Kanchan Mrug - 35 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | कंचन मृग - 35. चुनौतियाँ बड़ी थीं

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कंचन मृग - 35. चुनौतियाँ बड़ी थीं

35. चुनौतियाँ बड़ी थीं-

उदयसिंह ने महोत्सव आकर दशपुरवा को व्यवस्थित किया। चुनौतियाँ बड़ी थीं। आक्रमण कारियों के गुप्तचर लम्बी एवं कष्टपूर्ण यात्राएँ करके भी सूचना संकलित करते। उन्हें अपने शासकों तक पहुँचाते। छोटे-छोटे राज्यों के साथ ही चाहमान, गहड़वाल, चन्देल जैसे विस्तृत भू-भाग के शासक अपनी महात्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु निरन्तर संघर्ष रत रहते। चन्देल शासक विद्याधर के समय में महमूद ने कान्यकुब्ज, कालिंजर पर आक्रमण कर अपनी उपस्थिति अंकित कराई। पूरे उत्तर भारत में निरन्तर युद्ध होने के कारण कुशल योद्धओं की माँग बनी रहती। योद्धा भी जिसका नमक खाते, अदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जंगल और बीहड़ दस्युओं की शरण स्थली बन जाते। इतना होते हुए भी शासक मन्दिर, कूप, उद्यान, सरोवर के निर्माण में विशेष रुचि लेते। चन्देल शासकों द्वारा खर्जूरवाहक के मन्दिरों का निर्माण यह इंगित करता है कि तलवार और छेनी साथ-साथ चलती रही। वह युग तलवार और लेखनी के संगम का था ही। संगीत और युद्धास्त्र भी साथ चलते। चाहमान राजसभा की कारु नटी, चन्देल की लाक्षणिका, जैसी नर्तकियाँ नृत्य एवं संगीत में पारंगत थी। सामान्य जन भी संगीत, साहित्य, नृत्य आदि में पर्याप्त रुचि लेते। कटुता एवं सरसता का यह सम्मिलन लोक नर्तकों का प्रिय विषय बन जाता।
उदयसिंह अपने कुछ सहायकों के साथ बैठे भावी योजनाओं की रूपरेखा बना रहे थे, उसी समय लाक्षणिका की शिविका आकर अकी। उदयसिंह को जैसे ही सूचना मिली, वे बाहर आ गए। उन्होंने उल्लसित हो लाक्षणिका का स्वागत किया। आदर के साथ लाकर उन्हें आसन्दी पर बिठाया।
‘‘मैं आपसे कुछ विचार- विमर्श हेतु आईं हूँ’’ लाक्षणिका के इतना कहते ही सहायक कक्ष से हट गए।
‘‘अवहित हूँ, क्या आज्ञा है?’’ उदयसिंह ने पूछा।
‘‘विश्वकर्मा पाल्हण कल मुझसे मिले थे। निरन्तर युद्ध की विभीषिका से खर्जूरवाहक के मन्दिरों का निर्माण शिथिल हो गया है। महास्थपति छिच्छा ने जिस तन्मयता से कार्य प्रारम्भ करवाया था आज उसके शिथिल पड़ जाने से सैकड़ों स्थपति परिवारों के समक्ष जीविका का संकट पैदा हो गया है। मै चाहती हूँ कि कला की यह पूजा किसी तरह से बन्द न हो। सलक्षण एवं पुरुषोत्तम द्वारा जिस वैष्णव मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ किया गया था, उसे भी पूर्णता तक पहुँचना चाहिए। मन्दिरों के माध्यम से कला तथा सरोवरों के माध्यम से जल की साधना चन्देलो के महत् कार्य रहे हैं। महाराज हर्ष के काल से खर्जूरवाहक में मन्दिरों का निमार्ण प्रारम्भ हुआ था।’ मातंगेश्वर मन्दिर उनके कला प्रेम का आज भी साक्षी है। महाराज यशोवर्मन के काल में लक्ष्मण मन्दिर, महाराज धंग के समय धर्माधिकारिन यशोधर की देख रेख में विश्वनाथ एवं पाश्-र्वनाथ मन्दिर, गंड के समय जगदम्बी और चित्रगुप्त तथा महाराज विद्याधर के राज्य काल में कन्दरिया महादेव का अद्भुत मन्दिर बना। विजय पाल, कीर्तिवर्मन, मदनवर्मन के समय वामन, आदिनाथ, जवारी, दूलादेव, चतुर्भुज आदि मन्दिरों का निर्माण उनकी धार्मिक दृष्टि एवं कलात्मक सजगता के आदर्श हैं। कहा जाता है स्थपति छिच्छा ने शताधिक मन्दिरों की योजना बनाई थी। उस महान कलाकार की आत्मा आज महोत्सव की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रही होगी। यह सच है हमने संगीत कक्षों से निकलकर वामा अनी तैयार की है, पर घुंघरुओं की मिठास कम नहीं हुई है। शस्त्र के साथ शास्त्र और कला का सामंजस्य होना ही चाहिए। आप जानते ही हैं, युद्ध का संचालन भी वाद्य से होता है। महोत्सव पर चाहमान आक्रमण का संकट है। पर खर्जूरवाहक के मन्दिर चन्देल सत्ता के कीर्तिमान हैं। हर शासक उन पर अधिकार करना चाहेगा। जैसा सुनाई पड़ता है कि चाहमान पृथ्वीराज ने खर्जूरवाहक की बैठक की माँग की है।’ कहते- कहते लाक्षणिका चुप हो गई। उदयसिंह जो अब तक चुपचाप सुन रहे थे, का मन उद्वेलित हो उठा।
‘‘माँ, आप का कहना सच है। पर मैं सोच रहा हूँ कि मैं कितनी सहायता कर सकता हूँ। महाराज से निवेदन किया जा सकता है, पर युद्ध इतना निकट है और सम्पूर्ण संसाधन जिस तीव्रगीत से युद्धास्त्रों एवं सेना की तैयारी में पुंजीभूत हो रहे हैं, यदि महाराज ने इस कार्य को स्थगित करने का निर्णय लिया तब?’’
‘हम लोग अपने आभूषण, धरोहर सब कुछ देकर भी निर्माण कार्य कराएँगे’, पुष्पिका ने आकर लाक्षणिका को प्रणाम करते हुए कहा।
‘मैंने अनायास पहुँचकर आप के विचार मन्थन में गतिरोध उत्पन्न किया। इसके लिये क्षमा प्रार्थी हूँ।’
‘गतिरोध नहीं, आपने एक दिशा दी है,’ लाक्षणिका ने कहा।
‘श्रेष्ठिवर एवं सामान्य जन पहले भी योगदान करते रहे हैं, आगे भी करेंगे।’
‘प्रश्न केवल स्थपति परिवारों की जीविका का नहीं है। खर्जूरवाहक के मन्दिरों का बनना चन्देलों के अस्तित्व से जुड़ा है,’ पुष्पिका ने जोड़ा।
‘महास्थपति पाल्हण कल धर्माधिकारिन और चन्द्रा से मिले थे। चन्द्रा भी उत्साहित हैं। वह आप से सम्पर्क करेंगी।’
‘दो दशक पूर्व से पाल्हण इस कार्य में लगे हैं। उन्होंने अनेक कलाकारों को प्रेरण दी है। उनकी निष्ठा देखकर किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है। बिना समर्पण के कला नहीं सधती। क्यों पुष्पिके?’
‘आपका कथन निर्विवाद है’, पुष्पिका ने समर्थन किया।
‘अब चलती हूँ, तुम्हीं पर सबकी दृष्टि टिकी है। महाराज से उचित निर्णय कराइए।’ उठते हुए लाक्षणिका ने कहा।
‘आप के निर्देश का पालन होगा,’ उदयसिंह और पुष्पिका भी उठकर लाक्षणिका की शिविका तक गए। हाथ जोड़कर प्रणाम किया।