जिस समय चारुचित्रा ईश्वर के समक्ष प्रार्थना कर रही थी उस समय उसके आँखों के अश्रु अविरल बहते ही जा रहे थे,कुछ समय प्रार्थना करने के पश्चात् वो राजमहल के प्राँगण में चिन्तित होकर टहलने लगी,तभी उसके समीप कालबाह्यी आकर बोली....
"रानी चारुचित्रा! आप तनिक भी चिन्ता ना करें,महाराज को कुछ नहीं होगा"
"मुझे झूठी सान्त्वना मत दो कालबाह्यी!",चारुचित्रा क्रोधित होकर बोली...
"आपके कहने का तात्पर्य नहीं समझी मैं",कालबाह्यी बोली...
"तात्पर्य....तुम तात्पर्य जानना चाहती हो तो सुनो, मैं ये पूर्ण विश्वास के साथ कह सकती हूँ कालबाह्यी! कि ये सबने तुमने ही किया है",चारुचित्रा क्रोधित होकर बोली...
"जी! आपका अनुमान पूर्णतः सही है,ये मैंने ही करवाया है",कालबाह्यी बोली...
"परन्तु क्यों? तुम तो महाराज से प्रेम करती हो,तब भी तुम ने उनके साथ ऐसा किया",चारुचित्रा ने पूछा...
"हाँ! क्योंकि मैं उस यशवर्धन को अपने मार्ग से हटाना चाहती थी,इसलिए यशवर्धन को अपने मार्ग से हटाने की मुझे यही युक्ति समझ आई",कालबाह्यी बोली....
"उसके लिए तुम्हें यशवर्धन को अपने मार्ग से हटाने की क्या आवश्यकता थी,यदि तुम महाराज को प्राप्त करना चाहती हो तो तुम इसके लिए मेरी हत्या क्यों नहीं कर देती",चारुचित्रा बोली...
"क्योंकि? आपकी हत्या करके मैं उन्हें प्राप्त नहीं कर सकती",कालबाह्यी बोली...
"क्यों? मेरी मृत्यु के पश्चात् तो उन्हें पाना तुम्हारे लिए और भी सरल हो जाएगा",चारुचित्रा बोली...
"नहीं! तब तो अत्यधिक कठिन हो जाएगा,क्योंकि वे आपसे तब भी प्रेम करते रहेगें,मैं उनके हृदय से आपकी छवि नहीं मिटा पाऊँगी",कालबाह्यी बोली...
"मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तुम बड़े असमंजस में हो कालबाह्यी! महाराज का प्रेम भी पाना चाहती हो और मेरी हत्या भी नहीं करना चाहती",चारुचित्रा बोली...
"तनिक असमंजस तो है रानी चारुचित्रा! मैं चाहती हूँ कि महाराज आपसे घृणा करने लगें,उनका मन आपके प्रति कुण्ठा से भर जाएंँ",कालबाह्यी बोली....
"जो कि इस जन्म में तो असम्भव है",चारुचित्रा बोली...
"असम्भव जैसा शब्द कालबाह्यी के शब्दकोश में नहीं है रानी चारुचित्रा! वो जो चाहती है उसे प्राप्त करके ही रहती है",कालबाह्यी बोली...
"कालबाह्यी! यदि तुमने महाराज को प्रेम एवं त्याग के साथ प्राप्त करने का प्रयास किया होता तो वे अब तक तुम्हारे हो गए होते ,किन्तु तुम उन्हें अपनी शक्तियों एवं षणयन्त्रो के द्वारा प्राप्त करने का प्रयास कर रही हो,इसलिए तुम अब तक उनके हृदय में अपना स्थान नहीं बना सकी",चारुचित्रा बोली....
"अब शान्त हो जाइए रानी चारुचित्रा! यदि ये वाक्य किसी और ने कहे होते तो वो तक मेरे समक्ष जीवित ना खडा होता",कालबाह्यी क्रोधित होकर बोली...
"प्रेम में क्रोध से नहीं संयम से काम लिया जाता है और संयम क्या होता है ये तो तुम जानती ही नहीं कालबाह्यी! ,चारुचित्रा बोली....
"अब आप अपनी सीमाएँ लाँघ रहीं हैं,कहीं ऐसा ना हो कि मैं कुछ ऐसा कर बैठूँ,जो किसी के लिए भी उचित ना हो",कालबाह्यी बोली...
"कालबाह्यी! यदि अब तुम्हारा वार्तालाप समाप्त हो गया हो तो तुम यहाँ से जा सकती हो,क्योंकि मैं तुमसे अभी और अधिक वाद प्रतिवाद नहीं करना चाहती,मेरे स्वामी इस समय स्वस्थ नहीं है और मुझे उनके शीघ्रता से स्वस्थ हो जाने की कामना करनी है",चारुचित्रा बोली...
"स्वस्थ तो वो यूँ हो सकते हैं यदि आप चाहें तो",कालबाह्यी बोली...
"मुझे ज्ञात है कालबाह्यी! कि तुम उन्हें स्वस्थ कर सकती हो,परन्तु मैं ऐसा नहीं चाहूँगी",चारुचित्रा बोली...
"किन्तु! मैं ऐसा ही करूँगीं और मैं उन्हें स्वस्थ करने जा रही हूँ",
और ऐसा कहकर कालबाह्यी वहाँ से चली गई,इसके पश्चात् वहाँ धवलचन्द्र आया तब कालबाह्यी उसे विराटज्योति के कक्ष में चुपके से लेकर गई और धवलचन्द्र ने अपनी शक्तियों द्वारा विराटज्योति को पूर्णतः स्वस्थ कर दिया, उसके पश्चात् वो शीघ्रता से उस कक्ष से अन्तर्धान हो गया,सचेत होते ही विराटज्योति ने अपनी आँखें खोलीं और चारुचित्रा को पुकारा,विराटज्योति के मुँख से चारुचित्रा का नाम सुनकर कालबाह्यी को अच्छा नहीं लगा,तब भी वो विराटज्योति से बोली....
"मैं अभी उन्हें बुलाकर लाती हूँ,वो आपके लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहीं हैं",
तब कालबाह्यी ने दूसरी दासी से रानी चारुचित्रा को बुला लाने को कहा,विराटज्योति के स्वस्थ होने की सूचना सुनकर चारुचित्रा उसके कक्ष में भागी चली आई,इसके पश्चात् उसने वैद्यराज को भी बुलावाया, वैद्यराज सूचना सुनकर शीघ्रतापूर्वक विराटज्योति के कक्ष में आए और उन्होंने उसकी नाड़ी जाँची एवं हृदय का स्पंदन जाँचकर देखा तो उन्हें बड़ा ही आश्चर्य हुआ क्योंकि विराटज्योति का इतनी शीघ्रता से स्वस्थ हो जाना ये उनके लिए किसी चमत्कार से कम ना था,अपनी संतुष्टि होने के पश्चात् वे रानी चारुचित्रा से बोले...
"अब महाराज बिलकुल स्वस्थ हैं,किन्तु ये तो मुझे कोई चमत्कार ही लग रहा है,ऐसा प्रतीत होता है कि किसी अलौकिक शक्ति ने इन्हें स्वस्थ किया है"
"वैद्यराज! चमत्कार तो सदैव से होते आए हैं,ये तो रानी चारुचित्रा की प्रार्थना का प्रभाव है,जो महाराज इतनी शीघ्रता से स्वस्थ हो गाए",कालबाह्यी बोली...
"जी! ऐसा ही हो सकता है,एक सती नारी की प्रार्थना बहुत कुछ कर सकती है,एक पत्नी अपने पति के लिए जो कर सकती है वो कोई नहीं कर सकता,विवाह का बंधन ऐसा बंधन होता है जो सारे बंधनो से परे होता है,एक पतिव्रता स्त्री अपने स्वामी के लिए आग का समुद्र भी पार कर सकती है और प्रलय को भी रोक सकती है,विवाह का बंधन बड़ा ही पवित्र एवं बलशाली बंधन होता है",वैद्यराज बोले...
"जी! वैद्यराज! आपने वैवाहिक सम्बन्ध को भली प्रकार से परिभाषित किया",चारुचित्रा कालबाह्यी की ओर देखकर बोली...
"अच्छा तो रानी चारुचित्रा! अब मैं चलता हूँ,महाराज को अब विश्राम करने दीजिए",
और ऐसा कहकर वैद्यराज वहाँ से चले गए तब रानी चारुचित्रा ने कालबाह्यी से कहा...
"मनोज्ञा! तुम अब कक्ष से बाहर जाओ,अब मैं इनका ध्यान रखती हूँ",
"जी! रानी चारुचित्रा!"
और ऐसा कहकर मनोज्ञा कक्ष से बाहर चली गई,तब विराटज्योति चारुचित्रा से बोला....
"देखा ना चारुचित्रा तुमने, वो यशवर्धन ही था,जिसने मुझ पर प्रहार किया",
"जी! मुझे ज्ञात है",चारुचित्रा बोली...
"मेरे प्रति उसके मन में इतना विष था,ये मुझे ज्ञात नहीं था",विराटज्योति बोला...
"जी! महाराज! उसे आपसे इतनी घृणा है कि उसने ऐसा कुकृत्य कर डाला",चारुचित्रा बोली...
"कदाचित! वो अभी तक तुम्हें भूला नहीं है,इसलिए उसने ऐसा किया",विराटज्योति बोला....
"अब ये तो मैं विश्वास के साथ नहीं कह सकती,क्योंकि उसकी घृणा का और कोई कारण भी तो हो सकता है"चारुचित्रा बोली...
"जो भी कारण रहा हो किन्तु ऐसा करने के पश्चात् भी वो मेरे और तुम्हारे सम्बन्ध के मध्य विष नहीं घोल पाया",विराटज्योति बोला...
"जी! चलिए अब आप विश्राम कीजिए",चारुचित्रा बोली....
"अब मैं स्वस्थ हूँ एवं कक्ष से बाहर जाना चाहता हूँ",विराटज्योति बोला....
"जी! यदि आपका मन बाहर जाने को कर रहा है तो आप बाहर जाइए,मैं कुछ समय पश्चात् आती हूँ",चारुचित्रा बोली...
इसके पश्चात् विराटज्योति राजमहल के प्राँगण में पहुँचा तो उसने देखा कि मनोज्ञा प्रांगण के स्तम्भ के समीप खड़ी होकर सुबक रही थी,तब विराटज्योति उसके पास गया और उसने उससे पूछा...
"क्या हुआ मनोज्ञा! तुम रो क्यों रही हो?"
"महाराज! मैं अब और अधिक मौन नहीं रह सकती,मैं आपसे प्रेम करती हूँ,कृपया आप मुझे अपने जीवन में स्थान दे दीजिए,नहीं तो मैं मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँगी",मनोज्ञा रोते हुए बोली...
"ये क्या कह रही हो तुम! ऐसा कदापि नहीं हो सकता,चारुचित्रा ही मेरी पत्नी है और सदैव वही मेरी पत्नी रहेगी",विराटज्योति बोला...
"मुझे ज्ञात है कि आप भी मुझसे प्रेम करते हैं,किन्तु ना जाने ऐसा कौन सा भय है जो आप इस बात को स्वीकार नहीं कर रहे हैं",मनोज्ञा बोली...
"मैं तुमसे कभी भी प्रेम नहीं कर सकता मनोज्ञा!",विराटज्योति बोला...
"मैंने आपकी आँखों में मेरे प्रति प्रेम देखा है",मनोज्ञा बोली...
"वो प्रेम नहीं आकर्षण था,कोई भी पुरुष किसी भी सुन्दर स्त्री की ओर आकर्षित हो सकता है,जो मेरे संग भी हुआ",विराटज्योति बोला...
"ये सत्य नहीं है महाराज!,आप मुझसे प्रेम करते हैं",मनोज्ञा बोली...
"ये सत्य है,मेरे जीवन एवं हृदय में केवल चारुचित्रा का ही स्थान है",विराटज्योति बोला....
तभी वहाँ पर चारुचित्रा आ पहुँची और उसने विराटज्योति एवं मनोज्ञा के मध्य हो रहे वार्तालाप को सुन लिया,परन्तु वो उस समय मौन रही....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....