातेँ वो पूछता नहीं ll
ज़्यादा या कम जो भी मिले खुश रहेता l
जिंन्दगी में हारकर कभी भी टूटता नहीं ll
जो बैठे रक्षा में उसे उसकी मंज़िल पहुँचाता l
कैसे भी हो अपनी ज़िम्मेदारी से छूटता नहीं ll
११-४-२०२४
क़ायनात में पैसा ही बोलता है l
लोगों की पहचान खोलता है ll
इंसानियत की कोई क़ीमत नहीं l
इंसान को रुपये से तोलता है ll
रूह से पहचान करनी नहीं आती l
जर जेवरात महल से मोलता है ll
१२-४-२०२४
कहानियों का खजाना होती है दादी माँ l
कलियों में संस्कार बोती है दादी माँ ll
नटखट, अल्हड और शरारती बदमाश l
बच्चों संग बच्चे जैसे रोती है दादी माँ ll
स्नेह भाव से गीत ओर लोरी सुनाकर l
छोटे बड़ो को सुला के सोती है दादी माँ ll
उसकी उपस्थिति हर दर्द का इलाज है l
कुटुंब माला में अनमोल मोती है दादी माँ ll
दिल से अमीर शहजादी सीधी सादी माँ l
अपनों के लिए चैन सकूँ खोती है दादी माँ ll
१३-४-२०२४
जिंन्दगी में गुज़रा हुआ वक्त वापिस नहीं आता l
ग़म तो ये है कि वो वक़्त यादों से नहीं जाता ll
दिलों दिमाग के अत्यंत क़रीब हुआ करते थे l
जिनसे दूर नहीं रह पाते उनसे जुड़ा होता है नाता ll
मुकम्मल लाख कोशिशों के बाद भी रूठ के l
जाने वालों को मुंड कर वापिस कौन लाता ll
दुनिया में हर कोई है खालीपन से हरा भरा l
क़ायनात में चैन और सुकून कौन है पाता ll
अंदाज़ ए बेकरारी इस तरह बढ़ रही है कि l
सुहाने पुराने दिनों की यादों में गीत गाता ll
१४-४-२०२४
माता के दरबार में जो है जाता मनचाहा पाता l
उसके दर से कोई भी ख़ाली हाथ न लौटता ll
माता की कृपा सब पर बरसे ओ हो बेड़ा पार l
आशीर्वाद से झोली भरके ही वापिस आता ll
घर घर माँ की पूजा हो धरा बन जाए स्वर्ग l
दर्शन करने वाला हर भक्त माँ के गुण गाता ll
माता के दरबार में जाकर करते हैं बिनती l
माँ संग बारम्बार जन्म-जन्म का हो नाता ll
मनोकामना पूरी होती है उसकी कृपा से l
सब के दुख हरतीं सुख चैन की है दाता ll
१५-४-२०२४