Book Review - Sunshine Pieces in Hindi Book Reviews by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | पुस्तक समीक्षा - धूप के कतरे

Featured Books
Categories
Share

पुस्तक समीक्षा - धूप के कतरे

समीक्षा-- धूप के खतरे
(गजलकार घनश्याम परिश्रमी )

नेपाली भाषा के ख्याति लब्ध साहित्यकार डॉ घनश्याम परिश्रमी जिन्होंने
#नेपाल और हिंदी गज़लों का विशेणात्मक अध्ययन#
विषय पर पी एच डी किया है ।

गजल विद्वत शिरोमणि से विभूषित डॉ घनश्याम परिश्रमी समालोचक नेपाली ग़ज़ल के शीर्ष शिखर ग़ज़लकार के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।
#धूप के कतरे#
ग़ज़ल संग्रह उनके विद्वत हृदय विचारों भाँवो से निकली सृजित सारगर्भित ग़ज़ल संग्रह है जिसके द्वारा डॉ परिश्रमी ने ग़ज़ल के अंतर्मन अवयवों को निखारते उसको वास्तविक हक कि ऊंचाई तक पहुंचाने में सफल सक्षम हुए है ।

फारसी कि मूल विधा को उर्दू ने आत्म साथ किया और हिंदी ने हताश मनोभावों से इसे स्वीकार करते हुए अपनी लोकप्रियता के साथ लोक प्रियता के उत्कर्ष तक स्वीकार किया।

हताश इसलिए क्योकि फारसी भाषा भारत मे गुलामी के प्रतीक उत्कर्ष के रूप में आई उर्दू फारसी कि सहोदरी है दोनों बहनों ने भारत कि भाषा संस्कृति का समापन कर बोल चाल की भाषा से हिंदी को जन्म दिया छठी शताब्दी से प्रारम्भ भाषा का संक्रमण भारत की स्वतंत्रता के पूर्व भक्ति काल कि रौशनी के रूप में पुनः स्वतंत्रता के बाद जन भाषा के रूप में निखरी भाषायी संक्रमण के मध्य हिंदी का उदय भी संस्कृत के शव एव फारसी उर्दू के संगत में शुरू हुआ जिससे भारत के आस पास के क्षेत्र अछूते नही रहे एव जिसके कारण हिंदी को बहुत सी परम्पराओ को फारसी एव उर्दू से सहर्ष स्वीकार करना पड़ा ग़ज़ल विधा कि हिंदी में स्वीकार्यता इसी सत्य का वर्तमान परिणाम है।
ग़ज़ल मूल रूप से पुरुष का नारी के आकर्षण एव प्रतिकर्षण के भाँवो की संवेदना ही है कही कही भाई चारे रूवान और तहज़ीब के प्रसंग संदर्भ में भी प्रयोग प्रचलित है।
डॉ परिश्रमी का ग़ज़ल संग्रह भी ग़ज़ल एव हिंदी कि सत्यता कि वास्तविकता का ही लब्ज़ नज़्म है डॉ घनश्याम परिश्रमी जी ने अपने नाम के अनुरुप घनशयाम अर्थात भगवान श्री कृष्ण जो प्रेम के शाश्वत सत्य ईश्वर खुदा परवरदिगार है के प्रेम परम्पराओ को बेहद संजीदा अंदाज में प्रस्तुत धूप के खतरे ग़ज़ल संग्रह के द्वारा करने की ईमानदारी से प्रयास परिश्रम किया है।

#मूक था वह निखर बन गया
बोलते ही जबर बन गया#

अंतर्मन भावों की बेहतरीन जुबाई
#दर्द है बेबसी प्यार में कुछ तो है
कुछ तो है जिंदगी प्यार में#

गज़लों कि परंपरा एव रूहानी जिशमानी जुबानी दिल कि दस्तक से शुरू दिल के दरवाज़ों को खोलती डॉ घनश्याम परिश्रमी के कठोर परिश्रम कि ग़ज़ल संग्रह धूप के खतरे निश्चय ही उम्दा ग़ज़ल संग्रह है।

प्रकाशन कि त्रुटियों के कारण इतनी सुंदर ग़ज़ल संग्रह कि किताब बेतरतीब है किताब के आधे पन्ने उल्टे आधे सीधे बाईंड है शब्दो कि प्रिंटिंग भी ग़ज़ल कि खूबसूरती के अनुसार नही है।
सबके बावजूद डॉ घनश्याम परिश्रमी जी ने #धूप के कतरे के रूप में # शानदार जबरजस्त एव प्रभवी ग़ज़ल संग्रह प्रस्तुत कर गज़लों कि दुनियां में नए वक्त ऊंचाई के वजन शेरों का नायाब अंदाज़ प्रस्तुत किया है जो सराहनीय है।
ग़ज़ल संग्रह धूप के कतरे समाज को मोहब्बत का पैगाम देने में सक्षम है।

समीक्षक-- नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।