Kanchan Mrug - 37 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | कंचन मृग - 37. न बहुत निकट न दूर

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कंचन मृग - 37. न बहुत निकट न दूर

37. न बहुत निकट न दूर-

महारानी मल्हना ने महाराज से अनुमति ले मन्त्रणा के लिए मन्त्रियों एवं अधिकारियों को आमन्त्रित किया। महाराज परमर्दिदेव, महारानी मल्हना, चन्द्रा ब्रह्मजीत , माण्डलिक, उदयसिंह, जगनायक, धर्माधिकारिन सहित महासचिव देवधर मन्त्रणा कक्ष में आसीन हुए। विशेष आमन्त्रित में कुँवर लक्ष्मण राणा भी उपस्थित थे। महारानी ने महासचिव देवधर से प्रकरण रखने के लिए इंगित किया। मन्त्री माहिल को इस मन्त्रणा से अलग रखा गया। महासचिव देवधर ने गुप्तचरों से प्राप्त सूचनाओं को क्रमवार रखा। महाराज पृथ्वीराज महोत्सव के साथ निर्णायक युद्ध की तैयारी कर रहे हैं, यह जानकर सभा चिन्तित हुई।
‘‘क्या कोई ऐसा सूत्र है जिससे इस युद्ध को टाला जा सके?’’ माण्डलिक ने प्रश्न किया।
‘‘कैसे टाला जा सकता है? उनकी अपेक्षाओं की पूर्ति संभव नहीं है। उसका अर्थ होगा चन्देल सत्ता की समाप्ति,’ ब्रह्मजीत ने कहा।
‘‘ चन्देल सत्ता बनाए रखने के लिए संघर्ष अनिवार्य हो गया है। हम युद्ध के इच्छुक नहीं है किन्तु यदि युद्ध हम पर थोप दिया गया तो भागना कायरता होगी’, उदयसिंह ने जोड़ा।
‘‘गुप्तचर का कार्य करने के लिए चन्दन को भी भेजा गया था। उसकी बात सुन लेना युक्ति संगत होगा,’ चन्द्रा ने अपनी बात रखी। महाराज का संकेत मिलते ही प्रतिहारी ने चन्दन को उपस्थित किया।
‘तुमने क्या जानकारी प्राप्त की?’ ‘महाराज ने प्रश्न किया।
‘महाराज मैं रानी जू की आज्ञा से दिल्ली का भेद लेने गया था। अनेक रूप बदलते हुए उनके अन्तरंग सहयोगियों एवं मन्त्रियों से सम्पर्क कर सका। महाराज ने चामुण्डराय को अनुशासित कर महोत्सव से निर्णायक युद्ध करने के लिए कहा है। चामुण्डराय के गुप्तचर महोत्सव में उपस्थित हो प्रयास कर रहे हैं कि जनता महाराज का साथ न दे। धर्म और जाति के आधार पर उन्होंने हमारे राज्य में विद्वेष फैलाने का षड्यन्त्र किया। पर अभी तक उन्हें सफलता नहीं प्राप्त हुई। महाराज चन्देल राज्य की एक जुटता पर आश्चर्य कर रहे थे। उन्होंने मन्त्रणा सभा में इस पर अपनी चिन्ता जताई। उनकी योजना अधिकारियों में भी फूट डालने की हैं। उन्हें विश्वास है कि.....‘कहकर चन्दन रुक गया।
महाराज ने पूछा, ‘क्यों रुक गये, उन्हें किस पर विश्वास है?’
‘महाराज, अपराध क्षमा हो। उन्हें विश्वास है कि मन्त्रिवर माहिल उनका सहयोग करेंगे। ’ इतना कह कर चन्दन चुप हो गया। माहिल का नाम आते ही सभा में सन्नाटा छा गया। उदयसिंह खड़े हो गए। उन्होंने कहा, ‘इतना ही नहीं, उन्होंने चन्द्रा के अपहरण की योजना बनाई। चन्दन और चित्रा की सतर्कता से दुर्घटना होते होते बच गई। चन्द्रा के उद्यान में दो सैनिक पकड़े गए हैं। उन्हें बन्दी गृह में डाल दिया गया है। महासचिव देवधर एवं कंचुकी गदाधर को सम्पूर्ण प्रकरण की जाँच करने का दायित्व दिया जाए।’ उदयसिंह के इस सुझाव का सभी ने समर्थन किया।
महाराज पृथ्वीराज के आक्रमण से बचाव के लिए चर्चा प्रारम्भ होने पर कुँवर लक्ष्मण ने युद्ध की तैयारी पर विशेष बल देने की बात कही। सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनके पारिश्रमिक आदि का युक्ति संगत भुगतान हो जाना चाहिए। चाहमान सेना का सामना किस स्थल पर किया जाय इस पर विभिन्नमत उभरे। कुछ लोग महोत्सव के निकट ही टक्कर देना चाहते थे। पर एक दूसरा पक्ष राज्य की सीमा पर ही उन्हें पटखनी देना चाहता था। इस पर पर्याप्त विचार विमर्श हुआ। हर पक्ष के अपने-अपने तर्क थे। रणनीति का ध्यान रखते हुए न बहुत निकट न बहुत दूर का सिद्धान्त स्वीकृत हुआ। शिशिरगढ़ के पतन के बाद चामुण्डराय ने कोंच के पास अपनी छावनी बना ली थी। यह निश्चित किया गया कि वेत्रवती के पार ही चाहमान सैन्य बल से लोहा लिया जाए। वहाँ जल का भी अभाव नहीं है। सैन्य तैयारियों को अन्तिम रूप देने के लिये महामन्त्री देवधर, ब्रह्मजीत, उदयसिंह, लक्ष्मण राणा की एक समिति बनाने का प्रस्ताव हुआ। महाराज ने इसे अपनी स्वीकृति दे दी।
सैन्य तैयारी पर चर्चा सम्पन्न होते ही महासचिव देवधर पुनःखडे़ हुए। उन्होंने कहा, ‘चन्देल वंश में महाराज हर्ष के समय से ही मन्दिर निर्माण का कार्य सतत चल रहा है। युद्ध की स्थिति पैदा होने पर भी प्राचीन काल में निर्माण की निरन्तरता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। महास्थपति पाल्हण मुझसे मिले थे। उन्होंने स्थपति समुदाय के आर्थिक संकट की चर्चा की थी। वे उदयसिंह जी से भी मिले थे। मैं चाहता हूँ कि उदयसिंह जी ही यह प्रकरण रखें।’’ उदयसिंह खड़े हो गए। उन्होंने कहा, ‘‘महाराज स्वयं कवि हैं। उनका हृदय कलाओं का सम्मान करना जानता है। हमारे महासचिव भी कवि हृदय रखते हैं और आचार्य जगनायक का कहना ही क्या है? चन्देल सत्ता सदैव कला के विकास के प्रति प्रतिबद्ध रही है। अतः मेरा निवेदन है कि मन्दिरों, तड़ागों का निर्माण यथावत् चलता रहे। शासन जो धन उपलब्ध करा सके स्वयं करे तथा सम्पन्न श्रेष्ठि वर्ग एवं जन मानस से दान हेतु अनुरोध करे। संगीत नृत्य केन्द्रों, शिक्षण संस्थानों के संचालन में किसी प्रकार का अवरोध नहीं आना चाहिए। सभी कार्य सुचारु रूप से चलते रहेंगे तो युद्ध में भी हम अधिक धैर्य एवं साहस के साथ उतर सकेंगे।’’ इतना कहकर उदयसिंह अपने आसन पर बैठ गए। सदस्यों ने विचार विनिमय में उदयसिंह के मत से सहमति जताई। महाराज ने भी अपनी स्वीकृति दे दी। महामन्त्री के श्लोक पाठ से सभा विसर्जित हो गई।